क्या कह रहे हैं ये मैनग्रोव

खारे और दलदली सुंदरवन के डेल्टा में उगने वाले मैनग्रोव एप्पल यानी चाक केवड़ा की एक प्रजाति के पौधे कोलकाता में गंगा तट पर दिखे हैं। विशेषज्ञ इसे प्रकृति की नाराजगी का संकेत मानकर शोध में जुट गए हैं ….

मीठे पानी की गंगा और गंगा के किनारे उगते मैनग्रोव एप्पल यानी चाक केवड़ा ! यह कैसे संभव है? खारे पानी वाले दलदली क्षेत्र में उगने वाला पेड़ मीठे पानी के दलदल में आखिर क्यों उग रहा है? कोलकाता में गंगा के किनारे हाल में उगे ढेरों मैनग्रोव के पेड़ दिखे हैं। फौरी तौर पर वैज्ञानिकों का यह मानना है कि चूंकि सुंदरवन के डेल्टा इलाकों में समुद्र के पानी का जलस्तर 33 सेंटीमीटर सालाना की दर से बढ़ रहा है और संभव है कि समुद्र का खारा पानी ज्वार के समय गंगा के पानी में घुल रहा हो। इसका प्रतिफल हो सकता है कि मैनग्रोव की प्रजाति कोलकाता में उगने लगी है। अगर ऐसा है तो इसके दूरगामी खतरों का अंदाजा भर लगाया जा सकता है।

सुंदरवन के डेल्टा क्षेत्र से लगभग सौ-सवा सौ किलोमीटर दूर कोलकाता के गंगा तट पर पिछले दो सौ वर्षों के शोध इतिहास में कभी मैनग्रोव दिखने की चर्चा नहीं आई। समुद्र वैज्ञानिक प्रणवेश सान्याल के अनुसार, 'अब ऐसे पेड़ दिखने का मतलब साफ है कि समुद्र का पानी कोलकाता की ओर बढ़ रहा है। ऐसे में जल्द ही कोलकाता में मीठे पानी की किल्लत हो सकती है। साथ ही, हो सकता है कि कोलकाता की जमीन भी धीरे-धीरे गंगा के डेल्टा क्षेत्र में शुमार हो जाए। ऐसा होने में हजारों साल लगेंगे लेकिन यह बड़ा भय तो है ही ।' वैज्ञानिकों ने कोलकाता में बाबूघाट से मिलेनियम पार्क के बीच गंगा के किनारे 'चाक केवड़ा' प्रजाति के लगभग 162 पेड़ ढूंढ़ निकाले हैं।

नमक की मात्रा बढ़ने से गंगा के किनारे स्थित खेती-बाड़ी चौपट हो सकती है। उत्तर और दक्षिण 24 परगना, हुगली, हावड़ा में फसल पर असर पड़ सकता है। साथ ही, मीठे पानी की मछलियां लुप्त हो सकती हैं। दूसरी ओर, मछलियों की कुछ प्रजातियों के दोबारा दिखने की उम्मीद भी वैज्ञानिक जुटा रहे हैं। मरीन बॉयोलॉजिस्ट प्रोफेसर अमलेश चौधरी के अनुसार, 'फरक्का बांध बनने के बाद गंगा (हुगली) नदी में स्वच्छ पानी की मात्रा बढ़ी और नमक का स्तर कम होने से स्टार फिश, तोप्से, भेटकी जैसी मछलियां गंगा से लुप्त हो गईं।.

मैनग्रोव पेड़ को प्रदूषणरोधी और भूमि-कटानरोधी माना जाता है। इस हिसाब से यहां इन पेड़ों के दिखने को चिंताजनक नहीं माना जा रहा। पेड़ों में छोटे-छोटे फल और पीले-सफेद फूल, हल्की भीनी सुगंध व जमीन के बाहर निकली जड़ें, स्थानीय लोग इसे चाक केवड़ा कहते हैं और वैज्ञानिक 'कैजुआलारिस' या मैनग्रोव एप्पल। दो साल पहले हुगली जिले में उत्तरपाड़ा और दक्षिण 24 परगना के संतोषपुर में गंगा के किनारे इस प्रजाति के कुल 132 पेड़ों का पता चला था। प्रणवेश सान्याल के अनुसार, 'कुछ महीने पहले मिलेनियम पार्क में टहलने के दौरान गंगा के किनारे दलदल में कुछ पेड़ दिखे। मैंने 'सी एक्सप्लोरर इंस्टिट्यूट' के लोगों को सर्वे करने को कहा। पता चला कि ये पेड़ पांच से आठ साल पुराने हैं ।'

गंगा के किनारे इन पेड़ों के दिखने से साफ है कि यहां पानी में नमक की मात्रा बढ़ रही है। मैनग्रोव के पेड़ हवा से अधिक कार्बन डाइऑक्साइड शोषित करते हैं। इस लिहाज से कोलकाता के प्रदूषित वायुमंडल के लिए इन पेड़ों का उग आना अच्छा ही है लेकिन इससे यह संकेत भी मिल रहा है कि गंगा की अपनी धारा बाधित हो रही है। बोटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया के उप निदेशक और सुंदरवन बॉयोस्फेयर रिजर्व के प्रिंसिपल इन्वेस्टिगेटर डॉक्टर एच.एस. देवनाथ के अनुसार, 'गंगा में इस जगह पर नमक की मात्रा 2८ पीपीएम की मिली है। इससे जल संपदा को क्षति पहुंच सकती है ।' सी एक्सप्लोरर्स इंस्टिट्यूट के विशेषज्ञ देवाशीष चट्टोपाध्याय के अनुसार, 'पिछले एक साल में गंगा में नमक की मात्रा दोगुनी से अधिक हो गई है। पिछले साल यह मात्रा 10.47 थी। गंगा नदी में ज्वार-भाटा के चलते मैनग्रोव की इस प्रजाति के बीज नदी की धारा के साथ बहते हुए संभवतः आ गए हैं। यहां उन्हें जरूरत के अनुसार नमक की मात्रा मिली और वे पनप गए।'

नमक की मात्रा बढ़ने से गंगा के किनारे स्थित खेती-बाड़ी चौपट हो सकती है। उत्तर और दक्षिण 24 परगना, हुगली, हावड़ा में फसल पर असर पड़ सकता है। साथ ही, मीठे पानी की मछलियां लुप्त हो सकती हैं। दूसरी ओर, मछलियों की कुछ प्रजातियों के दोबारा दिखने की उम्मीद भी वैज्ञानिक जुटा रहे हैं। मरीन बॉयोलॉजिस्ट प्रोफेसर अमलेश चौधरी के अनुसार, 'फरक्का बांध बनने के बाद गंगा (हुगली) नदी में स्वच्छ पानी की मात्रा बढ़ी और नमक का स्तर कम होने से स्टार फिश, तोप्से, भेटकी जैसी मछलियां गंगा से लुप्त हो गईं। हो सकता है अब वे मछलियां दिखने लगें ।' जादवपुर विश्वविद्यालय में ओशीनोग्राफी विभाग के प्रमुख प्रोफेसर सुगत हाजरा के अनुसार, 'गंगा में नमक की मात्रा अभी उतनी अधिक नहीं हुई है कि चिंता की जाए लेकिन सुंदरवन में समुद्र का जलस्तर बढ़ने का यह एक और संकेत है, इसमें दो राय नहीं ।'

फिलहाल, कोलकाता और आस-पास के इलाकों में मैनग्रोव के पेड़ दिखने को लेकर वैज्ञानिक अपने मंतव्य जताते रहेंगे। जब तक कि यहां शुरू किए गए परीक्षणों के परिणाम नहीं आ जाते। वैज्ञानिक तब ही कोई पुख्ता विचार दे सकेंगे। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से सुंदरवन की पारिस्थितिकी को लेकर अच्छी खबरें नहीं आई हैं।

जलवायु परिवर्तन और वैश्विक उष्णायन (ग्लोबल वार्मिंग) के चलते दुनियाभर में जो इलाके विपदाग्रस्त हो चले हैं, उनकी सूची में सुंदरवन का नाम शीर्ष पर बताया जा रहा है। कुछ समय पहले सुंदरवन क्षेत्र में देशी-विदेशी शोधकर्ताओं द्वारा 1980 से चलाए जा रहे एक प्रोजेक्ट में जो आंकड़े मिले हैं, उनसे पता चला कि दुनिया का सबसे बड़ा नदी डेल्टा क्षेत्र धीरे-धीरे गर्म हो रहा है। हर 12 साल में यहां के तापमान में 0.5 डिग्री की बढ़ोत्तरी हो रही है। यहाँ के तापमान में वृद्धि की औसत दर ग्लोबल वार्मिंग की दर से आठ गुना ज्यादा है। भूगर्भ में तेजी से बदलाव के चलते यहां के मीठे पानी के स्रोतों में नमक की मात्रा बढ़ रही है।

चार साल पहले आई सुनामी के बाद सुंदरवन क्षेत्र के बारे में कई चिंताजनक आंकड़े आए थे। मसलन, वहां के 40 फीसदी द्वीपों का अस्तित्व खत्म हो गया। हजारों एकड़ मैनग्रोव के जंगल नष्ट हो गए बाद में आए चक्रवाती तूफान आएला के चलते द्वीपों का अस्तित्व तो नष्ट नहीं हुआ है लेकिन नमकीन पानी की समस्या बढ़ी है। इलाके की खेती चौपट होने से खेती लायक नई जमीन की तलाश में जंगल काटे गए। कोलकाता विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अभिजित मित्र का मानना है कि तापमान बढ़ने के साथ ही पानी में द्रवीभूत ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ रही है। उनके अनुसार, ‘आशंका है कि पानी में द्रवीभूत ऑक्सीजन की मात्रा ज्यादा बढ़ने पर जलीय जीव-जंतुओं के अस्तित्व पर खतरा हो सकता है। इससे जीवों की प्रजनन और पाचन क्षमता कम होती जाती है।’ ऐसे में कोलकाता और आस-पास के इलाकों में गंगा किनारे उग आए मैनग्रोव को लेकर गहन शोध की जरूरत है कि इस परिवर्तन के माध्यम से प्रकृति हमें आखिर क्या नया संदेश देना चाहती है? यह शुभ संकेत है या नहीं?

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