खेती अब घाटे का व्यवसाय नहीं रही। इसमें नए प्रयोग की पूरी सम्भावना है। इन सम्भानाओं की बदौलत कई किसानों ने मिसाल कायम की है। उन्होंने ज्यादा उत्पादन प्राप्त किया और दूसरे किसानों के प्रेरक बने। ऐसे ही किसानों में है। भोजपुर जिले के पीरों प्रखण्ड के देवचन्दा गाँव के भीमराज राय। 55 वर्षीय भीमराय धरती से सोना उपजाने में लगे हैं। अपनी 20 एकड़ जमीन में धान, गेहूँ, मक्का, एवं दलहन, तिलहन की खेती के साथ बागवानी, पशुपालन और मछलीपालन भी करते हैं। बैंगन, गोभी, टमाटर, मटर तथा ब्रोकली के उत्पादन में उन्हें खास सफलता मिली है। भीमराज राय एक सजग किसान हैं। केन्द्र और राज्य सरकार के कृषि विभागों की योजनाओं की वह जानकारी नियमित रूप से प्राप्त करते हैं और फिर उनका लाभ लेने की अपनी योजना बनाते हैं। उनकी इस सजगता ने दूसरे किसानों को भी राह दिखाई है।
कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में उन्होंने पारम्परिक एवं आधुनिक विधि को अपनाया। उन्होंने इस क्षेत्र में एक मुकाम हासिल किया है।
भीमराज राय एक एकड़ जमीन में तालाब बनाकर मछली पालन करे रहे हैं। तालाब में लगभग छह फीट पानी बनाए रखने की उन्होंने व्यवस्था की है, ताकि मछली पालन के लिए आदर्श स्थिति बनी रहे वह छह प्रकार की मछलियाँ पालते हैं। इनमें एक है पंकशिष। इसे प्यासी के नाम से भी जाना जाता है। इसका जीरा बंगाल से आता है। इस मछली की कीमत स्थानीय बाजार में 150 रुपए प्रति किलो है। उनके पास आठ कट्ठे का छोटा तालाब भी है, जिसमें मछली के बीज को प्रारम्भिक अवस्था में डालकर 3 माह बाद उन्हीं छोटी मछलियों को बड़े तालाब में डालते देते हैं।
इसके अलावा राज्य सरकार के मत्स्य विभाग से छह एकड़ के तालाब को नौ हजार रुपए प्रतिवर्ष की दर से लीज पर लेकर मछली पालन करा रहे हैं जिससे इन्हें प्रतिवर्ष लाखों रुपए की आमदनी हो रही है। अपने इन सभी व्यवसायों को ज्यादा लाभदायक बनाने के लिए समय-समय पर मत्स्य बीज (जीरा) पन्तनगर एवं कोलकाता से ले आते हैं। उन्होंने कहा कि 22 एकड़ में धान व गेहूँ की खेती कर बारह तेरह लाख रुपए की आमदनी हो जाती है। मिश्रित खेती कर साल में 15 लाख रुपए कमा लेते हैं।
भीमराज राय पशुपालन को खेती का अहम् हिस्सा मानते है क्योंकि उनका मानना है कि पशुओं के गोबर की खाद का उपयोग कर लम्बे समय तक खेत की उर्वरा शक्ति को बरकरार रखा जा सकता है। इनके पास शाही नस्ल की दो गाय व 2 मुर्रा भैंसें हैं। 1983 से इनके यहाँ बायोगैस प्लांट लगा हुआ है जिसे इन्हीं पशुओं के गोबर से चलाया जाता है। बायो गैस से इनकी रसोई का सारा कार्य संपन्न हो जाता है। गैस के उपयोग के बाद प्लांट से निकलने वाला अपशिष्ट पदार्थ (गोबर) खाद के रूप में खेतों में डाला जाता है।
इसी के साथ इन्होंने एक छोटी वर्मीकम्पोस्ट बनाने की यूनिट भी लगा रखी है जिसके खाद से लगभग 2 एकड़ जमीन में जैविक खेती भी करते है। इन्होंने 1996 में करनाल (हरियाणा) से हॉलिस्टन फिजीशियन नस्ल की एक गाय खरीदी, जिससे अब तक दो दर्जन से भी अधिक गायों की बिक्री कर लाखों रुपए की आय अर्जित कर चुके हैं।
15 लीटर दूध देने वाली गाय की कीमत लगभग 35 हजार रुपए है। यदि दूध 8 घण्टे के अन्तराल पर निकाला जाए तो एक गाय अथवा भैंस से एक लीटर दूध से अधिक प्राप्त किया जा सकता है। गाय के दूध की कीमत 30-32 रुपए तथा भैंस के दूध की कीमत 35-40 रुपए की दर से मिल जाती है जो किसानों के लिए आय का एक अच्छा स्रोत हो सकता है।
भीमराज राय अपनी 20 एकड़ की खेती से करीब 80 टन धान का उत्पादन करते हैं। अन्तरराष्ट्रीय कम्पनी बायर सीड्स एंड केमिकल से हाइब्रिड एराइज प्रभेद के धान का बीज लेकर करीब 8 एकड़ में खेती की थी इसके उत्पादन 40 क्विंटल प्रति एकड़ हुआ। इसके अलावा सुगन्धित पूसा बासमती की खेती कर विपरीत मौसम होने के बाद भी पर्याप्त पैदावार प्राप्त की।
अभी वे प्रजनक बीज के रूप में नवीन पूजा, एमटीयू तथा कीट की जोहा आदि धान के विभिन्न प्रभेदों के बीज का उत्पादन कर अपने आस-पास के किसानों की खेती को लाभकारी बनाने का सपना पूरा करने में लगे हुए हैं। इसके अलावा गेहूँ उत्पादन में भी महारत हासिल है। इनके खेतों में धान व गेहूँ का उत्पादन प्रति एकड़ पंजाब से अधिक होता है। उन्होंने कहा कि फसल कटाई के पंजाब से आए हुए हार्वेस्टर चालकों ने भी कहा कि पंजाब में भी इतना उत्पादन नहीं होता है।
कई वर्षों से छह लाख का धान व दो लाख रुपए का गेहूँ बाजार में बेचा। इसके अलावा दो लाख रुपए का धान बीज के रूप में कृषि विज्ञान केन्द्र आरा को दिया। राज्य की अनुशंसित किस्में एचडी 2733 व डब्ल्यूआर 544 गेहूँ के आधार बीज की खेती कर कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा प्रमाणित बीज के रूप में किसानों को दे रहे हैं। देवचन्दा गाँव को केवीके आरा द्वारा बीज ग्राम घोषित भी किया गया था।
समय समय पर कृषि मेलों एवं प्रदर्शनियों में भाग लेने के साथ ही इन्हें कृषि तथा मत्स्य वैज्ञानिकों का सहयोग एवं मार्गदर्शन मिलता रहा है। कृषि विज्ञान केन्द्र, आरा के प्रभारी डॉ पी.के. द्विवेदी कार्यक्रम समंवयक शशिभूषण एवं नीलेश का सहयोग सराहनीय रहा। मत्स्य पालन का प्रशिक्षण आन्ध्र प्रदेश के काकीनाड़ा स्थित केन्द्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान से प्राप्त किया है। 1986 तथा 90 में प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए हैदराबाद गए। पन्तनगर प्रतिवर्ष जाते हैं।
वर्ष 2006 में पन्तनगर में आयोजित कृषक ज्ञान प्रतियोगिता में पुरस्कृत किए गए थे। पन्तनगर के कृषि वैज्ञानिकों डॉ. मिश्र का सहयोग इन्हें इस ऊँचाई तक पहुँचने में मददगार साबित हुआ। ये आत्मा भोजपुर द्वारा प्रायोजित किसान विद्यालय से जुड़कर स्थानीय किसानों को प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। आसपास के गाँवों के दर्जनों किसान इनसे जुड़कर खेती के नए गुर सीखकर अपनी-अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में सफल हो रहे हैं।
रासायनिक खाद एवं कीटनाशी के रूप में एमीपके तथा यूरिया का सन्तुलित मात्रा में उपयोग, कीटनाशी में बायो पेस्टीसाइड व कन्फीडोर का उपयोग पर्यावरण को ध्यान में रखकर कर सकते हैं। सुपर कीलर के बारे में इनका अनुभव है कि इसके प्रयोग से मित्र कीट भी मर जाते हैं, जिससे पर्यावरण असन्तुलित होता है। साथ ही इनका उपयोग एक बार करने से कुछ कीट ऐसे होते हैं जिन पर दूसरे कीटनाशी का उपयोग बेअसर हो जाता है।
वे खुद जैविक खाद एवं कीटनाशी का उपयोग करते हैं। साथ ही अन्य किसानों को भी इसके प्रयोग की सलाह देते हैं। इनका मानना है कि कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर ही सन्तुलित मात्रा में रासायनिक खाद व कीटनाशी का उपयोग करना चाहिए।
खेती के प्रति इनके समर्पण और उपलब्धियों को ध्यान में रखकर वर्ष 2007 में राज्य सरकार ने किसान भूषण से सम्मानित किया। साथ ही किसानश्री का भी पुरस्कार मिला। इसके अलावा राष्ट्रपति के आमन्त्रण पर राष्ट्रपति भवन में कृषि चर्चा करने का अवसर भी इन्हें मिला। इनकी खेती में शामिल हो सहयोगी स्थाई रूप से इनके साथ कार्य करते हैं।
ट्रैक्टर चालक को निश्चित राशि देने के अलावा एक बीघा जमीन की पूरी उपज तथा दूसरे सहयोगी को दो बीघा जमीन की पूरी उपज देते हैं। इनके घर की नींव से सटा हुआ एक विशाल पीपल का वृक्ष बाबा के समय का है। इसकी वजह से इनका दालान (बैठका) नहीं बना। जब से काटने की बारी आई तो इनके पिता ने कहा कि पुराने पेड़ को काटोगे जो हमारे लिए अशुभ नहीं बल्कि शुभ है। परिणामतः आज भी पीपल का वृक्ष अपनी हरियाली बिखेर रहा है।
उन्होंने अपने बगीचे में केला, अमरुद के अलावा बीजू, मालदाह, शुकुल, तथा सफेदा आदि आम की कई किस्में लगाई हैं। ये अपने एक मात्र पुत्र को कृषि विशेषज्ञ बनाना चाहते हैं। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने अपने बेटे का जबलपुर में एमएससी (कृषि) की पढ़ाई के लिए नामांकन कराया है। इनका कहना है कि खेती के प्रति समर्पण हो, वैज्ञानिक तरीके से खेती की जाए तो यह पेशा कभी अलाभकारी नहीं हो सकता।
कृषि वैज्ञानिकों के मार्गदर्शन में उन्होंने पारम्परिक एवं आधुनिक विधि को अपनाया। उन्होंने इस क्षेत्र में एक मुकाम हासिल किया है।
भीमराज राय एक एकड़ जमीन में तालाब बनाकर मछली पालन करे रहे हैं। तालाब में लगभग छह फीट पानी बनाए रखने की उन्होंने व्यवस्था की है, ताकि मछली पालन के लिए आदर्श स्थिति बनी रहे वह छह प्रकार की मछलियाँ पालते हैं। इनमें एक है पंकशिष। इसे प्यासी के नाम से भी जाना जाता है। इसका जीरा बंगाल से आता है। इस मछली की कीमत स्थानीय बाजार में 150 रुपए प्रति किलो है। उनके पास आठ कट्ठे का छोटा तालाब भी है, जिसमें मछली के बीज को प्रारम्भिक अवस्था में डालकर 3 माह बाद उन्हीं छोटी मछलियों को बड़े तालाब में डालते देते हैं।
इसके अलावा राज्य सरकार के मत्स्य विभाग से छह एकड़ के तालाब को नौ हजार रुपए प्रतिवर्ष की दर से लीज पर लेकर मछली पालन करा रहे हैं जिससे इन्हें प्रतिवर्ष लाखों रुपए की आमदनी हो रही है। अपने इन सभी व्यवसायों को ज्यादा लाभदायक बनाने के लिए समय-समय पर मत्स्य बीज (जीरा) पन्तनगर एवं कोलकाता से ले आते हैं। उन्होंने कहा कि 22 एकड़ में धान व गेहूँ की खेती कर बारह तेरह लाख रुपए की आमदनी हो जाती है। मिश्रित खेती कर साल में 15 लाख रुपए कमा लेते हैं।
पशुपालन
भीमराज राय पशुपालन को खेती का अहम् हिस्सा मानते है क्योंकि उनका मानना है कि पशुओं के गोबर की खाद का उपयोग कर लम्बे समय तक खेत की उर्वरा शक्ति को बरकरार रखा जा सकता है। इनके पास शाही नस्ल की दो गाय व 2 मुर्रा भैंसें हैं। 1983 से इनके यहाँ बायोगैस प्लांट लगा हुआ है जिसे इन्हीं पशुओं के गोबर से चलाया जाता है। बायो गैस से इनकी रसोई का सारा कार्य संपन्न हो जाता है। गैस के उपयोग के बाद प्लांट से निकलने वाला अपशिष्ट पदार्थ (गोबर) खाद के रूप में खेतों में डाला जाता है।
इसी के साथ इन्होंने एक छोटी वर्मीकम्पोस्ट बनाने की यूनिट भी लगा रखी है जिसके खाद से लगभग 2 एकड़ जमीन में जैविक खेती भी करते है। इन्होंने 1996 में करनाल (हरियाणा) से हॉलिस्टन फिजीशियन नस्ल की एक गाय खरीदी, जिससे अब तक दो दर्जन से भी अधिक गायों की बिक्री कर लाखों रुपए की आय अर्जित कर चुके हैं।
15 लीटर दूध देने वाली गाय की कीमत लगभग 35 हजार रुपए है। यदि दूध 8 घण्टे के अन्तराल पर निकाला जाए तो एक गाय अथवा भैंस से एक लीटर दूध से अधिक प्राप्त किया जा सकता है। गाय के दूध की कीमत 30-32 रुपए तथा भैंस के दूध की कीमत 35-40 रुपए की दर से मिल जाती है जो किसानों के लिए आय का एक अच्छा स्रोत हो सकता है।
धान व गेहूँ
भीमराज राय अपनी 20 एकड़ की खेती से करीब 80 टन धान का उत्पादन करते हैं। अन्तरराष्ट्रीय कम्पनी बायर सीड्स एंड केमिकल से हाइब्रिड एराइज प्रभेद के धान का बीज लेकर करीब 8 एकड़ में खेती की थी इसके उत्पादन 40 क्विंटल प्रति एकड़ हुआ। इसके अलावा सुगन्धित पूसा बासमती की खेती कर विपरीत मौसम होने के बाद भी पर्याप्त पैदावार प्राप्त की।
अभी वे प्रजनक बीज के रूप में नवीन पूजा, एमटीयू तथा कीट की जोहा आदि धान के विभिन्न प्रभेदों के बीज का उत्पादन कर अपने आस-पास के किसानों की खेती को लाभकारी बनाने का सपना पूरा करने में लगे हुए हैं। इसके अलावा गेहूँ उत्पादन में भी महारत हासिल है। इनके खेतों में धान व गेहूँ का उत्पादन प्रति एकड़ पंजाब से अधिक होता है। उन्होंने कहा कि फसल कटाई के पंजाब से आए हुए हार्वेस्टर चालकों ने भी कहा कि पंजाब में भी इतना उत्पादन नहीं होता है।
कई वर्षों से छह लाख का धान व दो लाख रुपए का गेहूँ बाजार में बेचा। इसके अलावा दो लाख रुपए का धान बीज के रूप में कृषि विज्ञान केन्द्र आरा को दिया। राज्य की अनुशंसित किस्में एचडी 2733 व डब्ल्यूआर 544 गेहूँ के आधार बीज की खेती कर कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा प्रमाणित बीज के रूप में किसानों को दे रहे हैं। देवचन्दा गाँव को केवीके आरा द्वारा बीज ग्राम घोषित भी किया गया था।
वैज्ञानिक सहयोग
समय समय पर कृषि मेलों एवं प्रदर्शनियों में भाग लेने के साथ ही इन्हें कृषि तथा मत्स्य वैज्ञानिकों का सहयोग एवं मार्गदर्शन मिलता रहा है। कृषि विज्ञान केन्द्र, आरा के प्रभारी डॉ पी.के. द्विवेदी कार्यक्रम समंवयक शशिभूषण एवं नीलेश का सहयोग सराहनीय रहा। मत्स्य पालन का प्रशिक्षण आन्ध्र प्रदेश के काकीनाड़ा स्थित केन्द्रीय मात्स्यिकी शिक्षा संस्थान से प्राप्त किया है। 1986 तथा 90 में प्रशिक्षण प्राप्त करने के लिए हैदराबाद गए। पन्तनगर प्रतिवर्ष जाते हैं।
वर्ष 2006 में पन्तनगर में आयोजित कृषक ज्ञान प्रतियोगिता में पुरस्कृत किए गए थे। पन्तनगर के कृषि वैज्ञानिकों डॉ. मिश्र का सहयोग इन्हें इस ऊँचाई तक पहुँचने में मददगार साबित हुआ। ये आत्मा भोजपुर द्वारा प्रायोजित किसान विद्यालय से जुड़कर स्थानीय किसानों को प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। आसपास के गाँवों के दर्जनों किसान इनसे जुड़कर खेती के नए गुर सीखकर अपनी-अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में सफल हो रहे हैं।
रासायनिक खाद एवं कीटनाशी के रूप में एमीपके तथा यूरिया का सन्तुलित मात्रा में उपयोग, कीटनाशी में बायो पेस्टीसाइड व कन्फीडोर का उपयोग पर्यावरण को ध्यान में रखकर कर सकते हैं। सुपर कीलर के बारे में इनका अनुभव है कि इसके प्रयोग से मित्र कीट भी मर जाते हैं, जिससे पर्यावरण असन्तुलित होता है। साथ ही इनका उपयोग एक बार करने से कुछ कीट ऐसे होते हैं जिन पर दूसरे कीटनाशी का उपयोग बेअसर हो जाता है।
वे खुद जैविक खाद एवं कीटनाशी का उपयोग करते हैं। साथ ही अन्य किसानों को भी इसके प्रयोग की सलाह देते हैं। इनका मानना है कि कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर ही सन्तुलित मात्रा में रासायनिक खाद व कीटनाशी का उपयोग करना चाहिए।
सम्मान व पुरस्कार
खेती के प्रति इनके समर्पण और उपलब्धियों को ध्यान में रखकर वर्ष 2007 में राज्य सरकार ने किसान भूषण से सम्मानित किया। साथ ही किसानश्री का भी पुरस्कार मिला। इसके अलावा राष्ट्रपति के आमन्त्रण पर राष्ट्रपति भवन में कृषि चर्चा करने का अवसर भी इन्हें मिला। इनकी खेती में शामिल हो सहयोगी स्थाई रूप से इनके साथ कार्य करते हैं।
ट्रैक्टर चालक को निश्चित राशि देने के अलावा एक बीघा जमीन की पूरी उपज तथा दूसरे सहयोगी को दो बीघा जमीन की पूरी उपज देते हैं। इनके घर की नींव से सटा हुआ एक विशाल पीपल का वृक्ष बाबा के समय का है। इसकी वजह से इनका दालान (बैठका) नहीं बना। जब से काटने की बारी आई तो इनके पिता ने कहा कि पुराने पेड़ को काटोगे जो हमारे लिए अशुभ नहीं बल्कि शुभ है। परिणामतः आज भी पीपल का वृक्ष अपनी हरियाली बिखेर रहा है।
उन्होंने अपने बगीचे में केला, अमरुद के अलावा बीजू, मालदाह, शुकुल, तथा सफेदा आदि आम की कई किस्में लगाई हैं। ये अपने एक मात्र पुत्र को कृषि विशेषज्ञ बनाना चाहते हैं। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने अपने बेटे का जबलपुर में एमएससी (कृषि) की पढ़ाई के लिए नामांकन कराया है। इनका कहना है कि खेती के प्रति समर्पण हो, वैज्ञानिक तरीके से खेती की जाए तो यह पेशा कभी अलाभकारी नहीं हो सकता।
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Post By: Shivendra