कुओं में पानी की जगह शराब


यहाँ के कुओं से पानी उलीचेंगे तो शराब की तरह का लाल पानी ही निकलेगा। इस पानी से शराब की तरह की दुर्गन्ध आती है। इससे पानी दूषित हो चुका है। यह पीने के लिये तो दूर उपयोग करने लायक भी नहीं रह गया है। इसमें मछलियों और अन्य जीव भी जिन्दा नहीं रह पा रहे हैं। पानी का उपयोग करने वाले बीमार हो रहे हैं।

ग्रामीणों के मुताबिक यह पानी जहरीला हो चुका है। यह किसी एक कुँए की बात नहीं है, बल्कि इलाके के करीब आधा दर्जन से ज्यादा गाँवों में करीब पचास से ज्यादा कुओं की कहानी है। जमीनी पानी का दरअसल यहाँ पास ही में एक शराब कारखाना है, जिसके जहरीले अपशिष्ट सीधे जमीन में उतार दिये जाने से ऐसा हो रहा है।

मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में बडवाह के पास उमरिया और आसपास के करीब आधा दर्जन गाँवों के लोग तरह–तरह की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। यहाँ एक शराब कारखाने से निकलने वाले दूषित पानी और अपशिष्ट की वजह से समूचा पर्यावरण ही प्रदूषित हो रहा है। यहाँ के कुओं में बदबूदार लाल पानी आ रहा है तो जमीनी पानी भी खराब हो रहा है। किसानों का दावा है कि खेतों पर बने उनके सिंचाई कुओं में पानी तो दूषित है ही, इससे अब जमीन भी बंजर होने की कगार तक पहुँच रही है।

हालत यह है कि अब तो मिट्टी में भी इसका असर होने लगा है। बीते साल कुछ किसानों ने सब्जियाँ बोई थीं लेकिन प्रदूषण के असर से वे भी नष्ट हो गई। जमीन की उपजाऊ क्षमता खत्म हो रही है और फसलें लगातार चौपट हो रही है। किसानों को आशंका है कि यही हाल रहा तो कुछ सालों में उनकी जमीन ही बंजर बन जाएगी। इलाके के कई किसान कई बार प्रशासन को इसकी लिखित शिकायत कर चुके हैं पर कभी कोई मुकम्मिल कार्रवाई नहीं हो सकी है।

उमरिया के दीपक रावत बताते हैं कि उनके गाँव सहित आसपास के गाँवों में शराब फैक्टरी से निकलने वाले जहर का असर साफ दिखाई देने लगा है। इसकी शिकायत वे कई बार वरिष्ठ अधिकारियों को कर चुके हैं पर अब तक कोई यथोचित कार्रवाई नहीं की गई है। वे बताते हैं कि प्रदूषित पानी की वजह से उनके खेत में लगाई गई सब्जियाँ नष्ट हो गईं। उन्हें इससे काफी बड़ा आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा। इस पानी के पीने से कुछ पक्षियों और दो मवेशियों की मौतें भी हो चुकी हैं। अब मवेशी इसे सूँघकर ही रह जाते हैं। वे इसे पीते नहीं हैं। यह स्थिति सिर्फ उनके ही खेत की नहीं है, इसकी पुष्टि आसपास के दर्जन भर किसान भी ऐसा ही मानते हैं।

ग्रामीण बताते हैं कि पानी इस हद तक प्रदूषित हो रहा है कि इसमें मछलियाँ और अन्य जीव–जन्तु भी जिन्दा नहीं रह पा रहे हैं। पानी जहरीले स्तर तक प्रदूषित हो चुका है। शराब फैक्टरी से पहले इलाके में ऐसी कभी कोई परेशानी नहीं थी। यहाँ पानी में किसी तरह के जलीय जन्तु नजर नहीं आते। हमारे साथ मजबूरी यह है कि हम अपनी जमीन और जलस्रोत छोड़कर कहाँ जाएँ।

हमारी मजबूरी है इसी जगह रहना। फैक्टरी से आये दिन जहरीला पानी छोड़ा जाता है। अब तो पानी ही नहीं हमारी जमीनें भी बंजर बनती जा रही हैं। हर साल परेशानियाँ बढ़ रही हैं। न तो उपज अच्छी आती है और न ही मात्रा उतनी आ पाती है। खड़ी फसलें पानी में तेजाब की वजह से सूख जाती हैं।

ग्रामीणों ने जल परीक्षण भी कराया तो इसमें पानी अम्लीय पाया गया। इससे साफ है कि यहाँ के पानी में कुछ बाहरी रासायनिक तत्व मिल रहे हैं। ग्रामीण बताते हैं कि इसके हाथ लगाने भर से कई बीमारियाँ हो रही है। किसी को चर्म रोग तो किसी को पेट सम्बन्धी बीमारियाँ हो रही हैं। उमरिया गाँव में ही कई लोग ऐसी बीमारियों का शिकार मिले हैं। बच्चों और बुजुर्गों में इसका असर ज्यादा देखने में आता है।

रिपोर्ट के मुताबिक सामान्यतया पानी की पीएच वैल्यू सात होती है पर यहाँ के पानी की पीएच बैलेंस पाँच के आसपास ही मिलती है, जो सामान्य से काफी नीचे है। इसी तरह यहाँ पानी में टीडीएस भी पाँच से दस गुना तक ज्यादा है। जल वैज्ञानिक मानते हैं कि इस पानी में अम्लीयता बहुत है। इसी वजह से यहाँ जलीय जन्तु नहीं पनप पा रहे हैं और न ही ये पानी पीने योग्य है। यह पानी मानव जीवन के लिये घातक हो सकता है।

किसानों का मानना है कि फैक्टरी से जो गन्दा और केमिकलयुक्त पानी निकलता है, उसी के चलते उनके जलस्रोत और खेतों की जमीनें खराब हो रही हैं। आसपास के बोरिंग और हैंडपम्प भी बदबूदार लाल पानी उलीचते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि बारिश के दौरान फैक्टरी का दूषित पानी नालों और पास की नदी में छोड़ दिया जाता है। इससे दूर–दूर तक इसका असर फैल रहा है। उन्होंने जिला अधिकारियों से फैक्टरी संचालक के खिलाफ दण्डात्मक कार्रवाई की माँग करते हुए किसानों को मुआवजा देने की माँग की है।

उधर इस मामले में प्रशासन का अलग ही रवैया है। किसानों ने मामले में एसपी अमित सिंह से बात की पर उन्होंने इस मामले में किसी हस्तक्षेप से इनकार करते हुए किसानों को बताया कि इसके लिये वे जिला प्रशासन को अपनी बात कहें। इसमें पुलिस कार्रवाई सम्भव नहीं है।


फैक्टरी से जो गन्दा और केमिकलयुक्त पानी निकलता है, उसी के चलते उनके जलस्रोत और खेतों की जमीनें खराब हो रही हैं। आसपास के बोरिंग और हैंडपम्प भी बदबूदार लाल पानी उलीचते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि बारिश के दौरान फैक्टरी का दूषित पानी नालों और पास की नदी में छोड़ दिया जाता है। इससे दूर–दूर तक इसका असर फैल रहा है। किसानों ने जिला अधिकारियों से फैक्टरी संचालक के खिलाफ दण्डात्मक कार्रवाई की माँग करते हुए किसानों को मुआवजा देने की माँग की है। किसान बताते हैं कि खरगोन जिले के संयुक्त कलेक्टर ने बीते महीने 10 जून 16 को तहसीलदार, बडवाह को पत्र क्र. 055भू अभि4 2016 में इस मामले की जाँच के लिये उन्हें नियुक्त किया था लेकिन करीब एक महीने बाद 5 जुलाई तक यह पत्र खरगोन से बडवाह ही नहीं पहुँच पाया।

किसानों के पास इसकी छायाप्रति है पर बडवाह के तहसीलदार अवधेश चतुर्वेदी बताते हैं कि उन्हें अब तक इस आशय का कोई पत्र ही प्राप्त नहीं हुआ है। वे पत्रकारों से बात करते हुए कहते हैं कि किसानों की बात गम्भीरता से सुनी जाएगी पर आज तक न तो उन्होंने कभी कोई जाँच की और न ही कभी वरिष्ठ अधिकारियों को इसकी कोई सूचना दी। यहाँ तक कि जाँच के लिये जिला मुख्यालय से महीने भर पहले चले पत्र को भी वे नकार रहे हैं।

उनके इस रवैए से नाराज किसानों ने इस मामले में जिला कलेक्टर अशोक कुमार से मामले की शिकायत तस्वीरों और यहाँ के पानी का प्रमाण देकर की तो उन्होंने तत्काल सात अधिकारियों की टीम गठित कर उमरिया और अन्य गाँवों में भेजा। टीम ने फिलहाल कुओं के पानी के सैम्पल लिये हैं। हालांकि बारिश में मिट्टी गीली होने से मिट्टी के सैम्पल नहीं लिये जा सके।

शुरुआती जाँच में ही अधिकारियों ने यहाँ प्रदूषण की बात मानी है पर उन्होंने ऑन रिकार्ड कुछ भी कहने से इनकार कर दिया। उन्होंने बताया कि सैम्पल की जाँच रिपोर्ट आने के बाद ही वे कुछ कह सकेंगे। उन्होंने स्थानीय किसानों से भी इस बाबत बात कर उनके बयान भी दर्ज किये हैं। राजस्व अधिकारी मानसिंह ठाकुर और जल संसाधन विभाग के एसडीओ एमसी शर्मा ने बताया कि जाँच रिपोर्ट आने के बाद हम अपनी रिपोर्ट जिला कलेक्टर को सौंपेंगे।

किसान यहाँ-वहाँ शिकायत कर–करके थक गए हैं पर अभी तक मामले में कोई हल नहीं निकला है। सैम्पल रिपोर्ट की जाँच कब आएगी और कब उन्हें न्याय मिलेगा और तब भी उनकी सुनी जाएगी या नहीं, उन्हें नहीं पता। इस बार वे अपने खेतों में बोवनी करें या खेत सूखे ही छोड़ दें, इस बात का जवाब किसी अधिकारी के पास फिलहाल तो नहीं है। दीपक के शब्दों में कहें तो हमारे लिये जीवन–मरण का सवाल है। कर्ज लेकर खेत में बोएँ और बीते साल की तरह फसल बिगड़ जाये तो... और नहीं बोएँ तो साल भर हम और हमारे बच्चे क्या खाएँगे।

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Post By: RuralWater
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