लोगों को मौत की सौगात बाँटती एक सुरंग

ज़हरीली हुई लारजी यातायात सुरंग की हवा
सुरंग की दीवारों पर जमी दो इंच कार्बन की परत


.दिल्ली-मनाली राष्ट्रीय मार्ग पर हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड लिमिटेड द्वारा बनाई गई देश की सम्भवत: सबसे बड़ी यातायात सुरंग लारजी सुरंग अब जहर उगलने वाली सुरंग बन गई है और यह सुरंग यहाँ से गुजरने वाले यात्रियों को मौत की सौगात बाँटने लगी है। क्योंकि सुरंग मेंं ऐसी गैसें तैयार हो गई हैं जो मानव जीवन के लिये बेहद ही खतरनाक हैं।

सुरंग के अन्दर कार्बन गैस की दो इंच मोटी परत जम चुकी है जिसके कारण इस सुरंग के अन्दर से गुजरना मौत को दावत देने के समान है। वैज्ञानिकों की माने तो अगर कोई पूरी रात सुरंग में काट ले तो उसकी जान जाने की पूरी सम्भावना है।

वैज्ञानिकों के अनुसार सुरंग में ज़हरीली गैसों का गुब्बार बन चुका है। और सुरंग के अन्दर इन ज़हरीली गैसों ने न सिर्फ वहाँ की आबोहवा को ही खराब किया है बल्कि मानव जीवन पर भी कहर बरपाना शुरू कर दिया है।

उल्लेखनीय है कि सुरंग के अन्दर से रोज़ाना हजारों वाहन गुजरते हैं और उनमें भारी संख्या में पर्यटक व आम लोग आते-जाते हैं जो इन ज़हरीली गैसों की चपेट में आ रहे हैं। उधर वैज्ञानिकों की मानेें तो यह ज़हरीली गैस जहाँ पर्यावरण के लिये नुक्सानदायक है वहीं मनुष्य के जीवन के लिये भी बेहद खतरनाक है।

यह ज़हरीली गैस यहाँ से गुजरने वाले लोगों के फेफड़ों को सीधे तौर पर नुकसान पहुँचा रही है। इसके अलावा अन्य कई गम्भीर बीमारियों को न्यौता दे रही है। परिणामस्वरूप इस सुरंग से रोज़ाना गुजरने वाले हजारों लोगों के फेफड़ों को नुकसान पहुँच रहा है।

सामरिक व पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण पठानकोट-लेह मार्ग पर बनी इस सुरंग से सिर्फ पर्यटक ही आवागमन नहीं करते हैं बल्कि कारगिल व इण्डो-तिब्बत सीमा पर तैनात होने वाले सेना के जवान भी यहीं से होकर जाते हैं और आम लोगों का भी यहीं से आवागमन है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह की ज़हरीली गैस वाली हवा आदमी के लिये नुकसानदायक है। इसलिये इस सुरंग में ज्यादा देर तक नहीं रुकना चाहिए और वाहन के शीशे बन्द करके इस टनल के अन्दर चलना चाहिए ताकि ज़हरीली गैस शरीर के अन्दर न जा सके।

फेफड़ों को हो सकता है नुकसान : सावंत


मौहल स्थित जीबी पन्त हिमालयन एवं पर्यावरण संस्थान के वैज्ञानिक प्रभारी डॉ. एसएस सावंत का कहना है कि सुरंग लम्बी होने के कारण इसमें हवा का दबाव नहीं है जिस कारण हवा या गैस बाहर नहीं निकल पाती है और यदि यहाँ से गुजरने वाली गाड़ियों के शीशे बन्द करके नहीं चलते हैं तो लोगों के फेफड़ों को नुकसान पहुँच सकता है।

सावंत का मानना है कि सुरंग के अन्दर रुकना तो काफी खतरनाक साबित हो सकता है। लगभग पौने तीन किमी लम्बी इस सुरंग में हवा के दबाव के लिये निकासी का कोई इन्तज़ाम नहीं है और इतनी लम्बी सुरंग में एक सिरे से प्रवेश हवा का दबाव दूसरे सिरे तक पहुँचने तक समाप्त हो जाता है। जिस कारण वाहनों से निकलने वाला धुआँ सुरंग के अन्दर जहर बन गया है।

बहरहाल लारजी यातायात सुरंग अब यहाँ गुजरने वालों को मौत बाँटने वाली सुरंग बन गई है और यहाँ से गुजरने वालों को सावधानियाँ बरतनी होगी। अन्यथा सुरंग की जहरीली गैस उनके लिये जानलेवा साबित हो सकती है।

सुरंग की दीवारों में वाहनों से निकलने वाली कार्बन व नाइट्रोजन गैस भारी मात्रा में है तथा दीवारों में कार्बन की मोटी परत जम गई है। सुरंग के अन्दर जहरीली गैसों के दबाव के कारण ज्यादा देर तक खड़े नहीं हो सकते हैं।

सुरंग में नहीं आपदा प्रबन्धन का इन्तजाम


दिल्ली-मनाली राष्ट्रीय मार्ग पर बनी देश की सबसे बड़ी यातायात सुरंग में आपदा प्रबन्धन का कोई इन्तजाम नहीं है, जबकि यहाँ से हर रोज हजारों वाहनों की आवाजाही होती है।

एक तरफ सुरंग के अन्दर की हवा वाहनों के धुएँ से ज़हरीली हो रही है जो आने-जाने वालों को मौत की सौगात बाँट रही है तो दूसरी तरफ सुरंग में परियोजना प्रबन्धन द्वारा आपदा से निपटने के लिये कोई भी इन्तज़ाम नहीं किये हैं। जबकि सुरंग की हालत यह है कि बरसात के मौसम में तो यह पूरी सुरंग ही रिसती रहती है मगर वैसे भी बारिश के दौरान सुरंग में पानी का रिसाव बड़े पैमाने पर होता है।

लारजी सुरंगलेकिन इस आने वाले खतरे के प्रति कोई भी गम्भीर नहीं है। सुरंग के अन्दर हादसा होने की स्थिति में सुरंग के बाहर सम्पर्क करने के लिये कोई साधन नहीं है और न ही सुरंग के ढह जाने की स्थिति में सुरंग के बीच से बाहर निकलने के वैकल्पिक मार्ग हैं जो बनाए भी गए हैं उनकी किसी को भी जानकारी नहीं है।

सुरंग के अन्दर मोबाइल फोन का सिग्नल न होने व अन्य सम्पर्क का कोई साधन न होने की स्थिति में सुरंग के अन्दर होने वाले हादसे की जानकारी किसी को भी समय पर नहीं मिल सकती है। सुरंग में पुलिस की पेट्रोलिंग भी औपचारिकता भर के लिये है। इसके अलावा सुरंग के अन्दर वाहनों में आग लगने पर उससे बचाव का भी कोई प्रबन्ध नहीं किया गया है।

सुरक्षा के कोई प्रबन्ध नहींं


लारजी सुरंग के अन्दर सुरक्षा के भी कोई इन्तज़ाम नहीं है। सुरंग के दोनों मुहानों पर सुरक्षाकर्मियों की कोई तैनाती नहीं है और यह भी कोई जानकारी नहीं होती है कि इस सुरंग से कौन कब गुजरा और सुरंग के अन्दर जाने वाला कितनी देर बाद सुरंग से बाहर निकला और उसकी गतिविधियाँ किस प्रकार की थी।

जबकि सुरंग के अन्दर पुलिस की तैनाती या गश्त लगातार रहनी चाहिए ताकि कोई असामाजिक तत्त्व सुरंग के अन्दर किसी प्रकार की अनहोनी को अंजाम न दे सके। यही नहीं सुरंग के अन्दर व बाहर कहीं भी सीसीटी कैमरा भी नहीं लगाए गए हैं।

जानकारों की माने तो सेना ने इन्हीं कमियों को देखते हुए और सुरंग में हो रहे लगातार रिसाव के कारण इस सुरंग को असुरक्षित करार दे दिया है।

सुरंग में बढ़ रहे हैं वाहन हादसे


इस यातायात सुरंग में वाहनों के हादसे भी बढ़ने लगे हैं और कई मौतें वाहनों के हादसों में हो चुकी है हालांकि सुरंग में वाहनों की आवाजाही सुरक्षित हो इसके लिये सुरंग के एक मुहाने पर वाहनों की गति सीमा 30 किलोमीटर प्रतिघंटा लिखा हुआ बोर्ड तो लगा दिया है लेकिन इसका पालन कोई नहीं करता है और पुलिस भी सुरंग के अन्दर वाहनों की गति सीमा पर नियंत्रण रखने के लिये आज तक गम्भीर नहीं हुई है।

जिसके चलते इस सुरंग में पिछले कुछ समय से हादसे बढ़ रहे हैं। सुरंग के अन्दर एक-दूसरे वाहनों से आगे निकलने की होड़ में वाहनों को ओवरटेक करने का करतब भी सुरंग में खूब खेला जाता है जिसके कारण सुरंग में लगातार दुर्घटनाओं में बढ़ोत्तरी हो रही है। क्योंकि अधिकतर वाहन चालकों को सुरंग के अन्दर मोड़ व उतार-चढ़ाव का अन्दाजा नहीं होता है और वाहन की गति पर नियंत्रण नहीं रख पाते हैं और दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।

आधे से ज्यादा लाइटें खराब


इस सुरंग के अन्दर लगी लाइटों में 50 फीसदी लाइटें ऐसी हैं जो जलती ही नहीं है। जिसके चलते इस सुरंग के अन्दर कई स्थान ऐसे भी हैं जहाँ घुप अन्धेरा होता है। करीब तीन किलोमीटर लम्बी इस यातायात सुरंग में गुजरना वाहनों के लिये खतरनाक साबित हो रहा है।

साल 2006 में बनी है सुरंग


हिमाचल प्रदेश सरकार की कम्पनी एचपीपीसीएल ने जब लारजी में बिजली परियोजना के लिये बाँध बनाया था तो उस समय मंडी-कुल्लू और बंजार को जोड़ने वाली सड़क औट और लारजी के बीच एक परियोजना के बाँध में समा गई थी।

ऐेसे में 30 अगस्त 2004 को यहाँ यातायात सुरंग का निर्माण शुरू हुआ था और 6 अगस्त 2006 को सुरंग बनकर तैयार हुई थी हालांकि उस समय इस यातायात सुरंग का स्वरूप बहुत ही अच्छा था लेकिन धीरे-धीरे यह सुरंग उपेक्षा का शिकार होती गई और आज हालत यह है कि यह सुरंग हर तरह से खतरनाक साबित होने लगी है।

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Post By: RuralWater
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