पानी की कमी के कारण शुष्क क्षेत्रों में सब्जियों के उत्पादन में दिनोंदिन समस्याएं पैदा हो रही है। सीमित मात्रा में भी जल उपलब्ध न होने से कुछ क्षेत्रों में सब्जियों के उत्पादन में कमी देखी जा रही है। किसानों की इसी समस्या को देखते हुए करनाल के केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान ने घड़ा सिंचाई तकनीक विकसित की है। इस तकनीक से गर्मियों के मौसम में जब पानी की भारी कमी होती है, गांवों में इस्तेमाल होने वाले मिट्टी के घड़ों का प्रयोग किया जा सकता है। पांच से आठ लीटर क्षमता वाले घड़े का उपयोग करना बेहतर माना जाता है। एक हैक्टेयर जमीन में सिंचाई के लिए करीब 2500 घडों की आवश्यकता होती है। जिसकी कीमत 10 से लेकर 12 हजार रुपये हो सकती है।
खेत में घड़ों की स्थिति निर्धारित कर लेना चाहिए। लता वाली फसलों के लिए घड़ों की दूरी अधिक और सीधी खड़ी फसलों के लिए यह दूरी कम रखी जाती है। घड़े लगाने के लिए जगह में 60 सेंटीमीटर गहरा और 90 सेंटीमीटर व्यास का गड्ढ़ा खोदकर इससे निकलने वाली मिट्टी को अलग रखना चाहिए। मिट्टी के ढेले तोडकर (एक सेंटीमीटर से कम) और इसमें घूरे की खाद और उर्वरकों (फॉस्फोरस और पोटाश) की आधारीय मात्रा मिला दें। यदि आवश्यक हो तो भूमि उपचार की दवा भी मिलानी चाहिए। घड़ों के जरिये सिंचाई के लिए गड्ढ़ों में पहले 30 सेंटीमीटर की परत में मिट्टी के साथ नाइट्रोजन मिलाएं। इसके बाद गड्ढ़े में घड़ा़ रखकर खोदी गई मिट्टी को घड़े के आसपास चढ़ा दें। जिससे घड़ा पूरी तरह जमीन के अंदर चला जाएगा। भारी मिट्टी वाले खेत में घड़े के चारों ओर रेत की हल्की परत भी रखी जाती है। अच्छे संपर्क के अभाव में, पानी या तो घड़े से बाहर नहीं निकलेगा या बहाव अनियमित होगा। घड़े को साफ पानी से भरना चाहिए। घड़े भरने के लिए दो-तीन दिन बाद घड़े के चारों ओर 6 से 8 पौधे या बीज लगा दें। ये पौधे या बीज घड़े के चारों एक जैसी दूरी पर होने चाहिए। दरअसल घड़े से रिसने वाले पानी और नमी से पौधों का विकास होगा।
घड़ा सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता प्रति हैक्टेयर लगने वाले घड़ों की संख्या, फसल की किस्म और उपलब्ध जल की गुणवत्ता आदि पर निर्भर करती है।
घड़े का मुंह बंद रखें जिससे इसमें धूप न पहुंचे। ऐसा करने से फफूंद बनना कम से कम होगा। घड़े में केवल साफ पानी का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा घड़ों में पानी भरने से पहले उन्हें भली प्रकार से सुखा लेना चाहिए।
घड़ा सिंचाई तकनीक से कई फसलें उगाई जा सकती है। यह विधि सब्जियों और बागवानी फसलों के लिए बेहद उपयोगी है। जमीन पर फैलने वाली फसलें उगाने के लिए कम घड़ों की आवश्यकता होगी। सिंचाई के लिए ताजे पानी के प्रयोग से उगाई जाने वाली फसलों में तरबूज, खरबूज, कद्दू, करेला, तोरई, खीरा, फूलगोभी, बैंगन आदि फसलें शामिल हैं। यहां तक कि अंगूर और टमाटर भी उगाए जा सकते हैं।
सब्जियों वाली फसलें लवण के प्रति बेहद संवेदनशील होती है। ज्यादातर फसलों में दो से तीन डैसी सीमन प्रति मीटर का लवणीय जल इस्तेमाल किया जा सकता है। सिर्फ मिर्च में 4.5 डैसी सीमन प्रति मीटर का लवणीय जल भी प्रयोग किया जा सकता है। घड़ा सिंचाई प्रौद्योगिकी के जरिये सिवाय तोरई और अंगूर की अधिकतर फसलें पांच डैसी सीमन प्रति मीटर लवणीय जल में उगाई जा सकती हैं। उन्नत फसल उत्पादन प्रौद्योगिकी अपनाकर लवणीय जल 15 डैसी सीमन प्रति मीटर में भी फूलगोभी की फसल उगायी जा सकती है।
प्रति हैक्टेयर 2500 घड़ों की कीमत लगभग 10 हजार से 12 हजार रुपये होगी। घड़ा सिंचाई के जरिये टमाटर में तीन गुना और अन्य सब्जियों में दो गुना अधिक लाभ हो सकता है। यह साधारण प्रौद्योगिकी है और इस तकनीक की आर्थिक व्यवहार्यता घड़ों के उपयोग करने की अवधि पर निर्भर करती है। जमीन पर रखे घड़ों के विपरीत दबे हुए घड़ों से पानी सीधे मिट्टी में जाता है और घड़ों की दीवारों से वाष्पन नहीं होता इसलिए घड़े की दीवार पर लवण का जमाव नहीं होता है। इसी से पानी का पूरा उपयोग फसल उगाने में हो जाता है।
खेत में घड़े बिछाने की विधि
खेत में घड़ों की स्थिति निर्धारित कर लेना चाहिए। लता वाली फसलों के लिए घड़ों की दूरी अधिक और सीधी खड़ी फसलों के लिए यह दूरी कम रखी जाती है। घड़े लगाने के लिए जगह में 60 सेंटीमीटर गहरा और 90 सेंटीमीटर व्यास का गड्ढ़ा खोदकर इससे निकलने वाली मिट्टी को अलग रखना चाहिए। मिट्टी के ढेले तोडकर (एक सेंटीमीटर से कम) और इसमें घूरे की खाद और उर्वरकों (फॉस्फोरस और पोटाश) की आधारीय मात्रा मिला दें। यदि आवश्यक हो तो भूमि उपचार की दवा भी मिलानी चाहिए। घड़ों के जरिये सिंचाई के लिए गड्ढ़ों में पहले 30 सेंटीमीटर की परत में मिट्टी के साथ नाइट्रोजन मिलाएं। इसके बाद गड्ढ़े में घड़ा़ रखकर खोदी गई मिट्टी को घड़े के आसपास चढ़ा दें। जिससे घड़ा पूरी तरह जमीन के अंदर चला जाएगा। भारी मिट्टी वाले खेत में घड़े के चारों ओर रेत की हल्की परत भी रखी जाती है। अच्छे संपर्क के अभाव में, पानी या तो घड़े से बाहर नहीं निकलेगा या बहाव अनियमित होगा। घड़े को साफ पानी से भरना चाहिए। घड़े भरने के लिए दो-तीन दिन बाद घड़े के चारों ओर 6 से 8 पौधे या बीज लगा दें। ये पौधे या बीज घड़े के चारों एक जैसी दूरी पर होने चाहिए। दरअसल घड़े से रिसने वाले पानी और नमी से पौधों का विकास होगा।
पानी की आवश्यकता
घड़ा सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता प्रति हैक्टेयर लगने वाले घड़ों की संख्या, फसल की किस्म और उपलब्ध जल की गुणवत्ता आदि पर निर्भर करती है।
सावधानियां
घड़े का मुंह बंद रखें जिससे इसमें धूप न पहुंचे। ऐसा करने से फफूंद बनना कम से कम होगा। घड़े में केवल साफ पानी का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा घड़ों में पानी भरने से पहले उन्हें भली प्रकार से सुखा लेना चाहिए।
उपज
घड़ा सिंचाई तकनीक से कई फसलें उगाई जा सकती है। यह विधि सब्जियों और बागवानी फसलों के लिए बेहद उपयोगी है। जमीन पर फैलने वाली फसलें उगाने के लिए कम घड़ों की आवश्यकता होगी। सिंचाई के लिए ताजे पानी के प्रयोग से उगाई जाने वाली फसलों में तरबूज, खरबूज, कद्दू, करेला, तोरई, खीरा, फूलगोभी, बैंगन आदि फसलें शामिल हैं। यहां तक कि अंगूर और टमाटर भी उगाए जा सकते हैं।
घड़ों में लवणीय जल का प्रयोग
सब्जियों वाली फसलें लवण के प्रति बेहद संवेदनशील होती है। ज्यादातर फसलों में दो से तीन डैसी सीमन प्रति मीटर का लवणीय जल इस्तेमाल किया जा सकता है। सिर्फ मिर्च में 4.5 डैसी सीमन प्रति मीटर का लवणीय जल भी प्रयोग किया जा सकता है। घड़ा सिंचाई प्रौद्योगिकी के जरिये सिवाय तोरई और अंगूर की अधिकतर फसलें पांच डैसी सीमन प्रति मीटर लवणीय जल में उगाई जा सकती हैं। उन्नत फसल उत्पादन प्रौद्योगिकी अपनाकर लवणीय जल 15 डैसी सीमन प्रति मीटर में भी फूलगोभी की फसल उगायी जा सकती है।
आर्थिक पहलू
प्रति हैक्टेयर 2500 घड़ों की कीमत लगभग 10 हजार से 12 हजार रुपये होगी। घड़ा सिंचाई के जरिये टमाटर में तीन गुना और अन्य सब्जियों में दो गुना अधिक लाभ हो सकता है। यह साधारण प्रौद्योगिकी है और इस तकनीक की आर्थिक व्यवहार्यता घड़ों के उपयोग करने की अवधि पर निर्भर करती है। जमीन पर रखे घड़ों के विपरीत दबे हुए घड़ों से पानी सीधे मिट्टी में जाता है और घड़ों की दीवारों से वाष्पन नहीं होता इसलिए घड़े की दीवार पर लवण का जमाव नहीं होता है। इसी से पानी का पूरा उपयोग फसल उगाने में हो जाता है।
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