खुले में शौच और स्वच्छता को लेकर आइआइटी दिल्ली एवं यूनिसेफ द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर एक दिवसीय गोलमेज सम्मेलन का आयोजन किया गया। नयी दिल्ली के आइआइटी कैंपस में आयोजित इस सम्मेलन में केंद्र सरकार, स्वच्छता क्षेत्र की विभिन्न एजेंसियों, ग्रास रूट पर काम कर रही स्वयं सेवी संस्थाओं, तकनीकी संस्थानों, मीडिया और बुद्धिजीवी वर्ग के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन में निर्मल भारत के लक्ष्य को प्राप्त करने के उद्देश्य से अब तक की उपलब्धियों, चुनौतियों एवं अनुभवों को साझा किया गया और भविष्य के लिए सुझाव जुटाये गये।
मौके पर यूनिसेफ के ‘लू-टू-पू’ अभियान को सेलिब्रेट किया गया। यूनिसेफ ने इस अभियान को पिछले साल नवंबर में शुरू किया था। इसका उद्देश्य मल के निबटारे और खुले में शौच की प्रथा को रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाना और लोक व्यवहार में बदलाव लाना है। सम्मेलन में इस अभियान से जुड़ी एनीमेशन फिल्म प्रदर्शित की गयी और अभियान के विभिन्न पक्षों की चर्चा की गयी। सम्मेलन पांच सत्रों में पूरा हुआ। 2022 तक कैसे निर्मल भारत का निर्माण हो सकता है, इस विषय पर जोरदार बहस हुई।
बहस के जरिये यह जानने का प्रयास किया गया कि खुले में शौच करने की आदत को बदलने के लिए ग्रास रूट पर किस तरह के अभियान की जरूरत है और पहले से चल रहे अभियान में किस तरह के सुधार की जरूरत है। सम्मेलन में राजस्थान, ओडिशा और मध्य प्रदेश के स्वच्छता कार्यकर्ता, ग्रामीण और पंचायती राज प्रतिनिधियों के समूह को भी आमंत्रित किया गया था। समूह के सदस्यों ने चौपाल लगायी और यह बताया कि कैसे स्वच्छता ने उनके क्षेत्र के ग्रामीण जीवन में बदलाव लाया।
सम्मेलन के उद्घाटन यूनिसेफ इंडिया की पेयजल, स्वच्छता एवं स्वास्थ्य (डब्लूएसएच) की प्रमुख शूई कोट्स, केंद्रीय पेयजलापूर्ति मंत्रालय की निदेशक संध्या सिंह एवं आइआइटी दिल्ली के प्रो विजयराघवन एम चेरियार ने हिस्सा लिया और देश में स्वच्छता की वर्तमान स्थिति की चर्चा की। चर्चा में यह तथ्य उभर कर आया कि अब तक के प्रयासों, कार्यक्रमों और अभियानों के बाद भी भारत की करीब 50 प्रतिशत आबादी आज भी खुले में शौच करती है। उनके बीच स्वच्छता अभियान का संदेश तो पहुंचा है। बहुत बड़े वर्ग के बीच शौचालय का निर्माण भी कराया, लेकिन इसके बाद भी उनके व्यवहार में बदलाव नहीं आया है। वे अब भी पहले की तरह खुले में शौच कर रहे हैं। देश के 620 करोड़ लोग शौचालय का इस्तेमाल नहीं करते।
शूई कोट्स ने इस समस्या का हल निकालने के लिए तकनीकों में बदलाव की जरूरत बतायी। संध्या सिंह इस निष्कर्ष पर थीं कि स्वच्छता केवल शौचालय निर्माण का मामला नहीं है, बल्कि यह एक सोच का विषय है। समुदाय की सोच में बदलाव के लिए युवाओं पर फोकस करने की जरूरत है। इस काम में यूनिसेफ बड़ी भूमिका निभा रहा है। देशभर में खुले में शौच के खिलाफ सरकार का अभियान चल रहा है। इसका लक्ष्य 2022 तक भारत को पूरी तरह निर्मल बनाना है। इसमें आइआइटी दिल्ली भी केंद्र सरकार के साथ काम रहा है।
खुले में शौच की समस्या गांव और शहर दोनों के लिए एक जैसी है। इस समस्या को हल करने के लिए सरकार ने वैसे परिवारों को कई विकल्प दिये हैं, जो अपने लिए शौचालय बनाना चाहते हैं। सरकार इस मद में प्रत्येक शौचालय पर 10 हजार रुपये दे रही है। इसमें बीपीएल-एपीएल की सीमा खत्म कर दी गयी है। यानी दोनों ही वर्ग के परिवार इस योजना का लाभ ले सकते हैं। मनरेगा के द्वारा भी शौचालय निर्माण कराया जा सकता है। इन सबके बावजूद अब तक केवल 40 प्रतिशत लक्ष्य पूरा हो सका है। सरकार ने हर साल 60 लाख शौचालय बनाने का लक्ष्य तय किया है, लेकिन अब तक की उपलब्धि इससे बहुत कम है।
बिहार स्वच्छता मिशन के टीम लीडर एवं पूर्व यूनिसेफ अधिकारी प्रकाश कुमार ने बिहार में शौचालय निर्माण और उनके व्यवहार की वर्तमान स्थिति की चर्चा की। उन्होंने निर्मल भारत निर्माण में सामाजिक बदलाव के लिए सामुदायिक सहभागिता पर जोर दिया और इसके लिए सुझाव भी दिये। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पंचायत स्तर पर स्वच्छता को व्यापक समुदाय से जोड़ना पूरी तरह संभव नहीं हुआ। इसकी वजह यह रही कि शौचालय निर्माण जैसे विषय को ही अहमियत दी गयी। लोगों के व्यवहार में बदलाव को लेकर प्रयास नहीं हुआ।
साथ ही स्वच्छता कार्यक्रम से जुड़े विभाग जनता का विश्वास हासिल नहीं कर सके। सड़क निर्माण और भवन निर्माण की तर्ज पर स्वच्छता निर्माण की बात की गयी। इसलिए आगे इन कमियों को दूर करने की जरूरत है। समुदाय को अभियान से सीधा-सीधा जोड़ना और उनके व्यवहार में बदलाव के लिए युवाओं को आगे लाना होगा। उन्होंने बिहार में सामख्या, लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग और जीविका के जरिये नये पैटर्न पर चल रहे कार्य की चर्चा की।
एकम इको सोलुशन के उत्तम बनर्जी ने स्वच्छता तकनीकों में नये प्रयोग पर जोर दिया। उन्होंने मानव मल और मूत्र के उपयोग की आधुनिक तकनीकों के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने बताया कि अफ्रिका में युवाओं ने मानव-मूत्र से चलने वाले जेनरेटर की खोज की है। इसके जरिये एक लीटर मूत्र से छह घंटे बिजली पैदा की जा सकती है। इसी प्रकार अन्य विधियों से भी मानव-मल और मानव-मूत्र का इस्तेमाल पावर के क्षेत्र में किया जा सकता है।
वाटर फॉर पीपुल्स के अरुमुगम, कालीमुत्थु ने बाजार आधारित ग्रामीण स्वच्छता के विभिन्न पक्षों पर चर्चा की। अनुभव के आधार पर बताया कि इसके जरिये स्वच्छता के लक्ष्य को प्राप्त करना आसान हो सकता है।
सम्मेलन में विभिन्न राज्यों से आये स्वच्छता कार्यकर्ताओं तथा मीडिया और स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इनमें वाटर फॉर पीपुल्स कोलकाता के सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर सत्य नारायण घोष, सेव द चिल्ड्रेन नयी दिल्ली के प्रोजेक्ट मैनेजर असद उमर, प्रभात खबर दिल्ली ऑफिस के वरिष्ठ पत्रकार संतोष कुमार सिंह, फिनिस सोसाइटी (लखनऊ) के प्रोजेक्ट डायरेक्टर अभिजीत बनर्जी, सेंटर फॉर रिसर्च एंड इंटस्ट्रियल स्टाफ परफॉरमेंस भोपाल के मल्टीमीडिया मैनेजर कुंजेश श्रीवास्तव, दैनिक भास्कर (ग्वालियर) के उप-संपादक अशेंद्र सिंह, यूनिसेफ इंडिया की कम्यूनिकेशन स्पेशलिस्ट मारिया फार्नांडिसग व गीतांजलि मास्टर एवं कम्यूनिकेशन ऑफिसर (मीडिया) सोनिया शेखर आदि शामिल हैं।
आयोजकों के आमंत्रण पर इस सम्मेलन में पंचायतनामा भी पहुंचा। पंचायतनामा ने गांव-पंचायतों में स्वच्छता, स्वास्थ्य, महिला और बाल अधिकार जैसे विषयों पर केंद्रित अलग-अलग कई अंक प्रकाशित किये हैं। इसके जरिये खुले में शौच के खिलाफ लोकमत तैयार करने और लोक व्यवहार में बदलाव लाने की पहल की है।
पंचायतनामा के इन प्रयासों पर सम्मेलन के मीडिया सत्र में चर्चा हुई। इसकी प्रतियां भी वितरित की गयीं और यह बताया गया कि स्वच्छता मीडिया का बड़ा विषय है, जिस पर पंचायतनामा लगातार काम कर रहा है। इस विषय को मीडिया की टीआरपी का हवाला देकर न तो खारिज किया जा सकता है और न ही इसे हाशिये पर ढकेला जा सकता है। मीडिया में स्वच्छता पर खबरों की पूरी गुंजाइश है।
सत्र की अध्यक्षता कर रहे लाइव टीवी के संपादक राहुल देव की भी यही राय थी। इस सत्र में एनडीटीवी के कार्यकारी संपादक रवीश कुमार एवं कॉलम राइटर अलका आर्या विशेष तौर पर आमंत्रित थे। पंचायतनामा का प्रतिनिधित्व आरके नीरद ने किया।
सम्मेलन में इस तर्क को खारिज किया गया कि पानी और पैसे की कमी शौचालय निर्माण और उनके प्रयोग में बाधा पैदा कर रही है। शौचालय का निर्माण अब बहुत खर्चीला नहीं रहा। ऐसी तकनीकें विकसित की गयी हैं और शौचालय के इस तरह के मॉडल डिजाइन किये गये हैं कि कम पैसे में शौचालय बन सकता है। शौचालय निर्माण के लिए सरकार आर्थिक मदद भी दे रही है। इसलिए पैसे की कमी की बात बेमानी है। उसी तरह पानी की कमी भी कोई मुद्दा नहीं है। आदमी खुले में शौच करे या शौचालय में, धोने के लिए वह बराबर पानी इस्तेमाल करता है। नयी तकनीक के पैन आ जाने से शौचालय के इस्तेमाल में कम-से-कम पानी की जरूरत पड़ती है।
सम्मेलन में एक अहम सत्र मीडिया के लिए था। इसकी अध्यक्षता लाइव टीवी के संपादक राहुल देव ने की। सत्र में एनडीटीवी के कार्यकारी संपादक रवीश कुमार एवं कॉलम राइटर अलका आर्या ने स्वच्छता के सवाल पर मीडिया की भूमिका को लेकर प्रतिभागियों के साथ चर्चा की।
अलका आर्या ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में स्वच्छता को अब तक प्राथमिकता नहीं देने पर सवाल उठाया। रवीश कुमार ने शौच को लेकर देश के लोगों की सोच और व्यवहार के बदलते स्वरूप की चर्चा की। उन्होंने माना कि इस विषय को मीडिया ने उपेक्षित किया है।
राहुल देव की राय थी कि अन्य मुद्दों की तरह स्वच्छता और खासकर खुले में शौच के खिलाफ मीडिया को नये सिरे से सोचना चाहिए।
मौके पर यूनिसेफ के ‘लू-टू-पू’ अभियान को सेलिब्रेट किया गया। यूनिसेफ ने इस अभियान को पिछले साल नवंबर में शुरू किया था। इसका उद्देश्य मल के निबटारे और खुले में शौच की प्रथा को रोकने के लिए जागरूकता बढ़ाना और लोक व्यवहार में बदलाव लाना है। सम्मेलन में इस अभियान से जुड़ी एनीमेशन फिल्म प्रदर्शित की गयी और अभियान के विभिन्न पक्षों की चर्चा की गयी। सम्मेलन पांच सत्रों में पूरा हुआ। 2022 तक कैसे निर्मल भारत का निर्माण हो सकता है, इस विषय पर जोरदार बहस हुई।
बहस के जरिये यह जानने का प्रयास किया गया कि खुले में शौच करने की आदत को बदलने के लिए ग्रास रूट पर किस तरह के अभियान की जरूरत है और पहले से चल रहे अभियान में किस तरह के सुधार की जरूरत है। सम्मेलन में राजस्थान, ओडिशा और मध्य प्रदेश के स्वच्छता कार्यकर्ता, ग्रामीण और पंचायती राज प्रतिनिधियों के समूह को भी आमंत्रित किया गया था। समूह के सदस्यों ने चौपाल लगायी और यह बताया कि कैसे स्वच्छता ने उनके क्षेत्र के ग्रामीण जीवन में बदलाव लाया।
सम्मेलन के उद्घाटन यूनिसेफ इंडिया की पेयजल, स्वच्छता एवं स्वास्थ्य (डब्लूएसएच) की प्रमुख शूई कोट्स, केंद्रीय पेयजलापूर्ति मंत्रालय की निदेशक संध्या सिंह एवं आइआइटी दिल्ली के प्रो विजयराघवन एम चेरियार ने हिस्सा लिया और देश में स्वच्छता की वर्तमान स्थिति की चर्चा की। चर्चा में यह तथ्य उभर कर आया कि अब तक के प्रयासों, कार्यक्रमों और अभियानों के बाद भी भारत की करीब 50 प्रतिशत आबादी आज भी खुले में शौच करती है। उनके बीच स्वच्छता अभियान का संदेश तो पहुंचा है। बहुत बड़े वर्ग के बीच शौचालय का निर्माण भी कराया, लेकिन इसके बाद भी उनके व्यवहार में बदलाव नहीं आया है। वे अब भी पहले की तरह खुले में शौच कर रहे हैं। देश के 620 करोड़ लोग शौचालय का इस्तेमाल नहीं करते।
शूई कोट्स ने इस समस्या का हल निकालने के लिए तकनीकों में बदलाव की जरूरत बतायी। संध्या सिंह इस निष्कर्ष पर थीं कि स्वच्छता केवल शौचालय निर्माण का मामला नहीं है, बल्कि यह एक सोच का विषय है। समुदाय की सोच में बदलाव के लिए युवाओं पर फोकस करने की जरूरत है। इस काम में यूनिसेफ बड़ी भूमिका निभा रहा है। देशभर में खुले में शौच के खिलाफ सरकार का अभियान चल रहा है। इसका लक्ष्य 2022 तक भारत को पूरी तरह निर्मल बनाना है। इसमें आइआइटी दिल्ली भी केंद्र सरकार के साथ काम रहा है।
खुले में शौच की समस्या गांव और शहर दोनों के लिए एक जैसी है। इस समस्या को हल करने के लिए सरकार ने वैसे परिवारों को कई विकल्प दिये हैं, जो अपने लिए शौचालय बनाना चाहते हैं। सरकार इस मद में प्रत्येक शौचालय पर 10 हजार रुपये दे रही है। इसमें बीपीएल-एपीएल की सीमा खत्म कर दी गयी है। यानी दोनों ही वर्ग के परिवार इस योजना का लाभ ले सकते हैं। मनरेगा के द्वारा भी शौचालय निर्माण कराया जा सकता है। इन सबके बावजूद अब तक केवल 40 प्रतिशत लक्ष्य पूरा हो सका है। सरकार ने हर साल 60 लाख शौचालय बनाने का लक्ष्य तय किया है, लेकिन अब तक की उपलब्धि इससे बहुत कम है।
बिहार प्रोजेक्ट पर चर्चा
बिहार स्वच्छता मिशन के टीम लीडर एवं पूर्व यूनिसेफ अधिकारी प्रकाश कुमार ने बिहार में शौचालय निर्माण और उनके व्यवहार की वर्तमान स्थिति की चर्चा की। उन्होंने निर्मल भारत निर्माण में सामाजिक बदलाव के लिए सामुदायिक सहभागिता पर जोर दिया और इसके लिए सुझाव भी दिये। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पंचायत स्तर पर स्वच्छता को व्यापक समुदाय से जोड़ना पूरी तरह संभव नहीं हुआ। इसकी वजह यह रही कि शौचालय निर्माण जैसे विषय को ही अहमियत दी गयी। लोगों के व्यवहार में बदलाव को लेकर प्रयास नहीं हुआ।
साथ ही स्वच्छता कार्यक्रम से जुड़े विभाग जनता का विश्वास हासिल नहीं कर सके। सड़क निर्माण और भवन निर्माण की तर्ज पर स्वच्छता निर्माण की बात की गयी। इसलिए आगे इन कमियों को दूर करने की जरूरत है। समुदाय को अभियान से सीधा-सीधा जोड़ना और उनके व्यवहार में बदलाव के लिए युवाओं को आगे लाना होगा। उन्होंने बिहार में सामख्या, लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग और जीविका के जरिये नये पैटर्न पर चल रहे कार्य की चर्चा की।
मानव मल-मूत्र उपयोगी
एकम इको सोलुशन के उत्तम बनर्जी ने स्वच्छता तकनीकों में नये प्रयोग पर जोर दिया। उन्होंने मानव मल और मूत्र के उपयोग की आधुनिक तकनीकों के बारे में विस्तार से बात की। उन्होंने बताया कि अफ्रिका में युवाओं ने मानव-मूत्र से चलने वाले जेनरेटर की खोज की है। इसके जरिये एक लीटर मूत्र से छह घंटे बिजली पैदा की जा सकती है। इसी प्रकार अन्य विधियों से भी मानव-मल और मानव-मूत्र का इस्तेमाल पावर के क्षेत्र में किया जा सकता है।
वाटर फॉर पीपुल्स के अरुमुगम, कालीमुत्थु ने बाजार आधारित ग्रामीण स्वच्छता के विभिन्न पक्षों पर चर्चा की। अनुभव के आधार पर बताया कि इसके जरिये स्वच्छता के लक्ष्य को प्राप्त करना आसान हो सकता है।
सम्मेलन में लिया भाग
सम्मेलन में विभिन्न राज्यों से आये स्वच्छता कार्यकर्ताओं तथा मीडिया और स्वयंसेवी संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इनमें वाटर फॉर पीपुल्स कोलकाता के सीनियर प्रोग्राम ऑफिसर सत्य नारायण घोष, सेव द चिल्ड्रेन नयी दिल्ली के प्रोजेक्ट मैनेजर असद उमर, प्रभात खबर दिल्ली ऑफिस के वरिष्ठ पत्रकार संतोष कुमार सिंह, फिनिस सोसाइटी (लखनऊ) के प्रोजेक्ट डायरेक्टर अभिजीत बनर्जी, सेंटर फॉर रिसर्च एंड इंटस्ट्रियल स्टाफ परफॉरमेंस भोपाल के मल्टीमीडिया मैनेजर कुंजेश श्रीवास्तव, दैनिक भास्कर (ग्वालियर) के उप-संपादक अशेंद्र सिंह, यूनिसेफ इंडिया की कम्यूनिकेशन स्पेशलिस्ट मारिया फार्नांडिसग व गीतांजलि मास्टर एवं कम्यूनिकेशन ऑफिसर (मीडिया) सोनिया शेखर आदि शामिल हैं।
स्वच्छता पर खबरों की पूरी गुंजाइश
आयोजकों के आमंत्रण पर इस सम्मेलन में पंचायतनामा भी पहुंचा। पंचायतनामा ने गांव-पंचायतों में स्वच्छता, स्वास्थ्य, महिला और बाल अधिकार जैसे विषयों पर केंद्रित अलग-अलग कई अंक प्रकाशित किये हैं। इसके जरिये खुले में शौच के खिलाफ लोकमत तैयार करने और लोक व्यवहार में बदलाव लाने की पहल की है।
पंचायतनामा के इन प्रयासों पर सम्मेलन के मीडिया सत्र में चर्चा हुई। इसकी प्रतियां भी वितरित की गयीं और यह बताया गया कि स्वच्छता मीडिया का बड़ा विषय है, जिस पर पंचायतनामा लगातार काम कर रहा है। इस विषय को मीडिया की टीआरपी का हवाला देकर न तो खारिज किया जा सकता है और न ही इसे हाशिये पर ढकेला जा सकता है। मीडिया में स्वच्छता पर खबरों की पूरी गुंजाइश है।
सत्र की अध्यक्षता कर रहे लाइव टीवी के संपादक राहुल देव की भी यही राय थी। इस सत्र में एनडीटीवी के कार्यकारी संपादक रवीश कुमार एवं कॉलम राइटर अलका आर्या विशेष तौर पर आमंत्रित थे। पंचायतनामा का प्रतिनिधित्व आरके नीरद ने किया।
पानी और पैसे की कमी की बात बेमानी
सम्मेलन में इस तर्क को खारिज किया गया कि पानी और पैसे की कमी शौचालय निर्माण और उनके प्रयोग में बाधा पैदा कर रही है। शौचालय का निर्माण अब बहुत खर्चीला नहीं रहा। ऐसी तकनीकें विकसित की गयी हैं और शौचालय के इस तरह के मॉडल डिजाइन किये गये हैं कि कम पैसे में शौचालय बन सकता है। शौचालय निर्माण के लिए सरकार आर्थिक मदद भी दे रही है। इसलिए पैसे की कमी की बात बेमानी है। उसी तरह पानी की कमी भी कोई मुद्दा नहीं है। आदमी खुले में शौच करे या शौचालय में, धोने के लिए वह बराबर पानी इस्तेमाल करता है। नयी तकनीक के पैन आ जाने से शौचालय के इस्तेमाल में कम-से-कम पानी की जरूरत पड़ती है।
मीडिया में बार-बार उठाने होंगे स्वच्छता के मुद्दे
सम्मेलन में एक अहम सत्र मीडिया के लिए था। इसकी अध्यक्षता लाइव टीवी के संपादक राहुल देव ने की। सत्र में एनडीटीवी के कार्यकारी संपादक रवीश कुमार एवं कॉलम राइटर अलका आर्या ने स्वच्छता के सवाल पर मीडिया की भूमिका को लेकर प्रतिभागियों के साथ चर्चा की।
अलका आर्या ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में स्वच्छता को अब तक प्राथमिकता नहीं देने पर सवाल उठाया। रवीश कुमार ने शौच को लेकर देश के लोगों की सोच और व्यवहार के बदलते स्वरूप की चर्चा की। उन्होंने माना कि इस विषय को मीडिया ने उपेक्षित किया है।
राहुल देव की राय थी कि अन्य मुद्दों की तरह स्वच्छता और खासकर खुले में शौच के खिलाफ मीडिया को नये सिरे से सोचना चाहिए।
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Post By: pankajbagwan