कृषि विकास पर टिका ग्रामीण विकास

ब्रुसेल्स
ब्रुसेल्स

तमाम सन्दर्भों को देखें तो यह जानना जरूरी हो जाता है कि कृषि एवं किसानोंं के कल्याण से जुड़ी वर्तमान सरकार की प्राथमिकताएँ आखिर किस तरह की हैं। कर व्यवस्था को तर्कसंगत बनाते हुए जिस तरह युवाओं की शिक्षा से लेकर रोजगार और सामाजिक क्षेत्र में महिलाओं से लेकर वृद्धों तक को प्राथमिकता में रखा गया है, सराहनीय है। किसान, ग्रामीण आबादी, युवाओं, शिक्षा और छोटे उद्योगों के लिये उठाए गए कदमों का सबको लाभ मिलेगा।

125 करोड़ से अधिक जनसंख्या वाले विशाल देश में अधिसंख्य किसान अभी भी परम्परागत खेती कर रहे हैं। खेती ही नहीं, अधिकांश किसान आज के दौर में पशुपालन और कृषि से जुड़े अन्य बहुतायत व्यवसाय भी परम्परागत तरीके से ही कर रहे हैं।

आधुनिक तकनीकों और कृषि उपकरणों की मौजूदगी के बावजूद खासतौर पर तंगहाल छोटे किसान उनका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। वे घाटे की खेती करते हुए ऐसे दुष्चक्र में उलझे हैं कि ज्ञान और कौशल से वंचित रह जाते हैं। खेती और कृषि से सम्बन्धित अन्य व्यवसायों को समेकित रूप से अधिक लाभकारी बनाने के लिये कौशल विकास पर सरकार संजीदा है। आवश्यकता इस बात की है कि सरकारी योजनाओं और उनके लाभों की उन्हें सही जानकारी उपलब्ध कराई जाय।

कृषि उत्पादकता बढ़ाने सम्बन्धी सरकारी प्रयास

कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिये उत्तम बीज की उपलब्धता, मृदा स्वास्थ्य प्रबन्धन के लिये मृदा स्वास्थ्य कार्ड, उर्वरकों से जुड़ी सरकारी नीतियाँ, सिंचाई जल की उपलब्धता और प्रति बूँद पानी से अधिक उपज का लक्ष्य अर्थात पानी का किफायती एवं अधिक कारगर उपयोग, विपणन, बीमा, लैंड लीजिंग और पूर्वोेत्तर भारत पर फोकस, विभिन्न मदों में किसानोंं एवं ग्रामीण लोगों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) जैसी योजनाओं के तहत फायदा पहुँचाने की पहल की गई है।

किसानोंं को प्रति इकाई क्षेत्रफल से अधिकतम लाभकारी उपज प्राप्त करने के लिये वैज्ञानिक तकनीकी से जोड़ा जा रहा है। ‘मेरा गाँव मेरा गौरव’ जैसे प्रयास से किसान लाभान्वित होंगे। कृषि सिंचाई योजनाओं को मिशन मोड में ले लिया गया है। बजट 2018-19 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिये नौ हजार करोड़ रुपए का प्रावधान किये जाने से फसल की सुरक्षा का दायरा बढ़ेगा, फार्म लोन टारगेट नौ लाख करोड़ से बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपए करने एवं कृषि ऋण लक्ष्य को एक लाख करोड़ रुपए से बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपए करने की घोषणा से किसानोंं को सस्ता ऋण मिल सकेगा।

लांग टर्म इरीगेशन फंड योजनाओं उन राज्यों के लिये अच्छी साबित होगी, जहाँ पानी की किल्लत हैं। गरीबी से निजात दिलाने वाले प्रस्ताव से गाँव खुशहाल होंगे। फसलोंं को जोखिम से बचाने के साथ खेती की अन्य इनपुट लागत में कमी लाने के उपाय किये गए हैं। ग्रामीण जीवन-स्तर में सुधार और किसानोंं को समृद्ध करने वाली तकनीकें एवं उनके क्रियान्वयन के लिये किये गए प्रावधान ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने वाले साबित होंगे।

कृषि आधुनिक बनाने और किसानोंं की मदद के लिये देश के कृषि विज्ञान केन्द्र के वैज्ञानिक तत्पर रहें, इसका पहली बार प्रावधान हुआ है। कृषि विज्ञान केन्द्र की प्रभावशीलता और प्रदर्शन में सुधार लाने के लिये 50 लाख रुपए की पुरस्कार राशि का ऐलान किया गया है। इसके साथ 543 कृषि विज्ञान केन्द्रों के बीच राष्ट्रीय-स्तर की प्राथमिकताएँ आयोजित की जा रही है।

गाँव के विकास के साथ पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास के लिये 33097 करोड़ रुपए (2018-19) का प्रावधान किया गया है। इसमें जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिये 412 करोड़ रुपए का एक विशेष कोष भी शामिल है। उपज का उचित मूल्य दिलाने के लिये कृषि मंडियों या मुनाफाखोरों के चंगुल से मुक्त कराने का अभियान छेड़ा गया है। निस्सन्देह उत्पादों का उचित मूल्य मिलने से युवाओं में खेती के प्रति पुनः आकर्षण पैदा करना सम्भव होगा। बिगड़ी खेती को पटरी पर लाने में सरकार पिछले सालों में काफी हद तक सफल रही है।

पिछले तीन बजटों में खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने और किसानोंं की आय बढ़ाने के सार्थक उपाय किये गए हैं। इन प्रावधानों से पटरी पर लौटी खेती को और रफ्तार मिलेगी। इसमें कृषि से जुड़े पाँच मुद्दों को प्रमुखता से शामिल किया गया है।

1. उत्पादन बढ़ाने के लिये तमाम जरूरी प्रयास।
2. किसानोंं को फसलों के बेहतर मूल्य दिलाने की नीतियाँ।
3. पट्टे पर भूमि देने की नीतियों में सुधार।
4. प्राकृतिक आपदाओं से त्वरित राहत के लिये तंत्र का निर्माण।
5. पूर्वोत्तर राज्यों में हरितक्रान्ति के प्रसार के लिये पहल।

किसानोंं, गरीबों एवं जरूरतमन्दों के लाभार्थ क्षेत्र विशेष की कृषि समस्याओं के समाधान हेतु चलाई गई विशिष्ट परियोजनाओं द्वारा समस्याग्रस्त अम्लीय लवणीय एवं क्षारीय भूमि का सुधार कर कृषि योग्य बनाने तथा मृदा स्वास्थ्य में आये विकारों को दूर कर फार्मजनित निवेशों (गोबर, कूड़े की खाद, कम्पोस्ट पशुशाला की खाद, हरी खाद फास्फो सल्फो नाइट्रो कम्पोस्ट, फसल अवशेषों का संरक्षण एवं सदुपयोग आदि) के उपयोग को बढ़ावा देने हेतु सहायता एवं मार्गदर्शन, शुष्क कृषि वाले क्षेत्रों की उत्पादकता बढ़ाने के लिये सिंचाई साधनों का सृजन, चेकडैम विशाल कुओं का निर्माण एवं जल समेट क्षेत्र पर आधारित परियोजनाएँ छोटे एवं सीमान्त कृषकों में आशा की नई ज्योति जगाने में कारगर साबित हुई हैं।
 

सारणी 1 क्षेत्रवार 5 वर्ष के बजटीय प्रावधान

प्रक्षेत्र

बजटीय प्रावधान(करोड़ रु. में)

प्रतिशत  में वृद्धि

2009-14

2014-19

फसल बीमा

6,182

33,162

436

माइक्रो इरिगेशन

3193

12711

298

सॉयल हेल्थ मैनेजमेंट

162

1,573

871

कृषि यांत्रिकरण

254

2408

846

कृषि विस्तार उपमिशन

3163

4046

28

कृषि विपणन

2666

6150

131

वर्षा सिंचित क्षेत्र विकास

189

1322

700

डेयरी विकास

8114

10725

32

नीली क्रान्ति

1772

2913

64

कृषि शिक्षा, अनुसन्धान एवं विस्तार

12252

13748

12

 

कृषि जिंसों का वाजिब दाम
लम्बे समय से अटकी किसानोंं की माँग को पूरा करने के लिये सरकार ने रबी 2018-19 से विभिन्न कृषि जिंसों पर किसानोंं को उनके उत्पाद का कृषि लागत से 50 प्रतिशत ज्यादा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देने का ऐलान किया है। परन्तु बजट में इसके लिये कितनी राशि का आवंटन किया जाएगा इसकी बात नहीं की गई, जिसकी वजह से सरकार के इस लोक-लुभावन कदम पर सवाल उठ रहे हैं।

सरकार द्वारा समय-समय पर यह स्पष्ट किया गया है कि हम सिर्फ एमएसपी की घोषणा नहीं करना चाहते बल्कि एमएसपी का लाभ किसानों तक पहुँचाने का भी कार्य कर रहे हैं। यद्यपि सरकार के प्रयासों से विगत 4 वर्षों में दाल, तिलहन, धान, गेहूँ जैसी फसलोंं की खरीददारी में वृद्धि हुई है, इसे नकारा नहीं जा सकता है। परन्तु यह वृद्धि आशा के अनुरूप नहीं है। हाँ, वित्तमंत्री ने समर्थन मूल्य पर खरीद न होने पर चिन्ता व्यक्त करते हुए यह जरूर कहा कि यदि बाजार में दाम एमएसपी से कम हों तो सरकार या तो एमएसपी पर खरीद करे या किसी अन्य व्यवस्था के अन्तर्गत किसान को पूरी एमएसपी दिलाने की व्यवस्था करे। इस दिशा में केन्द्र सरकार नीति आयोग एवं राज्य सरकारों के साथ चर्चा कर पुख्ता व्यवस्था करेगी जिससे किसानोंं को उनकी उपज का उचित दाम मिल सके, ऐसा कहा गया है।

इस सन्दर्भ में यह भी विचारणीय है कि यदि एमएसपी पर खरीदी गई ये जिंसे यदि राज्य सरकारों द्वारा दोबारा व्यापारियों के बेच दी जाएँगी तो इससे कई समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। उदाहरण के लिये, जिस प्रकार प्याज का हश्र हुआ कि जैसे किसान का माल व्यापारियों के हत्थे लगा, वे स्वयं इनका मूल्य निर्धारित करने लगते हैं और जिंस विशेष के मूल्य आसमान छूने लगते हैं। एफसीआई के गेहूँ व चावल का भी यही हश्र होता आया है। इससे तो किसान और उपभोक्ता दोनों ही यथावत ठगे जाते रहेंगे।

सरकार द्वारा लम्बी अवधि में आयात-निर्यात नीति के लिये संस्थागत व्यवस्था का सृजन भी प्रस्तावित है। इसके माध्यम से वर्ष 2022-23 तक 100 बिलियन यूएस डॉलर के महत्त्वाकांक्षी निर्यात लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकेगा। इसके लिये सभी 42 मेगा फूड पार्कों में अत्याधुनिक परीक्षण सुविधाएँ भी स्थापित की जाएँगी। बजट 2018-19 में मूल्य एवं माँग की पूर्व घोषणा हेतु एक संस्थागत व्यवस्था सृजित करने का प्रावधान किया गया है जिसके माध्यम से किसान यह निर्णय ले सकेंगे कि उन्हें कौन-सी फसल की कितने क्षेत्रफल में खेती करना अधिक लाभप्रद होगा।

कृषि मंडियों के लिये नए सुधारों की शुरुआत

किसानोंं को उनकी उपज का सही दाम दिलवाने के उद्देश्य से कृषि मंडियों के लिये नए सुधारों की शुरुआत की गई है। वर्ष 2018-19 में 2000 करोड़ के ‘कृषि बाजार विकास फंड’ की घोषणा की गई है जोकि कृषि विपणन में खुदरा बाजार की अहमियत को दर्शाता है। इन बाजारों को ग्रामीण खुदरा कृषि बाजार (ग्रामीण खुदरा कृषि बाजार) का नाम दिया गया है। इसके माध्यम से 22,000 ग्रामीण हाट एवं 585 कृषि उत्पाद विपणन केन्द्रों अर्थात मंडियों की आधारभूत संरचना का विकास हो सकेगा।

आपरेशन ग्रीन

पूरे देश में टमाटर, प्याज, आलू का उपभोग साल भर किया जाता है। जैसाकि हम सब जानते हैं कि आजादी के बाद से अब तक बिचौलियों के कारण कृषि जिंसों की खरीद हो जाने के बाद इनके मूल्य आसमान छूने लगते हैं। ऐसी मूल्य वृद्धि हर वर्ष किसी-न-कीसी जिंस के लिये अवश्य ही देखने को मिलती है। परिणामस्वरूप किसान और उपभोक्ता दोनों को ही इसका खामियाजा झेलना पड़ता है।

सरकार ने पहली बार वर्ष 2018-19 से ‘आपरेशन ग्रीन’ के नाम से एक नई पहल शुरू करने की घोषणा की है जिससे किसानोंं को उनकी उपज का सही मूल्य तथा उपभोक्ताओं को ये उत्पाद वाजिब दामों में उपलब्ध हो सकेंगे। इस कार्य के लिये 500 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है जोकि जरूरत से कम प्रतीत होता है। कुछ भी हो किसानोंं एवं उपभोक्ताओं के प्रति ऐसा भाव हर दृष्टि से स्वागत योग्य है।

किसान उत्पादक संगठन/किसान उत्पादक कम्पनी (FPC)

सभी प्रकार के किसान उत्पादक संगठनों जिसमें किसान उत्पादक कम्पनियाँ भी शामिल हैं, उन्हें इनकम टैक्स छूट का लाभ दिया गया है। इसका लाभ लघु एवं सीमान्त किसान भी किसान उत्पादक संगठन और किसान उत्पादक कम्पनियाँ बनाकर उठा सकेंगे। वहीं दूसरी ओर, जमीन के बँटवारे की समस्या से उत्पन्न छोटी जोतों से भी निजात मिल सकेगा।

फसल अवशेष प्रबन्धन

दिल्ली में प्रदूषण के मद्देनजर हरियाणा, पंजाब उत्तर प्रदेश एवं दिल्ली सरकार को फसल अवशेष के स्थानीय प्रबन्धन हेतु भी मदद की जाएगी।

औषधीय तथा सगंध फसलोंं की खेती

हमारे देश में औषधीय तथा सगंध फसलोंं की खेती के लिये भी अनुकूल कृषि जलवायु क्षेत्र उपलब्ध है। इस प्रकार की खेती को भी बढ़ावा दिये जान के लिये कदम उठाए जा रहे हैं। इससे न सिर्फ किसानोंं वरन लघु एवं सीमान्त उद्योगों का विकास भी हो सकेगा।

जैविक कृषि

इस जैविक कृषि के सफल कार्यान्वयन के लिये क्लस्टर-आधारित खेती की जाएगी तथा इसे बाजारों से भी जोड़ा जाएगा। कृषि उत्पादक संगठनों एवं ग्रामीण उत्पादक संगठनों के माध्यम से जैविक कृषि को भी बढ़ावा देने की बात कही गई है। प्रत्येक समूह या संगठन के 1000 हेक्टेयर के क्लस्टर होंगे। ये अच्छी पहल है, परन्तु इस क्षेत्र में निष्कर्षात्मक शोध एवं विकास की गहन आवश्यकता है। इस योजना का विशेष लाभ पूर्वोत्तर तथा पहाड़ी राज्यों को प्राप्त हो सकेगा।

ब्रुसेल्स स्प्राउटजैविक कृषि के उत्पादों की बिक्री की प्रस्तावित व्यवस्था अभी तो भविष्य के गर्भ में है। इस योजना का सही लाभ किसानोंं को मिले, इस पर गहन मंथन होना चाहिए। इस मंथन से क्या हल निकलता है, इसका इन्तजार करना पड़ेगा। मूल्य और भुगतान के अन्तर जैसी योजनाओं की सफलता इनके त्रुटिरहित संचालन पर निर्भर करेगी अन्याय किसानोंं की जेब में रकम नहीं आ पाएगी और ये सिस्टम व्यापारियों, बिचौलियों की तिजोरियाँ ही भरेगा।

क्लस्टर आधारित खेती को बढ़ावा

कृषि उत्पादों को चिन्हित कर क्लस्टर आधारित जिलों का विकास किया जाएगा ताकि उत्पादन से लेकर मार्केटिंग तक की सम्पूर्ण शृंखला का लाभ किसानोंं को मिले। यही नहीं, जिलेवार बागवानी फसलोंं के लिये भी क्लस्टर-आधारति खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। इसके लिये खाद्य-प्रसंस्करण एवं वाणिज्य मंत्रालय के साथ भी समन्वय स्थापित किया जाएगा। इस प्रकार की योजना पूर्व से ही अन्य नामों से राज्यों में एग्री-एक्सपोर्ट जोन के रूप में शुरू की गई, परन्तु निरन्तरता सही सोच सही व्यवस्था और सरकार की सक्रियता के अभाव के कारण यह योजना दम तोड़ गई।

कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा

मछली पालन

मत्स्य क्षेत्र की सम्भावनाओं को देखते हुए सरकार ने ‘नील क्रान्ति समन्वित विकास और मत्स्य प्रबन्धन’ के नाम से मछलीपालन के लिये पाँच साल की योजना तैयार की है जिसमें 2020 तक मछली का उत्पादन 1-5 करोड़ टन तक पहुँचाने का लक्ष्य है। सभी राज्य सरकारों और केन्द्र शासित प्रदेशों को अपने स्तर पर योजना तैयार करने को कहा गया है। 3000 करोड़ रुपए की लागत से शुरू की गई इस योजना के तहत मछलीपालन से लेकर पकड़ने तक की सभी योजनाओं को शामिल किया गया है। अन्तर्देशीय मछली पालन और समुद्र में मछली पकड़ने के मामले में एक राष्ट्रीय नीति लाने की भी योजना है।

मधुमक्खी पालन

रोजमर्रा की जिन्दगी में शहद के बढ़ते प्रचलन के चलते मधुमक्खी पालन भी किसानोंं की आमदनी में अहम भूमिका निभा रहा है। यही नहीं यह भी प्रमाणित हो चुका है कि खेतों में मधुमक्खी पालन से फसल उत्पादन में भी अच्छी-खासी बढ़ोत्तरी होती है। अभी भारत दुनिया के शहद उत्पादक देशों में 9वें स्थान पर है। देश में मौन पालन (मधुमक्खी पालन) की असीम सम्भाव्य क्षमता को देखते हुए मौजूदा मौन कॉलोनियों की संख्या बढ़ाकर 2 करोड़ तक और मौन का फसली उत्पादन 240 लाख करोड़ रुपए तक किया जा सकता है क्योंकि यह बहुमुखी माँग का व्यवसाय है और इसमें संवर्धन की क्षमता बहुत अधिक हैं।

कृषकों के लिये तो यह एक प्रकार से वरदान है, जो फसल के खेतों में मौन पालन करके इनकी पराग सेवाओं से फसलोंं की उत्पादकता डेढ़ गुना तक बढ़ा सकते हैं। प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत ग्रामीण जन प्रशिक्षित होकर अपने उत्पादन और उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार करके अपनी आय में सार्थक वृद्धि कर सकते हैं।

मुर्गीपालन

यह सर्वाधिक सफल पूरक व्यवसाय है जो कृषि, पशुपालन या अन्य पेशेवर कार्यों के साथ समानान्तर कमाई के व्यवसाय हैं। इस समय कुक्कुट उत्पादों की घरेलू माँग मौजूदा उत्पादन की तुलना में अण्डे की चार गुना और मीट की 6 गुना से अधिक है। अतः कुक्कुट पालन की मौजूदा संवृृद्धि के हिसाब से इसमें 1000 अरब रुपए के कारोबार और एक करोड़ से अधिक व्यक्तियों को रोजगार उपलब्ध कराने की क्षमता है। भारत सरकार ने गरीबों को पूरक आय और पौषणिक सहायता हेतु ग्रामीण घरेलू कुक्कुट विकास कार्यक्रम शुरू किया है। इसका उद्देश्य गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की मदद करना है।

रेशमकीट पालन

भारत सरकार रेशम उत्पादन में प्रोत्साहन विस्तार, उन्नयन, संरक्षण और तकनीकी अनुप्रयोगों के लिये विभिन्न योजनाएँ संचालित कर रही है। इसके लिये किसानोंं के सामूहिक प्रशिक्षण के अलावा राष्ट्रीय अनुसन्धान विकास निगम केन्द्र प्रायोजित उद्यमिता विकास कार्यक्रम संचालित कर रहा है। आवश्यकता-आधारित कार्यक्रमों के अलावा एकीकृत कौशल विकास योजना के तहत भी रेशमपालकों को प्रशिक्षण प्रदान किया जा रहा है।

खुम्बी उत्पादन (मशरूम उत्पादन)

सामान्य तौर पर लगभग 9-10 कि.ग्रा. खुम्बी प्रतिवर्ग मीटर में निकलती है। प्रति 10 कि.ग्रा. कम्पोस्ट से 12-15 कि.ग्रा. खुम्बी प्राप्त की जा सकती है। उपयुक्त तापमान और नमी एवं उचित रखरखाव अधिक पैदावार बढ़ाने में सहायक होते है। किसानोंं को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत उन्नत खुम्बी उत्पादन की तरकीबों की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय बाँस मिशन

कृषि तथा गैर-कृषि क्रियाकलापों को बढ़ाने के लिये राष्ट्रीय बाँस मिशन को नए अवतार में 1290 करोड़ रुपए की निधि के साथ प्रस्तावित किया गया है। इसके माध्यम से न सिर्फ छोटे उद्योगों की स्थापना की जा सकेगी वरन नए रोजगार भी पैदा हो सकेंगे।

मॉडल लैंड लाइसेंस कल्टीवेटर एक्ट

सरकार ने वर्ष 2018-19 के बजट में ‘मॉडल लैंड लाइसेंस कल्टीवेटर एक्ट’ की घोषणा की है जिसके माध्यम से बँटाईदार तथा जमीन को किराए पर लेकर खेती करने वाले छोटे किसानोंं को भी संस्थागत ऋण व्यवस्था का लाभ मिल सकेगा। इसके लिये नीति आयोग राज्य सरकार के साथ मिलकर आवश्यक कार्यवाई करेगा।

किसानों की आय दोगुनी करने के उपाय

आजीविका सुरक्षा के लिये बागवानी को बढ़ावा

सरकार के अगले पाँच वर्षों के किसानों की आमदनी दोगुनी करने के संकल्प में बागवानी फसलों की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। बागवानी फसलों की खेती से रोजगार के अवसर बढ़े हैं साथ ही लघु और सीमान्त किसानों की आय में वृद्धि हो रही रहै। सब्जियों अन्य फसलों की अपेक्षा प्रति इकाई क्षेत्र से कम समय में अधिक पैदावार देती है।

एक खेत से एक वर्ष में 3 से 5 सब्जियोंं की फसलें लेकर किसान अपनी कमाई बढ़ा सकते हैं। कुछ सब्जियोंं से निर्मित कई महंगे खाद्य पदार्थ जैसे अचार, मुरब्बा, चटनी, पेस्ट, पाउडर, मिठाइयाँ बनाकर आय बढ़ाई जा सकती है। इसे अलावा कौशल विकास के तहत प्रशिक्षित होकर वे सब्जियोंं का प्रसंस्करण कर अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। यहीं नहीं कौशल विकास के तहत बागवानी फसलों की नर्सरी व बीज बनाकर बेचने से भी किसान अपने परिवार के लिये कमाई का एक अच्छा व्यवसाय विकसित कर सकते हैं।

विदेशी सब्जियाँ

सब्जियोंं में ब्रोकोली, ब्रुसेल्स, स्प्राउटस, चायनीज कैबेज, लीक पार्सले, सेलरी, लैटूस, चैरी, टमाटर, रैड कैबेज एसपैरागस आदि प्रमुख हैं। ये सब्जियाँ विशेष रूप से सर्दियों के मौसम के उगाई जाती हैं। इन सब्जियोंं की माँग बड़े शहरों के पाँच सितारा होटलों और पर्यटक स्थलों पर अधिक है। यदि किसानोंं को कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षित कर दिया जाय तो निश्चित रूप से वे विदेशी सब्जियोंं की खेती से अधिक आय अर्जित कर सकते हैं और यह उनकी आजीविका का एक नया साधन बनने में सहायक साबित होगा।

जैविक खेती

आजकल सब्जियोंं की जैविक खेती का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। जैविक खेती में सब्जियोंं को जैविक खादों के सहारे व बिना कीटनाशियों के पैदा किया जाता है। इस प्रकार की सब्जियोंं के दाम निश्चित रूप से रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशक दवाओं का प्रयोग करके उगाई गई सब्जियोंं की अपेक्षा अधिक रहते हैं। आज उपभोक्ता अपने स्वास्थ्य की चिन्ता करते हुए अच्छे गुणों वाली सुरक्षित सब्जियोंं को ऊँचे दाम पर खरीदना पसन्द करता है।

जैविक सब्जी उत्पादन का क्षेत्र बड़ी तेजी से आगे बढ़ रहा है। इसके अलावा सब्जियोंं, फलों और फूलों से आर्गेनिक रंग भी बनाए जाते हैं जो न केवल शुद्ध सस्ते खुशबूदार होते हैं बल्कि हमारी त्वचा के लिये भी सुरक्षित होते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में आर्गेनिक फार्मिंग को बढ़ावा देने के लिये नाबार्ड सहित कई सरकारी व गैर-सरकारी संस्थान कार्यरत हैं।

ब्रोकोलीवर्ष 2015-16 से पूर्वोत्तर राज्यों में हो रही बागवानी पसलों की जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिये हर वर्ष का अलग से प्रावधान किया जा रहा है। जो किसान सब्जियोंं की जैविक खेती कर रहे हैं यदि उन्हें कौशल विकास योजना के तहत वैज्ञानिक तरीके से खेती करने के लिये प्रशिक्षित कर दिया जाय तो निश्चित रूप से वे स्वयं और समाज को पौष्टिक पीड़कनाशियों से मुक्त सन्तुलित भोजन उपलब्ध कराने के साथ ही ऐसी सब्जियोंं को बाजार में ऊँचे भाव पर बेचकर अपनी आमदनी भी बढ़ा सकते हैं। निसन्देह इन सभी क्षेत्रों में कौशल विकास की अहम भूमिका हो सकती है।

फूलों से रोजगार

किसान फूलों की खेती द्वारा अपनी आय कई गुना बढ़ा सकते हैं। गेंदा और गुलाब महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक फूल हैं। आज देश के अनेक भागों में कट फ्लावर व लूज दोनों की काफी माँग है। इसी प्रकार रजनीगंधा व ग्लैडिओलस फूलों की खेती करके ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक बेरोजगारी को दूर किया जा सकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि को कमी व कम आमदनी की वजह से रोजगार के अवसर कम होते जा रहे हैं। ऐसे में फूलों की खेती को रोजगार के रूप में अपनाया जा सकता है।

खाद्य प्रसंस्करण

उल्लेखनीय है कि खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र प्रतिवर्ष 8 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय के लिये बजट वर्ष 2017-18 के 715 करोड़ रुपए के मुकाबले वर्ष 2018-19 में दोगुना कर 1400 करोड़ रुपए कर दिया गया। टमाटर, आलू, प्याज के उत्पादकों के लिये ‘अॉपरेशन ग्रीन’ शुरु किया जा रहा है जिसमें भण्डारण, प्रसंस्करण, विपणन की सुविधाएँ किसानों को उपलब्ध होंगी। यदि ये अॉपरेशन सही दिशा में दिल्ली से निकलकर गाँव तक हकीकत में उतर जाता है तो इन फसलों के किसानों को निश्चित लाभ होगा। खरीद के मानकों पर सरकार ने नीति आयोग और राज्य सरकार को जिम्मा देने की बात की है।

केन्द्र एवं राज्य सरकारें स्वरोजगार के लिये प्रोत्साहन देने हेतु प्रशिक्षण, ऋण तथा सब्सिडी दे रही है। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ को राष्ट्रीय-स्तर पर बेचने के लिये केन्द्र सरकार राष्ट्रीय कृषि बाजार प्रणाली विकसित कर रही है। केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी अनुसन्धान संस्थान, मैसूर तथा राष्ट्रीय पोषण संस्थान, हैदराबाद जैसे 15 संस्थान फल व सब्जियोंं और दूसरे खाद्य पदार्थों के प्रसंस्करण पर शोध एवं प्रशिक्षण कार्य कर रहे हैं।

देश के सभी राज्यों में कृषि व बागवानी विश्वविद्यालयों में भी खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में पाठ्यक्रम संचालित किया जा रहा है जिसके आधार पर सरकारी व निजी क्षेत्र में स्थापित खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में भी रोजगार के अवसर उपलब्ध होते हैं। बड़े पैमाने पर खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के विकास के फलस्वरूप कृषि क्षेत्र में रोजगार का दायरा बढ़ने की सम्भावना बढ़ेगी।

खाद्य प्रसंस्करण प्रक्रिया में फल व सब्जियोंं का मूल्य बढ़ जाता है। अर्थात आलू, टमाटर जैसी सब्जियों जोकि खुले बाजार में यदि 10-15 रुपए प्रति किलो की दर से बेची जाती हैं जिनको सामान्य तापक्रम पर अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। खाद्य प्रसंस्करण द्वारा प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ के मूल्य में तीन से चार गुना तक की वृद्धि हो जाती है तथा इसे सामान्य तापक्रम पर लम्बी अवधि तक सुरक्षित भी रखा जा सकता है। इससे किसानों को उत्पाद का समुचित मूल्य प्राप्त होने के साथ खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में लगे युवकों को भी रोजगार मिलता है और उपभोक्ता को वर्ष भर प्रसंस्कृत फल व सब्जियों की आपूर्ति समुचित मूल्य पर सुनिश्चित हो पाती है।

बीज उत्पादन

सब्जियोंं की पैदावार बढ़ाने में उन्नत संकर किस्मों व उत्तम गुणों के बीजों का बड़ा योगदान है। स्वयं परागण वाली सब्जियोंं जैसे मटर, सेम, बांकला, टमाटर, मिर्च, बैंगन, लोबिया या ग्वार की उन्नत किसानों के बीज थोड़ी-सी जानकारी के साथ किसान भाई स्वयं बना सकते हैं। परागण वाली सब्जियोंं जैसे लौकी, तोराई, करेला, खीरा, ककड़ी, खरबूजा, तरबूज, टिण्डा, फूलगोभी, पत्तागोेभी, गाँठगोभी, मूली, शलगम, गाजर, प्याज, पालक, ब्रोकोली इत्यादि व संकर किस्मों के बीज किसान थोड़ी-सी जानकारी व ट्रेनिंग के साथ सफलतापूर्वक पैदा कर सकते हैं। बागवानी फसलों की खेती में होने वाले खर्च को भी कम किया जा सकता है। साथ ही पढ़े-लिखे युवा सब्जी बीज उत्पादन को एक व्यवसाय के रूप में अपनाकर अपनी आमदनी भी बढ़ा सकते हैं।

महिला किसान सशक्तिकरण

महिला किसान सशक्तिकरण परियोजना के माध्यम से निम्नलिखित पहलुओं पर ध्यान दिया जा रहा है-

1. महिलाओं की कृषि कार्यों से होने वाली शुद्ध आय को निरन्तर बढ़ाना।
2. कृषक महिलाओं और उनके परिवारों की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में सुधार करना।
3. खेती के तहत क्षेत्रफल, फसल तीव्रता तथा खाद्य उत्पादन में वृद्धि।
4. महिलाओं की कृषि कार्यों में कौशल तथा क्षमताओं को विकसित करना।
5. महिलाओं की कृषि सम्बन्धित उपयोगी जानकारियों जैसे उपजाऊ भूमि, कृषि ऋण प्रौद्योगिकी एवं अन्य सूचनाओं इत्यादि तक पहुँच को बढ़ाना।
6. कृषि उत्पादों के बेहतर विपणन हेतु बाजार सम्बन्धी जानकारियों की पहुँच में वृद्धि।

संक्षेप में, कृषि उत्पादों की विपणन प्रणाली को बेहतर बनाने के लिये सरकार एकीकृत कृषि विपणन योजना और ई-प्लेटफार्म लेकर आई है। इससे किसान आसानी से अनाज, सब्जियाँ, फल जैसे उत्पाद बाजारों तक पहुँचा पाएँगे। प्रत्येक ग्राम पंचायत को 80 लाख रुपए, किसानोंं को नौ लाख करोड़ रुपए का ऋण बाँटने जैसी सौगातों के साथ मोदी सरकार का पाँच साल में किसानोंं की आमदनी दोगुनी करने का लक्ष्य है। इन सभी पहलुओं पर कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षण का लाभ उठाया जा सकता है।

(लेखक इंटरनेशनल प्लांट न्यूट्रीशन इंस्टीट्यूट, इण्डिया प्रोग्राम के पूर्व निदेशक तथा चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मृदा एवं कृषि रसायन विभाग के पूर्व प्राध्यापक एवं अध्यक्ष रहे हैं।)

ई-मेलः kashinathtiwari730@gmail.com
 

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