दुनिया में कोई ऐसा काम नहीं है जो इंसान की पहुँच से दूर हो। कोई भी मुकाम हासिल करने के लिए आपको सिर्फ दो चीजें ही चाहिए, पहला तो दृढ़ निश्चय और दूसरा कभी न टूटने वाला हौसला। राजस्थान का लापोड़िया गाँव उसी का उदाहरण है। यहाँ के लोग बेहद मुश्किल समय में एक लक्ष्य बनाकर आगे बढ़े और सफलता प्राप्त की।
1977 की बात है, अकाल जैसी स्थिति के बीच यहाँ के लोगों का जीना मुहाल हो रहा था। बारिश नहीं होने से पेयजल की विकट समस्या बनी हुई थी। उन्हीं दिनों जयपुर के एक स्कूल में पढ़ाई कर रहे लक्ष्मण सिंह नाम का युवक छुट्टियाँ बिताने अपने गाँव लापोड़िया पहुँचा। उन्होंने अपने गाँव पहुँचकर देखा कि वहाँ अकाल जैसी विकट स्थिति बनी हुई है। गाँव के लोग पीने के पानी के लिए दूर-दूर तक भटकने को मजबूर हैं। लक्ष्मण सिंह का मन अन्दर ही अन्दर उन्हें झकझोर रहा था। इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने संकल्प लिया और ग्राम विकास नवयुवक मंडल नाम से गाँव के युवाओं को एक टीम तैयार कर जुट गए एक्शन प्लान बनाने में। शुरुआती दौर में उन्होंने एक-दो मित्रों के साथ गाँव के पुराने तालाब की मरम्मत की। पहले तो उन्हें ग्रामीणों की और से कोई सहयोग नहीं मिला, लेकिन बाद में बदलाव को देखकर गाँव के लोगों ने भी उनके संकल्प को अपना संकल्प बना लिया।
उन दिनों गिरते भूजल स्तर से विकराल रूप धारण कर चुकी पेयजल समस्या के बीच लापोड़िया गाँव राजस्थान के सूखाग्रस्त इलाकों में से एक बन चुका था। ऐसे में लक्ष्मण सिंह के काम, लगन और मेहनत से प्रभावित होकर एक के बाद एक गाँव के युवा, बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएँ उनसे जुड़ते चले गए। ग्रामीणों के संगठित प्रयासों से फसलों की सिंचाई के लिए अन्नसागर तालाब, पशु-पक्षियों के लिए फूलसागर तालाब व भूजल स्तर बढ़ाने के लिए देवसागर तालाब का निर्माण किया गया। इसके साथ ही मानसरोवर जैसे कई छोटे तालाबों का भी निर्माण हुआ। तालाब निर्माण में सफलता मिलने के बाद गाँव वालों ने तालाब और गोचर भूमि की रखवाली करने की शपथ ली। इसके अलावा लोगों ने गोचर की सम्भाल करने, खेतों में पानी का प्रबन्ध करने और घास, झाड़ियाँ, पेड़-पौधे पनपाने के लिए चौका विधि का नया प्रयोग किया। इससे भूमि में पानी रुकना शुरू हुआ और खेतों की बरसों की प्यास बुझी। इस विधि से पानी जमीन व छोटे-छोटे तालाबों में जाता रहा। गाँव के लोग बताते हैं कि लापोड़िया गोचर का पूरा इलाका करीब 6 हजार बीघा है, जिसमें नीम व पीपल समेत करीब 1 लाख से अधिक पेड़ हैं। इस इलाके में किसी जीव को मारना, सताना पाप है, लोग खुद उनकी सुरक्षा करते हैं।
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