कुशल इंजीनियरिंग की मिसाल भोज के साढ़े बारह तालाब

धार जिले का भोज तालाब
धार जिले का भोज तालाब


धार। साढ़े बारह तालाबों की नगरी के नाम से पहचाने जाने वाले धार नगर से तालाब एक-एक करके मिटते जा रहे हैं। वर्षों पूर्व किसी समय जब इस शहर की जनसंख्या वर्तमान से करीब एक चौथाई थी तब यहाँ 12 बड़े तालाब व एक छोटी तलैया थी। तभी से धार को साढ़े बारह तालाबों का नगर कहा जाने लगा था। ये तालाब धार का सौन्दर्य तो बढ़ाते ही थे लेकिन भूजल स्तर को बढ़ाए रखने में भी सहायक होते थे।
नगर के पुराने लोग जानते हैं कि इस शहर में अनेक ऐसे कुएँ थे जो पानी से ऊपर तक भरे रहते थे केवल बाल्टी हाथ में लेकर कुएँ से पानी उलीचा जा सकता था। लेकिन जैसे-जैसे तालाब बर्बाद होते गए, भूमि का जलस्तर भी कम होता गया। अब हालात यह हैं कि 500 फीट तक नलकूप खोदने के बाद भी पानी का ठिकाना नहीं रहता। प्रसिद्ध देवीसागर तालाब, कुंज तालाब, मुंज तालाब, नंदसागर तालाब, धुप तालाब, लेंड्या तालाब, नटनागरा तालाब, कन्न तालाब, सिद्दनाथ तालाब, मसूरिया तालाब, पूर्णिया तालाब, सभी अब अपना अस्तित्व खो रहे हैं। इन तालाबों की बसाहट व इनके निर्माण तथा अपनी सम्बन्ध को बारीकी से देखें तो इसके पीछे हमें एक कुशल इंजीनियरिंग की मिसाल मिलती है। बरसात के दौरान एक तालाब भर जाने पर उसका ओवरफ्लो अतिरिक्त जल बहकर दूसरे तालाबों में चला जाता था। इस प्रकार बिना पानी की बर्बादी किये वर्षा के पानी को एकत्रित कर लिया जाता था।

 

यह है भोज का अद्भुत सिस्टम


कुंज तालाब का ओवरफ्लो होकर पानी मुंज तालाब में मिलता था। मुंज तालाब का अतिरिक्त पानी बहकर देवीसागर तालाब में देवीसागर तालाब का पानी नंदसागर में नंदसागर का अतिरिक्त पानी धुप तालाब में पहुँचता था। धुप तालाब का अतिरिक्त पानी गोबरिया खाल व सादी नदी से होकर दिलावरा नदी में पहुँच जाता था। इसी प्रकार ऑफिसर्स कॉलोनी के पास स्थित छोटी तलाई का पानी सिद्धनाथ तालाब में व वहाँ से पूर्णिमा तालाब, लेंड्या तालाब से होकर रायधसाड़ तालाब में पहुँचता था। धार नगर के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में स्थित कुंज व मुंज तालाब जो मिलकर एक हो गए हैं। अब छत्री तालाब के नाम से पहचाने जाते हैं। इन तालाबों के सौन्दर्य को देखकर धार के शासकों ने इसके किनारे छत्रिया बनवाई थीं लेकिन आज ये तालाब चारों तरफ से अतिक्रमण का शिकार हो गए हैं।

देवीजी रोड व बड़े गणपति मार्ग पर तो इस तालाब के किनारे की लगभग 60 प्रतिशत भूमि पर अतिक्रमणकारियों ने कब्जा कर लिया है। नगरपालिका प्रशासन ने भी कुछ दशक पहले गहरीकरण के नाम पर इस तालाब के सौन्दर्य को तो बिगाड़ा साथ ही इसकी जलग्रहण क्षमता भी कम कर दी। छत्री तालाब का दुर्भाग्य है कि इसके आसपास के किनारे पर रहने वाले लोग इसमें कचरा फेंकते हैं व इसके किनारे पर शौच के लिये जाते हैं, जिससे चारों तरफ का वातावरण बदबूदार बना रहता हैं। नौगाँव क्षेत्र से आने वाला एक गन्दा नाला भी इसमें आकर मिलता है, जो प्रतिदिन ढेर सारी गन्दगी इस तालाब में घोल देता है।

 

 

 

नगर की पश्चिम क्षेत्र में स्थित है देवी सागर तालाब

 


यह तालाब इन्दौर अहमदाबाद मार्ग पर स्थित है व सौन्दर्य की पुष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इस तालाब के मध्य एक छोटा टापू है। जिस पर नगरपालिका द्वारा उद्यान बनाया गया था जो देखरेख के अभाव में पूरी तरह से उजड़ गया है। तालाब की चौड़ाई धीरे-धीरे इतनी कम हो गई है कि यह उद्यान तालाब के बीच में न होकर एक तरफ खिसक गया है।

देवीसागर तालाब में भी खेती की जा रही है। इस तालाब में 6 से 10 फीट तक सिल्ट जम गई है। घाट टूट रहे हैं। इंदौर-अहमदाबाद मार्ग पर चलने वाले ट्रक व अन्य गाड़ियों वाले घाट पर अपनी गाड़ियाँ धोते हैं।

 

 

 

नगर के दक्षिण पश्चिम क्षेत्र में स्थित है नंदसागर तालाब


इस तालाब की पाल लोगों द्वारा तोड़ डाली गई है। इस वजह से इसमें थोड़ा भी पानी नहीं ठहरता है। यह तालाब धीरे-धीरे खेत के रूप में तब्दील होता जा रहा है। इस तालाब में भी लोगों द्वारा खेती की जा रही है। इसी के निकट स्थित धुप तालाब भी अपनी बर्बादी की ओर अग्रसर है। इसकी गहराई मिट्टी जमने से कम हो गई व क्षेत्रफल भी सिमट गया है। शहर के मध्य स्थित सिद्धनाथ तालाब कभी शहर का प्रसिद्ध दर्शनीय व पर्यटकों को पेयजल उपलब्ध कराने वाला तालाब खत्म हो गया है।

शहर के मध्य स्थित एक और पूर्णिया तालाब इतिहास के पन्नों में समा गया है। अधिकांश लोगों को अब इसकी जानकारी भी नहीं है कि पूर्णिया तालाब कहाँ स्थित था। शहर के घोड़ा चौपाटी से मात्र कुछ फर्लांग पर मांडू रोड स्थित इस तालाब में कॉलोनी बस गई है। प्रारम्भ में लोगों ने इसकी पाल तोड़ दी थी जब इसमें पानी इकट्ठा होना बन्द हो गया तो इस पर खेती होने लगी। कुछ वर्षों पूर्व इसकी भूमि पर कॉलोनी बस गई मांडू रोड पर नगर के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित मसूरिया तालाब केवल बरसात में ही दिखाई देता है। शेष समय सूखा पड़ा रहता है। इस वजह से इस पर गेहूँ की खेती होने लगी है।

प्रसिद्ध सौन्दर्य व पर्यटक स्थल नटनागरा तालाब भी वर्षों से उपेक्षा सहन कर रहा है। इस तालाब की गिनती नगर के पुराने सबसे बड़े और सर्वाधिक सौन्दर्य स्थल के रूप में होती है। आज भी इसके आसपास की प्राकृतिक दृश्यावली आत्मिक सुकून देती है, लेकिन उम्र के बढ़ने के साथ-साथ इसकी जलसंग्रहण क्षमता कम होती जा रही है। यही तालाब है जो गम्भीर जल संकट व तपती गर्मी के बावजूद जल संग्रह रखता है। यदी समय रहते इस पर ध्यान दिया जाये तो इसे पुनः नवजीवन प्रदान किया जा सकता है।

 

 

 

छोटे-छोटे डोबरों में बदल गया कन्ना तालाब


इसके चारों तरफ घनी झाड़ियाँ उग आई हैं। जिससे तालाब का स्वरूप दिखाई नहीं देता दक्षिण भाग में स्थित लेंड्या तालाब व हिम्मतगढ़ के रायधसाड़ तालाब की कहानी भी लगभग ऐसी ही है। धार के प्राकृतिक सौन्दर्य व पेयजल आपूति के प्रमुख आधार तालाबों की दुर्दशा के लिये लोगों के निहित स्वार्थ तो दोषी हैं ही, किंतु नागरिकों द्वारा तालाबों के प्रति बरती जा रही उदासीनता व उपेक्षा भी जिम्मेदार है।

वस्तुतः यह शहर के प्रति अक्षम्य अपराधों की श्रेणी में आता है। नगर पालिका में लापरवाही का आलम तो यह है कि वहाँ तालाबों की सूची तक नहीं है। यही नहीं शहर के नक्शो में केवल मुंज सागर, देवीसागर व नटनागरा तालाब का उल्लेख है।

 

 

 

 

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