बारिश के बाद अचानक से उग आए छतरी के आकार के मशरूम प्रारम्भ से ही मानव के लिये कौतूहल का विषय रहे हैं। कवकों के प्रति मानव की रुचि इन्हीं छत्रकों को देखकर जागृत हुई। वह इन कवकों के प्रति सदा से ही जिज्ञासु व सम्मोहित रहा है। कवकजाल के चारों ओर अचानक और तीव्र गति से प्रकट हुए रंग-बिरंगे मशरूम और उनके द्वारा बनाए गए गोल चक्र नृत्य करती हुई परियों के वलय के समान नजर आते हैं। जहाँ एक ओर मशरूम आदिमानव के भोजन का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत रहा है और वह इनके प्रति आकृष्ट रहा है वहीं विषैले मशरूमों से होने वाले अनिष्टकारी प्रभाव व मृत्यु से वह भयभीत भी रहा है।
मशरूम के अध्ययन से शुरू हुआ कवक विज्ञान आज जीव जगत का एक ऐसा आकर्षक समूह है जिसमें लगभग एक लाख प्रजातियाँ हैं। कवक का एक महत्त्वपूर्ण वर्ग यीस्ट, शर्करा के अवस्तर पर बहुतायत से वृद्धि करता है और इसका उपयोग डबलरोटी व शराब बनाने में प्राचीन काल से ही किया जाता रहा है। करिश्माई औषधि के रूप में विख्यात प्रतिजैविक पेनिसिलिन कवक पेनिसिलियम नोटेटम की ही देन है।
क्या आप जानते हैं कि कवकों के बिना पृथ्वी पर जीवन असंभव हो जाता और पृथ्वी कई फीट ऊँची गंदगी के ढेर में दबी रहती। वातावरण में पौधों के अपशिष्ट को विघटित करने में कवकों की भूमिका है जो अवस्तर को कार्बन डाइऑक्साइड, पानी और कवक जीवभार में विघटित करते हैं तथा दूसरे पोषक तत्वों को पुन: जीवमंडल में छोड़ते हैं। कहा जा सकता है कि मृत्यु भी कवकों के बिना अपूर्ण है।
कवकों का संसार अनेक विचित्रताओं से भरा पड़ा है और यह वैज्ञानिक जगत में सर्वाधिक चर्चित विषय रहा है। जहाँ कुछ कवक औषधीय गुणों से परिपूर्ण हैं और हर मर्ज की रामबाण औषधि हैं वहीं कुछ अन्य कवक पोषक तत्वों से भरपूर और बेशकीमती भी हैं। कुछ कवक अतिविशाल हैं तो कुछ अत्यंत सुंदर आकृति बनाते हैं। कुछ कवक प्रकाश उत्सर्जित करते हैं तो कुछ विष भी उगलते हैं।
स्मिथ और सहयोगियों के अनुसार अमेरिका के मिशिगन के जंगलों में बहुतायत से पाया जाने वाला कवक आर्मिलेरिया बल्बोसा सबसे वृहत और प्राचीन जीवों में से एक है। लगभग तीस एकड़ जमीन पर फैले हुए इस कवक का वजन करीब दस हजार किलोग्राम है और अनुमान है कि इसकी आयु पंद्रह सौ साल से भी अधिक है। यह तथ्य वैज्ञानिक जगत में चर्चा और बहस का मुद्दा भी है कि इस कवक की तुलना व्हेल मछली, विशालकाय रेड वुड और ब्रिसल कोन पाइन से की जा सकती है या नहीं।
दूसरा दीर्घकाय कवक कालवेशिया जाइगेन्शिया है। इसे विशालकाय पफ बॉल भी कहा जाता है। इस कवक का फलनकाय ग्लोबाकार, क्रीमी सफेद रंग का होता है जिसका व्यास सामान्यत: 30-40 सेमी होता है किन्तु कभी-कभी फलनकाय वृद्धि करके एक मीटर या इससे भी बड़े व्यास का हो जाता है। बीजाणु उत्पादन में इस कवक ने अन्य कवकों के मुकाबले कीर्तिमान कायम किया है। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि कालवेशिया जाइगेन्शिया का एक फलनकाय सात लाख करोड (7×1012) बीजाणु उत्पन्न करता है। इन बीजाणुओं का अंकुरण विरले ही होता है। विश्वास नहीं होता है कि प्रकृति इतनी अपव्ययी भी हो सकती है।
हम सभी ने जुगनू को तो रात को चमकते हुए देखा है, परंतु क्या आप जानते हैं कि कुछ कवक भी प्रकाश उत्सर्जित करते हैं और अंधेरे में चमकते हैं ? इन्हें फॉक्स फायर, ठण्डी आग और प्राकृतिक लालटेन के नाम से भी जाना जाता है। कवकों की लगभग 25 से भी अधिक प्रजातियाँ जैव उद्दीपन दर्शाती हैं इनमें से कुछ जातियाँ हैं - आर्मीलेरिया, मेलिया, माइसीना क्लोरोफॉस, माइसीना सीट्रिकलर और पेनीलस स्टीप्टीकस। इन कवकों की जनन संरचना और कवक तंतु प्रकाश उत्सर्जित करते हैं जो अंधेरे में चमकते हैं। कवकों में इस क्रिया का कारण अभी तक अज्ञात है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि शायद ये कवक कीटों को आकर्षित करने के लिये प्रकाश उत्सर्जित करते हैं ताकि इनके बीजाणु कीटों द्वारा प्रकीर्णित हो सकें। जैव उद्दीपक कवकों का सबसे पुराना उदाहरण अरस्तू (382 ई. पू.) के रिकॉर्ड में मिलता है। उन्होंने अपने लेखों में लिखा है कि कुछ कवक प्रकाश उत्सर्जित करते हैं जो आग के समान प्रतीत होते हैं मगर यह आग स्पर्श करने पर ठंडी होती है। प्राचीन काल में यूरोपियन सैनिक इन चमकते हुए कवकों को अपने हेलमेट पर लगाए रखते थे ताकि रात में वे आपस में एक दूसरे को पहचान सकें। कुछ प्रसिद्ध अंग्रेजी कविताओं और उपन्यासों में भी फॉक्स फायर प्रकाश के उपयोग के उदाहरण मिलते हैं।
संसार की लगभग सभी संस्कृतियों में मशरूम के खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग की जानकारी मिलती है। मिश्र के शासक तो मशरूम के इस हद तक दीवाने थे कि उन्होंने एक कानून बना डाला जिसके तहत कोई भी साधारण आदमी मशरूम को स्पर्श तक नहीं कर सकता था। आधुनिक व्यंजनों में मशरूम के उपयोग की नजाकत कौन नहीं जानता? विभिन्न प्रजातियों के मशरूम अब व्यवसायिक तौर पर उगाए जाते हैं। मशरूम को औपचारिक रूप से उगाए जाने का श्रेय फ्रांस के राजा लुई XIV को जाता है जिन्होंने अठाहरवीं सदी में इसकी शुरुआत की। कालांतर में यह कला यूरोप के विभिन्न क्षेत्रों में फैल गई। आज मशरूम उद्योग एक अत्यंत समृद्ध व्यवसाय के रूप में स्थापित हो चुका है। मशरूम की लगभग दो हजार जातियाँ ज्ञात हैं जो खाने योग्य हैं जिसमें से प्रमुख हैं - एगैरिकस बाइस्पोरस (यूरोपियन या व्याइट बटन मशरूम), प्लूरोट्स साजोकाजू (ढींगरी और इण्डियन ऑइस्टर मशरूम), प्लूरोट्स ऑस्ट्रीएट्स (अमेरिकन ऑइस्टर मशरूम) और वोलवेरिला वोल्वेसिया (चाइनीज या पेडी स्ट्रॉ मशरूम)। इन मशरूमों को हेल्थ फूड भी कहा जाता है क्योंकि ये प्रोटीन, विटामिन और खनिजों के अच्छे स्रोत हैं। अल्प कैलोरी खाद्य और कॉलेस्ट्रॉल न होने की वजह से यह मधुमेह और हृदय रोगियों के लिये उपयोगी गुणों से भरपूर आदर्श खाद्य पदार्थ है।
पोषक तत्वों से परिपूर्ण मार्शेला नामक कवक भारत के उत्तरी क्षेत्रों में बहुत ही लोकप्रिय है। इसे स्पंज मशरूम और गुच्छी के नाम से भी जाना जाता है। यह मुख्यतया कोनिफेरस जंगलों में मिलता है और अपनी विशिष्ट गंध की वजह से ऊँचे दाम पर बिकता है।
खाद्य कवकों में ट्रफेल्स बेशकीमती कवक की श्रेणी में आता है। इसे रहस्यों से भरा गड़ा हुआ खजाना भी कहा जाता है। इसका फलनकाय जमीन में धंसा रहता है और एक विशिष्ट गंध बिखेरता है। प्रशिक्षित सुअर और कुत्तों की सहायता से इसे खोद कर बाहर निकाला जाता है। अपनी विशिष्ट गंध की वजह से यह बेशकीमती है। सच मानें तो एक पौंड फलनकाय 500 डॉलर (लगभग 25,000 रुपये) में बिकता है। व्यवसायिक रूप से बिकने वाले ज्यादातर ट्रफेल्स मूलत: फ्रांस और इटली में पाए जाते हैं।
एशिया के प्रमुख देश विशेषकर चीन और जापान ने परंपरागत रूप से मशरूम के औषधीय उपयोगों को जान लिया था। यहाँ पाए जाने वाले जादुई मशरूम गेनोडर्मा ल्युसिडम को जड़ी-बुटियों का चमत्कारिक राजा कहा जाता है। चीनी लोग इसे लींगची और जापानी इसे रैशी नाम से पुकारते हैं। रामबाण औषधि के रूप में प्रसिद्ध यह कवक रक्त शुद्धिकरण और कॉलेस्ट्रॉल का स्तर कम करने में अत्यंत ही कारगर है। माना जाता है कि इस कवक का उपयोग रोग प्रतिरोधन और कैंसर के उपचार में भी किया जा सकता है। अल्जाइमर से पीड़ित रोगियों के इलाज में भी यह बहुत उपयोगी है। कवक कालवेशिया में भी ट्यूमररोधी रसायन कालवासिन पाया जाता है जो कैंसर के इलाज में लाभकारी है।
टेक्सस पादप की विभिन्न प्रजातियों से प्राप्त होने वाले फिनॉलिक टेक्सॉल में कैंसररोधी गुण पाए जाते हैं यह स्तन और अण्डाशय के कैंसर के इलाज में अत्यंत कारगर है मगर प्राकृतिक स्रोत कम होने से इसका चिकित्सा विज्ञान में उपयोग सीमित है। आधुनिक अनुसंधान से ज्ञात हुआ है कि टेक्सस पादप की छाल में पाए जाने वाले अंत:जीवी कवक एस्पर्जिलस और फ्यूजेरियम की प्रजातियाँ टेक्सॉल संश्लेषित करते हैं। इन कवकों का उपयोग संवर्धन माध्यम में टेक्सॉल उत्पादन को बढ़ाने में भी किया जाता है।
यह जानकर आश्चर्य होगा कि राई घास के अर्गट नामक रोग का कवक अब उपयोगी दवाइयों के रूप में काम में लिया जाता है। कवक के अर्गट कण (जिसे स्कलेरोशिया कहते हैं) से मिश्रित आटे के सेवन से मनुष्यों में हॉलीफायर नामक रोग की जानकारी मिलती है जिसे सेंट एन्थॉनीज फायर भी कहा जाता है। इसमें रोगी के शरीर में आग के समान जलन होने लगती है। कवक में पाए जाने वाले एल्केलॉइड्स जैसे अर्गटअमीन, अर्गोमेट्रीन और अर्गोनोवीन अब दवाइयों के रूप में बाजार में उपलब्ध हैं। शिशु जन्म के दौरान प्रसव पीड़ा प्रेरण और प्रसवोत्तर रक्तस्राव नियंत्रण में इनका उपयोग अचूक है। लाइसर्जिक एसिड डाइईथाइल अमाइड (एल एस डी) को कौन नहीं जानता है? मतिभ्रम रसायन के रूप में इसका उपयोग मनोरोग चिकित्सकों द्वारा मानसिक रूप से असंतुलित रोगियों के उपचार में किया जाता है।
खाद्य और औषधीय गुणों से परिपूर्ण कवकों के अलावा कुछ ऐसे सौंदर्यपरक कवक भी हैं जो अनायास ही ध्यान आकृष्ठ करते हैं। इन कवकों के फलनकाय विभिन्न सुंदर मनोहारी आकृतियाँ बनाते हैं। कवक साइएथस को नीड कवक भी कहते हैं। इस कवक के परिपक्व खोखले फलनकाय के अंदर छोटे, कठोर मसूर की आकृति की संरचनाएं सुव्यवस्थित होती हैं जो अण्डों से युक्त चिड़ियाँ के छोटे घोसले के समान प्रतीत होती हैं। कवक जीएस्ट्रम तारों के समान संरचना बनाता है और इसे अर्थस्टार कहा जाता है।
लाइकोपरडॉन को पफ बॉल या स्मोकिंग फंगस के नाम से भी जाना जाता है। इसकी बॉल सदृश फलनायक पर जब बारिश की बूँदे गिरती हैं तो यह इतनी बड़ी संख्या में बीजाणु उत्सर्जित करता है कि पूरा जंगल बीजाणुओं के बादलों से ढक जाता है। वाकई प्रकृति में कवकों का यह संसार कितनी विचित्रताओं से भरा है। सूक्ष्म और विशालकाय संरचना, अमृत और विष, रोग और उपचार, दर्द और दवा न जाने कितने विरोधाभासी गुणों को अपने में समेटे हुए हैं साधारण से दिखने वाले ये असाधारण कवक।
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