पंजाब में खेती के ये नए दृश्य बता रहे हैं कि पंजाब के किसान किसी बड़े संकट की तरफ बढ़ रहे हैं। इस संकट से भी कुछ सबक सीख सकते हैं। पंजाब की आधुनिक कृषि-क्रान्ति की इस असफलता से हम सीख सकते हैं कि झूठ पर आधारित व्यवस्था अधिक दिन नहीं चल पाती है। पंजाबी संस्कृति का उद्घोष वाक्य ‘सत् श्री अकाल’ अर्थात् सत्य की विजय हर समय में होती है। प्रश्न है पंजाब के किसानों को और कितनी अग्नि-परीक्षाएँ देनी होंगी। मिट्टी, खेती, हवा, पानी जैसे पर्यावरणीय विषयों पर लिखना नक्कारखाने में तूती की तरह लगता है। टी.वी. और समाचारपत्रों में अब इस वक्त की बड़ी खबरें कितनी छोटी होती हैं- यह बताना जरूरी नहीं। ओजोन-परत और घटता वन क्षेत्र हमारी चिन्ता का विषय नहीं बनता। शहरों और गाँवों में नित नई खुलती दवाई की दुकानें अब हमें नहीं डरातीं।
सिने अभिनेता आमिर खान ने कोई तीन वर्ष पहले ‘सत्यमेव जयते’ कार्यक्रम में रासायनिक खेती के अभिशापों और जैविक खेती के वरदानों को देश के सामने रखा था। लेकिन ऐसा नहीं लगता कि रासायनिक खेती के दुष्परिणामों के प्रति समाज, सरकार की चिन्ता बढ़ गई हो।
पंजाब को आधुनिक कृषि का मॉडल माना गया। उसका अनुकरण करने से पूरे देश में रासायनिक और यांत्रिक खेती के दोष फैल गए हैं। किसी भी राज्य के आन्तरिक, आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक चरित्र को समझे बिना उसको अपनाना खतरनाक सिद्ध हो सकता है। झूठे विज्ञापनों की कोई कमी नहीं। पंजाब की खेती भी बहुत हुआ तो एक झूठा विज्ञापन है।
पंजाब में व्यास नदी के ऊपर का क्षेत्र पाकिस्तान की सीमा के पास है। यह मांझा कहलाता है। व्यास नदी और सतलुज नदी के बीच का क्षेत्र दोआब कहलाता है। पंजाब के दक्षिण-पश्चिम का क्षेत्र मलवा या मालवा कहलाता है। यहाँ के फिरोजपुर, फरीदकोट, मुक्तसर, बटिंडा, मांसा और संगरूर जिले रासायनिक खेती और प्रदूषितजल से प्रभावित हैं।
अब यह रोग पटियाला और अमृतसर की ओर फैल रहा है। वैसे पूरा पंजाब ही रसायनों से अटा पड़ा है। यह जहर ऊपर जमीन पर भी है और भीतर भूजल में भी। गठन के समय पंजाब में 12 जिले थे। इनकी संख्या अब बढ़कर 22 हो गई है।
दोआब क्षेत्र में विदेशों में रहने वाले भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है और यहीं रसायनों और कीटनाशकों के उपयोग को सर्वाधिक प्रोत्साहन भी मिला है। विदेशों से भेजे गए धन से आई समृद्धि अलग विषय है। इसे पंजाब में खेती से आई समृद्धि समझने की भूल नहीं की जानी चाहिए। यहाँ ठेके पर खेती करने का तरीका चल पड़ा है।
बड़े किसान छोटे-छोटे किसानों की ज़मीन ठेके पर लेते हैं। खेती की बढ़ती लागत भी इसके लिये जिम्मेदार है। जमीन के असली मालिक अपनी ही जमीन पर बड़े किसान के लिये मजदूरी करने लगते हैं। यहाँ जानबूझकर आलू की फसल बड़े पैमाने पर लेकर इसके दाम गिरा दिये जाते हैं।
आलू से नकली ग्रीस बनाने का धन्धा बड़े पैमाने पर होता है। आलुओं को गलाकर उसमें मोबिल-ऑईल के मिश्रण से नकली ग्रीस बनता है। पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में यह नया स्वरूप देखकर दुख ही होता है। यहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में मुश्किल से 2 घंटे खेतों को बिजली उपलब्ध होती है।
हमारा परिवार मध्य प्रदेश में है। पर मूलतः हम पंजाब के हैं। पिछले दिनों मैं पंजाब गया था। प्रसंग दुखद ही था। तीन रिश्तेदारों की मृत्यु पर होने वाले भोगों और अन्तिम अरदास में शामिल होना था। इसमें दो की मृत्यु खेती के जहर से जुड़ी हुई थी।
एक रिश्तेदार बरनाला शहर में एक लोकप्रिय शिक्षिका थीं। उनकी मृत्यु कैंसर से हुई थी। बरनाला शहर में ठाठ गुरूद्वारे में सम्पन्न अन्तिम अरदास में पंजाब और हरियाणा के अकाली, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी, स्थानीय दलों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ लेखक संघ के प्रतिनिधि भी श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित थे।
प्रारंभ में ही श्रद्धांजलि सभा के तेज तर्रार संचालक ने रासायनिक खेती और जल प्रदूषण से होने वाली मौतों का विवरण दिया। उन्होंने कहा, “हम इसी तरह हर दूसरे-तीसरे दिन किसी-न-किसी की कैंसर से हुई मृत्यु पर जमा होते हैं। हम स्वर्गवासी को श्रद्धांजलि देकर अपने-अपने घर चले आते हैं, पर हम लोग खेती और पानी पर चर्चा भी नहीं करते हैं।”
इसके बाद अकाली दल के एक क्षेत्रीय बड़े नेता ने अपने उद्बोधन में डपटते हुए कहा कि यह मौका राजनीति करने का नहीं है। हमें मृत्यु के अवसर पर मृत-आत्मा के गुणों और कामों के बारे में ही बोलना चाहिए। इसके बाद उन्हीं के आदेशानुसार सभा चलती रही।
वर्तमान और पूर्व विधायक और सांसद अपनी-अपनी बात कह चलते गए। सभी ने मृतक की मृत्यु को गौरवान्वित किया, लेकिन जीवन शर्मिंदा-सा बैठा रहा।
गुरुद्वारे के हाल में लंगर चल रहा था। पीने का पानी आर. ओ. की मशीनों से साफ हो रहा था। रिवर्स-आस्मोसिस (आर.ओ.) के पानी के साथ चलता लंगर आधुनिक पंजाब का एक नया दृश्य बन गया है। पंजाब के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आर.ओ सिस्टम से साफ किया पानी पीना समृद्ध और पढ़ा-लिखा होने की निशानी है।
पंजाब सरकार ने कई गाँवों में आर.ओ. सिस्टम लगाए हैं। साधारण परिवारों को भी न्यूनतम मूल्य पर पीने का पानी दिया जाने लगा है। पर गाँव के पशु तो वही पानी पीते हैं जो तीन सौ फुट नीचे से खींचा जाता है।
पशुओं के दूध में दूषित पानी का असर लोगों तक भी पहुँच रहा है। फरीदकोट के बाबा फरीद मंदबुद्धि बच्चों के संस्थान में भरती होने वाले बच्चों के शरीर में भारी धातुएँ, आर्सेनिक, क्रोमियम जैसी धातुएँ और यूरेनियम तक पाया गया है।
माँ के दूध के साथ भी प्रदूषित पानी बच्चों तक पहुँच रहा है। सतलुज नदी लुधियाना जैसे महानगर के औद्योगिक क्षेत्र से होकर जब मालवा में पहुँचती है तो जल प्रदूषण के कारण लगभग काली पड़ जाती है।
पंजाब के कई जिलों विशेषकर जालंधर और लुधियाना के आसपास के कई गाँवों के खेतों में कई-कई फुट गहरे खेत मिलते हैं। बढ़ते शहरीकरण और आधुनिक गाँवों में पक्के मकानों के लिये करोड़ों की संख्या में ईंटों की जरूरत है। जमीन बहुत महंगी होने के कारण चिमनी- भट्टे तो एक निर्धारित स्थान पर हैं, पर ईंट बनाने के लियेमिट्टी खेतों से ही मिलती है।
खेतों की डेढ़ बित्ता गहरी एक एकड़ में फैली मिट्टी 3 वर्ष के लिये एक लाख रुपए में बिकती है। अधिकांश खेत तीन से चार फीट गहरे कटे मिलते हैं। इस प्रकार ऊँचे-नीचे खेतों से सिंचाई की समस्या भी उपन्न होती है। अधिकांश छोटे किसान अपने खेत ईंट बनाने के लिये ठेके पर देते हैं।
किसानों को यह समझाया जाता है कि तीन-चार फीट गहरी मिट्टी हटा लेने से नई और अधिक उपजाऊ मिट्टी मिलती है जिससे फसल अधिक होती है। लेकिन प्रमाण तो इसके विरुद्ध हैं।
बरनाला से टैक्सी द्वारा अमृतसर की ओर जाते हुए जीरा नामक कस्बे में सैकड़ों ट्रेक्टर सड़क मार्ग पर दोनों तरफ खड़े थे। पता चला कि इनमें से कुछ ट्रेक्टर लागत बढ़ने से खेती महंगी होने के कारण बिकने और नीलाम होने के लिये खड़े थे। अब किसान अपने पशु और ट्रैक्टर बेचकर कर्ज चुकाने को बाध्य हैं। इस वर्ष जून माह तकवर्षा न होने से धान की बोनी उतनी ही जमीन पर हो सकी है, जितनी 2 घंटे में प्राप्त बिजली से खेत पानी से भरे जा सकते हैं।
पंजाब में खेती के ये नए दृश्य बता रहे हैं कि पंजाब के किसान किसी बड़े संकट की तरफ बढ़ रहे हैं। इस संकट से भी कुछ सबक सीख सकते हैं। पंजाब की आधुनिक कृषि-क्रान्ति की इस असफलता से हम सीख सकते हैं कि झूठ पर आधारित व्यवस्था अधिक दिन नहीं चल पाती है।
पंजाबी संस्कृति का उद्घोष वाक्य ‘सत् श्री अकाल’ अर्थात् सत्य की विजय हर समय (काल) में होती है। प्रश्न है पंजाब के किसानों को और कितनी अग्नि-परीक्षाएँ देनी होंगी।
सिने अभिनेता आमिर खान ने कोई तीन वर्ष पहले ‘सत्यमेव जयते’ कार्यक्रम में रासायनिक खेती के अभिशापों और जैविक खेती के वरदानों को देश के सामने रखा था। लेकिन ऐसा नहीं लगता कि रासायनिक खेती के दुष्परिणामों के प्रति समाज, सरकार की चिन्ता बढ़ गई हो।
पंजाब को आधुनिक कृषि का मॉडल माना गया। उसका अनुकरण करने से पूरे देश में रासायनिक और यांत्रिक खेती के दोष फैल गए हैं। किसी भी राज्य के आन्तरिक, आर्थिक, सामाजिक और भौगोलिक चरित्र को समझे बिना उसको अपनाना खतरनाक सिद्ध हो सकता है। झूठे विज्ञापनों की कोई कमी नहीं। पंजाब की खेती भी बहुत हुआ तो एक झूठा विज्ञापन है।
पंजाब में व्यास नदी के ऊपर का क्षेत्र पाकिस्तान की सीमा के पास है। यह मांझा कहलाता है। व्यास नदी और सतलुज नदी के बीच का क्षेत्र दोआब कहलाता है। पंजाब के दक्षिण-पश्चिम का क्षेत्र मलवा या मालवा कहलाता है। यहाँ के फिरोजपुर, फरीदकोट, मुक्तसर, बटिंडा, मांसा और संगरूर जिले रासायनिक खेती और प्रदूषितजल से प्रभावित हैं।
अब यह रोग पटियाला और अमृतसर की ओर फैल रहा है। वैसे पूरा पंजाब ही रसायनों से अटा पड़ा है। यह जहर ऊपर जमीन पर भी है और भीतर भूजल में भी। गठन के समय पंजाब में 12 जिले थे। इनकी संख्या अब बढ़कर 22 हो गई है।
दोआब क्षेत्र में विदेशों में रहने वाले भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है और यहीं रसायनों और कीटनाशकों के उपयोग को सर्वाधिक प्रोत्साहन भी मिला है। विदेशों से भेजे गए धन से आई समृद्धि अलग विषय है। इसे पंजाब में खेती से आई समृद्धि समझने की भूल नहीं की जानी चाहिए। यहाँ ठेके पर खेती करने का तरीका चल पड़ा है।
बड़े किसान छोटे-छोटे किसानों की ज़मीन ठेके पर लेते हैं। खेती की बढ़ती लागत भी इसके लिये जिम्मेदार है। जमीन के असली मालिक अपनी ही जमीन पर बड़े किसान के लिये मजदूरी करने लगते हैं। यहाँ जानबूझकर आलू की फसल बड़े पैमाने पर लेकर इसके दाम गिरा दिये जाते हैं।
आलू से नकली ग्रीस बनाने का धन्धा बड़े पैमाने पर होता है। आलुओं को गलाकर उसमें मोबिल-ऑईल के मिश्रण से नकली ग्रीस बनता है। पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों में यह नया स्वरूप देखकर दुख ही होता है। यहाँ ग्रामीण क्षेत्रों में मुश्किल से 2 घंटे खेतों को बिजली उपलब्ध होती है।
हमारा परिवार मध्य प्रदेश में है। पर मूलतः हम पंजाब के हैं। पिछले दिनों मैं पंजाब गया था। प्रसंग दुखद ही था। तीन रिश्तेदारों की मृत्यु पर होने वाले भोगों और अन्तिम अरदास में शामिल होना था। इसमें दो की मृत्यु खेती के जहर से जुड़ी हुई थी।
एक रिश्तेदार बरनाला शहर में एक लोकप्रिय शिक्षिका थीं। उनकी मृत्यु कैंसर से हुई थी। बरनाला शहर में ठाठ गुरूद्वारे में सम्पन्न अन्तिम अरदास में पंजाब और हरियाणा के अकाली, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी, स्थानीय दलों के प्रतिनिधियों के साथ-साथ लेखक संघ के प्रतिनिधि भी श्रद्धांजलि सभा में उपस्थित थे।
प्रारंभ में ही श्रद्धांजलि सभा के तेज तर्रार संचालक ने रासायनिक खेती और जल प्रदूषण से होने वाली मौतों का विवरण दिया। उन्होंने कहा, “हम इसी तरह हर दूसरे-तीसरे दिन किसी-न-किसी की कैंसर से हुई मृत्यु पर जमा होते हैं। हम स्वर्गवासी को श्रद्धांजलि देकर अपने-अपने घर चले आते हैं, पर हम लोग खेती और पानी पर चर्चा भी नहीं करते हैं।”
इसके बाद अकाली दल के एक क्षेत्रीय बड़े नेता ने अपने उद्बोधन में डपटते हुए कहा कि यह मौका राजनीति करने का नहीं है। हमें मृत्यु के अवसर पर मृत-आत्मा के गुणों और कामों के बारे में ही बोलना चाहिए। इसके बाद उन्हीं के आदेशानुसार सभा चलती रही।
वर्तमान और पूर्व विधायक और सांसद अपनी-अपनी बात कह चलते गए। सभी ने मृतक की मृत्यु को गौरवान्वित किया, लेकिन जीवन शर्मिंदा-सा बैठा रहा।
गुरुद्वारे के हाल में लंगर चल रहा था। पीने का पानी आर. ओ. की मशीनों से साफ हो रहा था। रिवर्स-आस्मोसिस (आर.ओ.) के पानी के साथ चलता लंगर आधुनिक पंजाब का एक नया दृश्य बन गया है। पंजाब के ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में आर.ओ सिस्टम से साफ किया पानी पीना समृद्ध और पढ़ा-लिखा होने की निशानी है।
पंजाब सरकार ने कई गाँवों में आर.ओ. सिस्टम लगाए हैं। साधारण परिवारों को भी न्यूनतम मूल्य पर पीने का पानी दिया जाने लगा है। पर गाँव के पशु तो वही पानी पीते हैं जो तीन सौ फुट नीचे से खींचा जाता है।
पशुओं के दूध में दूषित पानी का असर लोगों तक भी पहुँच रहा है। फरीदकोट के बाबा फरीद मंदबुद्धि बच्चों के संस्थान में भरती होने वाले बच्चों के शरीर में भारी धातुएँ, आर्सेनिक, क्रोमियम जैसी धातुएँ और यूरेनियम तक पाया गया है।
माँ के दूध के साथ भी प्रदूषित पानी बच्चों तक पहुँच रहा है। सतलुज नदी लुधियाना जैसे महानगर के औद्योगिक क्षेत्र से होकर जब मालवा में पहुँचती है तो जल प्रदूषण के कारण लगभग काली पड़ जाती है।
पंजाब के कई जिलों विशेषकर जालंधर और लुधियाना के आसपास के कई गाँवों के खेतों में कई-कई फुट गहरे खेत मिलते हैं। बढ़ते शहरीकरण और आधुनिक गाँवों में पक्के मकानों के लिये करोड़ों की संख्या में ईंटों की जरूरत है। जमीन बहुत महंगी होने के कारण चिमनी- भट्टे तो एक निर्धारित स्थान पर हैं, पर ईंट बनाने के लियेमिट्टी खेतों से ही मिलती है।
खेतों की डेढ़ बित्ता गहरी एक एकड़ में फैली मिट्टी 3 वर्ष के लिये एक लाख रुपए में बिकती है। अधिकांश खेत तीन से चार फीट गहरे कटे मिलते हैं। इस प्रकार ऊँचे-नीचे खेतों से सिंचाई की समस्या भी उपन्न होती है। अधिकांश छोटे किसान अपने खेत ईंट बनाने के लिये ठेके पर देते हैं।
किसानों को यह समझाया जाता है कि तीन-चार फीट गहरी मिट्टी हटा लेने से नई और अधिक उपजाऊ मिट्टी मिलती है जिससे फसल अधिक होती है। लेकिन प्रमाण तो इसके विरुद्ध हैं।
बरनाला से टैक्सी द्वारा अमृतसर की ओर जाते हुए जीरा नामक कस्बे में सैकड़ों ट्रेक्टर सड़क मार्ग पर दोनों तरफ खड़े थे। पता चला कि इनमें से कुछ ट्रेक्टर लागत बढ़ने से खेती महंगी होने के कारण बिकने और नीलाम होने के लिये खड़े थे। अब किसान अपने पशु और ट्रैक्टर बेचकर कर्ज चुकाने को बाध्य हैं। इस वर्ष जून माह तकवर्षा न होने से धान की बोनी उतनी ही जमीन पर हो सकी है, जितनी 2 घंटे में प्राप्त बिजली से खेत पानी से भरे जा सकते हैं।
पंजाब में खेती के ये नए दृश्य बता रहे हैं कि पंजाब के किसान किसी बड़े संकट की तरफ बढ़ रहे हैं। इस संकट से भी कुछ सबक सीख सकते हैं। पंजाब की आधुनिक कृषि-क्रान्ति की इस असफलता से हम सीख सकते हैं कि झूठ पर आधारित व्यवस्था अधिक दिन नहीं चल पाती है।
पंजाबी संस्कृति का उद्घोष वाक्य ‘सत् श्री अकाल’ अर्थात् सत्य की विजय हर समय (काल) में होती है। प्रश्न है पंजाब के किसानों को और कितनी अग्नि-परीक्षाएँ देनी होंगी।
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Post By: RuralWater