असम के दो भाइयों की अनोखी कहानी दी जा रही है। इन दोनों ने अपनी प्रतिभा और कौशल के बल पर न केवल सिंचाई की अपनी समस्या का समाधान निकाला बल्कि अब वे अन्य लोगों को भी अपना जीवन-स्तर सुधारने में मदद कर रहे हैं।विकास प्रक्रिया को और भी समावेशी बनाने के लिए ग्राम अथवा कस्बा स्तर पर आम लोगों द्वारा किए जा रहे रचनात्मक और अभिनव प्रयोगों का सहारा लिए बिना काम नहीं बनेगा। उससे बचने का कोई रास्ता नहीं है। इनमें से अनेक प्रयोगों से नये रास्ते तैयार करने में मदद मिलती है, जिनसे उत्पादकता में सुधार लाया जा सकता है और रोजगार पैदा किया जा सकता है। हो सकता है कि किसी खास नवप्रवर्तक का उद्देश्य सिर्फ अपनी समस्या का समाधान करना हो। उसके लिए अपने ज्ञान, नवप्रयोग और अभ्यास को अन्य किसी को बताने का कोई कारण नहीं है।
कभी-कभी मौखिक रूप से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचते-पहुँचते विचार और नवप्रयोग बिखर जाते हैं। परन्तु कई बार ये विचार स्थान विशेष में ही सीमित रह जाते हैं। इस प्रक्रिया में सम्भावित विकास और सामाजिक विकास में बाधा आती है। इस लेख में असम के दो भाइयों की अनोखी कहानी दी जा रही है। इन दोनों ने अपनी प्रतिभा और कौशल के बल पर न केवल सिंचाई की अपनी समस्या का समाधान निकाला बल्कि अब वे अन्य लोगों को भी अपना जीवन-स्तर सुधारने में मदद कर रहे हैं। अपने मूल स्थान से करीब ढाई हजार किलोमीटर की दूरी तय करते हुए यह तकनीक गुजरात जा पहुँची है, जहाँ यह अनुभव किया जा रहा है कि इससे लाखों लोगों का जीवन सुधारा जा सकता है। इस प्रकार, यह कहानी देश के एक भाग से दूसरे में, समाज की बेहतरी के लिए विचारों के परागण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हो गई है।
असम में दरांग के रहने वाले मेहतर और उसके भाई मुश्ताक को जाड़ों के मौसम में धान (जिसे बोडो धान भी कहते हैं) की खेती के लिए कुएँ से सिंचाई करनी होती थी। लगातार हैण्ड पम्प चलाने में काफी मेहनत लगती थी और यह उबाऊ भी था। इसी तरह डीजल पम्प सेट से सिंचाई काफी खर्चीला पड़ता था। मेहतर अपनी समस्या के बारे में बराबर सोचता रहता और उसके समाधान की तलाश में रहता। इसी उधेड़बुन में रहते हुए उसकी निगाह एक सिलाई मशीन पर जा टिकी। उसने देखा कि हाथ से चलने वाले चक्के की चक्राकार हरकत से सुई ऊपर और नीचे हो रही थी। इसका उसके मन में गहरा प्रभाव पड़ा, और यही आगे जाकर उस समाधान की नींव बनी, जो वह करने वाला था।
एक दिन जब वह अपने खेत के पास हरी-हरी घास के पास अलसाया-सा बैठा हुआ बादलों की ओर देख रहा था, उसने आकाश में एक पतंग उड़ते हुए देखी। अचानक हवा का एक झोंका आया और पतंग को और ऊँचाई पर ले गया। इसी से उसके दिमाग में पवन शक्ति का दोहन करने की बात कौंधी। उसके दिमाग में अपनी समस्या के समाधान के लिए जो विचार आ-जा रहे थे, उनको अमल में लाने के लिए उसने पवन शक्ति का उपयोग करने के बारे में सोचा।
वह इस नतीजे पर पहुँचा कि यदि एक ऐसा बड़ा पहिया (चक्का) बनाया जा सके, जो पवन ऊर्जा से चले, और इस चक्के (टर्बाइन) को हैण्ड पम्प के हत्थे (हैण्डल) से जोड़ा जा सके तो वह सम्भव है कि टर्बाइन के घूमने के गति से हैण्ड पम्प लगातार चलते हुए पानी खींच सके। यही सोच कर उसने बाँस की बनी हुई पवन चक्की तैयार की।
यद्यपि इस पवन चक्की का कार्य करने का सिद्धान्त पारम्परिक पवन चक्कियों की तरह ही है, तथापि आसानी से उपलब्ध बाँस जैसे कम लागत वाले सामान का इस्तेमाल और नलकूप से पानी खींचने के लिए हैण्ड पम्प को स्वचालित ढंग से ठेलना, नवप्रवर्तक का योगदान ही कहलाएगा। इसे एक प्रकार से नयी खोज ही कहा जा सकता है।
राष्ट्रीय नवप्रवर्तन फाउण्डेशन (एनआईएफ) ने ‘हनी बी नेटवर्क’ की सहायता से इसे और इस तरह के अनेकों उदाहरणों का विस्तार से विवरण तैयार कर उन्हें दस्तावेजी रूप दिया है। हनी बी नेटवर्क (एचबीएन) पिछले बीस वर्षों से देश के अल्प परिचित और अल्पज्ञात स्थानों से इसी तरह की प्रतिभाओं की खोज करने का काम कर रही है। हनी बी नेटवर्क से प्रेरणा लेकर भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने 2000 में राष्ट्रीय नवप्रवर्तन फाउण्डेशन (एनआईएफ) का गठन किया, जो समाज के असंगठित क्षेत्रों में हो रहे नवप्रवर्तनों की नाप-जोख का काम कर रहा है और उनको आवश्यक सहारा और समर्थन प्रदान कर रहा है।
एचबीएन के योगदान से एनआईएफ ने देश के 450 जिलों से एक लाख से अधिक विचारों, नवप्रवर्तनों और पारम्परिक ज्ञान के उपयोगों का डाटाबेस (आँकड़ों का संचय) तैयार किया है। सीएसआईआर (वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसन्धान परिषद) आईसीएमआर (भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद), बीएसआई (भारतीय मानक ब्यूरो) और अन्य अनुसन्धान एवं विकास संस्थानों के सहयोग से एनआईएफ इन प्रौद्योगिकियों को सत्यापित करने और उनके मूल्य संवर्धन में मदद करता है। पेटेण्ट फर्मों के साथ प्रोबोनो (जनहित में की गई) व्यवस्था ने एनआईएफ को नवप्रवर्तकों की ओर से 182 खोजों के पेटेण्टों को दाखिल कराने में मदद की है। इनमें से सात अमेरिका में दाखिल की गई हैं। इसके अलावा एक पीसीटी प्रार्थनापत्र भी है।
इस नवप्रवर्तित पवन चक्की को गुजरात में कच्छ के दलदली इलाकों के नमक के थालों में अपनाया जा रहा है। नमक बनाने के लिए नमक किसानों को जमीन के नीचे से नमकीन पानी खींचना पड़ता है। इसके लिए वे आमतौर पर डीजल पम्प का उपयोग करते हैं।पारम्परिक ज्ञान और नवप्रवर्तनों के 27 पेटेण्ट भारत में मान्य हो चुके हैं और चार अमेरिका में। एनआईएफ के माइक्रोवेंचर इनोवेशन फण्ड (एमवीआईएफ) ने 113 परियोजनाओं के लिए जोखिम पूँजी प्रदान की है, जो नतीजे देने की विभिन्न स्तरों पर हैं। कुल मिलाकर एक करोड़ रुपए से अधिक की राशि वितरित की जा चुकी है। एनआईएफ को 55 देशों से करीब चार सौ उत्पादों के बारे में जानकारी देने के आवेदन मिले हैं। विभिन्न प्रौद्योगिकियों वाले इन उत्पादों के बारे में विदेशों में जो उत्सुकता देखी गई है, उससे स्पष्ट होता है कि एनआईएफ पाँचों महाद्वीपों में इन उत्पादों का व्यवसायीकरण करने में सफल रही है। इसके अलावा एनआईएफ ने अन्य भागीदार एजेंसियों की मदद से प्रौद्योगिकियों के लाइसेंस प्रदान करने के तीस मामले भी बखूबी निपटाए हैं। किसानों के सामाजिक सम्पर्कों के माध्यम से भी सैकड़ों प्रौद्योगिकियों का वितरण हो चुका है अर्थात वे लोगों तक चुपचाप पहुँच गई हैं।
इस विशेष मामले में, एनआईएफ ने अपने चौथे राष्ट्रीय द्विवार्षिक प्रतिस्पर्धा में इसे नवप्रवर्तन के रूप में स्वीकार किया और नवप्रवर्तक के नाम पर भारत में अस्थायी पेटेण्ट के लिए आवेदन दिया। एनआईएफ ने अपने गुवाहाटी कार्यालय के जरिये नवप्रवर्तक का समर्थन भी किया और अपने नवप्रवर्तन के आने और विकास के लिए सिडबी (एसआईडीबीआई) समर्थित एमवीआईएफ से सहायता भी दिलाई।
इस नवप्रवर्तित पवन चक्की को गुजरात में कच्छ के दलदली इलाकों के नमक के थालों में अपनाया जा रहा है। नमक बनाने के लिए नमक किसानों को जमीन के नीचे से नमकीन पानी खींचना पड़ता है। इसके लिए वे आमतौर पर डीजल पम्प का उपयोग करते हैं। इसके ईन्धन और सन्धारण पर प्रति मौसम पचास-साठ हजार रुपए का खर्च आता है। नमक किसानों को प्रायः डीजल और उससे चलने वाले पम्पों के लिए काफी ऊँची दरों पर कर्ज लेना पड़ता है। पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथ-साथ इन पम्पों की आवाज वन्य-जीवन को भी बाधित करती है।
यहाँ पर विचार यह था कि पवन चक्की से जुड़े हैण्ड पम्प का इस्तेमाल नमक बनाने के लिए जमीन के नीचे का नमकीन पानी खींचने के लिए करना था। उस पर आने वाले खर्च में कमी लाना तथा पर्यावरण के अनुकूल समाधान भी उनके जेहन में था। नमक किसानों ने इस पवन चक्की में काफी दिलचस्पी दिखाई। तद्नुसार जनवरी 2008 में ग्रासरूट्स इनोवेशन ऑगमेण्टेशन नेटवर्क वेस्ट (जीआईएएनडब्ल्यू) ने अहमदाबाद स्थित गैर-सरकारी संगठन ‘विकास एण्ड सेव’ के साथ मिलकर कच्छ की खाड़ी (लिटिल रन) इलाके में प्रयोगात्मक प्रदर्शन किया। जीआईएएनडब्ल्यू जमीनी स्तर की प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने वाली अहमदाबाद स्थित संस्था है जबकि ‘विकास एण्ड सेव’ गुजरात के नमक किसानों के सशक्तीकरण के लिए काम करने वाला गैर-सरकारी संगठन है। यह भी अहमदाबाद में ही स्थित है। दोनों भाई असम से कच्छ की खाड़ी के धांगध्रा में नमक श्रमिकों के साथ काम करने और स्थानीय रूप से उपयुक्त मॉडल विकसित करने के लिए आए थे।
प्राप्त जानकारी और प्रतिक्रिया के आधार पर जीआईएएनडब्ल्यू ने उसकी डिजाइन को सुधार कर बहुविधायी प्रारूप का विकास किया और ‘विकास’ की सहायता से कच्छ की खाड़ी में और आगा खाँ रूरल सपोर्ट प्रोग्राम की मदद से ससनगिर में स्थापित किया। अप्रैल 2008 में लगाए गए इन मॉडलों को लगाने का उद्देश्य नलकूप से पानी खींचना था। एक और नवप्रवर्तक बानजी भाई मधूकिया की मदद से, जीआईएएनडब्ल्यू ने जुलाई 2008 में गुजरात के जूनागढ़ जिले के कालाबाड़ गाँव में एक स्थिर पवन चक्की लगवाई।
बाँस की मौलिक पवन चक्की की कीमत जहाँ करीब 5,000 रुपए आई थी, वहीं लोहे के कलपुर्जों वाली, परन्तु स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल पवन चक्की की कीमत 25-30 हजार रुपए आती थी। किसी ने सोचा भी नहीं था कि इतनी कम कीमत में भी पवन चक्की तैयार हो सकती है। पवन चक्की के निर्माण की लागत ईन्धन और सन्धारण के व्यय में होने वाली बचत को देखते हुए, पहले मौसम में ही निकल सकती है। इस नवप्रवर्तन से नमक किसान थोड़े ही समय में आत्मनिर्भर बन सकते हैं, ऐसी सम्भावना है।
पिछले कुछ वर्षों में एनआईएफ ने साबित कर दिया है कि भारतीय नवप्रवर्तक समस्याओं का समाधान सृजनात्मक तौर पर करने में विश्व में किसी से भी पीछे नहीं हैं। स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर खर्च में टिकाऊ समाधान खोजने में वे औरों से आगे ही रहते हैं। जो लोग गरीबों को केवल सस्ती वस्तुओं के उपभोक्ता के रूप में देखते हैं जमीनी स्तर पर प्रवाहित ज्ञान की गंगा को नहीं देख पाते। निर्धन व्यक्ति प्रदाता भी हो सकता है।
एनआईएफ ‘ग्रासरूट्स टू ग्लोबल’ (जनसाधारण से वैश्विक-टी2जी) प्रकार के जिन प्रादर्शों का प्रचार कर रहा है वह जमीनी स्तर पर आमलोगों की रचनात्मकता और नवप्रवर्तन के बारे में विश्व के देखने का नजरिया बदल देगा। अपनी छठी द्विवार्षिक राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए एनआईएफ ने ऐसे नवप्रवर्तक छात्रों, कारीगरों, मछुआरों, महिलाओं, वैद्यों-हकीमों और अन्य लोगों से प्रविष्टियाँ माँगी हैं जो साधारण इंसान है और आम लोगों के बीच काम कर रहे हैं। उनका पता है− पोस्ट बाक्स नं. 15051, अम्बावाड़ी, अहमदाबाद, 380015। प्रविष्टियाँ भेजने से campaign@nifindia.org पर ई-मेल भी कर सकते हैं। वेबसाइट www.nifindia.org पर पुरस्कृत नवप्रवर्तनों के उदाहरण देखे जा सकते हैं।
वे लोग जो स्थायी व्ययसाध्य प्रौद्योगिकियों में भारत को वैश्विक स्तर पर नेतृत्व करने देखने के इच्छुक हैं, वे जनसाधारण के इस नवप्रवर्तन आन्दोलन में भाग लेने के लिए एनआईएफ से सम्पर्क कर सकते हैं और अपने विचारों तथा दृष्टि का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
(ई-मेल : campaign@nifindia.org)
कभी-कभी मौखिक रूप से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति तक पहुँचते-पहुँचते विचार और नवप्रयोग बिखर जाते हैं। परन्तु कई बार ये विचार स्थान विशेष में ही सीमित रह जाते हैं। इस प्रक्रिया में सम्भावित विकास और सामाजिक विकास में बाधा आती है। इस लेख में असम के दो भाइयों की अनोखी कहानी दी जा रही है। इन दोनों ने अपनी प्रतिभा और कौशल के बल पर न केवल सिंचाई की अपनी समस्या का समाधान निकाला बल्कि अब वे अन्य लोगों को भी अपना जीवन-स्तर सुधारने में मदद कर रहे हैं। अपने मूल स्थान से करीब ढाई हजार किलोमीटर की दूरी तय करते हुए यह तकनीक गुजरात जा पहुँची है, जहाँ यह अनुभव किया जा रहा है कि इससे लाखों लोगों का जीवन सुधारा जा सकता है। इस प्रकार, यह कहानी देश के एक भाग से दूसरे में, समाज की बेहतरी के लिए विचारों के परागण की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हो गई है।
असम में दरांग के रहने वाले मेहतर और उसके भाई मुश्ताक को जाड़ों के मौसम में धान (जिसे बोडो धान भी कहते हैं) की खेती के लिए कुएँ से सिंचाई करनी होती थी। लगातार हैण्ड पम्प चलाने में काफी मेहनत लगती थी और यह उबाऊ भी था। इसी तरह डीजल पम्प सेट से सिंचाई काफी खर्चीला पड़ता था। मेहतर अपनी समस्या के बारे में बराबर सोचता रहता और उसके समाधान की तलाश में रहता। इसी उधेड़बुन में रहते हुए उसकी निगाह एक सिलाई मशीन पर जा टिकी। उसने देखा कि हाथ से चलने वाले चक्के की चक्राकार हरकत से सुई ऊपर और नीचे हो रही थी। इसका उसके मन में गहरा प्रभाव पड़ा, और यही आगे जाकर उस समाधान की नींव बनी, जो वह करने वाला था।
एक दिन जब वह अपने खेत के पास हरी-हरी घास के पास अलसाया-सा बैठा हुआ बादलों की ओर देख रहा था, उसने आकाश में एक पतंग उड़ते हुए देखी। अचानक हवा का एक झोंका आया और पतंग को और ऊँचाई पर ले गया। इसी से उसके दिमाग में पवन शक्ति का दोहन करने की बात कौंधी। उसके दिमाग में अपनी समस्या के समाधान के लिए जो विचार आ-जा रहे थे, उनको अमल में लाने के लिए उसने पवन शक्ति का उपयोग करने के बारे में सोचा।
वह इस नतीजे पर पहुँचा कि यदि एक ऐसा बड़ा पहिया (चक्का) बनाया जा सके, जो पवन ऊर्जा से चले, और इस चक्के (टर्बाइन) को हैण्ड पम्प के हत्थे (हैण्डल) से जोड़ा जा सके तो वह सम्भव है कि टर्बाइन के घूमने के गति से हैण्ड पम्प लगातार चलते हुए पानी खींच सके। यही सोच कर उसने बाँस की बनी हुई पवन चक्की तैयार की।
यद्यपि इस पवन चक्की का कार्य करने का सिद्धान्त पारम्परिक पवन चक्कियों की तरह ही है, तथापि आसानी से उपलब्ध बाँस जैसे कम लागत वाले सामान का इस्तेमाल और नलकूप से पानी खींचने के लिए हैण्ड पम्प को स्वचालित ढंग से ठेलना, नवप्रवर्तक का योगदान ही कहलाएगा। इसे एक प्रकार से नयी खोज ही कहा जा सकता है।
राष्ट्रीय नवप्रवर्तन फाउण्डेशन (एनआईएफ) ने ‘हनी बी नेटवर्क’ की सहायता से इसे और इस तरह के अनेकों उदाहरणों का विस्तार से विवरण तैयार कर उन्हें दस्तावेजी रूप दिया है। हनी बी नेटवर्क (एचबीएन) पिछले बीस वर्षों से देश के अल्प परिचित और अल्पज्ञात स्थानों से इसी तरह की प्रतिभाओं की खोज करने का काम कर रही है। हनी बी नेटवर्क से प्रेरणा लेकर भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने 2000 में राष्ट्रीय नवप्रवर्तन फाउण्डेशन (एनआईएफ) का गठन किया, जो समाज के असंगठित क्षेत्रों में हो रहे नवप्रवर्तनों की नाप-जोख का काम कर रहा है और उनको आवश्यक सहारा और समर्थन प्रदान कर रहा है।
एचबीएन के योगदान से एनआईएफ ने देश के 450 जिलों से एक लाख से अधिक विचारों, नवप्रवर्तनों और पारम्परिक ज्ञान के उपयोगों का डाटाबेस (आँकड़ों का संचय) तैयार किया है। सीएसआईआर (वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसन्धान परिषद) आईसीएमआर (भारतीय चिकित्सा अनुसन्धान परिषद), बीएसआई (भारतीय मानक ब्यूरो) और अन्य अनुसन्धान एवं विकास संस्थानों के सहयोग से एनआईएफ इन प्रौद्योगिकियों को सत्यापित करने और उनके मूल्य संवर्धन में मदद करता है। पेटेण्ट फर्मों के साथ प्रोबोनो (जनहित में की गई) व्यवस्था ने एनआईएफ को नवप्रवर्तकों की ओर से 182 खोजों के पेटेण्टों को दाखिल कराने में मदद की है। इनमें से सात अमेरिका में दाखिल की गई हैं। इसके अलावा एक पीसीटी प्रार्थनापत्र भी है।
इस नवप्रवर्तित पवन चक्की को गुजरात में कच्छ के दलदली इलाकों के नमक के थालों में अपनाया जा रहा है। नमक बनाने के लिए नमक किसानों को जमीन के नीचे से नमकीन पानी खींचना पड़ता है। इसके लिए वे आमतौर पर डीजल पम्प का उपयोग करते हैं।पारम्परिक ज्ञान और नवप्रवर्तनों के 27 पेटेण्ट भारत में मान्य हो चुके हैं और चार अमेरिका में। एनआईएफ के माइक्रोवेंचर इनोवेशन फण्ड (एमवीआईएफ) ने 113 परियोजनाओं के लिए जोखिम पूँजी प्रदान की है, जो नतीजे देने की विभिन्न स्तरों पर हैं। कुल मिलाकर एक करोड़ रुपए से अधिक की राशि वितरित की जा चुकी है। एनआईएफ को 55 देशों से करीब चार सौ उत्पादों के बारे में जानकारी देने के आवेदन मिले हैं। विभिन्न प्रौद्योगिकियों वाले इन उत्पादों के बारे में विदेशों में जो उत्सुकता देखी गई है, उससे स्पष्ट होता है कि एनआईएफ पाँचों महाद्वीपों में इन उत्पादों का व्यवसायीकरण करने में सफल रही है। इसके अलावा एनआईएफ ने अन्य भागीदार एजेंसियों की मदद से प्रौद्योगिकियों के लाइसेंस प्रदान करने के तीस मामले भी बखूबी निपटाए हैं। किसानों के सामाजिक सम्पर्कों के माध्यम से भी सैकड़ों प्रौद्योगिकियों का वितरण हो चुका है अर्थात वे लोगों तक चुपचाप पहुँच गई हैं।
इस विशेष मामले में, एनआईएफ ने अपने चौथे राष्ट्रीय द्विवार्षिक प्रतिस्पर्धा में इसे नवप्रवर्तन के रूप में स्वीकार किया और नवप्रवर्तक के नाम पर भारत में अस्थायी पेटेण्ट के लिए आवेदन दिया। एनआईएफ ने अपने गुवाहाटी कार्यालय के जरिये नवप्रवर्तक का समर्थन भी किया और अपने नवप्रवर्तन के आने और विकास के लिए सिडबी (एसआईडीबीआई) समर्थित एमवीआईएफ से सहायता भी दिलाई।
इस नवप्रवर्तित पवन चक्की को गुजरात में कच्छ के दलदली इलाकों के नमक के थालों में अपनाया जा रहा है। नमक बनाने के लिए नमक किसानों को जमीन के नीचे से नमकीन पानी खींचना पड़ता है। इसके लिए वे आमतौर पर डीजल पम्प का उपयोग करते हैं। इसके ईन्धन और सन्धारण पर प्रति मौसम पचास-साठ हजार रुपए का खर्च आता है। नमक किसानों को प्रायः डीजल और उससे चलने वाले पम्पों के लिए काफी ऊँची दरों पर कर्ज लेना पड़ता है। पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथ-साथ इन पम्पों की आवाज वन्य-जीवन को भी बाधित करती है।
यहाँ पर विचार यह था कि पवन चक्की से जुड़े हैण्ड पम्प का इस्तेमाल नमक बनाने के लिए जमीन के नीचे का नमकीन पानी खींचने के लिए करना था। उस पर आने वाले खर्च में कमी लाना तथा पर्यावरण के अनुकूल समाधान भी उनके जेहन में था। नमक किसानों ने इस पवन चक्की में काफी दिलचस्पी दिखाई। तद्नुसार जनवरी 2008 में ग्रासरूट्स इनोवेशन ऑगमेण्टेशन नेटवर्क वेस्ट (जीआईएएनडब्ल्यू) ने अहमदाबाद स्थित गैर-सरकारी संगठन ‘विकास एण्ड सेव’ के साथ मिलकर कच्छ की खाड़ी (लिटिल रन) इलाके में प्रयोगात्मक प्रदर्शन किया। जीआईएएनडब्ल्यू जमीनी स्तर की प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने वाली अहमदाबाद स्थित संस्था है जबकि ‘विकास एण्ड सेव’ गुजरात के नमक किसानों के सशक्तीकरण के लिए काम करने वाला गैर-सरकारी संगठन है। यह भी अहमदाबाद में ही स्थित है। दोनों भाई असम से कच्छ की खाड़ी के धांगध्रा में नमक श्रमिकों के साथ काम करने और स्थानीय रूप से उपयुक्त मॉडल विकसित करने के लिए आए थे।
प्राप्त जानकारी और प्रतिक्रिया के आधार पर जीआईएएनडब्ल्यू ने उसकी डिजाइन को सुधार कर बहुविधायी प्रारूप का विकास किया और ‘विकास’ की सहायता से कच्छ की खाड़ी में और आगा खाँ रूरल सपोर्ट प्रोग्राम की मदद से ससनगिर में स्थापित किया। अप्रैल 2008 में लगाए गए इन मॉडलों को लगाने का उद्देश्य नलकूप से पानी खींचना था। एक और नवप्रवर्तक बानजी भाई मधूकिया की मदद से, जीआईएएनडब्ल्यू ने जुलाई 2008 में गुजरात के जूनागढ़ जिले के कालाबाड़ गाँव में एक स्थिर पवन चक्की लगवाई।
बाँस की मौलिक पवन चक्की की कीमत जहाँ करीब 5,000 रुपए आई थी, वहीं लोहे के कलपुर्जों वाली, परन्तु स्थानीय परिस्थितियों के अनुकूल पवन चक्की की कीमत 25-30 हजार रुपए आती थी। किसी ने सोचा भी नहीं था कि इतनी कम कीमत में भी पवन चक्की तैयार हो सकती है। पवन चक्की के निर्माण की लागत ईन्धन और सन्धारण के व्यय में होने वाली बचत को देखते हुए, पहले मौसम में ही निकल सकती है। इस नवप्रवर्तन से नमक किसान थोड़े ही समय में आत्मनिर्भर बन सकते हैं, ऐसी सम्भावना है।
पिछले कुछ वर्षों में एनआईएफ ने साबित कर दिया है कि भारतीय नवप्रवर्तक समस्याओं का समाधान सृजनात्मक तौर पर करने में विश्व में किसी से भी पीछे नहीं हैं। स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर खर्च में टिकाऊ समाधान खोजने में वे औरों से आगे ही रहते हैं। जो लोग गरीबों को केवल सस्ती वस्तुओं के उपभोक्ता के रूप में देखते हैं जमीनी स्तर पर प्रवाहित ज्ञान की गंगा को नहीं देख पाते। निर्धन व्यक्ति प्रदाता भी हो सकता है।
एनआईएफ ‘ग्रासरूट्स टू ग्लोबल’ (जनसाधारण से वैश्विक-टी2जी) प्रकार के जिन प्रादर्शों का प्रचार कर रहा है वह जमीनी स्तर पर आमलोगों की रचनात्मकता और नवप्रवर्तन के बारे में विश्व के देखने का नजरिया बदल देगा। अपनी छठी द्विवार्षिक राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए एनआईएफ ने ऐसे नवप्रवर्तक छात्रों, कारीगरों, मछुआरों, महिलाओं, वैद्यों-हकीमों और अन्य लोगों से प्रविष्टियाँ माँगी हैं जो साधारण इंसान है और आम लोगों के बीच काम कर रहे हैं। उनका पता है− पोस्ट बाक्स नं. 15051, अम्बावाड़ी, अहमदाबाद, 380015। प्रविष्टियाँ भेजने से campaign@nifindia.org पर ई-मेल भी कर सकते हैं। वेबसाइट www.nifindia.org पर पुरस्कृत नवप्रवर्तनों के उदाहरण देखे जा सकते हैं।
वे लोग जो स्थायी व्ययसाध्य प्रौद्योगिकियों में भारत को वैश्विक स्तर पर नेतृत्व करने देखने के इच्छुक हैं, वे जनसाधारण के इस नवप्रवर्तन आन्दोलन में भाग लेने के लिए एनआईएफ से सम्पर्क कर सकते हैं और अपने विचारों तथा दृष्टि का आदान-प्रदान कर सकते हैं।
(ई-मेल : campaign@nifindia.org)
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Post By: birendrakrgupta