खराब हालत के घरों के चलते हुई बिहार में त्रासदी

हिमालय क्षेत्र नेपाल में हुए भूकम्प ने बिहार को इतना असहाय कैसे बना दिया, जिससे 50 से ज्यादा मौतें हो गई? भौगोलिक रूप से नेपाल से सटे होने और इसलिए भूकम्प का केन्द्र भी समीप होना निश्चित ही एक प्राथमिक कारण है। किन्तु अन्य बड़ा कारण बिहार में घरों की खस्ता हालत का होना है। इसलिए यहाँ हुई हरेक मौत की सबसे बड़ी वजह भूकम्प में उनके मकानों का गिरना है। लिहाजा, यहाँ के घरों की दशा इंसान के जीने- मरने का निर्धारक है। राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन प्राधिकरण के पूर्व सदस्य विनोद मेनन बताते हैं कि ग्रामीण भारत में 61 फीसद घर बिना किसी इंजीनियरिंग लाइन के बने होते हैं। ये महज स्थानीय जानकारी, रिवाजों के मुताबिक और वहाँ उपलब्ध पदार्थों से बनाये जाते रहे हैं। ऐसे घर किसी सुरक्षा नियामकोें का पालन नहीं करते। ताजा जनगणना (2011) में मकानों की दशा पर उभरे कुछ संकेतकों से इस मसले पर रोशनी पड़ती है।

जहाँ मकान ‘अच्छे’ हालत में हैं


ऐसे मकानोें से सीधे-सीधे संकेत मिलता है कि ये भूकम्प के झटके को बर्दाश्त करने की स्थिति में हैं। 2011 की जनगणना के आँकड़े बताते हैं कि बिहार ऐसे तीन राज्यों में सबसे निचले स्तर पर हैं, जहाँ के मकानों को ‘अच्छे’ की कोटि में शुमार किया जा सके। ओडिशा में सबसे कम 29.5 फीसद घर ही अच्छे हैं। इसके बाद असम (32.8 फीसद) और बिहार (36.1 फीसद) का स्थान है। वहीं दूसरी तरफ, पुडुचेरी में 75 फीसद घर ‘अच्छे’ हैं तो हिमाचल प्रदेश में 72.4 फीसद मकान प्राकृतिक आपदा को सहन करने में सक्षम हैं। बिहार में भूकम्प से जिन जिलों में जान-माल की क्षति हुई उनमें मधुबनी, पूर्वी-पश्चिमी चम्पारण और सारण भी शामिल हैं। इन सभी जिलों में अच्छे हालत वाले मकान सबसे कम हैं। हालाँकि राज्य की राजधानी पटना में महज 46 फीसद मकान अच्छे हालत में हैं तो मधुबनी में 44.7 फीसद, पश्चिम चम्पारण में 32.7 तो पूर्वी चम्पारण में 39.3 फीसद और सारण में 40.8 फीसद मकान ही ठीक-ठाक दशा में हैं। इनका देश के अन्य अनेक जिलों में बने मकानों के साथ कोई मुकाबला नहीं है। जैसे, हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले में 78 फीसद मकान ‘अच्छे’ की श्रेणी में आते हैं।

जीर्ण-शीर्ण हालात वाले घर


त्रिमूर्ति राज्य, ओडिशा, असम और बिहार, ऐसे राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जहाँ जीर्ण-शीर्ण मकान बहुत ज्यादा अनुपात में हैं। ओडिशा में कुल मकानों का 9.9 फीसद हिस्सा टूटा-फूटा है। इसके बाद असम में 8.3 फीसद और बिहार में 7.4 फीसद मकान जर्जर हालत में हैं। जिले स्तर पर यही चीज देखने को मिलती है, जहाँ सारण जिले में 8.6 फीसद, सीतामढ़ी में 6.2 फीसद मकान जर्जर हैं। इसी तरह, अन्य जिले के मकानों की खस्ता हालत राज्य के औसत पुराने जर्जर मकानों से थोड़ा ऊपर या नीचे ही है।

जहाँ मकान रहने योग्य हैं


बिहार में रहने लायक 36.1 फीसद ‘अच्छे’ मकान और 7.4 ‘जीर्ण- शीर्ण’ मकान ही राज्य के सकल घरों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। इस संदर्भ में ‘वास लायक मकानों की दशा’ के संकेतक से कुछ संकेत मिलते हैं। ओडिशा, असम और बिहार, तीनों ऐसी श्रेणी में आते हैं, जहाँ रिहाइशी लायक मकानों की तादाद ज्यादा है। ओडिशा में 62.1 फीसद, बिहार में 55.6 फीसद और असम में 55.4 फीसद मकान निवास योग्य की कोटि में आते हैं। वहीं दूसरी ओर, अपेक्षाकृत समृद्ध राज्य जैसे केरल है, वहाँ 38.4 फीसद से भी कम रिहाइश लायक मकान हैं। दरअसल, रहने योग्य मकान की कोटि ‘जीर्ण-शीर्ण’ और ‘अच्छे’ के बीच की है। ‘रहने लायक’ से यहाँ मतलब ऐसा मकान जो जीर्ण-शीर्ण तो नहीं है लेकिन वह ‘अच्छे’ मकान की तरह सुरक्षित नहीं है या उसमें वैसी मजबूती नहीं है। मेनन कहते हैं कि आपदा प्रबन्धन अधिनियम के तहत लोगों को सुरक्षा के मानकों पर खरे उतरने वाले मकान ही बनाने की ताकीद की गई है। लेकिन इस पर अमल करने में बहुत लम्बा समय लगेगा।

लेखक - डायरेक्टर, मीडिया रिसोर्स यूनिट, सीएसई

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