कृषि क्षेत्र में बढ़ती महिला उद्यमी

कृषि क्षेत्र में बढ़ती महिला उद्यमी, फोटो क्रेडिट: कुरुक्षेत्र
कृषि क्षेत्र में बढ़ती महिला उद्यमी, फोटो क्रेडिट: कुरुक्षेत्र

भारत में पिछले कुछ वर्षों के दौरान कृषि के क्षेत्र में बहुत तेजी से कई बदलाव और परिवर्तन देखने को मिले हैं। पंजाब और हरियाणा जैसे समृद्ध राज्यों के किसान तो कई दशकों पहले ही आधुनिक खेती में मशीन और नई तकनीक के प्रयोग के महत्व को समझ गए थे लेकिन अब बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी किसानों की सोच बदल रही है और सबसे दिलचस्प तथ्य तो यह है कि इस बदलती सोच के पीछे एक बड़ी वजह महिला किसानों को माना जा रहा है ना सिर्फ परंपरागत कृषि को लेकर सोच बदल रही है बल्कि अब किसानों को यह भी समझ आने लगा है कि अपने खेत के बल पर ही वे बागवानी, दुग्ध उत्पादन, मधुमक्खी पालन और मछली पालन जैसे कई व्यवसाय करके अपनी आय को बढ़ा सकते हैं और अपने परिवार के आर्थिक स्तर को भी मजबूत कर सकते हैं। सरकार ने जब देश में जोर-शोर से प्राकृतिक खेती को शुरू करना चाहा तो कई राज्यों में पुरुष किसानों में इसे लेकर हिचक देखी गई लेकिन ऐसे माहौल में भी महिला किसानों ने आगे बढ़कर चुनौती स्वीकार कर प्राकृतिक जैविक खेती करना शुरू किया और उन्हें कामयाबी मिलते ही पुरुष किसान भी इससे जुड़ते चले गए।

महिला किसानों को बढ़ावा देने के लिए सरकार एक साथ कई मोर्चों पर काम कर रही है। एक तरफ जहां कृषि और खेती-किसानी से जुड़ी तमाम परियोजनाओं और नीतियों में महिला किसानों को बढ़ावा दिया जा रहा है तो वहीं देश के ग्रामीण समाज की संरचनाओं में उन्हें मज़बूती प्रदान की जा रही है।

दशकों तक महिला किसानों की यह रही है दशा  

यह एक विडंबना ही रही है कि भारत के 70 प्रतिक्षेत पशुधन क्षेत्र और 50 प्रतिशत कृषि पद्धतियों को अपने दम पर चलाने के बावजूद, ग्रामीण महिलाओं को अब तक वह मान्यता, सम्मान नहीं मिल पाया था जिसकी वे हकदार रही हैं। मुख्य और पर कृषि क्षेत्र और ग्रामीण समाज में महिलाओं की इस स्थिति के लिए निम्न बातों को जिम्मेदार माना जाता है- कम साक्षरता दर वित्तीय स्वायत्तता एवं स्वतंत्रता का अभाव, प्रभावशाली वित्तीय या आर्थिक अवस्था का अभाव, कुशल प्रशिक्षण का अभाव और परिवार की आर्थिक व्यवस्था को लेकर निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं का शामिल न होना।

लेकिन पिछले कुछ दशकों में जिस तेजी से भारत के कृषि क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन आया है, ठीक उसी तरह से कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका और प्रभाव में भी तेजी से बदलाव आया है भारत सरकार की महिला किसानों को बढ़ावा देने और गाँव की महिलाओं को सशक्त बनाने की नीतियों ने यह बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
भारत सरकार ने एक रणनीति के तौर पर ग्रामीण समाज में महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत बनाया, शिक्षा के स्तर को बढ़ाने पर ध्यान दिया, उचित प्रशिक्षण मुहैया कराया और उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित करने हेतु ऋण की व्यवस्था भी की सरकार की इन्हीं नीतियों और प्रयासों के चलते और महिला किसानों की अपनी मेहनत की वजह से भारतीय अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने में महिला कृषकों के सराहनीय और बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान को अब सराहा जाने लगा है और उनके योगदान को मान्यता मिलने लगी है।

महिला किसानों को प्रोत्साहन देने की नीति से बदलते हालात

किसानों के लिए बनी राष्ट्रीय कृषि नीति 2007 में कृषि में महिलाओं की भूमिका को अत्यधिक महत्व देने के साथ-साथ कृषिविकास एजेंडा में उनसे संबंधित मुद्दों को भी प्राथमिकता दी गई है इसके बाद सरकार ने महिलाओं को कृषि की मुख्यधारा से है। जोड़ने के लिए विभिन्न स्कीमों कार्यक्रमों और मिशनों में महिला समर्थित गतिविधियों को अधिक से अधिक बढ़ावा देने का फैसला किया ताकि किसान उपयोगी सभी लाभदायी योजनाओं और नीतियों में महिला किसानों को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुँचाया जा सके।

महिला किसानों को बढ़ावा देने के लिए सरकार एक साथ कई मोर्चों पर काम कर रही है। एक तरफ जहां कृषि और खेती- किसानी से जुड़ी तमाम परियोजनाओं और नीतियों में महिला किसानों को बढ़ावा दिया जा रहा है, तो वहीं देश के ग्रामीण समाज की संरचनाओं में उन्हें मजबूती प्रदान की जा रही है। चूंकि यह एक स्थापित तथ्य है कि महिला किसानों को बढ़ावा देने के लिए दिल्ली से चाहे जितनी योजनाएं बनाई जाएं या फंड भेजा जाए लेकिन उसका फायदा महिला किसानों को तब तक नहीं मिलेगा जब तक कि उसके परिवार में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण न बन जाए, जब तक उनका ग्रामीण समाज उन्हें एक महत्वपूर्ण व्यक्ति के तौर पर स्वीकार न करने लग जाए इसी सोच को ध्यान में रखते हुए सरकार ने एक साथ कई मोर्चों पर काम किया।

प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के साथ-साथ सरकार प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, ब्याज सहायता योजना, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, समेकित बागवानी विकास मिशन, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना और महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना सहित अनेक योजनाओं के द्वारा महिला किसानों को मजबूत, सक्षम और स्वावलंबी बनाने के लिए कार्य कर रही है।

नारी शक्ति को समर्पित इस अमृतकाल में देश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के अंतर्गत ग्रामीण इलाकों में बने घरों में से 70 प्रतिशत घरों की मालकिन महिलाओं को बनाकर परिवार में उनके महत्व और जरूरत को स्थापित किया गया है। यहां तक कि जनधन योजना के तहत जितने बैंक खाते खोले गए हैं, उनमें से भी 56 प्रतिशत खाताधारक महिलाएं हैं और इसमें भी एक बड़ी तादाद देश के गाँवों में रहने वाली महिलाओं की है। मुद्रा ऋण योजना के कुल लाभार्थियों में से 70 प्रतिशत लाभार्थी महिलाएं हैं जो कि स्वनिधि के तहत बिना किसी जमानत के ऋण योजनाओं, पशुपालन, मत्स्य पालन, ग्रामीण उद्योग, एफपीओ की संवर्धन योजनाओं तथा खेल योजनाओं से ब्लाभ उठा रही हैं।

महिला किसानों को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देकर खेती- किसानी की मुख्यधारा में लाने के लिए भारत सरकार ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत भुवनेश्वर, ओडिशा में केंद्रीय कृषि महिला संस्थान की भी स्थापना की है यह संस्थान कृषि में महिलाओं और कृषि तथा संबंधित क्षेत्रों में महिलाओं से जुड़े मुद्दों की पहचान करने, महिला समता वाली कृषि नीतियों एवं कार्यक्रमोंऔर महिला संवेदनशील कृषि क्षेत्र की प्रतिक्रियाओं पर शोध करता है। इसके अलावा, देश में स्थापित 731 कृषि विज्ञान केंद्र कृषि और संबंधित क्षेत्रों के विभिन्न पहलुओं पर महिला किसानों को भी प्रशिक्षण प्रदान करते हैं।

ये कृषि विज्ञान केंद्र महिला किसानों के लिए किचन गार्डनिंग और न्यूट्रिशन गार्डनिंग, उच्च पोषक तत्व दक्षता आहार, प्रसंस्करण और खाना पकाने, स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से महिलाओं को मुख्यधारा में लाने, भंडारण हानि न्यूनीकरण तकनीके, ग्रामीण शिल्प और महिलाओं एवं बच्चों की देखभाल जैसे विभिन्न विषयों पर विशिष्ट प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करते हैं। साथ ही, सरकार की तरफ से महिला किसानों को पुरुष किसानों की अपेक्षा अतिरिक्त सहायता और समर्थन प्रदान करने के लिए भी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय की विभिन्न लाभार्थी उन्मुख योजनाओं के दिशानिर्देशों में यह प्रावधान भी किया गया है कि राज्यों और अन्य कार्यान्वयन एजेंसियों को महिला किसानों पर खर्च करना चाहिए।

ग्रामीण विकास मंत्रालय दीनदयाल अंत्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के एक उपघटक के रूप में महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना भी देश में चला रहा है। इसका उद्देश्य महिलाओं की भागीदारी और कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए व्यवस्थित ढंग से निवेश करके उन्हें सशक्त बनाना है जो ग्रामीण महिलाओं के लिए सतत आजीविका भी प्रदान करता है। देश भर में राष्ट्रीय प्रशिक्षण संस्थानों, राज्य कृषि प्रबंधन और विस्तार प्रशिक्षण, कृषि विज्ञान केंद्रों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों के माध्यम से महिला किसानों सहित अन्य किसानों के लिए भी कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में कौशल प्रशिक्षण पाठ्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली के अधीनस्थ केंद्रीय कृषिरत महिला संस्थान, भुवनेश्वर अपने अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना केंद्रों के माध्यम से कृषि और संबद्ध क्षेत्रों में महिला संबंधी विषयों पर शोध कर रहा है। यह संस्थान परियोजनाओं के साथ-साथ एआईसीआरपी के माध्यम से महिला हितैषी प्रौद्योगिकियों को आसान बनाने वाले उपकरणों एवं मशीनों, आय सृजन एवं फसल विज्ञान बागवानी, पशुधन, मत्स्य, बैकयार्ड, मुर्गीपालन में कार्यरत महिलाओं के लिए पोषण संबंधी सुरक्षा तथा कृषक महिलाओं की व्यावसायिक सुरक्षा एवं स्वास्थ्य पर भी प्रशिक्षण आयोजित कर रहा है।

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा उत्तर प्रदेश सहित सभी राज्यों में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की स्थापना के लिए चलाई जा रही केंद्रीय क्षेत्र की सभी अंब्रेला योजनाओं में महिला लाभार्थी भी पात्र हैं कुल मिलाकर कहा जाए तो महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना का प्राथमिक उद्देश्य महिलाओं की भागीदारी और उत्पादकता बढ़ाने के लिए व्यवस्थित निवेश करके कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाना है। साथ ही, ग्रामीण महिलाओं की कृषि आधारित आजीविका का निर्माण करना और उसे बनाए रखना है।

महिला किसानों को मिलने लगा है सम्मान

देश में महिला किसानों की आबादी की बात करें तो वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में कुल महिला श्रमिकों की 65 प्रतिशत आबादी कृषि क्षेत्र में कार्य कर रही थी। वहीं देश के कुल118.7 मिलियन कृषकों में से महिला किसानों की संख्या 30.3 प्रतिशत और 144.3 मिलियन खेतिहर मजदूरों में से 42.6 प्रतिशत महिलाएं हैं।

गाँवों के पुरुषों के शहरों की तरफ बढ़ते पलायन की वजह से भी कृषि क्षेत्र में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ रही है। घर के पुरुष सदस्यों के शहर चले जाने के बाद पशुओं की देखभाल सहित चारे की व्यवस्था करना, दुध निकालना और उसे बेचना, पेड़ों का ध्यान रखना और अगर खेती योग्य जमीन है तो जिसे खेती के लिए बटाई पर दिया हुआ है, उसकी भी निगरानी करने जैसे कई अनगिनत काम महिला किसानों को ही करने पड़ते हैं। अखिल भारतीय स्तर पर आज सबसे ज्यादा महिलाएं कृषि क्षेत्र में ही काम कर रही हैं। वहीं सरकार भी कृषि और कृषि से जुड़े बागवानी एवं पशुपालन जैसे सभी क्षेत्रों में महिलाओं के उत्थान के लिए लगातार प्रयासरत है।

महिला किसानों की आर्थिक सुरक्षा और सम्मान को  सुनिश्चित करते हुए भारत सरकार पीएम- किसान योजना के तहत अब तक 3 करोड़ से अधिक महिला किसानों को 53,600 करोड़ रुपये की भारी-भरकम राशि दे चुकी है। | खास बात यह है कि महिला लाभार्थी किसानों को यह राशि डीबीटी द्वारा सीधे उनके बैंक खाते में पहुँचाई गई हैं। सरकार द्वारा लोकसभा में दी गई जानकारी के मुताबिक, देश में 9 मार्च, 2023 तक प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत पंजीकृत महिला किसान लाभार्थियों की संख्या 3.056 करोड़ है।

सरकार का लक्ष्य महिला किसानों को कृषि उद्यमियों तथा स्वरोजगार वाली महिलाओं के तौर पर एक किसान के रूप में सशक्त बनाना है और इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए भारत सरकार ने अनेक पहल शुरू की हैं जिनमें विकास प्रक्रिया के केंद्र-बिंदु में महिलाओं को रखते हुए उन्हें सशक्त बनाने पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। कृषि विज्ञान केंद्रों जैसे विभिन्न संस्थानों में प्रशिक्षण के माध्यम से स्वयं सहायता समूहों का गठन करना, किसानों के उत्पादक संगठनों, निर्माता कंपनियों और महिलाओं की क्षमता निर्माण करने जैसे काम किए जा रहे हैं। सरकार की कोशिश भारत में कृषि क्षेत्र में लैंगिक असमानता को दूर कर महिला किसानों के श्रम को उचित स्थान और सम्मान दिलाना है।

हैदराबाद में 15 से 17 जून 2023 को हुई जी20 देशों के कृषि मंत्रिस्तरीय बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने चर्चा के लिए प्राथमिकता वाले जिन चार क्षेत्रों पर बल दिया था, उसमें महिला किसानों के लिए अवसंरचना को मजबूत करना और उनकी दक्षता को बढ़ाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों में उपाय करने का भी जिक्र किया था। बैठक में महिलाओं एवं युवाओं को कृषि की मुख्यधारा में लाने व खाद्य मूल्यों के विकास के साथ खाद्य सुरक्षा के लिए सतत जैव विविधता एवं पारिस्थितिकी तंत्र तथा खेती के लिए जलवायु सहित विभिन्न विषयों पर विस्तार से महत्वपूर्ण सार्थक चर्चा की गई बैठक के समापन के बाद केंद्रीय कृषि एवं किस्मत मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने महिला किसानों को मुख्यधारा में लाने पर जोर  देते हुए यह कहा कि यह बैठक ज्ञान, अनुभव और नवीन विचारों को साझा करने के लिए एक उल्लेखनीय प्लेटफॉर्म  रही है  जो टिकाऊ कृषि की उन्नति के लिए महत्वपूर्ण है कृषि क्षेत्र आने वाली चुनौतियों अवसरों पर प्रकाश डालते हुए बैठक चर्चा विचारोत्तेजक रही कृषि खाद्य मूल्य श्रृंखलाओं में महिलाओं युवाओं को मुख्यधारा में लाने पर जोर दिया गया है। महिलाओं युवाओं को सशक्त बनाकर और इनकी सक्रिय भागीदारी को सुनिश्चित कर कृषि के लिए एक बेहतर स्थायी भविष्य का निर्माण किया जा सकता है।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने अप्रैल 2023 में हरियाणा के करनाल में राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थान के शताब्दी वर्ष में आयोजित 19 वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कृषि क्षेत्र में नारी शक्ति के बढ़ते प्रभाव का खासतौर से जिक्र करते हुए कहा, "भारत में डेयरी उद्योग के प्रबंधन में नारी शक्ति अहम भूमिका निभा रही हैं डेयरी सेक्टर में 70 प्रतिशत से अधिक भागीदारी महिलाओं की है बहुत खुशी की बात है कि आज डिग्री प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में एक तिहाई से अधिक लड़कियां है, स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में भी 50 प्रतिशत लड़कियां हैं।" उल्लेखनीय है कि डेयरी उद्योग देश की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है भारत का वैश्विक दूध उत्पादन में लगभग 22 प्रतिशत का योगदान है। डेयरी सेक्टर का देश की जीडीपी में लगभग 5 प्रतिशत योगदान है और डेयरी उद्योग लगभग 8 करोड़ परिवारों को आजीविका प्रदान करता है और ऐसे महत्वपूर्ण सेक्टर में 70 प्रतिशत से अधिक भागीदारी महिलाओं के होने की महत्व का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

एग्री स्टार्टअप और महिला उद्यमी

आइए, आपको मिलवाते हैं एग्रीटेक स्टार्टअप शुरू करने वाली पंजाब की ऐसी ही एक महिला उद्यमी गुरदेव कौर देओल से वर्ष 1995 में जब गुरदेव कौर देओल एक नवविवाहित दुल्हन के रूप में अपने ससुराल पहुँची तो उनके लिए भी हालात आम महिलाओं जैसे ही थे लेकिन उन्होंने परिस्थितियों के आगे झुकने से मना कर दिया और एक नई यात्रा पर निकल पड़ी।
गुरदेव हमेशा मधुमक्खियों से आकर्षित थीं और इसलिए उन्होंने मधुमक्खी पालन का ही फैसला किया। उन्होंने 5 बक्सों के साथ मधुमक्खी पालन का काम शुरू किया और आज वो 350 से ज्यादा महिलाओं को रोजगार दे रही हैं। 1997 के आसपास, उन्होंने अपना शहद अपनी मंडी' ब्रांड नाम से बेचना शुरू किया। खुदरा बाजार में शहद की कीमत कम मिलने पर उन्होंने खुद ही शहद की बोतल बनाना और बेचना शुरू करने का फैसला किया। इसके बाद जल्द ही वह शहद के साथ-साथ अचार, जैम, मुरब्बा, शर्बत, गुड़, पापड़ और मसालों जैसे खाद्य पदार्थों का भी उत्पादन करने लगीं। 

कृषि क्षेत्र में हो रहे क्रांतिकारी परिवर्तन और महिलाओं की बढ़ रही प्रभावशाली भूमिका के मद्देनजर अब एग्रीटेक स्टार्टअप में भी महिला उद्यमी कामयाबी की कहानी लिख रही हैं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान देश में एग्रीटेक स्टार्टअप की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। आठ वर्ष पहले जहां देश में एग्रीटेक स्टार्टअप की संख्या केवल 80-100 के लगभग थी वहीं संख्या वर्ष 2022 में 1800 को पार कर चुकी है और केंद्र सरकार का लक्ष्य इसे 10 हजार तक पहुँचाने का है।

आज वह कुल मिला कर इस तरह के 33 उत्पादों का उत्पादन कर रही हैं। इतना ही नहीं गुरदेव ने अपना कच्चा माल स्थानीय किसानों से ही लेना शुरू किया, जिन्हें वह बदले में मुनाफे का एक प्रतिशत भी देने लगीं। आज उनका संगठन पंजाब, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश में 500 से अधिक किसान परिवारों के साथ एकीकृत रूप से जुड़ा हुआ है, जिनमें से सभी अनिवार्य रूप से 100 प्रतिशत जैविक खेती करते हैं। आज वह 3 एकड़ से भी ज्यादा जमीन पर सब्जियाँ उगाती हैं और उनका एक एफपीओ भी है जिससे तीन सौ के लगभग किसान जुड़े हुए हैं। वे अपने उत्पाद पंजाब में और व्यापार मेलों के माध्यम से बेचती है। गुरदेव दिल्ली, मुंबई, चंडीगढ़ और अन्य शहरों में कृषि प्रदर्शनियों में भी भाग लेती हैं।

सबसे बड़ी बात यह है कि आज उन्होंने 350 से ज्यादा महिलाओं को सीधे तौर पर रोजगार दे रखा है आज उन्हें एग्रीटेक स्टार्टअप शुरू करने वाली एक महिला उद्यमी और एक प्रगतिशील महिला किसान के तौर पर जाना जाता है। वह वर्तमान में ग्लोबल सेल्फ हेल्प ग्रुप को एक सफल व्यवसायी के तौर पर चला रही हैं। उनके एसएचजी में कार्यरत महिलाओं को दैनिक वेतन के आधार पर भुगतान किया जाता है। गुरदेव आसपास के गाँवों में घर-घर जाती हैं और कम आय वाले परिवारों की महिलाओं को मुफ्त प्रशिक्षण भी देती हैं।

राजस्थान के अजमेर की रहने वाली अंकिता कुमावत की कहानी थोड़ी अलग हटकर है। अंकिता से यह साबित करने का काम किया है कि पढ़ी-लिखी आईआईएम कोलकाता जैसे संस्थान से एमबीए करने वाली लड़कियां भी अब एग्रीटेक स्टार्टअप को अपना करियर बना रही हैं। अंकिता ने आईआईएम कोलकाता से एमबीए करने के बाद कुछ साल नौकरी की और फिर अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपनी अच्छी-खासी नौकरी की दुनिया छोड़ कर वर्ष 2014 में ऑर्गेनिक फार्मिंग की दुनिया में कदम रख दिया।

आज अंकिता ऑर्गेनिक फार्मिंग कर अपने खेत में गेहूँ, तिल, आंवला, खजूर और अन्य कई तरह की सब्जियों को उगाती हैं। इसके साथ ही वह एक डेयरी फार्मिंग भी चलाती हैं, जो पूरी तरह से इंटीग्रेटेड फार्मिंग पर आधारित हैं इस तकनीक में किसान खेती व पशुपालन के साथ कृषि से संबंधित सभी कार्यों को एक ही स्थान पर रखने की कोशिश करता है। इस तकनीक के इस्तेमाल से अंकिता हर साल लगभग 22 लाख रुपये तक का मुनाफा कमा रही हैं। इसके अलावा, वह अपने खेत में आंवला की खेती, मधुमक्खी पालन, ऑर्गेनिक तरीकों से नमकीन तैयार करना आदि। अन्य कई तरह के कार्य भी करती है अंकिता ने 'मातृत्व' नाम से अपनी एक संस्था भी बना रखी है और उन्होंने कई महिलाओं को रोजगार भी दे रखा है जो उनके उत्पाद को तैयार करती हैं और उन्हें बाजार तक पहुँचाने का काम भी करती है।

हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले की रहनी वाली लीना शर्मा प्राकृतिक खेती के मामले में अपनी कामयाबी के झंडे गाड़ कर अन्य महिला किसानों को भी प्रेरित करने का काम कर रही है। वर्ष 2018 में लीना शर्मा ने एग्रीकल्चर टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट एजेंसी की ओर से पद्मश्री सुभाष पालेकर से प्राकृतिक खेती पर 6 दिनों की ट्रेनिंग लेने के बाद प्राकृतिक खेती करने का फैसला कर लिया। उनके पति ने भी इसकी शुरुआत करने में लीना का साथ दिया। पहले साल खेती काफी अच्छी हुई तो आसपास की अन्य महिला किसानों ने भी उनके साथ आने की इच्छा जताई। इसके बाद लीना शर्मा ने 20 महिला किसानों का एक समूह बनाया जिनके साथ मिलकर वह अब तक गाँव में 80 बीघा क्षेत्र को प्राकृतिक खेती में शामिल कर चुकी हैं यानी गाँव के खेत भी समृद्ध, खेती भी अच्छी और आमदनी भी अच्छी ऐसा करके लीना आज अपने आसपास के गाँवों के लिए भी एक मिसाल बन चुकी है।

केरल के कालीकट जिले की लिनिशा ने फेसबुक पर बने एग्रीकल्चर ग्रुप से खेती करने की प्रेरणा ली और बैग कल्टीवेशन की मदद से शुरू में 50 बैग्स के साथ सब्जियों की खेती शुरू की और आज वह 300 से अधिक बैगों में पत्तागोभी, फूलगोभी, गाजर और चुकंदर जैसी सब्जियों को उगाती है। साथ ही, खरगोश और मुर्गीपालन भी करती है आज लिनिशा आसपास के किसानों को सब्जियों के बीज और प्राकृतिक खेती से उपलब्ध होने वाली सब्जियां भी देने लग गई हैं। आसपास के किसान और स्कूली बच्चे भी अब लिनिशा के फार्म पर आकर उनसे सब्जियों और प्राकृतिक खेती सहित कृषि के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा कर सलाह लेते हैं।

डेयरी फार्मिंग से लिखी कामयाबी की कहानी

वहीं गुजरात के सूरत जिले की महिला किसान जमनाबेन कृषि क्षेत्र में बढ़ रही महिलाओं की भागीदारी का एक बड़ा उदाहरण है जमनाबेन के पास गाँव में 3 हेक्टेयर जमीन है, जिससे प्राप्त उपज को उन्होंने गायों के चारे के तौर पर इस्तेमाल करना शुरू कर कामयाबी की एक नई मिसाल रचने का काम किया। वर्ष 2015 में उन्होंने 4 गिर गाय खरीदी और डेयरी फार्मिंग शुरू की। शुरू-शुरू में दिक्कतें आईं लेकिन फिर काम चल निकला और 9 महीने बाद उन्होंने 4 गाय और खरीद कर अपने काम को आगे बढ़ाया और वर्तमान में उनके पास 27 गिर गाय है। कम लागत के साथ डेयरी फार्मिंग कैसे की जाती है, इसका प्रशिक्षण लेकर उन्होंने अपने कौशल को बढ़ाया और आज वह डेयरी फार्मिंग से प्रति वर्ष 15 लाख रुपये के लगभग कमा रही । आज जमनाबेन अपने गाँव और आस-पास के किसानों के लिए एक रोल मॉडल बन चुकी हैं सही मायनों में कहा जाए तो नई सोच, नई तकनीक और अपने हिम्मत के बल पर उन्होंने न केवल अपनी तकदीर संवारी बल्कि अन्य किसानों को भी एक नया रास्ता दिखाने का काम किया है। इस महिला किसान की कामयाबी से प्रेरित होकर अब गाँव के अन्य लोगों ने भी डेयरी फार्मिंग दी है।

बिहार के शेखपुरा जिले की आलमोती देवी की कामयाबी की कहानी भी डेयरी फार्मिंग से ही जुड़ी हुई है लेकिन उनके संघर्ष का रास्ता गुजरात की जमनाबेन से हट कर रहा है। आलमोती देवी ने अपने पिता द्वारा दी गई एक एकमात्र क्रॉस ब्रीड गाय से डेयरी की शुरुआत की और 2010 तक गायों की संख्या को बढ़ाकर 10 तक कर लिया। 
आज इन गायों से रोजाना औसतन 90 लीटर दूध का उत्पादन होता है लेकिन आलमोती देवी ने अपने आपको सिर्फ दूध बेचने तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि गाय के दूध से घी, पेड़ा और अन्य मिठाइयां बनाकर स्थानीय दुकानों को बेचना शुरू कर दिया। इससे उनकी आमदनी बढ़ी और आज उनकी कामयाबी से प्रेरित होकर गाँव की 30 अन्य महिला किसानों ने गाय पालना शुरू कर दिया है। 

 जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले की रहने वाली इशरत नबी ग्रेजुएट हैं लेकिन उन्होंने अपने जिले में दूध की कमी की समस्या को चुनौती के रूप में लेते हुए अपनी डेयरी फार्म किया और आज उनके डेयरी फार्म से हर दिन करीब डेढ़ सौ लीटर बिक्री हो रही है। वहीं झारखंड के बांका जिले की सविता देवी ने कम जमीन पर वैज्ञानिक तरीके से डेयरी और फार्मिंग कर गाँव के लोगों को प्रेरित किया।"

महिला स्वयंसहायता समूह

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के मुताबिक, पिछले नौ वर्षों के दौरान सात करोड़ से भी अधिक महिलाएं स्वयंसहायता समूहों में शामिल हुई हैं। इन स्वयंसहायता समूहों ने 6.25 लाख करोड़ रुपये के ऋण लिए हैं। प्रधानमंत्री ने सहकारिता सेक्टर में बदलाव और इस सेक्टर में महिलाओं की भूमिका को महत्वपूर्ण बताते हुए यह भी कहा कि आने वाले वर्षों में दो लाख से अधिक बहुउद्देशीय सहकारिताएं, दुग्ध सहकारिताएं और मत्स्य सहकारिताएं बनाई जाएंगी। प्राकृतिक खेती से एक करोड़ किसानों को जोड़ने का लक्ष्य तय किया गया है। महिला किसान और उत्पादक समूह इसमें बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। प्रधानमंत्री ने 'श्री अन्न' को प्रोत्साहित करने में महिला स्वयंसहायता समूहों की भूमिका पर बात करते हुए यह भी कहा कि 'श्री अन्न' के विषय में पारंपरिक अनुभव रखने वाली एक करोड़ से अधिक जनजातीय महिलाएं इन स्वयंसहायता समूहों का हिस्सा हैं।

श्री अन्न महिला उद्यमी

मिलेट्स यानी श्री अन्न की बात करें तो इसे बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी बहुत गंभीर हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री ने अपने मन की बात' कार्यक्रम में श्री अन्न महिला के नाम से मशहूर शर्मीला ओसवाल की उपलब्धियों का जिक करते हुए कहा था कि महाराष्ट्र में अलीबाग के पास केनाड गाँव की रहने वाली शर्मीला ओसवाल पिछले 20 साल से मिलेट्स की पैदावार में अनोखे तरीके से योगदान दे रही हैं। वो किसानों को 'स्मार्ट एग्रीकल्चर का प्रशिक्षण दे रही हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि उनके प्रयासों से न सिर्फ मिलेट्स की उपज बढ़ी है, बल्कि किसानों की आय में भी वृद्धि हुई है।

शर्मिला ओसवाल अनूठे ढंग से मोटे अनाजों के उत्पादन में योगदान कर रही हैं. और उनकी इस उपलब्धियों के लिए उन्हें अब 'श्री अन्न महिला' के रूप में जाना जाने लगा है। शर्मिला ओसवाल पिछले 20 वर्षों से भारत में बाजरा मिशन के लिए काम कर रही हैं। वैश्विक मंच पर पहचानी जाने वाली भारत की इस प्रमुख फसल के बारे में जागरूकता बढ़ाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

बाजरा की खेती इस क्षेत्र में पिछले 5 हजार सालों से भी अधिक समय से होती रही है। गेहूं और चावल जैसे अन्य अनाजों की तुलना में इसका औषधीय लाभ भी अधिक है। इसे कार्बन तटस्थ, जलवायु अनुकूल और जल अनुकूल फसल भी माना जाता है। लेकिन पिछले कुछ दशकों के दौरान यह लोगों के भोजन की थाली और किसानों के खेत से कम या यूं कहे कि दूर होता चला गया। ऐसे में कृषि, जल और खाद्य सुरक्षा के गठजोड़ पर काम करते हुए, शर्मिला किसानों को न केवल बाजरे के फायदे के बारे में बता रही हैं बल्कि साथ ही, उनकी क्षमता बढ़ाने के लिए भी काम कर रही हैं और इस फसल का प्रचार-प्रसार भी कर रही हैं।"

राष्ट्रीय महिला किसान दिवस

देश के कृषि क्षेत्र और भारतीय अर्थव्यवस्था में महिला किसानों की भूमिका को सम्मान और मान्यता देने के लिए भारत में हर वर्ष 15 अक्टूबर को 'राष्ट्रीय महिला किसान दिवस' के तौर पर मनाया जाने लगा है। भारत के प्रयासों से संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष' के रूप में घोषित किया है। इसलिए इस वर्ष महिला किसान दिवस का विषय भी मिलेट्स महिलाओं का सशक्तीकरण और पोषण सुरक्षा प्रदान करना ही रखा गया है। कृषि विकास की मुख्यधारा में महिलाओं को प्राथमिकता देने के लिए प्रतिबद्ध सरकार का यह मानना है कि महिलाएं खाद्यान्नों की प्राथमिक उत्पादनकर्ता हैं, जैव विविधता की संरक्षक हैं और मोटे अनाज जैसे स्वदेशी खाद्यान्नों के उत्पादन और प्रचार- प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।"


लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ई-मेल mediasantoshpathak@gmail.com

सोर्स- कुरुक्षेत्र

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