खतरे में ब्यास नदी की जैव विविधता


नई दिल्ली, 23 मार्च 2017 (इंडिया साइंस वायर) : हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और मनाली घूमने गए हों, तो आपने इठलाती हुई ब्यास नदी को जरूर देखा होगा। ब्यास नदी का निर्मल और शीतल जल हिमाचल की सैर पर जाने वाले पर्यटकों को हमेशा लुभाता रहा है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने पाया है कि लंबे समय तब प्रदूषण से बची रहने वाली ब्यास नदी देश की अन्य प्रदूषित नदियों की फेहरिस्त में शामिल हो रही है।

अमृतसर के गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के वानस्पतिक और पर्यावरण विज्ञान विभाग से जुड़े शोधकर्ताओं ने अपने एक अध्ययन में पाया है कि औद्योगिक एवं घरेलू अपशिष्ट ब्यास नदी में निरंतर बहाए जाने के कारण इसका पानी प्रदूषित हो रहा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक बढ़ते प्रदूषण का असर नदी में रहने वाले जलीय जीवों पर भी पड़ रहा है। करीब 470 किलोमीटर लंबी ब्यास नदी ताजे पानी की संकटग्रस्त डॉल्फिन प्लैटेनिस्टा गैंगेटिका और ऊदबिलाव का घर है। प्रदूषण का असर ब्यास नदी के भौतिक, रासायनिक और जैविक स्वरूप पर पड़ने के कारण इन संकटग्रस्त जीवों का अस्तित्व खतरे में पड़ रहा है।

मध्य हिमालय से निकलने वाली ब्यास सिंधु के प्रवाह तंत्र की एक सहायक नदी है। हिमाचल प्रदेश में ब्यास नदी कुल्लू, मंडी और कांगड़ा से होकर गुजरती है और फिर पंजाब में होशियारपुर में शिवालिक की पहाड़ियों में प्रवेश करने के बाद गुरदासपुर, होशियारपुर, जालंधर, अमृतसर और कपूरथला जिलों से होती हुई हरीके में सतलुज नदी में जाकर मिल जाती है।

प्रमुख शोधकर्ता डॉ. विनोद कुमार वर्मा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि ब्यास नदी में घुलनशील ऑक्सीज़न, केमिकल ऑक्सीज़न डिमांड (सीओडी), जैविक ऑक्सीज़न डिमांड (बीओडी) और मल में पाए जाने वाले बैक्टीरिया कोलिफोर्म का स्तर पेयजल के लिए निर्धारित भारतीय मानक ब्यूरो के मानक से अधिक पाया गया है। इस लिहाज से ब्यास का पानी भी अब पीने लायक नहीं रह गया है।

हिमाचल प्रदेश के ऊपरी हिस्से में ब्यास नदी के पानी में बीओडी का स्तर (0.87 mg/l) है, जबकि पंजाब में नदी के निचले हिस्से में बीओडी (3.75 mg/l) है। इसका सीधा अर्थ यह है कि हिमाचल प्रदेश के ऊपरी हिस्से में तो ब्यास नदी का पानी कम प्रदूषित है, लेकिन जैसे-जैसे यह पंजाब के मैदानी इलाकों की ओर बढ़ती है, तो घरेलू एवं औद्योगिक इकाइयों से निकला अपशिष्ट जल नदी को प्रदूषित करने लगता है।

इस अध्ययन दल में अंकित शर्मा, अश्विनी कुमार ठुकराल और रेनू भारद्वाज भी शामिल हैं। शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि औद्योगिक एवं घरेलू अपशिष्ट जल को उपचरित करने के बाद ही नदी में बहाया जाना चाहिए क्योंकि ऐसा करके ही ब्यास नदी की जैव विविधता को बचाया जा सकेगा। (इंडिया साइंस वायर)

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