लेह में हुई त्रासदी बादल फटने की कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले उत्तराखंड और हिमाचल में भी कई बार ऐसी घटना हो चुकी है। बादल आखिर फटते क्यों हैं? यह जानने के लिए हमें समझना होगा कि बरसात कैसे होती है। संघनित बादलों का नमी बढ़ने पर बूदों की शक्ल में बरसना बारिश कहलाता है। पर अगर किसी क्षेत्र विशेष में भारी बारिश की संभावनाओं वाला बादल एकाएक बरस जाता है, तो उसे बादल का फटना कहते हैं। इसमें थोड़े समय में ही असामान्य बारिश होती है। हमारे यहां बादल फटने की घटनाएं तब होती हैं, जब बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से मानसूनी बादल हिमालय की ऊंचाइयों तक पहुंचते हैं और तेज तूफान से बने दबाव के कारण एक स्थान पर ही पानी गिरा देते हैं। बरसने से पहले बादल पानी से भरी एक ठोस वस्तु का आकार लिए होता है, जो आंधी की चपेट में आकर फट जाता है।
ऐसा माना जाता है कि बादल फटने की घटनाएं पहाड़ी क्षेत्रों में ही होती है। पर जुलाई, 2005 में मुंबई में बादल फटने के कारण आठ-दस घंटे में करीब 950 मिमी तक बारिश हुई थी। जहां तक विदेशों की बात है, तो अगस्त, 1906 में अमेरिका के गिनी वर्जीनिया में बादल फटने से 40 मिनट में 9.2 इंच बारिश हुई थी। इसी तरह नवंबर, 1911 में पनामा के पोर्ट बेल्स में (पांच मिनट में 2.43 इंच), जुलाई, 1947 के रोमानिया के कर्टी-डी-आर्जेस में (20 मिनट में 8.1 इंच), नवंबर, 1970 में हिमाचल के बरोत में (भारत में रिकॉर्ड 38 मिमी तक) और कराची में पिछले साल जुलाई में तीन घंटे के अंदर 250 मिमी बारिश हुई थी। बादल को फटने से रोकने के कोई ठोस उपाय नहीं हैं। पर पानी की सही निकासी, मकानों की दुरुस्त बनावट, वन क्षेत्र की मौजूदगी और प्रकृति से सामंजस्य बनाकर चलने पर इससे होने वाला नुकसान कम हो सकता है।
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