खाद्य प्रसंस्करण : विकास और संभावनाएं (Food Processing: Development and Prospects in Hindi)

खाद्य प्रसंस्करण : विकास और संभावनाएं
खाद्य प्रसंस्करण : विकास और संभावनाएं

खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को आधुनिक व वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धात्मक बनाने के लिए अनुसंधान व विकास संस्थानों द्वारा नवीन प्रौद्योगिकी के विकास व नवाचार को गति दी जा रही है। साथ ही शिक्षण, प्रशिक्षण और प्रसार के नेटवर्क को भी अनेक संस्थानों के सहयोग से सशक्त बनाया जा रहा है, ताकि देश में खाद्य प्रसंस्करण को एक ठोस आधार और सतत् दिशा मिल सके।

भारत सरकार के महत्वकांक्षी ‘मेक इन इंडिया अभियान’ का प्रमुख उद्देश्य देश में निर्माण उत्पादन गतिविधियों को बढ़ावा देना और विदेशी उद्यमियों व निवेशकों को भारत में निर्माण के लिए प्रोत्साहित करना है। इस परिप्रेक्ष्य में देश के खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर में अपार संभावनाएं मौजूद हैं, और इसलिए इसे मेक इंन इंडिया के अंतर्गत एक उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्र के रूप में मान्यता दी गई है। इस सेक्टर के विकास व विस्तार के लिए अनेक प्रभावी योजनाएं और कार्यक्रम लागू किए गए हैं और व्यावसायिक गतिविधियों को प्रोत्साहन देने वाली अनुकूल नीतियां भी बनाई गई हैं।

इसके चलते में वर्तमान में भारतीय खाद्य प्रसंस्करण:-

सेक्टर ने वैश्विक स्तर पर अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया है। इसका सीधा लाभ देश के उद्यमियों, किसानों और आम उपभोक्ताओं को भी मिल रहा है। इस दिशा में भारत सरकार का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग केंद्रीय भूमिका में है, जबकि अनेक मंत्रालय, विभाग और संस्थान व्यावसायिक गतिविधियों को सरल व कुशल बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इन प्रयासों के परिणामस्वरूप कृषि, बागवानी, डेयरी आदि सेक्टर का औद्योगिक जगत के साथ तालमेल विकसित हुआ है।

भारत सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण (2022-23) के अनुसार पिछले पांच वर्षों में (वित्तीय वर्ष 2021 के अंत तक खाद्य प्रसंस्करण उद्योग सेक्टर 8.3 की औसत वार्षिक दर से वृद्धि कर रहा है। वार्षिक औद्योगिक सर्वेक्षण (2019-20) के अनुसार पंजीकृत निर्माण सेक्टर में कार्यरत कुल कार्मिकों में 12.2 प्रतिशत अकेले खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से है। 

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में अहम् योगदान के साथ निर्यात, रोजगार और निवेश में भी महत्वपूर्ण हिस्सेदारी है। हाल के वर्षों से इस सेक्टर के विकास के लिए बुनियादी सुविधाओं व संरचनाओं के निर्माण पर विशेष जोर दिया गया है, जिसके अपेक्षित परिणाम भी सामने आए हैं।

अपार संभावनाएं उन्नत सुविधाएँ:-

खाद्य प्रसंस्करण के अंतर्गत वे सभी विधियां और तकनीक शामिल हैं, जो कच्चे खाद्य पदार्थ की भंडारण अवधि (शेल्फ लाइफ बढ़ाने, इसके अनेक उपयोगी व मूल्यवर्धित उत्पाद बनाने और इनकी सुरक्षित पैकेजिंग तथा परिवहन के उपयोग में आती हैं। इसके दायरे में विभिन्न प्रकार के अनाजों, सब्जियों, मसालों, मेवों आदि के साथ दूध, मांस, मछली और अंडे भी आते हैं। इस नजरिये से देखें तो भारत में खाज्य प्रसंस्करण की परम्परा सदियों पुरानी है, जिसकी विधियां, सहज-ज्ञान और अनुभव पर आधारित है। विभिन्न प्रकार के अचार, चटनी, मुरब्बा, पापड़, बड़ी-मगौरी आदि इसी परम्परा के उत्पाद हैं, जिन्हें आज भी विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, घरेलू स्तर पर बनाया और उपयोग किया जाता है।

शहरी क्षेत्रों और वैश्विक बाजारों में इन विशिष्ट भारतीय उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण देश में इनके व्यावसायिक उत्पादन और निर्यात ने जोर पकड़ लिया है। परंतु अब भारत में खाद्य प्रसंस्करण ने परम्परागत उत्पादों से बहुत आगे निकल कर एक विशाल और व्यापक रूप धारण कर लिया है। इसके मूल में देश की अनोखी कृषि विविधता है, जो खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को अनोखे विशिष्ट और विविध प्रसंस्कृत तथा मूल्यवर्धित उत्पादों की व्यापक श्रृंखला के निर्माण का अवसर प्रदान करती है, इसमें सहायता करती है।

कृषि भूमि की विशालता, जिसमें हम विश्व में दूसरे स्थान पर हैं, अपनी अनूठी भौगोलिक दशा के कारण देश में 127 कृषि- जलवायु क्षेत्र हैं, जिनसे हम अधिकांश देशों में पसंद आने वाली कृषि जिंसों का उत्पादन करने में सक्षम हैं, कृषि एवं संबद्ध क्षेत्रों में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के समावेश से आज हम धान, गेहूं, मछली और फलों व सब्जियों के उत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर हैं। विश्व भर में लोकप्रिय केला, आम और पपीता के उत्पादन में हम शीर्ष पर हैं। इसी प्रकार दूध के उत्पादन में भी भारत शीर्ष पर है। हम दलहन और श्री अन्न (मोटे अनाज) के उत्पादन तथा उपभोग, दोनों में ही अग्रणी हैं।

प्राचीनकाल से ही विश्व भर में आकर्षण का केंद्र रहे भारतीय मसालों के उत्पादन और उपभोग में भी हम विश्व में सबसे आगे हैं। संसाधनों को इस विपुलता के बीच निराशाजनक तथ्य है कि वर्ष 2020-21 में किए गए एक अध्ययन के अनुसार भारत में विभिन्न कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण का स्तर काफी कम है।

विभिन्न कृषि उत्पादों का प्रसंस्करण स्तर
फल  4.5 प्रतिशत
सब्जियां  2.70 प्रतिशत
दूध  21.1 प्रतिशत
मांस  34.2 प्रतिशत
मत्स्य  15.4 प्रतिशत

 

इसी क्रम में शीघ्र खराब होने वाली उपज को बर्बादी लगभग 40 प्रतिशत आंकी गई है, जो गंभीर चिंता का विषय है। भारत सरकार के लुधियाना स्थित केंद्रीय कटाई उपरांत इंजीनियरी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान ने विभिन्न कृषि जिसों में कटाई उपरांत नुकसान का आकलन इस प्रकार किया है जो बेहद ज्यादा है।

कृषि जिंसों कटाई उपरांत नुकसान
अनाज 4.65-5.99 प्रतिशत
फल और सब्जिया 4.58 -15.88 प्रतिशत
दाल 6.36-8.41 प्रतिशत
 

इस अध्ययन में कटाई उपरांत नुकसान से लगभग 92,651 करोड़ रुपये की आर्थिक क्षति का अनुमान लगाया गया है। विडंबना यह है कि इस आर्थिक नुकसान का सबसे अधिक खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है, जिनके पास भंडारण या प्रसंस्करण की सुविधाओं का अभाव होता है। खाद्य प्रसंस्करण की सुविधाएं इस नुकसान को न्यूनतम करके किसानों की आमदनी बढ़ाने और उद्यमिता के विकास का अवसर प्रदान करती हैं।

भारत की विशाल जनसंख्या (लगभग 140 करोड़) और तेज आर्थिक विकास (विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ने खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में संभावनाओं के अनेक नए द्वार खोले हैं। तेजी से बढ़ता शहरीकरण, आमदनी में वृद्धि, एकल परिवारों की संख्या में वृद्धि और आसान आहारों की बढ़ती मांग के कारण इस सेक्टर का तेज प्रसार और विकास हो रहा है। कोविड़ 19 महामारी के प्रकोप के कारण भी पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की मांग बढ़ी है। इस कारण अनेक व्यावसायिक कंपनियों ने पैकेज्ड खाद्य पदार्थों या डिब्बाबंद आहारों की अनेक नई श्रृंखलाएं बाजार में उतारी है और इनकी गुणवत्ता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाया है।

इस संदर्भ में रेडी टू ईट' और 'रेडी टू कुक’ आहारों की श्रृंखला तेजी से विस्तारित और लोकप्रिय हो रही है। इसके अलावा, आर्गेनिक उत्पादों, श्री अन्न के उत्पादों, न्यूट्रास्यूटिकल उत्पादों, स्वास्थ्यवर्धक पूरक आहारों के रूप में भी बाजारों में नई श्रृंखलाएं लोकप्रिय हो रही हैं। इन नए विकासों के कारण आज भारत का विश्व के खाद्य एवं किराना बाजार में छंठा स्थान है। देश की अर्थव्यवस्था में खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर ने उत्पादन खपत, निर्यात और वृद्धि दर के संदर्भ में पांचवा स्थान हासिल कर लिया है।

खाद्य प्रसंस्करण में नवीन प्रौद्योगिकी और नवाचार के समावेश के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सीएसआईआर केन्द्रिय खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान, मैसूर, राष्ट्रीय खाद्य प्रोद्योगिकी उद्यमशीलता एवं प्रबंधन संस्थान, सोनीपत और आईसीएआर केंद्रीय कटाई उपरांत इंजीनियरी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान, लुधियाना मुख्य रूप से कार्यरत हैं। इनके द्वारा विकसित खाद्य प्रसंस्करण एवं पैकेजिंग प्रौद्योगिकी को लाइसेंस के माध्यम से निजी क्षेत्र तक पहुंचाया जा रहा है। इसके अलावा, विभिन्न फसलों, डेयरी एवं पशुओं पर अनुसंधान एवं विकास में संलग्न संस्थानों द्वारा संबंधित उत्पाद के प्रसंस्करण की नई विधियों और नए मूल्य वर्धित उत्पादों का विकास किया जा रहा है।

मेक इन इंडिया अभियान के अंतर्गत खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर को प्राथमिकता के साथ अनेक आर्थिक और व्यावसायिक रियायतें दी गई हैं। इस सेक्टर में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दी गई है, जिसमें ई-कॉमर्स सहित सभी प्रकार के खाद्य उत्पादों के निर्माण और व्यवसाय को शामिल किया गया है। परिणामस्वरूप खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर ने वर्ष 2021-22 के दौरान 209.72 बिलियन अमेरिकी डॉलर का विदेशी निवेश आकर्षित किया है। वर्ष 2014-15 से अब तक इस सेक्टर ने छह अरब (मिलियन डॉलर से अधिक मूल्य का विदेशी निवेश आकर्षित किया है।

विदेशी बाजारों में भारतीय प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण यह क्षेत्र रिकॉर्ड निर्यात दर्ज कर रहा है।  प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों का निर्यात वर्ष 2020-21 में 8.56 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो मात्र एक वर्ष 2021-22 में, बढ़कर 10.42 बिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुँच गया है। कुल कृषि खाद्य निर्यात में प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों की भागीदारी 22.5

प्रतिशत पर पहुँच गई है। देश का खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर निरंतर वृद्धि करते हुए वर्ष 2025-26 तक 535 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की संभावना है। भारत में निर्मित गुणवत्तापूर्ण रेडी टू

ईट', 'रेडी टू कुक' और 'रेडी दु सर्व’ खाद्य उत्पादों के निर्यात में 10.4 प्रतिशत की संयुक्त वार्षिक वृद्धि दर दर्ज की गई है (2011-12 से 2020-21) एक अन्य विशेष प्रावधान के अंतर्गत खाद्य और कृषि आधारित उद्यमों तथा शीत श्रृंखलाओं को ऋण प्रदान करने के लिए प्राथमिकता सेक्टर में वर्गीकृत किया गया है, जिससे इनके लिए संस्थानात्मक ऋण मिलना आसान और सस्ता हो गया है। 

भारत सरकार  द्वारा 'निवेश बंधु' नामक पोर्टल शुरू किया गया है, जो निवेशकों की आसानी के लिए केंद्रीय और राज्य सरकारों की सहायक नीतियों, प्रोत्साहन लाभों उपलब्ध संसाधनों व सेवाओं की जानकारी एक ही स्थान पर उपलब्ध कराता है। विदेशी निवेशकों को भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में सहायता सुविधा देने के लिए एकल खिड़की व्यवस्था की गई है। मेक इन इंडिया के अंतर्गत किए गए सुधारों के कारण अब देश में नया व्यवसाय शुरू करना आसान हो गया है। अनेक पुराने नियम- कानूनों को रद्द करके विभिन्न एजेंसियों से स्वीकृति प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल और तर्कसंगत बना दिया गया है।

इन प्रयासों के चलते विश्व बैंक द्वारा निर्धारित किए जाने वाले 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (व्यवसाय करने में आसानी इंडेक्स में भारत का 63वां स्थान है (2022), जबकि 2014 में यह 142 था "ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स' ग्लोबल लॉजिस्टिक्स इंडेक्स' और 'ग्लोबल कॉम्पिटिटिवनेस इंडेक्स’ में भी भारत लगातार प्रगति कर रहा है, जिससे व्यावसायिक परिवेश में लगातार सुधार हो रहा है। इसलिए खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर में विदेशी निवेश के साथ निजी क्षेत्रों की भागीदारी भी लगातार बढ़ रही है। 

खाद्य प्रसंस्करण के व्यापक क्षेत्र को दो घटकों में बांटकर देखा जाए तो दोनों में ही संभावनाएं विस्तारित हुई है। पहला घटक है, कटाई उपरांत प्रबंधन, जिसमे प्राथमिक प्रसंस्करण व भंडारण परिरक्षण की बुनियादी सुविधाएं, शीत श्रृंखलाएं तथा प्रशीतित परिवहन शामिल है। दूसरे घटक में  प्रसंस्करण व मूल्यवर्धन को शामिल किया जाता है।

अभिनव योजनाएं अहम् उपलब्धियां

वर्ष 2015 तक खाद्य प्रसंस्करण उद्योग द्वारा देश में खाद्य प्रसंस्करण संबंधी बुनियादी सुविधाओं और व्यवसाय के प्रोत्साहन के लिए अनेक छोटी-बड़ी योजनाएं संचालित की जा रही थीं। वर्ष 2016 में इनका एकीकरण करके और कुछ नए घटक जोड़कर एक वृहद और व्यापक योजना लागू की गई- प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (स्कीम फॉर ऐग्रो मेरीन प्रोसेसिंग एंड डेवलपमेंट ऑफ ऐग्रो प्रोसेसिंग क्लस्टर्स)। शुरुआत में इसका कार्यकाल 2016-2020 तक निर्धारित किया गया था और कुल आवेदन 6,000 करोड़ रुपये था। बाद में 2017-18 से 2022 के लिए 4099.76 करोड़ रुपये आवंटित किए गए। वर्तमान में छह उपयोजनाएं लागू की जा रही हैं।

1. मेगा फूड पार्क योजना
2. बुनियादी सुविधाओं का विकास
3. खाद्य प्रसंस्करण तथा परिरक्षण क्षमताओं का निर्माण और विस्तार
4. अग्रगामी (फारवर्ड) तथा परकामी (कवाड) संबंधों का विकास
5. समेकित शीत श्रृंखला और मूल्य संवर्धन के लिए बुनियादी सुविधाओं का विकास, और
6. ऑपरेशन ग्रीस योजना।

इन उप-योजनाओं के अंतर्गत देश भर में कुल 1098 परियोजनाएं स्वीकृत की जा चुकी हैं, जिनकी कुल आर्थिक सहायता राशि 4.8117 करोड़ रुपये है। मेगा फूड पार्क योजना का उद्देश्य किसानों, प्रसंस्करण उद्यमियों (प्रोसेसर्स) और फुटकर विक्रेताओं को एक मंच प्रदान कर आपस में जोड़ना है, ताकि मूल्यवर्धन को अधिकतम और उपज के नुकसान को न्यूनतम कर के किसानों की आमदनी बढ़ायी जा सके। इसके अंतर्गत एक विशेष चुने हुए क्षेत्र में, जिसे 'मेगा फूड पार्क' कहा जाता है, उद्यमियों को आधुनिक प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए औद्योगिक भूखंड (प्लॉट) आवंटित किए जाते हैं जिनमें आवश्यक बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करायी जाती है।

मेगा फूड पार्क के लिए एक सुनिश्चित आपूर्ति श्रृंखला की व्यवस्था रहती है, ताकि उद्यमियों को कच्ची सामग्री निश्चित रूप से मिलती रहे। इसके अतिरिक्त प्रसंस्कृत उत्पादों की बिक्री के लिए खाद्य उत्पादों के विक्रेताओं को भी जोड़ा जाता है। एक मेगा फूड पार्क में आमतौर से 25-30 प्लॉट उपलब्ध रहते हैं, और संग्रह केंद्रों, प्राथमिक प्रसंस्करण केंद्रों, केंद्रीय प्रत्तस्करण केंद्रों और शीत श्रृंखला की व्यवस्था रहती है।

एक मेगा फूड पार्क की स्थापना पर औसतन 110.92 करोड़ रुपये खर्च होते हैं, और प्रत्येक पार्क प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 5,000 व्यक्तियों के लिए रोजगार के अवसर उत्पन्न करता है। भारत सरकार ने अब तक 41 मेगा फूड पार्क परियोजनाए स्वीकृत की हैं, जिनमें से 22 वर्तमान में सक्रियता से योगदान कर रहे हैं। इनसे 6.66 लाख रोजगार सृजित किए जा चुके हैं।

'एग्री प्रोसेसिंग क्लस्टर उप-योजना के अंतर्गत प्रोसेसिंग इकाइयों को एक समूह यानी क्लस्टर के रूप में संगठित करके आधुनिक बुनियादी सुविधाएं और प्रसंस्करण सुविधाएं प्रदान की जाती हैं। बिजली, पानी, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं अतिरिक्त भंडारण सुविधा, कोल्ड स्टोरेज, कच्ची सामग्री के उच्चीकरण की सुविधा और पैकिंग व्यवस्था जैसी साझा सुविधाएं उपलब्ध रहती हैं। एक समूह में कम से कम पांच इकाइयां होती हैं, और 10 एकड़ भूमि की आवश्यकता होती है। ये समूह एक ओर उत्पादकों, तो दूसरी ओर बाजार से जुड़े रहते हैं।

खाद्य प्रसंस्करण और परिरक्षण क्षमताओं के निर्माण के प्रसार के लिए समर्पित उपयोजना में प्रति इकाई के आधार पर त्वरण सुविधाओं का नवीनीकरण या सुधार किया जाता है। नई सुविधाओं के निर्माण कार्य को भी सहयोग प्रदान किया जाता है। इन इकाइयों में मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों की शैल्फ लाइफ बढ़ाने और मूल्यवर्धित उत्पादों के निर्माण का कार्य किया जाता है।

खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर में फॉरवर्ड' और 'बैकवर्ड संबंधो को सुनिश्चित और सशक्त बनाना आवश्यक है, ताकि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य मिल सके इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए किसानों के खेतों के पास प्राथमिक प्रसंस्करण केंद्र या संग्रह केंद्र स्थापित करने के लिए सहायता प्रदान की जाती हैं, जबकि दूसरे छोर पर आधुनिक खुदरा दुकानें खोली जाती हैं, जिनके साथ प्रशीतित परिवहन की व्यवस्था भी जुड़ी रहती है।

शीत शृंखला, मूल्यवर्धन और परिरक्षण के लिए आवश्यक बुनियादी सुविधाओं के विकास के अंतर्गत शीत शृंखला से लेकर परिरक्षण तक की बुनियादी सुविधाओं का विकास समेकित रूप से किया जाता है। खेतों से उपभोक्ताओं तक एक निबंध कड़ी तैयार की जाती है। इसके अंतर्गत आपूर्ति शृंखला के लिए आवश्यक सभी सुविधाएं, खेत में संग्रह और छंटाई से लेकर, मोबाइल कूलिंग यूनिट्स और रीफर बैन तक मुहैया करायी जाती है। इसका उपयोग मुख्य रूप से जल्दी खराब होने वाले उत्पादों में कटाई उपरांत नुकसान को न्यूनतम करने के लिए किया जा रहा है। 

बढ़ते कदम, नए कदम

1. भारतीय बाजारों में आर्गेनिक उत्पादों की मांग वर्ष 2022 से 2027 के दौरान 25.25 प्रतिशत वार्षिक की दर (सीएजीआर)  बढ़ने की संभावना है।
2. भारत सरकार ने मात्स्यिकी सेक्टर से 2024-25 तक एक लाख करोड़ रुपये के निर्यात का लक्ष्य निर्धारित किया है, और इसे पर्यावरण अनुकूल बनाने का बीड़ा भी उठाया है।
3. भारत सरकार ने 7,500 करोड़ रुपये की लागत से देश के मछली पत्तनों और मछली उतारने वाले केंद्रों को आधुनिक बनाने की कई योजनाएं स्वीकृत की है
4. उत्तर-पूर्वी राज्यों में भंडारण क्षमता 5.05 लाख मीट्रिक टन (2014) से बढ़कर 8.21 लाख मीट्रिक टन हो गई है (2023)
5. अनेक निर्यात योग्य कृषि उत्पादों और प्रसंस्कृत उत्पादों में गैर-बासमती चावल सबसे अधिक मांग में है (एपीडा) वर्ष 2022- 23 के महीनों में इसने 4663 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का रिकार्ड नियत दर्ज किया है।
6. अनेक निर्यात योग्य कृषि उत्पादों और प्रसंस्कृत उत्पादों में गैर-बासमती चावल सबसे अधिक मांग में है (एपीडा) वर्ष 2022- 23 के महीनों में इसने 4663 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य का रिकार्ड नियत दर्ज किया है।
7. फल और सब्जियों के प्रसंस्कृत उत्पादों ने वर्ष 2022-23 के नौ महीनों के दौरान 1472 मिलियन डॉलर का नियत दर्ज किया है। इसी दौरान ताजे फलों का निर्यात 1121 मिलियन अमेरिकी डॉलर पर पहुंच गया है।
8. पोल्ट्री उत्पादों, डेयरी उत्पादों और अनाज से बने उत्पादों का निर्यात तेजी से और रिकार्ड स्तर पर वृद्धि कर रहा है।
9. 'एक जिला एक उत्पाद' योजना के अंतर्गत 12 ब्रांड्स को ब्रेडिंग और मार्केटिंग के लिए चुना गया है।
10. समुद्री उत्पादों के निर्यात को अगले पांच वर्षों में वर्तमान 50 हजार करोड़ रुपये से बढ़ाकर एक लाख करोड़ रुपये करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है
11. लगभग 1140 कृषि स्टार्टप्स को नवाचार के लिए प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से 70 . 30 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की गई है

 

ऑपरेशन ग्रीन्स योजना वर्ष 2016 में तीन फसलोx (टमाटर, प्याज, आलू) में समेकित शीत श्रृंखला के विकास के उद्देश्य से शुरू की गई है। इसके दो घटक हैं,  पहला दीर्घकालीन नीति, जिसके अंतर्गत मूल्य श्रृंखला के विकास की परियोजनाएं स्वीकृत की जाती है, और दूसरा, लघुकालीन नीति, जिसके अंतर्गत मूल्य स्थायित्व के लिए परिवहन तथा भंडारण हेतु सब्सिडी प्रदान की जाती है। इसके अंतर्गत मार्च, 2022 तक 84.73 करोड़ सब्सिडी जारी की गई है, जिसका लाभ देश भर के किसानों को हुआ है। उन्हें पैदावार की आधिक्य की दशा में उपज को औने- पौने दामों में नहीं बेचना पड़ा

भारत में अनेक ऐसे खाद्य उत्पाद हैं, जिनमें वैश्विक बाजार को आकृष्ट करने और अपनी पैठ बनाने की क्षमता है। ऐसे भारतीय ब्रांड्स को अंतरराष्ट्रीय बाजार में लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से भारत सरकार ने मार्च, 2021 में एक नई योजना को स्वीकृति दी खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिए उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना कुल 10.900 करोड़ रुपये की लागत से प्रारंभ की गई इस योजना से प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादों के निर्माण की क्षमता बढ़ने के साथ रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे।

आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत जून, 2020 में लघुकालीन नीति को 41 अन्य अधिसूचित फलों व सब्जियों तक विस्तारित कर दिया गया है। दीर्घकालीन नीति के अंतर्गत मूल्य श्रृंखला के विकास की छह परियोजनाएं स्वीकृत की गई हैं, जिनकी कुल लागत 363.30 करोड़ रुपये है। इन्हें 136.82 करोड़ रुपये की सहायता राशि प्रदान की गई है। इससे 3.34 लाख 500 मिट्रिक टन प्रसंस्करण क्षमता और 46.380 मीट्रिक टन परिरक्षण क्षमता का विकास अपेक्षित है। दीर्घकालीन नीति का दायरा भी बढ़ाकर 22 फसलों (10 फल, सब्जिया, श्रिम्प) तक कर दिया (2021-22).

भारत सरकार ने 'नाबार्ड' (राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक के अंतर्गत 2,000 करोड़ रुपये का एक विशेष खाद्य प्रसंस्करण फंड सृजित किया है, जिससे मेगा फूड पार्क और कृषि प्रसंस्करण इकाइयों को रियायती दरों पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है। प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना के अंतर्गत 194 लाख मीट्रिक टन की प्रसंस्करण और परिरक्षण क्षमता विकसित की जा चुकी है। योजना के पहले घटक के अंतर्गत खाद्य उत्पादों में चार समूहों को प्रोत्साहन देने के लिए चुना गया है। श्री अन्न के उत्पादों सहित 'रेडी टू कुक' 'रेडी टू ईट’ उत्पाद, प्रसंस्कृत फल और सब्जी उत्पाद, समुद्री उत्पाद और मोजरेला चीज दूसरा घटक नवाचारी तथा आर्गेनिक उत्पादों छोटे और मझोले उद्यम) 'फ्री-रेंज' अंडो और अन्य पोल्ट्री उत्पादों के उत्पादन पर केंद्रित है। तीसरा घटक भारतीय ब्रांड्स की वैश्विक बाजारों में पहचान बनाने और बाजार में पैठ बनाने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करता है। 

वर्ष 2022-23 में श्री अन्न आधारित उत्पादों के लिए 800 करोड़ रुपये के प्रावधान से एक नया घटक शामिल किया गया है। इस संदर्भ में न्यूट्रास्यूटिकल सेक्टर को प्रोत्साहन देने के लिए एक रोडमैप बनाने हेतु टॉस्क फोर्स का गठन किया गया है। यह योजना छह वर्षों (2021-22 से 2026-27) के लिए लागू की है, और इसके अंतर्गत कुल 180 प्रस्ताव स्वीकृत किए गए हैं।

इसके अंतर्गत निजी उद्यमियों सहित किसान उत्पादक संगठनों, उत्पादक सहकारिताओं और स्वयं सहायता समूहों भी आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है। इस योजना के माध्यम से देश का दो लाख से अधिक सूक्ष्म इकाइयों को उन्नत और आधुनिक बनाने का लक्ष्य है। इसके अंतर्गत 31 दिसंबर, 2022 तक 1402.6 करोड़ रुपये के 15,095 ऋण स्वीकृत किए गए हैं।

देश में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग सेक्टर को सशक्त और आधुनिक बनाने के लिए कुछ अन्य निधियों, कोषों व योजनाओ के माध्यम से भी प्रयास किए जा रहे है। इनमें एग्रीकल्चर इन्फा फंड' एक विशेष कोष है, जिसे भारत सरकार में जुलाई 2020 से लागू किया है। कोष के अंतर्गत कटाई उपरांत प्रबंधन के लिए बुनियादी सुविधाओं के निर्माण के लिए आर्थिक सहायता दी जाती है। इसके लिए वर्ष 2025-26 तक एक लाख करोड़ रुपये वितरित करने का लक्ष्य है, जबकि ब्याज, अनुदान और ऋण गारंटी सहायता 2032-33 तक जारी रहेगी। इसके माध्यम से 30,000 करोड़ रुपये की इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिनके लिए 15,000 करोड़ रुपये की सहायता दी गई है। 

प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना की प्रमुख उपलब्धियां 

1. मेगा फूड पार्क 41
2. शीत श्रृंखला परियोजनाएं 376
3. कृषि प्रसंस्करण समूह 79
4. खाद्य प्रसंस्करण इकाइयां खाद्य प्रसंस्करण एवं परिरक्षण क्षमताओं के सृजन प्रसार के लिए 485
5. प्रस्ताव, बैकवर्ड व फॉरवर्ड संपर्कों की परियोजनाओं और ऑपरेशन ग्रीन्स की 489
6. परियोजनाओं की स्वीकृति 52
7. किसानों को लाभ- 56.01
8. रोजगार सृजित

8.28

लगभग इसी प्रकृति का एक अन्य कोष पशुपालन के क्षेत्र में 15,000 करोड़ रुपये की लागत से शुरू किया गया है। इसके अंतर्गत मुख्य रूप से दूध और मांस उद्योग की प्रसंस्करण क्षमता बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। वर्ष 2017-18 के बजट के अनुसार 8,004 करोड़ रुपये की निधि से डेयरी प्रसंस्करण और डेयरी इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए एक अलग कोष बनाया गया है। इसका उद्देश्य दूध प्रसंस्करण के लिए पुराने डेयरी संयंत्रों का आधुनिकीकरण करना और नई क्षमता का विकास करना है। स्टार्टअप इंडिया अभियान के तहत खाद्य प्रसंस्करण और मूल्यवर्धन को समर्पित स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। देश में इनकी लहर चल पड़ी है। ये स्टार्टअप्स अनेक उत्पादों और प्रक्रियाओं को लेकर सामने आए हैं, जिनमें भंडारण और परिवहन से लेकर प्रसंस्करण, मूल्यवर्धन और उपभोक्ता के द्वार तक डिलीवरी शामिल हैं। 

आत्मनिर्भर भारत अभियान की वोकल फॉर लोकल पहल के अंतर्गत माइक्रो (सूक्ष्म) खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को प्रोत्साहन देने के लिए एक विशेष योजना शुरू की गई है. पीएम फार्मेलाइजेशन ऑफ माइक्रो फूड एंटरप्राइसेज स्कीम इसे 2020-21 से 2024-25 की अवधि के लिए 10,000 करोड़ रुपये की लागत से शुरू किया गया है। इसके अंतर्गत सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को वित्तीय तकनीकी तथा व्यावसायिक सहायता प्रदान की जाती है। अब तक 27,000 से अधिक ऋण स्वीकृत किए जा चुके हैं।
 

देश के अनेक अनुसंधान व विकास संगठनों तथा प्रबंधन संस्थाओं द्वारा इस महत्त्वपूर्ण क्षेत्र में उद्यमिता के विकास के लिए इच्छुक उद्यमियों को प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है। भारत सरकार के प्रयासों से देश में खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर की तस्वीर तेजी से बदल रही है। परम्परा से आधुनिक व्यवसाय तक की यात्रा विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवाचार के रास्ते पूरी की जा रही है भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर करने में खाद्य प्रसंस्करण सेक्टर एक महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा है।

स्रोत :-कुरुक्षेत्र, सितम्बर 2023 

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Post By: Shivendra
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