कुदरती खेतीः कुछ तरीके

1. इस तरह की खेती में दो चीजें जरूरी हैं। एक तो, कम से कम एक पशु का गोबर और पेशाब। देसी गाय को ज्यादा फायदेमन्द बताया गया है। इसलिये शुरू में कम से कम एक देसी गाय जरूर पालें या पड़ौसी या गउशाला से गोबर और पेशाब नियमित तौर पर लेने का प्रबन्ध करें। दूसरी जरूरत है किसी भी तरह की वनस्पति, पत्ते, पराल इत्यादि यानी बायोमास की पर्याप्त मात्रा। अगर यह आपके पास है तो ठीक, नहीं तो शुरू में मोल ले सकते हैं या आसपास से इकट्ठा कर सकते हैं। बाद में बाहर से लाने की जरूरत नहीं रहेगी।

2. हमें प्रति एकड़ प्रति फ़सल केवल 150-200 किलो देसी खाद की ही ज़रुत पड़ेगी। ट्राली भर-भर के डालने की ज़रुत नहीं है परन्तु यही ठीक तरीके से बनी हो। गोबर से खाद बनाने के कई तरीके हैं। एक तो केवल गोबर की खाद है, जिसे हम कुरड़ी की खाद कहते हैं। दूसरे तरीके में हम गोबर और बायोमास को मिला कर बनाते हैं। इसे कम्पोस्ट कहते हैं। कम्पोस्ट खाद बनाने की भी कई विधयाँ हैं। केचुओं की सहायता से वर्मी कम्पोस्ट भी बनाया जाता है। परन्तु वर्मी कम्पोस्ट आम तौर पर बेचने के लिये व्यवसायिक तौर पर बनाया जाता है। छोटे किसान के लिये तो गोबर की/कुरड़ी की खाद और कम्पोस्ट ही उपयुक्त हैं (और समय के साथ खेत में ही केचुएँ पैदा हो जाते हैं)। इनके बनाने की विधियाँ अलग से दी गई है। (पृष्ठ 31-38पर)

3. बैलों से जुताई करना सब से अच्छा है। अगर ट्रैक्टर का प्रयोग करें तो हल्के से हल्के ट्रेक्टर का प्रयोग करें ताकि न तो मिट्टी की सख्त परत बने (धरती में लैंटर न पड़े) और न ही मिट्टी के जीवाणुओं को नुकसान हो। बाद में तो बिना जुताई के भी खेती हो जाती है।

4. मूल फ़सल लेने से पहले जल्दी उगने वाली सब तरह की फ़सलों की, विशेष तौर पर फलियों वाली फ़सलों या दलहन (जिस के दाने के दो हिस्से हो जाते हों) की बुआई कर के 30 दिन का होने पर उस को हल्की जुताई कर के या भारी मेज़ मार कर कुचल दें। मिट्टी में दबाने की ज़रुरत नहीं है। आम तौर पर हरी खाद के लिये केवल ढैंचे का प्रयोग किया जाता है परन्तु इस तरह की हरी खाद के लिये कई मौसमी फ़सलों का मिला कर प्रयोग करना ज्यादा अच्छा है।

5. अच्छे देसी तथा उन्नत किस्म के बीजों का चुनाव करना चाहिये। वैसे तो अपना बीज ही तैयार करना चाहिये। अपना बीज तैयार करने के बारे में अलग से बताया गया है। (पृष्ठ 41पर) अच्छा बीज चुनने के बाद, बोने से पहले बीज-उपचार एवं अंकुरण टैस्ट करना चाहिये। इनकी विधि अलग से दी गई है।(पृष्ठ 38 पर)

6. जैसे कि पहले बताया गया है क़ुदरती खेती बहुफ़सली खेती है। इसलिये एक समय पर, एक किल्ले में, एक से ज्यादा फ़सलों को बोना चाहिये। मिश्रित फ़सलों के कुछ उदाहरण अलग से दिये गये हैं। (पृष्ठ 17 पर।)

7. क़ुदरती खेती में भूमि को ढक कर रखने का विशेष महत्व है। इसके लिये हर तरह की वनस्पति/बायोमास का प्रयोग किया जा सकता है। एक तरह के बायोमास के स्थान पर कई प्रकार की वनस्पति का मिला कर प्रयोग ज्यादा लाभदायक रहता है। यह ध्यान रहे कि बायोमास इतना छोटा न हो कि परत बन कर जम जाये और मिट्टी में हवा के आने जाने में रुकावट बने। न ही यह बहुत मोटा और लम्बा होना चाहिये। विशेष तौर से अगर फुटाव से पहले आच्छादन कर रहे हैं तो, चौड़े पत्ते और मोट टहनी नहीं प्रयोग करनी चाहिये। पराली इत्यादि के 3-4 इंच के टुकड़े कर के बिछाना ज्यादा अच्छा रहता है। टुकड़े करने के लिये गंडासे का एक फरसा निकाला जा सकता है या हाथ के गंडासे का प्रयोग कया जा सकता है।

8. शुरुआत में हर पानी के साथ जीवामृत/तरल खाद देना अच्छा रहता है। पानी न देना हो तो भी महीने में एक बार जीवामृत/तरल खाद मिट्टी में स्प्रे कर दें। जीवामृत या तरल खाद बनाने की विधि अलग से दी गई है। (पृष्ठ 33 पर) 2-4 साल बाद जीवामृत या तरल खाद का प्रयोग घट जाता है।

9. कीट नियन्त्रण के लिए कुछ विशेष फ़सलों की इकट्ठी खेती अच्छी रहती है। इन में से एक फ़सल फंदे का काम करती है। क्योंकि कीटों का हमला इस फ़सल पर ज्यादा होता है इसलिये मुख्य फ़सल बच जाती है - जैसे कपास में मक्का, अरहर या बाजरा, गेहूँ में धनिया या सरसों, टमाटर में गैंदा इत्यादि फंदे का काम करते हैं। फिर भी यदि कीटों का हमला होता है तो छान कर जीवामृत का छिड़काव किया जा सकता है या अन्य घरेलू दवाईयों का प्रयोग किया जा सकता है। इनके बारे में अलग से (पृष्ठ 42 पर)। बताया गया है।

10. अगले पन्नों पर ऊपर लिखित बातों के अलावा नील गाय नियंत्रण (पृष्ठ 45 पर), धान की बुआई के नई विधि (पृष्ठ 45 पर), हरियाणा की पारम्परिक खेती के जानकार एक सेवानिवृत्त कृषि अधिकारी के सुझाव (पृष्ठ 47 पर), रसायन मुक्ति प्रमाण पत्र प्राप्ति (पृष्ठ 49 पर), शहरों में छत पर खेती (पृष्ठ 49 पर), और कुदरती खेती के बारे में कुछ भ्रांतियां (अंतिम पृष्ठ) पर विशेष सामग्री है। आलेख पृष्ठ 50 पर जारी है।

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