डकैतों की शरणस्थली यमुना के बीहड़ में बब्बर शेर अगले कुछ महीनों में ही दहाड़ेंगे। यमुना के किनारे करीब 2912 एकड़ ज़मीन में फैला हुआ यह फिशर वन पिछले चार दशक से डकैतों की शरणस्थली हुआ करता था। इटावा में निर्माणाधीन लायन सफारी में फरवरी में बब्बर शेरों का जोड़ा रहने के लिए आ जाएगा। यह जोड़ा बनने वाले ब्रीडिंग सेंटर में आकर रहेगा। पूरे देश में केवल 411 शेर बचे हुए हैं, उनका यहां पर प्रजनन केंद्र भी खोला जाएगा। 45.65 करोड़ की लागत से बन रही परियोजना में अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानक रखे गए हैं। ब्रीडिंग सेंटर का काम इस वर्ष के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा। ख़ूँख़ार डाकुओं के सफाए के बाद मुलायम सिंह यादव के शहर इटावा में स्थापित की जा रही लायन सफारी को विश्व पटल पर लोकप्रिय बनाने की बेहद जरूरत है। यह सोचना है सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव का। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव अपने मुख्यमंत्री बेटे अखिलेश यादव को इस बाबत संदेश दे दिया है इसी आधार पर अखिलेश यादव ने भी बोल दिया है कि लायन सफारी की भव्यता को बरकरार रखने में कोई कमी नहीं रखी जाएगी। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने ड्रीम प्रोजेक्ट लायन सफारी का अवलोकन किया। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने कड़ी सुरक्षा के बीच लायन सफारी के पिकनिक स्पाट पर आकर टेलीस्कोप से निरीक्षण किया। लायन सफारी के मैप के अलावा वन्य जीवों के चित्रों को भी निहारा। बताते चले कि सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने अपने 2003 के मुख्यमंत्रित्व काल में लायन सफारी की शुरूआत कराई थी लेकिन सरकार चले जाने के बाद इस प्रोजेक्ट पर काम रुक गया था मायावती की सरकार जाने के बाद अखिलेश यादव जैसे ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने अपने पिता मुलायम सिंह यादव के सपने को साकार करने में जुट गए हैं।
विलायती बबूल से फिशर वन को अगले कुछ सालों में बिल्कुल मुक्ति मिल जाएगी। प्रदेश सरकार ने वन क्षेत्र का ईको रेस्टोरेशन करने का फैसला लिया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के निर्देश पर फिशर वन को विलायती बबूल से पूरी तरह मुक्त करके चौड़ी पत्ती वाली प्रजातियों के पेड़ों का रोपण करने का कार्य शुरू किया गया है। इस कार्यक्रम के तहत 1000 एकड़ में 1 लाख 53 हजार 200 पौधे रोपित किए गए। एक ही स्थान पर पौधों के रोपण का यह सबसे बड़ा प्रयास माना जा रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत नीम, शीशम, पीपल, बरगद, पाकड़, बेल, महुआ, कदम्ब, सिरस, अकेसिया, अरिकुलीफार्मिसव इमली के पौधे रोपित किए जा रहे हैं।
डकैतों की शरणस्थली यमुना के बीहड़ में बब्बर शेर अगले कुछ महीनों में ही दहाड़ेंगे। यमुना के किनारे करीब 2912 एकड़ ज़मीन में फैला हुआ यह फिशर वन पिछले चार दशक से डकैतों की शरणस्थली हुआ करता था। इटावा में निर्माणाधीन लायन सफारी में फरवरी में बब्बर शेरों का जोड़ा रहने के लिए आ जाएगा। यह जोड़ा बनने वाले ब्रीडिंग सेंटर में आकर रहेगा। पूरे देश में केवल 411 शेर बचे हुए हैं, उनका यहां पर प्रजनन केंद्र भी खोला जाएगा। 45.65 करोड़ की लागत से बन रही परियोजना में अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानक रखे गए हैं। ब्रीडिंग सेंटर का काम इस वर्ष के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा। 1000 एकड़ क्षेत्र में पौधरोपण का कार्य किया गया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 1 लाख 53 हजार 240वें पौधे का रोपण किया है। पूरे क्षेत्र में 20 प्रजातियों के पौधे लगाए जा रहे हैं। प्रदेश में वन विभाग को 4.4 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य दिया गया था जिसके सापेक्ष विभाग ने 5.5 करोड़ पौधे रोपे हैं।
कुख्यात डाकुओं की शरणस्थली के रूप में बदनाम रही चंबल घाटी को पर्यटकों के लिए आबाद करने की मंशा के तहत लायन सफारी प्रोजेक्ट के बहुत जल्दी पूरा होने की उम्मीद हो चली है। लायन सफारी को सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है लेकिन 2007 में उत्तर प्रदेश में मायावती ने सत्ता में आते ही बदले की भावना से काम करते हुए इस प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। चंबल इलाके में काबिज होने वाले इस प्रोजेक्ट के बारे में कहा जा रहा है कि इससे पहले इस तरह का कोई दूसरा प्रोजेक्ट उत्तर प्रदेश के किसी भी दूसरे हिस्से में नही है। देश में इस तरह का प्रोजेक्ट सिर्फ गुजरात में स्थापित है।
2003 में जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी सत्ता में आई तो उस समय इटावा समेत पूरी चंबल घाटी में कुख्यात डाकुओं का आतंक चरम पर था ऐसे में मुलायम सिंह यादव ने डाकुओं की छाप से इटावा को मुक्त कराने के मकसद से पहले तो डाकुओं का सफ़ाया कराया उसके बाद इटावा को पर्यटन मानचित्र पर लाने की गरज से बीहड़ में लायन सफारी की स्थापना की रूपरेखा शुरू कराई। इटावा मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित फिशर वन इटावा में आज़ादी से पहले तैनात रहे अँग्रेज़ अफसरों के लिए मनोरंजन का खासा स्थान बना रहा है। पहले इस इलाके में पानी को रोकने के लिए एक बड़ा बांध बनाया गया था लेकिन वक्त की मार के चलते यह बांध अब पूरी तरह से टूट चुका है। फिशरवन अंग्रेज अफसरों की यह शिकारगाह रही है। यहां पर इटावा के महाजन लोग अंग्रेज अफसरों के लिए हिरन,सांभर,चीतल और तेदुओं को पहले शिकारियों के जरिए पकड़वा कर अंग्रेज हुक्मरानों के सामने उनके शिकार के लिए पेश किए जाते थे फिर अंग्रेज गोली से उनका शिकार करके खुश हुआ करते थे। जानवरों के मरने के बाद उसके मांस को वही पर पकाकर खाने का क्रम भी अंग्रेज अफ़सर अपने परिवार के साथ किया करते थे। फिशर वन इलाक़ा उस समय शीशम के पेड़ों से हरा-भरा हुआ करता था खासी तादाद में इस इलाके में शीशम के पेड़ हुआ करते थे लेकिन अब वन माफियाओं ने इस इलाके पर अपनी नजर गड़ा रखी है इस वजह से इस इलाके में शीशम का कोई पेड़ नही रह गया है।
इस वन खण्ड में मुख्यतया बीहड़ तथा थोड़ी समतल बंजर भूमि है जहां यमुना और चम्बल की पुरानी कन्दराएं हैं। ऐसा आभास होता है कि नदी के किनारे की भूमि की संरचना कटान के कारण बीहड़ बनी है। इन बीहड़ों का विशाल क्षेत्र जो कि अन्य किसी भी उपयोग के लिए अनुपयुक्त था भारी चरान तथा अविवेक पूर्ण कटान व शाख तराशी का शिकार बना। इटावा के तत्कालीन ज़िलाधीश जे.एफ. फिशर के सन् 1884 में अपने प्रारंभिक प्रयासों से उन उम्मीदों को जिसके पास इटावा शहर के पश्चिम की दिशा में बीहड़ ज़मीन थी, को अपनी इच्छानुसार 1146.07 हेक्टेयर ज़मीन ज़िलाधीश को सौंप देने के लिए राजी किया ताकि भूमि को क्षरण व अधिक ह्रास से बचाया जा सके तथा ईंधन व चारे के आरक्षित वन बनाए जा सकें। जमीदारों को ही इस कार्य के लिए आवश्यक धन उपलब्ध कराना था तथा इससे जो भी लाभ होता उसको दिए गए धन तथा अर्जित की हुई भूमि के अनुसार विभाजित करके चुकाना था। कार्य उसी वर्ष प्रारम्भ हो गए, क्षेत्र चरान के लिए बंद कर दिया गया और उसकी साधारण हल से जुताई कर इसमें बबूल, शीशम तथा नीम के बीजों को बोया गया। बीहड़ में जगह-जगह पर बंधे बनाए गए ताकि जल व नमी का संरक्षण किया जा सके तथा जल स्तर ऊपर आ सके। बबूल की बढ़त इतनी उत्साहवर्द्धक थी कि कानपुर के कूपर एलैन कम्पनी ने सन् 1902 में पूरा जंगल बबूल की छाल निकालने हेतु 2.50 रुपया प्रति हेक्टेयर पर 50 वर्ष के पट्टे पर लेने को आकर्षित हुई।
कानपुर के चमड़े के कारख़ानों में बबूल की छाल की आपूर्ति बढ़ाने तथा कारख़ानों के निकट बबूल के भंडार स्थापित करने के उद्देश्य से कालपी बीहड़ों में तथा आटा रेलवे स्टेशन के दक्षिण में स्थित पिपरायां में खेती योग्य ज़मीन जुताई कर बनाई गई। वनीकरण कार्य बीहड़ों में बंधे बनाने के कार्य के साथ प्रारम्भ किया गया। प्रारम्भ में परिणाम आशाजनक प्रतीत हुए परन्तु अंतिम सफलता दूर ही रही। आर्थिक दृष्टि से यह रोपवन असफल रहा। सन् 1912 के प्रारम्भ में सरकार के सम्मुख नए जंगलों को लगाने की विशेष तथा उन जंगलों जिनकी आवश्यकता कृषि जनक मांगों को पूरा करने के लिए थी, के लिए एक निश्चित नीति निर्धारित करने की थी, परिणामस्वरूप उपलब्ध क्षेत्रों के साथ विभिन्न वर्गों की बंजर भूमि में वनीकरण के उपयोग के लिए आदेश दिए गए।
कूपर एलैन कम्पनी ने सन् 1914 तक फिशर वन का व्यवहारिक रूप से विस्तार कर लिया था जो कि उन्होंने 1902 में बबूल की छाल के लिए पट्टे पर लिया था। वन विभाग की निगाहें इस क्षेत्र पर पहले से थी, जिसमें कुछ सफलता दृष्टिगोचर हुई थी। अन्य क्षेत्रों में किए गए प्रथम वर्ष के वृक्षारोपण के उत्साहजनक परिणामों से वन विभाग अपने अधीन क्षेत्रों का विस्तार करने को इच्छुक था। कम्पनी ने रु. 2500.00 पट्टे की कीमत तथा रु. 2,382.00 जमीदारों के वार्षिक किराए सहित इस क्षेत्र के पट्टे को वन विभाग को स्थानान्तरित कर दिया। इस प्रकार फिशर वन 1914 से ही वन विभाग के नियंत्रण में है।
वनीकरण कार्य वर्ष 1913 के पश्चात् मुख्यतः दो प्रकार से किए गए, पहला नालों या अन्य उपयुक्त स्थलों पर बंधे बनाकर बढ़ते हुए भू-क्षरण को रोकना, दूसरा उपयुक्त प्रजातियों का पौधा रोपण या बीजारोपण कर भूतल को एक वनस्पतिक आवरण प्रदान करना जो प्रारम्भ में भूमि को अपक्षरित होने से बचाए तथा भविष्य में एक ईंधन का भंडार भी बने। बीजारोपण तथा पौधारोपण की विधि के अंतर्गत ऊँची समतल भूमि पर 20 से.मी. गहरा हल चलाया गया, 3-3 मीटर की दूरी पर 30 से.मी. ऊँची तथा 60 से.मी. चौथी आधार वाली समानान्तर कूट बनाई गई जिनके ऊपर और एक उथली बनाई गई, जिसमें शीशम, नीम, कंजी आदि के पौधों का रोपण किया गया तथा बबूल, नीम, पापड़ी के बीजों का कूटों में बुहान किया गया। जगह-जगह पर जल व मृदा संरक्षण हेतु नालों में बंधे बनाए गए तथा सही विधि बीहड़ों के तल के मैदानी भागों के लिए भी अपनाई गई।
फिशर फॉरेस्ट (प्रस्तावित लॉयन सफारी पार्क) क्षेत्र में कालान्तर में चौड़ी पत्ती का अच्छा वन स्थापित हो गया था, जिसकी मुख्य प्रजातियाँ शीशम, सेमल, नीम, कंजी तथा बांस थीं। जैविक दबाव के कारण चौड़ी पत्तियों की प्रजातियों के वृक्षों में निरंतर ह्रास होता गया, इन परिस्थितियों में भूमि को क्षरण से बचाने तथा ईंधन, चारे की निरंतर बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विलायती बबूल के बीजों का छिड़काव सन् 1985 तथा उसके बाद कई वर्षों में किया जाता रहा, क्योंकि यह एक ऐसी प्रजाति थी जो अत्यंत ही अवनत भूमि पर कम से कम पानी की आवश्यकता के साथ शीघ्रता से बढ़ सकती थी। परिणामस्वरूप उक्त वन क्षेत्र में प्रोसोपिस (विलायती बबूल) का घनत्व बढ़ता गया एवं वर्तमान में इस खेत्र ने प्रोसोपिस वन का रूप ले लिया है, फिर भी बीच-बीच में वनस्पतियों की अन्य प्रजातियाँ भी हैं एवं उन प्रजातियों के रूट स्टॉक भी पर्याप्त मात्रा में फिशर फारेस्ट क्षेत्र में विद्यमान हैं।
इटावा और आसपास के इलाके में पर्यावरणीय दिशा में काम कर रहे डॉ. राजीव चौहान का कहना है कि लायन सफारी प्रोजेक्ट के शुरू हो जाने के बाद इटावा जहां पर्यटक मानचित्र पर आ जाएगा वहीं इटावा की डाकू छाप से भी इटावा को मुक्ति मिल जाएगी। इस इलाके में आसपास के लोग अभी भी नीलगाय जैसे जानवरों को शिकार करने के लिए आते रहते हैं। उनका कहना है कि जब इस इलाके में लायन सफारी प्रोजेक्ट की शुरूआत हो जाएगी तब इस इलाके का व्यापक विकास शुरू हो जाएगा। मुलायम सरकार ने एशियाटिक लायन (भारतीय शेर) को संरक्षण के लिए चंबल सेंचुरी क्षेत्र में यह परियोजना बनाई थी। यह शेर केवल गुजरात के गिर के जंगलों में ही पाया जाता है। इसको इटावा शहर के निकट यमुना और चंबल के बीहड़ में वन विभाग की फिशर फोरेस्ट जगह पर खोले जाने की योजना थी। 150 हेक्टेयर क्षेत्र में यह खुलना था। पर्यावरण को लेकर विशेष संजीदा रहने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से इटावा के लोगों को उम्मीदें हैं कि यह परियोजना शीघ्र शुरू होगी। इससे इटावा को पर्यटन के क्षेत्र में एक नई दिशा मिल सकेगी।
चंबल और यमुना के बीहड़ी क्षेत्र के प्रति बढ़ते टूरिज़्म आकर्षण से ये योजना अब भी उतनी ही उपयोगी है। जितनी पांच साल पहले फाइल में कैद होने के समय थी। वन विभाग द्वारा बनाई गई कार्ययोजना विशेष श्रेणी के जू के रूप में तैयार की गई थी। योजना के महत्व के बारे में कहा गया था कि दो सौ साल तक उत्तर भारत में सहजता से पाया जाने वाला एशियाटिक लायन (भारतीय शेर) अब मुख्य रूप से केवल गुजरात के गिर के जंगलों में ही बचा है। वहां भी स्थान की तुलना में इनकी संख्या अधिक हो चुकी है। जो उनके स्वाभाविक विकास के लिए ठीक नहीं है। इस प्रकार एक अन्य प्राकृतिक आश्रय स्थल इस वन्य जीव के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है।
इटावा के बीहड़ी क्षेत्र को इसलिए चुना गया था क्योंकि इसकी वनस्पतियों और वन्य स्थिति में गिर के जंगल से काफी समानता है।
विलायती बबूल से फिशर वन को अगले कुछ सालों में बिल्कुल मुक्ति मिल जाएगी। प्रदेश सरकार ने वन क्षेत्र का ईको रेस्टोरेशन करने का फैसला लिया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के निर्देश पर फिशर वन को विलायती बबूल से पूरी तरह मुक्त करके चौड़ी पत्ती वाली प्रजातियों के पेड़ों का रोपण करने का कार्य शुरू किया गया है। इस कार्यक्रम के तहत 1000 एकड़ में 1 लाख 53 हजार 200 पौधे रोपित किए गए। एक ही स्थान पर पौधों के रोपण का यह सबसे बड़ा प्रयास माना जा रहा है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत नीम, शीशम, पीपल, बरगद, पाकड़, बेल, महुआ, कदम्ब, सिरस, अकेसिया, अरिकुलीफार्मिसव इमली के पौधे रोपित किए जा रहे हैं।
डकैतों की शरणस्थली यमुना के बीहड़ में बब्बर शेर अगले कुछ महीनों में ही दहाड़ेंगे। यमुना के किनारे करीब 2912 एकड़ ज़मीन में फैला हुआ यह फिशर वन पिछले चार दशक से डकैतों की शरणस्थली हुआ करता था। इटावा में निर्माणाधीन लायन सफारी में फरवरी में बब्बर शेरों का जोड़ा रहने के लिए आ जाएगा। यह जोड़ा बनने वाले ब्रीडिंग सेंटर में आकर रहेगा। पूरे देश में केवल 411 शेर बचे हुए हैं, उनका यहां पर प्रजनन केंद्र भी खोला जाएगा। 45.65 करोड़ की लागत से बन रही परियोजना में अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानक रखे गए हैं। ब्रीडिंग सेंटर का काम इस वर्ष के अंत तक पूरा कर लिया जाएगा। 1000 एकड़ क्षेत्र में पौधरोपण का कार्य किया गया है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 1 लाख 53 हजार 240वें पौधे का रोपण किया है। पूरे क्षेत्र में 20 प्रजातियों के पौधे लगाए जा रहे हैं। प्रदेश में वन विभाग को 4.4 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य दिया गया था जिसके सापेक्ष विभाग ने 5.5 करोड़ पौधे रोपे हैं।
कुख्यात डाकुओं की शरणस्थली के रूप में बदनाम रही चंबल घाटी को पर्यटकों के लिए आबाद करने की मंशा के तहत लायन सफारी प्रोजेक्ट के बहुत जल्दी पूरा होने की उम्मीद हो चली है। लायन सफारी को सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट कहा जाता है लेकिन 2007 में उत्तर प्रदेश में मायावती ने सत्ता में आते ही बदले की भावना से काम करते हुए इस प्रोजेक्ट को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। चंबल इलाके में काबिज होने वाले इस प्रोजेक्ट के बारे में कहा जा रहा है कि इससे पहले इस तरह का कोई दूसरा प्रोजेक्ट उत्तर प्रदेश के किसी भी दूसरे हिस्से में नही है। देश में इस तरह का प्रोजेक्ट सिर्फ गुजरात में स्थापित है।
2003 में जब उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी सत्ता में आई तो उस समय इटावा समेत पूरी चंबल घाटी में कुख्यात डाकुओं का आतंक चरम पर था ऐसे में मुलायम सिंह यादव ने डाकुओं की छाप से इटावा को मुक्त कराने के मकसद से पहले तो डाकुओं का सफ़ाया कराया उसके बाद इटावा को पर्यटन मानचित्र पर लाने की गरज से बीहड़ में लायन सफारी की स्थापना की रूपरेखा शुरू कराई। इटावा मुख्यालय से करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित फिशर वन इटावा में आज़ादी से पहले तैनात रहे अँग्रेज़ अफसरों के लिए मनोरंजन का खासा स्थान बना रहा है। पहले इस इलाके में पानी को रोकने के लिए एक बड़ा बांध बनाया गया था लेकिन वक्त की मार के चलते यह बांध अब पूरी तरह से टूट चुका है। फिशरवन अंग्रेज अफसरों की यह शिकारगाह रही है। यहां पर इटावा के महाजन लोग अंग्रेज अफसरों के लिए हिरन,सांभर,चीतल और तेदुओं को पहले शिकारियों के जरिए पकड़वा कर अंग्रेज हुक्मरानों के सामने उनके शिकार के लिए पेश किए जाते थे फिर अंग्रेज गोली से उनका शिकार करके खुश हुआ करते थे। जानवरों के मरने के बाद उसके मांस को वही पर पकाकर खाने का क्रम भी अंग्रेज अफ़सर अपने परिवार के साथ किया करते थे। फिशर वन इलाक़ा उस समय शीशम के पेड़ों से हरा-भरा हुआ करता था खासी तादाद में इस इलाके में शीशम के पेड़ हुआ करते थे लेकिन अब वन माफियाओं ने इस इलाके पर अपनी नजर गड़ा रखी है इस वजह से इस इलाके में शीशम का कोई पेड़ नही रह गया है।
इस वन खण्ड में मुख्यतया बीहड़ तथा थोड़ी समतल बंजर भूमि है जहां यमुना और चम्बल की पुरानी कन्दराएं हैं। ऐसा आभास होता है कि नदी के किनारे की भूमि की संरचना कटान के कारण बीहड़ बनी है। इन बीहड़ों का विशाल क्षेत्र जो कि अन्य किसी भी उपयोग के लिए अनुपयुक्त था भारी चरान तथा अविवेक पूर्ण कटान व शाख तराशी का शिकार बना। इटावा के तत्कालीन ज़िलाधीश जे.एफ. फिशर के सन् 1884 में अपने प्रारंभिक प्रयासों से उन उम्मीदों को जिसके पास इटावा शहर के पश्चिम की दिशा में बीहड़ ज़मीन थी, को अपनी इच्छानुसार 1146.07 हेक्टेयर ज़मीन ज़िलाधीश को सौंप देने के लिए राजी किया ताकि भूमि को क्षरण व अधिक ह्रास से बचाया जा सके तथा ईंधन व चारे के आरक्षित वन बनाए जा सकें। जमीदारों को ही इस कार्य के लिए आवश्यक धन उपलब्ध कराना था तथा इससे जो भी लाभ होता उसको दिए गए धन तथा अर्जित की हुई भूमि के अनुसार विभाजित करके चुकाना था। कार्य उसी वर्ष प्रारम्भ हो गए, क्षेत्र चरान के लिए बंद कर दिया गया और उसकी साधारण हल से जुताई कर इसमें बबूल, शीशम तथा नीम के बीजों को बोया गया। बीहड़ में जगह-जगह पर बंधे बनाए गए ताकि जल व नमी का संरक्षण किया जा सके तथा जल स्तर ऊपर आ सके। बबूल की बढ़त इतनी उत्साहवर्द्धक थी कि कानपुर के कूपर एलैन कम्पनी ने सन् 1902 में पूरा जंगल बबूल की छाल निकालने हेतु 2.50 रुपया प्रति हेक्टेयर पर 50 वर्ष के पट्टे पर लेने को आकर्षित हुई।
कानपुर के चमड़े के कारख़ानों में बबूल की छाल की आपूर्ति बढ़ाने तथा कारख़ानों के निकट बबूल के भंडार स्थापित करने के उद्देश्य से कालपी बीहड़ों में तथा आटा रेलवे स्टेशन के दक्षिण में स्थित पिपरायां में खेती योग्य ज़मीन जुताई कर बनाई गई। वनीकरण कार्य बीहड़ों में बंधे बनाने के कार्य के साथ प्रारम्भ किया गया। प्रारम्भ में परिणाम आशाजनक प्रतीत हुए परन्तु अंतिम सफलता दूर ही रही। आर्थिक दृष्टि से यह रोपवन असफल रहा। सन् 1912 के प्रारम्भ में सरकार के सम्मुख नए जंगलों को लगाने की विशेष तथा उन जंगलों जिनकी आवश्यकता कृषि जनक मांगों को पूरा करने के लिए थी, के लिए एक निश्चित नीति निर्धारित करने की थी, परिणामस्वरूप उपलब्ध क्षेत्रों के साथ विभिन्न वर्गों की बंजर भूमि में वनीकरण के उपयोग के लिए आदेश दिए गए।
कूपर एलैन कम्पनी ने सन् 1914 तक फिशर वन का व्यवहारिक रूप से विस्तार कर लिया था जो कि उन्होंने 1902 में बबूल की छाल के लिए पट्टे पर लिया था। वन विभाग की निगाहें इस क्षेत्र पर पहले से थी, जिसमें कुछ सफलता दृष्टिगोचर हुई थी। अन्य क्षेत्रों में किए गए प्रथम वर्ष के वृक्षारोपण के उत्साहजनक परिणामों से वन विभाग अपने अधीन क्षेत्रों का विस्तार करने को इच्छुक था। कम्पनी ने रु. 2500.00 पट्टे की कीमत तथा रु. 2,382.00 जमीदारों के वार्षिक किराए सहित इस क्षेत्र के पट्टे को वन विभाग को स्थानान्तरित कर दिया। इस प्रकार फिशर वन 1914 से ही वन विभाग के नियंत्रण में है।
वनीकरण कार्य वर्ष 1913 के पश्चात् मुख्यतः दो प्रकार से किए गए, पहला नालों या अन्य उपयुक्त स्थलों पर बंधे बनाकर बढ़ते हुए भू-क्षरण को रोकना, दूसरा उपयुक्त प्रजातियों का पौधा रोपण या बीजारोपण कर भूतल को एक वनस्पतिक आवरण प्रदान करना जो प्रारम्भ में भूमि को अपक्षरित होने से बचाए तथा भविष्य में एक ईंधन का भंडार भी बने। बीजारोपण तथा पौधारोपण की विधि के अंतर्गत ऊँची समतल भूमि पर 20 से.मी. गहरा हल चलाया गया, 3-3 मीटर की दूरी पर 30 से.मी. ऊँची तथा 60 से.मी. चौथी आधार वाली समानान्तर कूट बनाई गई जिनके ऊपर और एक उथली बनाई गई, जिसमें शीशम, नीम, कंजी आदि के पौधों का रोपण किया गया तथा बबूल, नीम, पापड़ी के बीजों का कूटों में बुहान किया गया। जगह-जगह पर जल व मृदा संरक्षण हेतु नालों में बंधे बनाए गए तथा सही विधि बीहड़ों के तल के मैदानी भागों के लिए भी अपनाई गई।
फिशर फॉरेस्ट (प्रस्तावित लॉयन सफारी पार्क) क्षेत्र में कालान्तर में चौड़ी पत्ती का अच्छा वन स्थापित हो गया था, जिसकी मुख्य प्रजातियाँ शीशम, सेमल, नीम, कंजी तथा बांस थीं। जैविक दबाव के कारण चौड़ी पत्तियों की प्रजातियों के वृक्षों में निरंतर ह्रास होता गया, इन परिस्थितियों में भूमि को क्षरण से बचाने तथा ईंधन, चारे की निरंतर बढ़ती आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु विलायती बबूल के बीजों का छिड़काव सन् 1985 तथा उसके बाद कई वर्षों में किया जाता रहा, क्योंकि यह एक ऐसी प्रजाति थी जो अत्यंत ही अवनत भूमि पर कम से कम पानी की आवश्यकता के साथ शीघ्रता से बढ़ सकती थी। परिणामस्वरूप उक्त वन क्षेत्र में प्रोसोपिस (विलायती बबूल) का घनत्व बढ़ता गया एवं वर्तमान में इस खेत्र ने प्रोसोपिस वन का रूप ले लिया है, फिर भी बीच-बीच में वनस्पतियों की अन्य प्रजातियाँ भी हैं एवं उन प्रजातियों के रूट स्टॉक भी पर्याप्त मात्रा में फिशर फारेस्ट क्षेत्र में विद्यमान हैं।
इटावा और आसपास के इलाके में पर्यावरणीय दिशा में काम कर रहे डॉ. राजीव चौहान का कहना है कि लायन सफारी प्रोजेक्ट के शुरू हो जाने के बाद इटावा जहां पर्यटक मानचित्र पर आ जाएगा वहीं इटावा की डाकू छाप से भी इटावा को मुक्ति मिल जाएगी। इस इलाके में आसपास के लोग अभी भी नीलगाय जैसे जानवरों को शिकार करने के लिए आते रहते हैं। उनका कहना है कि जब इस इलाके में लायन सफारी प्रोजेक्ट की शुरूआत हो जाएगी तब इस इलाके का व्यापक विकास शुरू हो जाएगा। मुलायम सरकार ने एशियाटिक लायन (भारतीय शेर) को संरक्षण के लिए चंबल सेंचुरी क्षेत्र में यह परियोजना बनाई थी। यह शेर केवल गुजरात के गिर के जंगलों में ही पाया जाता है। इसको इटावा शहर के निकट यमुना और चंबल के बीहड़ में वन विभाग की फिशर फोरेस्ट जगह पर खोले जाने की योजना थी। 150 हेक्टेयर क्षेत्र में यह खुलना था। पर्यावरण को लेकर विशेष संजीदा रहने वाले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से इटावा के लोगों को उम्मीदें हैं कि यह परियोजना शीघ्र शुरू होगी। इससे इटावा को पर्यटन के क्षेत्र में एक नई दिशा मिल सकेगी।
चंबल और यमुना के बीहड़ी क्षेत्र के प्रति बढ़ते टूरिज़्म आकर्षण से ये योजना अब भी उतनी ही उपयोगी है। जितनी पांच साल पहले फाइल में कैद होने के समय थी। वन विभाग द्वारा बनाई गई कार्ययोजना विशेष श्रेणी के जू के रूप में तैयार की गई थी। योजना के महत्व के बारे में कहा गया था कि दो सौ साल तक उत्तर भारत में सहजता से पाया जाने वाला एशियाटिक लायन (भारतीय शेर) अब मुख्य रूप से केवल गुजरात के गिर के जंगलों में ही बचा है। वहां भी स्थान की तुलना में इनकी संख्या अधिक हो चुकी है। जो उनके स्वाभाविक विकास के लिए ठीक नहीं है। इस प्रकार एक अन्य प्राकृतिक आश्रय स्थल इस वन्य जीव के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है।
इटावा के बीहड़ी क्षेत्र को इसलिए चुना गया था क्योंकि इसकी वनस्पतियों और वन्य स्थिति में गिर के जंगल से काफी समानता है।
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