एक बार फिर खबर आई है कि चीन अपने क्षेत्र में जोर-शोर से ब्रह्मपुत्र नदी की धारा को मोड़कर उत्तर की ओर ले जा रहा है। वर्ष 2006 में गुप्तचर सैटेलाइट के आधार पर अमेरिका ने यह रहस्योद्घाटन किया था कि चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर एक बड़ा बांध बनाने जा रहा है। जब भारत सरकार को इस तथ्य का पता चला, तो उसने इसका विरोध किया। अपनी आदत के अनुसार चीन ने उस समय आश्वस्त किया था कि घबराने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि चीन ऐसा कोई बांध नहीं बना रहा है और यदि भविष्य में कोई बांध बनाएगा भी, तो उससे ब्रह्मपुत्र नदी के पानी का बहाव प्रभावित नहीं होगा।
उत्तरी चीन में पानी का घोर अकाल है और दक्षिणी चीन में जहां ब्रह्मपुत्र नदी बहती है, भरपूर पानी है। कितनी भी इंजीनियरिंग कुशलता दिखा दी जाए, दक्षिण का पानी उत्तर में नहीं आ सकता है। येलो रिवर चीन की एक बहुत बड़ी नदी है। कहा जाता है कि इसी नदी के किनारे पर चीन की प्रसिद्ध संस्कृति का विकास हुआ था। आज इस नदी का पानी इतना दूषित हो गया है कि वह पीने लायक नहीं रह गया।चीन की राजधानी बीजिंग और उसके आसपास के दूसरे क्षेत्रों में भूजल का ऐसा दोहन किया गया है कि उसकी भरपाई होने में सैकड़ों वर्ष लग जाएंगे। अब चीन यह भरपूर प्रयास कर रहा है कि दक्षिण की नदियों के बहाव को मोड़कर उत्तर की ओर लाया जाए। पहले के जमाने में ऐसा करना शायद संभव नहीं था। परंतु आज चीन में इंजीनियरिंग की कुशलता इतनी बढ़ गई है कि उनके इंजीनियर असंभव काम को भी संभव कर देते हैं।
ब्रह्मपुत्र नदी तिब्बत से निकलती है। चीन में उसका नाम ‘राकलोंग सांगपो’ है। तिब्बत में कुछ दूर बहने के बाद यह नदी सीधे भारत में आ गिरती है। चीन एक अरब 20 करोड़ डॉलर की लागत से राकलोंग सांगपो नदी पर एक विशालकाय बांध बना रहा है, जिसका सीधा अर्थ यह होगा कि ब्रह्मपुत्र में आने वाले पानी का बहाव बहुत कुछ अवरुद्ध हो जाएगा और असम तथा उत्तर-पूर्वी भारत के क्षेत्र, साथ ही बांग्लादेश का एक बहुत बड़ा भूभाग अकालग्रस्त हो जाएगा। डर यह है कि जैसे चीन ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ मेकांग नदी के मामले में किया, वही वह भारत के साथ भी करेगा। तिब्बत में बड़े-बड़े बांध बनाकर उसने मेकांग नदी को एक तरह से पानी विहीन कर दिया है।
चीन यह कह रहा है कि यदि ब्रह्मपुत्र पर बांध चीनी क्षेत्र में बनाया गया, तो भारत में ब्रह्मपुत्र की इतनी सहायक नदियां हैं कि ब्रह्मपुत्र में पानी का कभी अभाव नहीं रहेगा। यह आंख में धूल झोंकने जैसी बातें हैं। ज्यादातर सहायक नदियों में पानी केवल बरसात के मौसम में ही आता है, पूरे साल नहीं। अब हमें चीन से दो टूक कहना होगा कि यह एक शत्रुतापूर्ण कार्य है और वह शीघ्र बह्मपुत्र नदी पर बांध बनाना रोके।
लेखक पूर्व सांसद एवं पूर्व राजदूत हैं
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