नीम कोटेड यूरिया के उपयोग से मृदा में नाइट्रोजन धीरे-धीरे समावेशित होती है और यदि किसान साधारण यूरिया का प्रयोग करता है तो उसका अधिकांश भाग पौधों द्वारा उपयोग किए बगैर ही नष्ट हो जाता है।
पौधों को कुल मिलाकर तीन प्रकार के 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। ये पोषक तत्व हैं प्राथमिक (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं पोटैशियम), द्वितीयक (कैल्शियम, मैग्नीशियम एवं सल्फर) तथा तृतीयक पोषक तत्व (बोरान, जिंक, मैग्नीज, आयरन, कॉपर, मॉलिब्डेनम एवं क्लोरीन)। पौधों के विकास तथा प्रजनन के लिये नाइट्रोजन सबसे जरूरी पोषक तत्व है। पौधों की आवश्यकता के अनुसार ये सभी तत्व मृदा में उपलब्ध होते हैं। यदि इन तत्वों की मृदा में कमी पायी जाती है तो उसकी पूर्ति के लिये अलग से पोषक तत्व प्रदान किये जाते हैं। नाइट्रोजन की पूर्ति के लिये यूरिया सबसे ज्यादा उपयोग किया जाता है। यूरिया में अन्य नाइट्रोजन स्रोतों की अपेक्षा सबसे अधिक (46%) मात्रा में नाइट्रोजन पाया जाता है।जब मृदा में यूरिया डाला जाता है तो वह सबसे पहले अमोनियम (NH4+) में बदल जाता है फिर जलीयकरण (hydrolysis) के बाद नाइट्राइट (NO2) और नाइट्रेट (NO3) में बदल जाता है। यह प्रक्रिया ‘नाइट्रीकरण’ कहलाती है। अधिकतर पौधे नाइट्रेट के रूप में नाइट्रोजन ग्रहण करते हैं। हालाँकि कुछ पौधे (जैसे - धान) अमोनिया (NH4+) के रूप में भी नाइट्रोजन ग्रहण करते हैं। नाइट्रीकरण की प्रक्रिया इतनी तेजी से होती है कि नाइट्रोजन की बहुत कम मात्रा ही पौधों को प्राप्त हो पाती है। नाइट्रोजन की शेष मात्रा निक्षालन तथा अन्तः स्रवण (percolation) द्वारा जमीन में नीचे तथा किनारों में चली जाती है जिससे भूमिगत जल प्रदूषित हो जाता है तथा मृदा की प्रकृति भी खराब हो जाती है। यूरिया से प्राप्त होने वाली नाइट्रोजन की इस क्षति को रोकने के लिये विभिन्न संस्थानों में शोध कार्य किये गये। शोधों के अच्छे परिणाम आए और कई प्रकार के स्लो रिलीज नाइट्रोजीनस फर्टिलाइजर तैयार किये गए। इनमें सल्फर कोटेड यूरिया तथा नीम कोटेड यूरिया प्रमुख हैं। इस लेख में नीम कोटेड यूरिया पर प्रकाश डाला जा रहा है।
नेशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड, दिल्ली ने नीम कोटेड यूरिया बनाने की शुरुआत की है। 3 राज्यों में लगभग 50 विभिन्न क्षेत्रों में इसके प्रयोग किये गये जिसके अच्छे परिणाम देखने को मिले तथा साथ-साथ फसल उत्पादन में 16% की वृद्धि देखी गयी।
जब किसान परम्परागत यूरिया का प्रयोग करते हैं तो उपयोग की गई नाइट्रोजन की आधी मात्रा भी पौधों द्वारा ग्रहण नहीं की जाती और वह निक्षालन द्वारा मृदा में मिल जाती है जिससे नाइट्रोजन की क्षति तो होती ही है साथ में मृदा उर्वरता भी प्रभावित होती है व भूमिगत जल भी अशुद्ध हो जाता है। यूरिया के जलीयकरण और नाइट्रीकरण द्वारा यूरिया की क्षति एक बड़ी समस्या है। इस समस्या से बचने का सबसे सरल और सफल उपाय है नाइट्रीकरण निरोधी पदार्थ (Nitrification Inhibitor) का उपयोग करना इसका सबसे अच्छा उदाहरण है नीम कोटेड यूरिया। नीम कोटेड यूरिया के प्रयोग से नाइट्रीकरण मंद गति से होने लगता है। नाइट्रोजन का लीचिंग व वाष्पीकरण द्वारा ह्रास कम हो जाता है। नाइट्रोजन अधिक समय तक मृदा में रहती है जिससे पौधे नाइट्रोजन को लम्बे समय तक ग्रहण कर सकते हैं। इससे यूरिया की कम मात्रा से अधिक उत्पादन होगा तथा लागत कम आयेगी।
सर्वप्रथम भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के वैज्ञानिक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और उनकी टीम ने नीम के बीजों का पाउडर तैयार करके उसे यूरिया के दानों के साथ एक ड्रम में मिलाकर नीम कोटेड यूरिया तैयार किया था। उन्होंने सर्वप्रथम इसका उपयोग धान की फसल में किया और पाया कि धान फसल की अच्छी वृद्धि हुई और उत्पादन भी बढ़ा। इससे धान की फसल में नाइट्रोजन के उपयोग की दक्षता बढ़ गई। सामान्यतः नाइट्रापायरिन (Nitrapyrin), सल्फाथायाजोल (sulphathiazole) आदि का प्रयोग नाइट्रीकरण अवरोधकों के रूप में होता है परन्तु इनकी लागत अत्यधिक होने के कारण ये सामान्यतः प्रयोग नहीं किये जाते। ऐसे में नीम कोटेड यूरिया एक अच्छे विकल्प के रूप में उभरा है। उम्मीद है कि आने वाले समय में हमारे किसान भाई नीम कोटेड यूरिया का उपयोग कर मृदा की रक्षा करेंगे, उत्पादन बढ़ाएंगे, इसके अलावा भूमिगत जल में नाइट्रेट की मात्रा में कमी आएगी, परिणामस्वरूप हमारे स्वास्थ्य की भी रक्षा होगी। |
क्या है नीम कोटेड यूरिया?
नीम कोटेड यूरिया से अभिप्राय है साधारण यूरिया को नीम के तेल से आवरित करना। इस यूरिया में ट्राइटर्पीन्स तथा डीनाइट्रीफाइंग तत्वों की अधिकता रहती है। नीम कोटेड यूरिया के उपयोग से नाइट्रोजन मृदा में धीरे-धीरे समावेशित होती है और यदि किसान साधारण यूरिया का प्रयोग करता है तो उसका अधिकांश भाग पौधों द्वारा उपयोग किये बगैर ही नष्ट हो जाता है।
सरकारी योगदान
गत वर्ष केन्द्र सरकार ने घरेलू उर्वरक कम्पनियों के लिये 100% नीम कोटेड यूरिया बनाने का आदेश दिया है। सरकार के इस कदम से किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ सब्सिडी बिल में 6500 करोड़ रुपये की कमी हो सकेगी। सरकार ने यूरिया के अत्यधिक प्रयोग को रोकने के लिये यह कदम उठाया है। सभी उपभोक्ताओं के लिये नीम कोटेड यूरिया का प्रयोग अनिवार्य कर दिया गया है। यूरिया के अनावश्यक प्रयोग से मिट्टी की उर्वरता तथा प्रकृति बिगड़ने के साथ-साथ फसलों की उपज पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। नीम कोटेड यूरिया के प्रयोग से फसल की उपज में 15-20% वृद्धि हो सकती है।
किसानों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने यूरिया के उपयोग के संबंध में कुछ सार्थक कदम उठाए हैं। सरकार ने सभी उर्वरक कम्पनियों को 100% नीम कोटेड यूरिया बनाने की सलाह दी है। इससे मृदा की उर्वरता क्षमता बचायी जा सकेगी और परिणामस्वरूप अधिक फसल उत्पादन हो सकेगा। |
किसान अधिकतर एनपीके (NPK) फर्टिलाइजर्स की बजाय यूरिया का ही अधिक प्रयोग करते हैं। यूरिया के अत्यधिक इस्तेमाल से मृदा में एनपीके (NPK) का अनुपात भी बिगड़ जाता है जिसका सीधा प्रभाव मृदा पर पड़ता है। नीम कोटेड यूरिया कीटनाशक के रूप में भी कार्य करता है। इसकी लागत सामान्य यूरिया की तुलना में केवल 5% अधिक होती है।
सम्पर्क :
सुश्री शुभदा कपिल
59 पटेल नगर, नई मण्डी, मुजफ्फरनगर 251001 (उ.प्र.)
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