क्या अच्छे दिन आएंगे मां गंगा के

गंगा खुद कहती है कि वह सिर्फ एक नदी मात्र नहीं है। वह कहती हैं, मैं पास रहते हुए भी बहुत दूर हूं, उनके लिए जो कर्म विक्षिप्त चित वाले हैं। मैं दूर होते हुए भी भक्तों के हृदय में सदा वास करती हूं। मैं केवल भक्ति द्वारा ही ग्राह्य हूं। न मैं ध्यान से लभ्य हूं न दर्शन से । ऐसे में नरेंद्र मोदी को राजनीति से परे हट कर गंगा जल को शुद्ध करने की दिशा में काम करना होगा। तभी उम्मीद की जा सकती है कि गंगा मैया फिर लौटेंगी हमारे लिए।

सिर्फ एक नदी का ही नाम गंगा नहीं है। गंगा एक संस्कृति है। भारत की यह अकेली नदी है जो लोकगीत है, धर्म है, जीवन है और मोक्षदायिनी भी। शिव की जटाओं से बंगाल की खाड़ी तक कल-कल बहती गंगा के मीठे जल का स्वाद आत्मा के परमात्मा से मिलन का सुख देता है। मां के आंचल में मुंह पोंछने जैसा परमानंद, लेकिन विकास ने गंगा को एक नदी में तब्दील कर दिया। इस पवितपावनी जलधार की दशा को देख कर पांच फरवरी, 1985 को राजीव गांधी ने कहा था, गंगा भारत का प्रतीक है। हमारी पौराणिक कथाओं व कविताओं का स्रोत है और लाखों लोगों की पोषक भी। आज यह हमारी सर्वाधिक प्रदूषित नदियों में से एक है। हम गंगा की प्राचीन पवित्रता को फिर कायम करेंगे।

गंगा की पवित्रता को कायम करने के लिए विश्व बैंक से 20 हजार करोड़ रुपए लेकर इसके जल को शुद्ध करने की योजना चलाई गई। लेकिन गंगा और प्रदूषित होती चली गई। गंगा को शुद्ध करने की राजीव गांधी की पहल के 25 बरस बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे राष्ट्रीय नदी घोषित किया। उसके बाद भी गंगा के अच्छे दिन नहीं आए। गंगा सागर से गंगोत्री तक 2525 किलोमीटर की दूरी तक बहने वाली इस प्राचीन नदी का कानपुर, फतेहपुर, इलाहाबाद, मिर्जापुर और बनारस में बुरा हाल है। उत्तर प्रदेश में आठ हजार से अधिक छोटे व बड़े नाले अब भी चोरी- छिपे गंगा नदी में आकर उसके पवित्र जल को प्रदूषित कर रहे हैं।

गंगा और भारत एक दूसरे के पूरक हैं। इस नदी के किनारे बसे इलाहाबाद शहर में पैदा हुए देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने एक पत्र में गंगा का बखान कुछ इस अंदाज में किया था- मुझे बचपन से गंगा और यमुना से लगाव रहा है। जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ यह लगाव और बढ़ता गया। मैंने मौसम के बदलने के साथ ही गंगा के बदले हुए रंगों को देखा है। कई बार मुझे याद आई उस इतिहास की, उन परंपराओं की, पौराणिक गाथाओं की, उन गीतों और कहानियों की, जो युगों से उनके साथ जुड़ गई हैं और उनके बहते हुए पानी के साथ घुल-मिल गई हैं।

महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य रघुवंशम के 13वें सर्ग में गंगा और यमुना के संगम के दृश्य का बेहद मनोरम चित्रण किया है। गंगा केवल हिंदू धर्मावलंबियों के लिए ही श्रद्धा का पात्र नदी रही है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि सुल्तान मुहम्मद तुगलक अपने निजी उपयोग के लिए प्रतिदिन गंगा जल का एक भरा कलश दौलताबाद मंगाता था। जिसके वहां तक पहुंचने में चालीस दिन का समय लगता था। अबुल फजल ने आइने अकबरी में लिखा है, मुगल सम्राट अकबर गंगा जल को अमृत समझते थे। वे हमेशा गंगा जल का उपयोग करते थे। फ्रांसीसी यात्री बर्नियार ने भी लिखा है कि बादशाह औरंगजेब नियमित रूप से गंगा जल का प्रयोग करता था । बौद्ध परंपरा भी गंगा को पवित्र मानती है।

गंगा को स्वच्छ करने की केंद्र सरकार की पहल स्वागत योग्य है, लेकिन गंगा खुद अपने बारे में क्या कहती है इस पर भी केंद्र सरकार को गंभीर मंथन करना होगा। गंगा खुद कहती है कि वह सिर्फ एक नदी मात्र नहीं है। वह कहती हैं, मैं पास रहते हुए भी बहुत दूर हूं, उनके लिए जो कर्म विक्षिप्त चित वाले हैं। मैं दूर होते हुए भी भक्तों के हृदय में सदा वास करती हूं। मैं केवल भक्ति द्वारा ही ग्राह्य हूं। न मैं ध्यान से लभ्य हूं न दर्शन से । ऐसे में नरेंद्र मोदी को राजनीति से परे हट कर गंगा जल को शुद्ध करने की दिशा में काम करना होगा। तभी उम्मीद की जा सकती है कि गंगा मैया फिर लौटेंगी हमारे लिए।

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