सहारनपुर के नानौता विकास खंड के गांव खेमचंदपुर के लिए कृष्णा नदी काल बन चुकी है। शुगर मिल से निकलने वाले केमिकल युक्त अपशिष्ट ने कृष्णा नदी के पानी को काला कर दिया है। यही वजह है कि गांव का भूमिगत जल भी प्रदूषित हो चुका हैं। अब तक इस प्रदूषित जल से तीस ग्रामीण असमय काल के गाल में समा चुके हैं। हैंडपंपों से निकलने वाला दूषित जल पीकर गांव में घर-घर कैंसर, टीबी और त्वचा के रोगी तिल-तिल कर मरने को मजबूर हैं। गांव की बड़ी आबादी यहां से पलायन कर चुकी है, लेकिन शासन-प्रशासन ने इस गांव की ओर झांकने की जहमत तक नहीं उठाई है। जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर नानौता के गांव भनेड़ा खेमचंद को निर्मल गांव का दर्जा दिया गया था। गांव के प्रधान सुदेश राणा को राष्ट्रपति द्वारा पुरस्कार भी मिल चुका है। तीन हजार की आबादी वाले इस गांव से सटी कृष्णा नदी का जल कभी इतना निर्मल था कि लोग नदी के पानी को ही पीते थे।
यही कारण है कि गांव में कुआं तक नहीं था, लेकिन 1975 में नानौता में सरकारी शुगर मिल लगने के बाद ही इस गांव के दुर्दिन शुरू हो गए। शुगर मिल का केमिकल युक्त विषैला अपशिष्ट कृष्णा नदी में डाला जाने लगा और वर्तमान में हालत यह है कि इस नदी का पानी जहरीला हो गया है। यही विषैला जल जमीन के अंदर पहुंच जाने से हैंडपंप भी बदबूदार पीला पानी उगल रहे हैं। विषैले जल ने गांव की पूरी आबो-हवा को दूषित कर दिया है। इस गांव में घर-घर कैंसर, टीबी, चर्म रोग व पेट तथा आंत से संबंधित गंभीर बीमारियों के रोगी हो गए हैं। बीते माह अप्रैल में बारू सिंह, माला देवी, धारा, बुद्धू लुहार व सेवापाल की कैंसर व टीबी जैसी बीमारियों से मृत्यु हो चुकी है। दूषित जल पीने से 52 वर्षीया माला देवी के गुर्दे खराब हो गए थे और बाद में उसकी मृत्यु हो गई। इसी तरह चंद माह में गांव के मेहर सिंह, राजकुमार, रामशरण, शांति देवी, सेवाराम, सुखबीर सिंह, अशोक राणा, लक्ष्मणसिंह, अरम सिंह शर्मा आदि की दूषित जल के कारण कैंसर व अन्य बीमारियों से मौत हो चुकी है, जबकि 50 से ज्यादा लोग जिंदगी और मौत के बीच आज भी जूझ रहे हैं।
उनमें तीन पूर्व प्रधान भी शामिल हैं। मौत की नदी के भय से गांव से चंद वर्षों में ही 50 से ज्यादा परिवार पलायन कर चुके हैं। गांव के लोग कृष्णा नदी को अब मौत की नदी के नाम से पुकारने लगे हैं।विषैले पानी की वजह से फैली बीमारियों ने आसपास के क्षेत्र में इतना आतंक है कि लोग इस गांव में वैवाहिक संबंध जोड़ने को तैयार नहीं हैं। यूं तो यह मौत रूपी नदी अन्य गांवों से भी गुजरती है, पर अन्य गांवों की आबादी इसके तट से काफी दूर निवास करती है। इसके चलते इन गांवों में इतना असर नहीं। मामले की शिकायत मुख्यमंत्री मायावती से लेकर कांग्रेस महासचिव अशोक गहलौत तक से की गई 8 अगस्त 2006 को तत्कालीन डीएम को कार्रवाई के निर्देश भी दिए थे, पर समस्या का कोई समाधान नहीं हो पाया। भनेड़ा खेमचंद गांव के लिए अभिशाप बनी कृष्णा नदी के जल की 6 साल पहले की गई जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए थे। इस पर नदी को मृत घोषित कर दिया गया था। फिर भी नदी के जल को शुद्ध करने के लिए न तो शासन स्तर से कोई प्रयास हुए और न ही स्थानीय स्तर पर। नदी के प्रदूषण की कारक चीनी मिल व फैक्ट्रियों पर शिकंजा नहीं कसा जा सका।
20 जुलाई 2006 को जिला प्रशासन द्वारा कृष्णा नदी के दो नमूने लिए। उनका पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट देहरादून की प्रयोगशाला में परीक्षण कराया गया। प्रयोगशाला ने जो रिपोर्ट दी उसे देखकर प्रशासन दंग रह गया। परीक्षण के परिणामों से ज्ञात हुआ कि भनेड़ा गांव के निकट इस नदी के जल में लेड की मात्रा 0.12 मिलीग्राम प्रति लीटर हैं, जबकि इस भारी तत्व का निर्धारित स्तर 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर तय है। इसी तरह से क्रोमियम तत्व 0.10 मिलीग्राम प्रति लीटर होना चाहिए, पर इस नदी में 3.50 मिलीग्राम प्रति लीटर पाया गया। इतना ही नहीं तब गांव में लगे हैंडपंप के जल के नमूने का रंग न केवल हल्का भूरा पाया गया, बल्कि जांच में वह अत्यधिक प्रदूषित निकला। जांच में परिणाम निकला कि यह नदी पूरी तरह से मृत हो चुकी हैं। इसका जल पूरी तरह से अशुद्ध है। कृष्णा नदी नानौता, मेरठ के कस्बों से होते हुए गुजरती है। बरनाला से होकर हिंडन नदी में मिल जाती है। इतने सालों में भी नदी के जल को जल को शुद्ध करने का कोई जतन नहीं हुआ।
कई उद्योग भी दोषी हैं
प्रदूषण की प्रतीक कृष्णा नदी का प्रारंभ नानौता की गन्ना मिल, शराब फैक्ट्री और मधुसूदन घी फैक्ट्री के गंदे पानी के नालों से होता है। यह नाले भनेड़ा खेमचंद के पास आकर मिलते हैं। बाद में इसमें नानौता, थाना भवन, सिक्का, रमाला के करीब आधा दर्जन उद्योगों का प्रदूषण भी मिल जाता हैं।
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