क्या हम इस साल सिंधु बेसिन में बर्फ पिघलने से अधिक पानी का उपयोग करने के लिए तैयार हैं ?

क्या हम इस साल सिंधु बेसिन में बर्फ पिघलने से अधिक पानी का उपयोग करने के लिए तैयार हैं ?
क्या हम इस साल सिंधु बेसिन में बर्फ पिघलने से अधिक पानी का उपयोग करने के लिए तैयार हैं ?

केंद्रीय जल संसाधन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने हाल ही में कहा कि ‘‘हिमालय की चोटियों पर इस वर्ष पिछले 50 वर्षों की अपेक्षा सबसे अधिक बर्फ है और दक्षिण पश्चिमी मानसून और गर्मियों के दौरान भाखड़ा, पौंग, रंजीत सागर, रामगंगा, टिहरी आदि जैसे जलाशयों में बर्फ पिघलने से बहुत अधिक जल प्रवाह होगा। इस साल इस मुद्दे पर यह तीसरी चेतावनी है। इससे पहले 27 फरवरी, 2020 और फिर 4 मई, 2020 को भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (बीबीएमबी) ने अपने सहयोगी राज्यों को यही चेतावनी दी थी, लेकिन गर्मी और दक्षिण पश्चिमी मानसून के कारण बांध और नदियों में बढ़ते जल प्रवाह के कारण उत्पन्न होने वाली स्थिति के लिए केंद्रीय मंत्री, बीबीएमबी और साझेदार राज्य न तो तैयार दिख रहे हैं और न ही कुछ करते हुए प्रतीत हो रहे हैं। पिछले साल यही स्थिति भाखड़ा-पौंग-रंजीत सागर बांध में दो बार हुई थी। तब न केवल बड़े पैमाने पर बाढ़ आई थी, बल्कि पानी पाकिस्तान तक बहा था, जो प्रधानमंत्री सहित भारत सरकार के नेताओं की घोषणाओं और नीति के खिलाफ था। 

5 मई 2020 की ‘द ट्रिब्यून’ की रिपोर्ट में लिखा था कि ‘‘बीबीएमबी सूत्रों के अनुसार, वर्तमान में भाखड़ा के जलग्रहण क्षेत्र में बर्फ की औसत गहराई पिछले साल के 230 मिमी की तुलना में 480 मिमी है। यह 19-20 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) के बराबर ताजा पानी है। लगभग एक तिहाई जलग्रहण क्षेत्र हिमाचल प्रदेश में और शेष सतलुज के रास्ते तिब्बत में है।’’ इससे पहले द ट्रिब्यून ने 28 फरवरी, 2020 की रिपोर्ट में लिखा था कि बीबीएमसी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ‘‘सतलुज और ब्यास नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में औसत हिमपात, जो हिमाचल प्रदेश और तिब्बत के निकटवर्ती भागों में है, 245 की तुलना में इस सीजन में अब तक 540 मिमी बारिश हुई है। नतीजतन, हम 22 बीसीएम के बराबर में जमे हुए भंडार को देख रहे हैं। मौसम और तापमान में बदलाव के आधार पर इसमे से हम 35 से 50 फीसदी के पिघलने की उम्मीद करते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि बर्फ पिघलने से 11 बीसीएम तक ताजे पानी का उत्पादन हो सकता है। पिछले साल जुलाई तक मेल्ट-ऑफ 7 बीएमसी था। बाढ़ के जोखिम को कम करने के लिए नदियों और मौसमी नालों के किनारे तटबंधों को मजबूत करने की बीबीएमबी ने पंजाब सरकार से सिफारिश की है। 2019 में भाखड़ा, पौंग और रंजीत सागर बांधों में इतना पानी आया कि पंजाब में दो बार बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई। पिछले साल की तुलना में इस साल बर्फ पिछलने से आने वाला पानी लगभग 56 प्रतिशत बढ़ जाएगा। यह अब केंद्रीय जल शक्ति मंत्री के बयान से भी जुड़ा है। ऐसी स्थिति में जलाशयों में स्तर को उचित रूप से कम करने के लिए बीबीएमबी पानी के उचित उपयोग की सलाह दे रहा है, जिसके तहत अतिरिक्त पानी खींचकर उसे नहरों और ड्रेन में भरने का प्रयास किया जाए। एक अधिकारी का कहना है कि ‘हम इस बात पर जोर दे रहे हैं कि राज्य नहर के पानी का अधिक से अधिक इस्तेमाल करें और भूजल को रिचार्ज करने के लिए भी इसका इस्तेमाल करें।’

6 मई 2020 को बांध का जलस्तर केंद्रीय जल आयोग के नवीनतम साप्ताहिक जलाशय बुलेटिन के अनुसार भाखड़ा बांध में 1.966 बीसीएम पानी का भंडारण किया गया था, जो कि लाइव स्टोरेज क्षमता का 32 प्रतिशत है और पिछले दस सालों की औसत से अधिक है, पहले ये 28 प्रतिशत था। पौंग बांध के मामले में, जल संग्रहण 3.472 बीसीएम था, जो कि लाइव स्टोरेज का 56 प्रतिशत है। पिछले साल यही 45 प्रतिशत था, जबकि बीते दस सालों में औसतन 27 प्रतिशत रहा है। रंजीत सागर बांध (बीबीएमबी द्वारा नहीं बल्कि पंजाब सरकार द्वारा प्रबंधित) के मामले में, लाइव स्टोरेज 1.263 बीसीएम था, जो कि लाइन स्टोरेज क्षमता का 54 प्रतिशत था। इन बांधों के भरने की अवधि 21 मई से शुरू हो रही है। इस समय तक जल संग्रहण वर्तमान संग्रहण स्तर से घटकर कम हो गया होगा। ये स्थिति तब है जब बीबीएमबी खुद बर्फ पिघलने से बाढ़ आने की चेतावनी दे रहा है। वास्तव में, रणजीत सागर में पानी का लाइव स्टोरेज पिछले दो महीनों में बड़े पैमाने पर बढ़ा है। 5 मार्च को पानी का स्तर 0.866 बीसीएम था, जो 6 मई को 1.263 बीसीएम तक बढ़ गया है। ऐसे में पानी का इनफ्लो बढ़ने पर पंजाब सरकार कम तैयार दिख रही है 

बीबीएमबी की कुल पनबिजली स्थापित क्षमता 2920.3 मेगावाट है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के आंकड़ों के अनुसार मार्च 2020 में 670.45 मिलियन यूनिट (एमयू) का उत्पादन किया था, जबकि मार्च 2019 में बिजली उत्पादन 839.84 एमयू था। ये बिजली उत्पादन के लिए बीबीएमबी की खराब तैयारियों को दर्शाता है। ये स्थिति तब थी जब भाखड़ा बांधों में पानी का स्तर काफी अधिक था और भारी जल प्रवाह के लिए जगह बनाने हेतु पानी छोड़ने की जरूरत थी। बीबीएमबी इस बारे में खुद साझीदार राज्यों को चेतावनी दे रहा है। अप्रैल 2020 में भी बीबीएमबी पनबिजली ने अप्रैल 2019 की अपेक्षा कम बिजली का उत्पादन किया था (अप्रैल 2020 के सीईए बिजली उत्पादन के आंकड़े अभी जारी नहीं किए गए हैं।)। बीबीएमबी मार्च और अप्रैल 2020 के दौरान अपने बिजली उत्पादन को आसानी से बढ़ा सकता था, जो थर्मल पावर की जगह हाइड्रो जनरेशन को बढ़ाने में मदद कर सकता था और जलाशय के जलस्तर को कम करने में भी मदद करता। इसी तरह 600 मेगावाट के रंजीत सागर बांध जल विद्युत स्टेशन ने मार्च 2020 में सिर्फ 108.53 एमयू का उत्पादन किया, जबकि मार्च 2019 में 178.05 एमयू का उत्पादन किया था। ये पंजाब सरकार का रूखापन दिखा रहा है। 

निष्कर्ष के तौर पर, भाखड़ा, पौंग और रंजीत सागर जलाशय क्रमशः सतलुज, ब्यास और रावी नदियों पर स्थित हैं। तीनों नदियों को पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि के तहत भारत को आवंटित किया गया है। ये परियोजनाएं ऐसे क्षेत्र में स्थित हैं जहां 1970 के दशक के बाद से अत्यधिक भूजल का उपयोग हो रहा है और दशकों से भूजल का बड़े पैमाने पर क्षय हो रहा है। पिछले साल अतिरिक्त पानी की उपलब्धता एक वरदान हो सकती थी, अगर हम इसे भूजल रिचार्ज करने हेतु उपयोग करने के लिए तैयार होते। ये दीर्घकालिक लाभ प्रदान करता। बीबीएमबी और केंद्रीय जल शक्ति मंत्री के उद्घोषों से हम इस साल फिर से ऐसी ही स्थिति से जूझ रहे हैं। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय, बीबीएमबी और पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर और यहां तक कि दिल्ली (भाखड़ा जल के लाभार्थी) को मौजूदा स्थानीय टैंकों, तालाबों, झीलों, आर्द्रभूमि, नहरों, नालों के माध्यम से भूजल को अधिकतम पुनर्भरण करने की तैयारी करने और कृत्रिम भूजल पुनर्भरण तंत्र बनाने की आवश्यकता है। बीबीएमबी और पंजाब सरकार को पानी की इस अपेक्षित बढ़त से बिजली उत्पादन को अनुकूल करने की जरूरत है, ताकि इस अवधि में थर्मल बिजली उत्पादन कम से कम हो और बिजली उत्पादन किए बिना बांध से न्यूनतन पानी छोड़ा जाए, लेकिन इस स्थिति के विपरीत अगस्त-सितंबर, 2019 बिजली उत्पादन किए बिना कई बार पानी बांध से छोड़ा गया और बहते हुए पाकिस्तान तक पहुंच गया। आशा है कि हम प्रकृति से प्राप्त इन उपहारों का लंबे समय (दीर्घकाल) तक अधिकतम उपयोग कर सकें, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों का भला हो सके। वास्तव में, हिमालय से निकलने वाली नदियों और इन नदियों में पर बने बांध गर्मियों और दक्षिण पश्चिमी मानसून में जलप्रवाह बढ़ने की संभावना रहती है या ये बढ़ते जल प्रवाह का सामना करते हैं। इसलिए जो सतलुज, ब्यास और रावी नदी पर लागू होता है वही अन्य हिमालयी नदियों और बांधों पर भी लागू होता है। यानी ये स्थिति इन नदियों और बांधों के साथ ही अन्य नदियों और बांधों के साथ भी है। 

मूल लेख पढ़ने के लिए SANDRP की वेबसाइट पर जाएं - Are we ready to use more water from snow melt in Indus basin this year?
 


 

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Post By: Shivendra
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