खूनी भंडारा जो बुझा रहा है पीढ़ियों की प्यास लगातार बिना रुके बिना थके

खूनी भंडारा का बाहरी हिस्सा
खूनी भंडारा का बाहरी हिस्सा
तकरीबन 100 फीट जमीन के नीचे दुनिया की एकमात्र जिंदा ऐसी सुरंग है जो अमृत जैसा पानी देती है। जो नापती है 4 किलोमीटर लंबा सफर। हैरान होने के लिए इतना ही काफी नहीं है। पिछले 400 सालों से इसने कई पीढ़ियों की प्यास बुझाई है। आज भी ये सुरंग लाखों लोगों की प्यास बुझा रही है।

ये जो आप कुओं की लंबी कतार देख रहे हैं ये कोई साधारण कुएं नहीं हैं। ये उसी खूनी भंडारे के निशान हैंजिसकी शुरूआत 400 साल पहले की गई थी। दरअसल इन कुओं के नीचे एक लंबी सुरंग है जो इनको 108 कुओं को आपस में जोड़ती है। इस पूरे सिस्टम को ही खूनी भंडारा कहा जाता है। ये एक नायाब तरीका है जमीन के नीचे पानी के मैनेजमेंट का। जिसे मुगलों ने विकसित किया।

एक जाने-माने इंटरनेशनल चैनल के लिए हमें इस पूरे सिस्टम पर डॉक्युमेंट्री बनानी थी...बात सन् 2002 की है...हमने अपनी बेसिक रिसर्च पूरी की और अपने पूरे तामझाम के साथ पहुंच गए खूनी भंडारा कवर करने।

कुछ इस तरह का नजारा रहा होगा शुरुआत मेंकुछ इस तरह का नजारा रहा होगा शुरुआत मेंमेरे साथ मेरे साथी डीओपी यानी डायेरेक्टर ऑफ फोटोग्राफी खुर्शीद खान भी थे। हम सभी उन्हें प्यार से खुर्शीद भाई भी बुलाते हैं। खुर्शीद भाई अपने फन के माहीर इंसान हैं। चूंकि जिस सिस्टम का हमें पिक्चराइजेशन करना था उसका नाम बड़ा ही अजीबो-गरीब था...लिहाजा मेरे और खुर्शीद भाई के मन में कई तरह की अशंकाओं ने जन्म लेना शुरू कर दिया। खूनी भंडारे जैसा नाम और जमीन के नीचे उतरना...इस तरह का कंबिनेशन किसी के मन में भी डर पैदा कर सकता है। इंसान होने के नाते हमारे मन में भी उसी डर ने कब्जा जमाने की कोशिश की...लेकिन हमारी सभी तरह की आशंकाएं काफूर हो गईं जब हम खूनी भंडारे के नीचे उतरे। नीचे का नजारा देखकर तो मानों हमारे मन को लगा कि हम स्वर्ग में उतर आएं हों।

नीचे उतरने पर चारों तरफ से पानी की बूंदे टपक रही थीं। हम भी पूरी तैयारी के साथ सुरंग में उतरे थे। हमारे पास तीन छतरियां थीं...एक कैमरामैन के लिए, एक मेरे लिए और एक कैमरे को बचाने के लिए और हाई पॉवर टॉर्च भी हमारा साथ देने के लिए थी क्योंकि सुरंग में घुप्प अंधेरा था। तो हमें रास्ता दिखाने के लिए और शूटिंग करने के लिए हाई पॉवर टॉर्च की जरुरत थी हालांकि टॉर्च की रोशनी सुरंग की दीवारों के लिए नुकसानदायक हो सकती थी...लेकिन जब दुनिया को अपनी गजब की इंजीनियरिंग के नजारे कराने हों तो जलधारा जहां लगातार प्रवाहित होती रहती है इस तरह का रिस्क उठाना ही पड़ता है। हमने जरुरी एहतियात के साथ 100 फीट नीचे शूटिंग शुरू कर दी। हम धरती के एक्युफर में शूटिंग कर रहे थे, जो कि अपने आप में हैरान करने वाला था क्योंकि अभी तक ज्योग्राफी या जियोलॉजी में केवल एक्युफर के बारे में ही पढ़ा था कि धरती के एक्युफर में जाकर पानी जमा हो जाता है। जहां से कुओं और पंपों के जरिए पानी को ऊपर लाया जाता है। लेकिन हम खुद उसी एक्युफर में फिल्म की शूटिंग कर रहे थे। ये कम से कम हमारे लिए बेहद हैरानी भरा था।

अंदर कुछ इस तरह का नजारा दिखता हैअंदर कुछ इस तरह का नजारा दिखता हैये एक नायाब तरीका है जमीन के नीचे पानी के मैनेजमेंट का, जिसे मुगलों ने विकसित किया था। मुगलकाल में मध्यप्रदेश के खंडवा के पास बुरहानपुर को दक्षिणी भारत का द्वार कहा जाता था।

गेट वे ऑफ साउथ इंडिया


दक्षिणी भारत पर राज करने के इरादे से मुगलों ने इस इलाके का खासतौर पर विकास किया था। तकरीबन 2 लाख फौज और 35 हजार आम जनता को पानी मुहैया कराने के लिए मुगल सूबेदार अब्दुल रहीम खानखाना ने इसका निर्माण कराया था। इसका ''खूनी भंडारा'' नाम पड़ने के पीछे कई रोचक और मजेदार कहानियां भी जुड़ी हुई हैं। खूनी भंडारा में दो शब्द मौजूद हैं, एक है आखून और दूसरा है भंडार। आखून का मतलब होता है कभी न खत्म न होने वाला, ये एक अरबी शब्द है। यानी कभी न खत्म होने वाला भंडार, जो कि बिगड़ते-बिगड़ते खूनी भंडारा हो गया।

कुछ इस तरह सुरंग आपस में कुओं को जोड़ती हैकुछ इस तरह सुरंग आपस में कुओं को जोड़ती है1615 ई. में बनाए गए इस खूनी भंडारे में कुल 103 कुएं हैं। गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत का इस्तेमाल कर इसका निर्माण कराया गया था। इसके तीसरे कुएं से उतरने के लिए एक छोटी सी लिफ्ट लगाई गई है। जैसा मैने पहले ही कहा है कि नीचे उतरने पर इसका नजारा कमाल का है। चांदी सी चमकती चूना पत्थर की दीवारें और उन पर चारों तरफ से टपकती बूंदें। इस खूनी भंडारे में आती पानी की बूंदे, बूंद-बूंद से भरता सागर वाली कहावत सच करती हुई दिखती हैं। इसका नीचे उतरना किसी के लिए भी अद्भुत तजुर्बा हो सकता है। दक्षिण भारत पर राज करने के इरादे से मुगलों ने इस इलाके का खासतौर पर विकास किया था। 2 लाख फौज और 35000 आम जनता को पीने का पानी मुहैया कराने के लिए मुगल सूबेदार अब्दुल रहीम खानखाना ने इसका निर्माण कराया था। पिछले 400 सौ सालों में इस पूरी सुरंग में इतना कैल्शियम जम गया है कि सुरंग की दीवारें टॉर्च की रोशनी में संगमरमर की तरह दिखने लगती हैं और मजबूती इतनी कि 1000 साल तक के झंझावात झेल जाए। रिक्टर स्केल पर 6 तक भूकंप का झटका झेलने के बावजूद ये सुरंग अभी भी ठीक-ठाक हैं। 400 साल पहले बने इस खूनी भंडारे की दीवारों की मजबूती आज भी लोगों को हैरान करती है। टॉर्च की रोशनी में इस खूनी भंडारे की दिवारें जादुई नजारा पेश करती हैं। इसके नीचे उतरना किसी के लिए भी अद्भुत तजुर्बा हो सकता है।

1989 से ही इतिहासकार, इंजीनियर और वैज्ञानिक इसकी तरफ आकर्षित होना शुरू हो गए। आज भी ये खूनी भंडारा रोजाना एक लाख दस हजार लीटर पानी मुहैया करा रहा है और इस पानी की गुणवत्ता का पैमाना गजब का है- आज बाजार में बिकने वाले बोतलबंद पानी के मुकाबले 18 गुना बेहतर। 1977 में खूनी भंडारे के बहाव में कुछ रुकावट आ गई थी जिसे बुरहानपुर नगर निगम और जिला प्रशासन मिलकर ठीक कर लिया। तीसरे कुएं से उतरने के लिए एक ऑटोमेटिक लिफ्ट भी लगाई है।

खूनी भंडारे की टेक्नोलॉजी


जलधारा जहां लगातार प्रवाहित होती रहती हैजलधारा जहां लगातार प्रवाहित होती रहती हैये कम ही लोगों को पता होगा कि खूनी भंडारा क्या है और इसकी तकनीक कैसी है? बनावट के नजरिए से देखें तो ये किसी धरोहर से कम नहीं है, जिसे मुगलों की बेहतरीन कारीगरी का नमूना माना जा सकता है। ये एक ऐसा ऐतिहासिक सिस्टम है जो आज न केवल जिंदा है, बल्कि लाखों लोगों को जिदा रखे हुए है। खूनी भंडारा के जरिए मुगल सूबेदार अब्दुल रहीम खानखाना ने एक सपने को हकीकत का जामा पहनाया। मकसद था बुरहानपुर को मुगल फौज का बेस बनाना। क्योंकि यहीं से मुगलों को राज करना था दक्षिण भारत पर। ऐसे में जरुरत थी ऐसी तकनीक की, जो 2 लाख फौज और 35 हजार आम लोगों को जीने की सबसे अहम चीज मुहैया करा सके और वो था पानी। उस वक्त यहां पानी के लिए दमदार सिस्टम तैयार करना किसी चुनौती से कम नहीं था, लेकिन सपना सच हुआ और इसे इंजीनियरिंग कौशल के बलबूते हकीकत में बदला गया। ऐसे ऐतिहासिक प्रोजेक्ट के लिए बहुत बड़ा विजन चाहिए होता है। ठीक इसी सोच पर चलकर अब्दुल रहीम खानखाना ने ऐसा सिस्टम तैयार कर डाला जो खूनी भंडारा के नाम से मशहूर हुआ। वही खूनी भंडारा जो विज्ञान और इंजीनियरिंग की नजर से एक हजार साल तक पानी की सभी जरूरतों को पूरा करने की ताकत रखता है।

सबसे पहले एक फारसी भूवैज्ञानिक तब कुल-अर्ज ने 1615 ईस्वी में इस इलाके का व्यापक दौरा किया। उन्होंने यहां बारिश के पानी का बहाव, पहाड़ों की बनावट और उसमें मौजूद खनिज पदार्थों को बारीकी से परखा। तब जाकर इस जगह का चुनाव किया।

बाहर का एक कुआंबाहर का एक कुआंबारिश का पानी जिस उंचाई पर इकट्ठा होता है वहां से जमीन के नीचे होता हुआ सबसे पहले मूल भंडारे में जाता है, फिर चिंताहरण भंडारे से होता हुआ सूखे भंडारे में जाता है, तब जाकर वो पानी खूनी भंडारे में आता है। 103 कुओं का ये एक ऐसा जाल है जिसमें सभी कुओं का व्यास ढाई से साढ़े तीन फीट है। और गहराई 20 फीट से लेकर 80 फीट तक। इस तरह इतिहास का ऐसा नमूना तैयार हुआ जो विज्ञान की रवायत को इतिहास के जरिए आगे बढ़ा रहा है। आज के दौर में खूनी भंडारा एक मिसाल है और सीख भी कि अगर हम खुद को बचाना चाहते हैं तो हमें ऐसी धरोहर को बचाना होगा।

मुगलों के लिए खूनी भंडारे का रणनीतिक महत्व


मुगल शासकों ने बुरहानपुर को भले ही ताजमहल न दिया हो लेकिन खूनी भंडारे के रूप में एक ऐसी अनूठी सौगात जरूर दी है जो देश में भूमिगत जल प्रबंधन का बेहतरीन नमूना है। ‘रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून’ का संदेश देने वाले अब्दुल रहीम खानखाना ने इस कहावत को हकीकत का जामा भी पहनाया। दरअसल दक्षिण भारत पर राज करने के इरादे से मुगलों को बुरहानपुर सबसे मुफीद जगह लगी। इसी सामरिक अहमियत की वजह से मुगलों ने बुरहानपुर को खासतौर पर विकसित किया। कहा जाता है कि इस जगह बहने वाली ताप्ती नदी में अगर दुश्मन जहर घोल देता तो मुगलों की विशाल सेना बेमौत मारी जाती। इसलिए जमीन के नीचे पानी को बहाने का फैसला लिया गया। पानी के साथ-साथ इसके पीछे एक और रणनीति काम कर रही थी, वो थी संकट के समय दुश्मन से बचने के लिए इस खूनी भंडारे को भागने के लिए इस्तेमाल किया जा सके। इस सुरंग का इस्तेमाल मुगल सुरक्षित मार्ग के तौर पर किया भी करते थे।

आज भी जनता इन कुओं से ही पानी ले रही हैआज भी जनता इन कुओं से ही पानी ले रही हैबादशाह शाहजहां और उसकी बेगम मुमताज ने अपनी जिंदगी के खास लम्हे इसी बुरहानपुर में बिताए, मुमताज ने यहां आखिरी सांसे लीं और यहीं उनका इंतकाल हुआ, उनकी कब्र भी यहीं पर है फिर भी उनकी याद में ताजमहल यहां नहीं बना। बना तो एक खूनी भंडारा जो ताजमहल से किसी भी मायने में कमतर नहीं है। जिस तरह ताजमहल दुनिया में वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है ठीक उसी तरह खूनी भंडारा भी जल प्रबंधन के क्षेत्र में बेजोड़ है। ताजमहल तो आंखों को भाता है मगर खूनी भंडारा बुरहानपुर के गले को तर करता है। आज जब देश के अधिकतर शहर पानी के संकट से जूझ रहे हैं ऐसे में खूनी भंडारा अपनी अहमियत साबित किए हुए है। खंडवा में जब कभी भी सूखा पड़ता है, उसकी मार से बुरहानपुर अछूता बना रहता है, क्योंकि उसके पास खूनी भंडारा है। जिसमें पानी की मौजूदगी साल भर बनी रहती है और खर्च कुछ भी नहीं, शुद्ध स्वच्छ पानी की गारंटी अलग से। पौने चार सौ साल पुरानी ये व्यवस्था न केवल खुद को जिंदा रखे हुए है बल्कि इसमें ढाई लाख आबादी वाले शहर को जिंदा रखने की ताकत भी है।

पूरी दुनिया में भूमिगत जल प्रबंधन या अंडरग्राउंड वाटर मैनेजमेंट की इतनी पुरानी व्यवस्था का अनोखा प्रतीक है ये खूनी भंडारा। इसे पर्यटन के आकर्षण का केंद्र भी बनाया जा सकता है और प्रेरणा का स्रोत भी। क्योंकि पानी के आने वाले संकट से निपटने के लिए अब्दुल रहीम खानखाना की ये अद्भुत संरचना हमेशा एक मिसाल रहेगी।

ऊपर से देखने पर कुएं का दृश्यऊपर से देखने पर कुएं का दृश्य

खूनी भंडारे में नीचे जमीन पर यूं ही बहता दिखता है पानीखूनी भंडारे में नीचे जमीन पर यूं ही बहता दिखता है पानी

सुरंग में इस तरह से झरता रहता है पानीसुरंग में इस तरह से झरता रहता है पानी

बहता पानी, मन को खुशी से भर देता हैबहता पानी, मन को खुशी से भर देता है

जगह-जगह यूं ही पानी निकलता रहता हैजगह-जगह यूं ही पानी निकलता रहता है

कहीं से भी पानी टपकता जाता हैकहीं से भी पानी टपकता जाता है
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