कुसुम की बढ़वार, उपज एवं जलोपभोग पर बुवाई के समय तथा नाइट्रोजन एवं सिंचाई के विभिन्न स्तरों का प्रभाव

कुसुम की फसल की बढ़ोत्तरी, उपज तथा जोलपभोग पर बुवाई के समय तथा नाइट्रोजन सिंचाई जल के विभिन्न स्तरों का अध्ययन करने के लिए राजस्थान के दक्षिणी भाग में स्थिति मटियार दोमट भूमि वाले कृषि अनुसंधान केंद्र, राजस्थान कृषि विश्विद्यालय, बांसवाड़ा पर लगातार दो वर्षों तक परीक्षण किया गया। स्पलीट प्लॉट डिजाईन पर किए गए इस परीक्षण में 4 बुवाई की तिथियों (15, 30 अक्टूबर एव 15, 30 नवम्बर) एवं 3 नाइट्रोजन के स्तरों (0,40,80 किग्रा./हे.) के संयोग मुख्य-क्षेत्र (मुख्य-भाग) तथा 3 सिंचाई जल-स्तर (असिंचित, एक सिंचाई-बीज बनते समय, दो सिंचाईयां-शाखा बनना +बीज बनना) उप भाग में रखकर चार पुनरावृत्तियां ली गई। परीक्षण से ज्ञात हुआ कि फसल के उपज बढ़ाने वाले अंग पछेती बोई गई फसल-30 नवम्बर वाली तिथि पर प्रभावी रूप में कम हो गये तथा 30 अक्टूबर वाली फसल की तुलना में यह कमी 20 से 45 प्रतिशत रही।

फसल में दो सिंचाईयां देने पर पौधों के उपज बढ़ाने वाले अंग जैसे ऊंचाई, शाखाएं/पौधा, डोडे/पौधा, बीजों की संख्या/डोडा तथा 1000 बीजों का भार असिंचित फसल की अपेक्षा 30 से 60 प्रतिशत अधिक थे। नाइट्रोजन की मात्रा देने से भी फसल के उपज बढ़ाने वाले अंगों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई। कुसुम की 30 अक्टूबर वाली फसल ने 24.64 क्विंटल रु. /हे.) 30 नवम्बर वाली फसल (16.33 क्विंटल/हे.) से 8.31 क्विंटल/हे. अधिक उपज दी जो 33.7 प्रतिशत अधिक थी। इसी प्रकार 40 और 80 किग्रा. नाइट्रोजन/हे. ने शून्य नाइट्रोजन वाली फसल से क्रमशः 55 और 63 प्रतिशत अधिक उपज दी। फसल में दो सिंचाईयां (शाखा बनना + बीज बनना) देने पर असिंचित फसल की अपेक्षा 9.16 क्विंटल/हे. (53 प्रतिशत) अधिक उपज प्राप्त हुई। कुसुम के लिए उपयुक्त एवं आर्थिक रूप से उपयुक्त नाइट्रोजन की मात्रा क्रमशः 66 एवं 63 किग्रा./हे. आई।

कुसुम सिंचाई जल की कमी में अच्छी उपज देने वाली एक रबी तिलहन फसल है। राजस्थान के दक्षिणी भाग में इस फसल का अभी 2-3 वर्षों से प्रचलन हुआ है। किसी भी फसल की बुवाई की तिथियों, नाइट्रोजन एवं सिंचाई जल की मात्रा का उसकी उपज पर विशेष प्रभाव पड़ता है। अभी किसानों के पास इस फसल की सस्य-क्रियाओं की पूर्ण जानकारी नहीं है। इसलिए इन सब बातों का पता लगाने के लिए यह परीक्षण किया गया है।

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