कृषि मंत्रालय के स्तर से भी निरंतर इस बात के प्रयास किये जा रहे हैं कि कृषि कार्यों में लगी ग्रामीण महिलाओं की स्थिति में तेजी से सुधार हो। हमारे देश में कृषि विज्ञान केन्द्रों के द्वारा विकास हेतु कृषि कार्यों में लगी महिलाओं के लिये विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जाते हैं।
ग्रामीण अथवा शहरी, कोई भी क्षेत्र हो, महिलाएँ आबादी का लगभग आधा अंश होती हैं। वे परिवार, समाज समुदाय का एक बड़ा ही सार्थक अंग हैं। जो समाज के स्वरूप को सशक्त रूप सेे प्रभावित करती हैं। महिलाएँ राष्ट्र के विकास में पुरूषों के बराबर ही महत्त्व रखती हैं। हमारे देश में 70 प्रतिशत आबादी आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। उनमें से अधिकांश कृषि कार्यों पर निर्भर हैं। ग्रामीण महिलाएँ गृह कार्य तथा बच्चों को सम्भालने के साथ-साथ खेत के काम में भी हाथ बँटाती हैं।
सुप्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डाॅ. स्वामीनाथन के अनुसार विश्व में खेती का सूत्रपात और वैज्ञानिक विकास का प्रारम्भ महिलाओं ने ही किया। चक्रवर्ती के अनुसार, घर और खेत पर महिलाओं का देेश के आर्थिक विकास में लगभग पचास प्रतिशत योगदान रहता है। कृषि में उत्पादन बढ़ाने के लिये नवीनीकरण और नई टेक्नोलॉजी का महिलाओं द्वारा स्वीकार किया जाना महत्त्वपूर्ण बात समझी जा रही है।
महिलाओं के प्रत्यक्ष योगदान एवं सक्रिय भागीदारी के परिणामस्वरूप भारत अनेक प्रकार के फल, सब्जी और अनाज के मामले में महत्त्वपूर्ण उत्पादक देेश बन गया है। पशुपालन, मछलीपालन, चटनी, अचार, मुरब्बे यानि की खाद्य परिरक्षण, हथकरघा दस्तकारी जैसे कामों में ग्रामीण महिलाएँ पीछे नहीं हैं। वे खेेतों में कार्य करने के अलावा कृषि सम्बन्धी मामलों में महत्त्वपूर्ण निर्णय भी लेती हैं।
महिला कृषकों की समस्याएँः
कृषि उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका होते हुए भी उन्हें बहुत सी बाधाओं का सामना करना पड़ता है। कृषि कार्यों में लगी महिलाओं की अपनी कोई अलग पहचान नहीं है क्योकिं अर्थव्यवस्था की बागडोर प्रायः पुरूषों के पास रहती है। ज्यादातर के पास जमीनों के मालिकाना हक भी नहीं है। उनकी अशिक्षा, अनभिज्ञता, उदासीनता और अंधविश्वास रास्ते के रोड़े साबित होते हैं। पुरूषों की तुलना में उन्हें मजदूरी भी कम मिलती है। शिक्षा, सूचना तथा मनोरंजन के अवसर उन्हें अपेक्षाकृत कम मिलते हैं।
महिला कृषकों के लिये कार्यक्रमः
- कृषि मंत्रालय के स्तर से भी निरंतर इस बात के प्रयास किये जा रहे हैं कि कृषि कार्यों में लगी ग्रामीण महिलाओं की स्थिति में तेजी से सुधार हो। हमारे देश में कृषि विज्ञान केन्द्रों के द्वारा विकास हेतु कृषि कार्यों में लगी महिलाओं के लिये विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जाते हैं। इनके द्वारा सिर्फ संस्थागत प्रशिक्षण की ही व्यवस्था नहीं की गई है बल्कि गाँवों में ‘‘महिला चर्चा मंडल’’ स्थापना की गई है और उनके माध्यम से महिलाओं के पास उन्नत कृषि एवं गृह विज्ञान के तकनीकों को पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है। आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से महिलाओं के लिये कृषि, पशुपालन, बाल विकास तथा पोषाहार सेे सम्बन्धित तकनीकी सूचनाएँ प्रसारित की जाती है।
प्रसार- प्रयासों के बावजूद बहुत कम महिलाएँ कृषि, पशुपालन, गृह वटिका तथा गृह विज्ञान के नवीनतम तकनीकी से लाभान्वित हुई हैं।
महिला कृषकों की समस्याओं का निदानः
सहकारी समितियों में महिलाओं को सदस्य बनाने के लिये अभियान चलाने की आवश्यकता है जिससे महिलाओं को भी सहकारी समितियों से ऋण, तकनीकी मार्गदर्शन, कृषि उत्पादों का विपणन आदि की सुविधा उपलब्ध हो सके। महिलाओं को संस्थागत-ऋण प्राप्त हो, इसके लिये खेत पर पति-पत्नी के नाम पर संयुक्त पट्टा होना चाहिए। महिलाओं की कुशलता और उनके कृषि औजारों की दक्षता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। राष्ट्र के विकास के लिये कृषि कार्यों में जुड़े ग्रामीण महिलाओं के सशक्तिकरण पर ध्यान दिया जाना बहुत जरूरी है।
पठारी कृषि (बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की त्रैमासिक पत्रिका) जनवरी-दिसम्बर, 2009 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) |
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उर्वरकों की क्षमता बढ़ाने के उपाय (Measures to increase the efficiency of fertilizers) |
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फसल उत्पादन के लिये पोटाश का महत्त्व (Importance of potash for crop production) |
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