300 मेगावाट क्षमता की लखवाड़ विद्धुत परियोजना एक बार फिर पेंच में फंस गया है। 43 साल पहले इस परियोजना को वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी मिली थी जिस पर आपत्ति लग गयी है। इसके बाद राज्य को अब नए सिरे से इस प्रोजेक्ट हेतु वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी लेनी होगी। लखवाड़ प्रोजेक्ट को पहली बार 1976 में पहली बार योजना आयोग ने मंजूरी दी थी। 1987 में प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ, लेकिन चार वर्ष बाद ही 1992 में ही इस पर काम रोक दिया गया। लखवाड़ प्रोजेक्ट पर करीब 30 प्रतिशत काम पूरा भी हो गया है। डैम की स्टेपिंग के साथ ही अंदरूनी सड़कें बनी हुई हैं। पावर हाउस का अंडरग्राउंड काम भी लगभग 80 प्रतिशत पूरा हो चूका है। पिछले पांच साल से केन्द्रीय कैबिनेट से वित्तीय मंजूरी का इंतज़ार था। इससे पहले कि यह मंजूरी मिलती, इससे पहले ही पूर्व में मिली वन एवं पर्यावरण मंत्रालय मंत्रालय की मंजूरी पर आपत्ति लगा दी गयी है। इस पर तर्क यह दिया गया कि 43 साल पहले जो मंजूरी दी गयी थी, अब उसका कोई मतलब नहीं है। ऐसे में राज्य को नए सिरे से वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की पुनः एनओसी लेनी होगी।
उत्तराखंड जल विद्युत निगम लिमिटेड के एमडी एसएन शर्मा बताते हैं "लखवाड़ हाइड्रो प्रोजेक्ट" में अब केंद्र से औपचारिक मंजूरी मिलनी शेष थी। अब नये सिरे से वन एवं पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी के लिए कहा जा रहा है। मंजूरी लेने को नये सिरे से प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
वन भूमि पहले ही हो चुकी है हस्तांतरित
इस प्रोजेक्ट में 780 हेक्टेयर वन भूमि पहले ही हस्तान्तरित हो चुकी है। 105 हेक्टेयर नापभूमि का अधिग्रहण होने के साथ ही मुआवजा तक बंट चुका है। अब सिर्फ इस भूमि पर बसे 850 परिवारों को अनुग्रह राशि बांटी जानी है। जो राज्य सरकार 75 लाख प्रति हेक्टेयर तय कर चुकी है। अब इस प्रोजेक्ट के लिए सिर्फ 50 हेक्टेयर भूमि का और अधिग्रहण किया जाना है। इसमें भी करीब 50 परिवार आ रहे हैं।
1976 में योजना आयोग ने दी थी प्रोजेक्ट को मंजूरी, 1987 में शुरू हुआ काम, 1992 में रोक दिया गया
राज्य की कुल बिजली उत्पादन क्षमता 25 हजार मेगावाट है, मौजूदा समय में राज्य का बिजली उत्पादन 1300 मेगावाट है, वहीं राज्य की वर्तमान बिजली की जरूरत 2000 मेगावाट है,
निकट भविष्य के पावर प्रोजेक्ट-120 मेगावाट व्यासी प्रोजेक्ट, 300 मेगावाट लखवाड़, 330 मेगावाट किसाऊ हाइड्रो प्रोजेक्ट
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