कृषि क्षेत्र में नई क्रांति—ई-खेती

भारत के गांवों में जिस गति से विभिन्न तरह की सुविधाएं पहुंच रही हैं, उसी तरह से लोगों के रहन-सहन और कार्य करने की प्रणाली में भी बदलाव आ रहा है। चूंकि भारत की ज्यादातर आबादी गांवों में रहती है, इसलिए गांवों में संचार सुविधा पहुंचने के बाद ई-खेती की दिशा में कदम बढ़ रहे हैं। निजी कंपनियों के सहयोग से पंजाब में ई-खेती की शुरुआत भी हो गई है। अब इसे पूरे देश में विस्तारित करने की तैयारी चल रही है। सरकार की कोशिश है कि संचार क्रांति और हरित क्रांति दोनों को एक साथ लेकर एक नई क्रांति की शुरुआत की जाए, जिससे सशक्त और स्वर्णिम भारत का सपना साकार हो सके।विदेशों की तर्ज पर अब भारत में भी कृषि क्षेत्र में नई क्रांति का सूत्रपात हो गया है। हरित क्रांति के बाद भारत के किसान अब ई-खेती के जरिए नई मिसाल कायम कर रहे हैं। भारत के गांवों में यह नया ही नहीं अनोखा प्रयोग है और यह प्रयोग साकार हो सका है हरित क्रांति और संचार क्रांति के एकसूत्र में पिरोने के बाद। इन दोनों क्रांतियों के युग्म के रूप में अब ई-खेती की शुरुआत हुई है। भारत सरकार की ओर से ई-खेती को बढ़ावा देने की भरसक कोशिश की जा रही है। सरकार की ओर से ई-खेती से जुड़े किसानों को समुचित सुविधाएं वरीयता के आधार पर उपलब्ध कराई जा रही हैं वहीं विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक भी भारत में हो रहे इस नए प्रयोग को लेकर उत्साहित हैं। वे ई-खेती से जुड़े किसानों को लगातार प्रोत्साहित कर रहे हैं। पंजाब में बड़ी संख्या में किसान ई-खेती से जुड़ चुके हैं, जबकि दूसरे राज्यों में भी यह प्रयोग शुरू हो चुका है। यह अलग बात है कि अभी पंजाब जैसी सफलता नहीं मिल पाई है, लेकिन ई-खेती को लेकर जिस तरह से किसानों में उत्साह है, उससे भविष्य की तस्वीर काफी खुशनुमा होने की उम्मीद है।

भारत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले कृषि क्षेत्र में हो रहे इस नए प्रयोग को बेहतरीन तरीके से प्रभावी बनाने की दिशा में निरंतर प्रयास हो रहा है। किसानों को सूचनाओं से लैस कर, उनमें खेती के प्रति ललक पैदा करने और जो किसान खेती से जुड़े हैं, उन्हें अधिक लाभ दिलाने की दिशा में ई-खेती बेहद महत्वपूर्ण है। केंद्र सरकार की ओर से भी मशीनों से की जाने वाली खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। लोकसभा में एक सवाल के जवाब में कृषि और खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री हरीश रावत ने जानकारी दी कि कृषि मंत्रालय केन्द्रीय क्षेत्र की विभिन्न योजनाओं के जरिए खेती के मशीनीकरण को प्रोत्साहन दे रहा है। इन योजनाओं में कृषि का व्यापक प्रबंध, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन, राष्ट्रीय कृषि विकास योजना शामिल हैं। इसके अलावा इन योजनाओं से हितधारकों को मशीनीकरण के बारे में जागरूक बनाना और समुचित कृषि मशीनों और उपकरणों की खरीद के लिए किसानों और अन्य लाभार्थियों को वित्तीय सहायता उपलब्ध कराना शामिल है। इसी के तहत कृषि विभाग की ओर से किसानों के लिए ऐसी व्यवस्था बनाई गई है कि वे किसी भी स्थान से फोन करके कृषि संबंधी जानकारी ले सकते हैं। इसके अलावा किसानों को कंप्यूटर आधारित इंटरनेट के जरिए भी कृषि संबंधी जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से बनाई गई वेबसाइट के जरिए भी किसानों की कृषि से संबंधित सूचनाओं और जानकारियों को एक कोष के रूप में सहेजा गया है। एक औसत के मुताबिक, भारतीय कृषि की वैश्विक उपस्थिति को दर्शाते हुए करीब 166 देशों से प्रति माह 2 लाख से ज्यादा लोग इस साइट से जानकारी हासिल करते हैं। कृषि ई-संसाधनों से संबंधित संकाय, राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान प्रणाली (एनएआरएस) की 2900 से ज्यादा पत्रिकाओं और 124 पुस्तकालयों की पहुंच के लिए निःशुल्क ऑनलाइन सुविधा प्रदान कर रहा है। इससे इस बात का संकेत मिलता है कि भारत भविष्य में ई-खेती की ओर तेजी से बढ़ रहा है।

पंजाब के किसान कर रहे हैं ई-खेती


पंजाब के किसानों में ई-खेती को लेकर काफी ललक है। सरकार की ओर से भी इस दिशा में व्यापक स्तर पर सहयोग मिल रहा है। सबसे ज्यादा ई-खेती का प्रभाव लुधियाना में दिख रहा है। इस इलाके में भूजल स्तर पहले से ही नीचे है, कितनी मात्रा में फसल को पानी दें और फसल में कौन-सी खाद डालें। यह सभी सुविधाएं किसानों को एक पल में ही मिल रही हैं। यह साकार हो सका है ई-खेती के जरिए। इस ई-खेती को साकार करने के लिए अमेरिकी कृषि वैज्ञानिकों की मदद ली जा रही है। लुधियाना में हो रहे इस प्रयोग को देखकर अब दूसरे इलाकों में भी ई-खेती को लेकर किसानों में जागरुकता आई है। लुधियाना में प्रयोग सफल होने के बाद दूसरे इलाकों में इस खेती को बढ़ावा दिए जाने की तैयारी है।

पंजाब के किसानों में ई-खेती को लेकर काफी ललक है। सरकार की ओर से भी इस दिशा में व्यापक स्तर पर सहयोग मिल रहा है। सबसे ज्यादा ई-खेती का प्रभाव लुधियाना में दिख रहा है। इस इलाके में भूजल स्तर पहले से ही नीचे है, कितनी मात्रा में फसल को पानी दें और फसल में कौन-सी खाद डालें। यह सभी सुविधाएं किसानों को एक पल में ही मिल रही हैं। यह साकार हो सका है ई-खेती के जरिए।लुधियाना में किसानों को ई-खेती के प्रति आकर्षित करने का काम कर रही है फील्ड फ्रेश फूड्स प्राइवेट लिमिटेड। इस कंपनी ने एयरटेल के जरिए अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी को यहां से जोड़ रखा है। कंपनी की ओर से कराए जा रहे इस नए प्रयोग को आजमा रहे हैं करीब छह सौ से अधिक किसान। लाडोवाल गांव के करीब तीन सौ एकड़ के किसानों को इस नई तकनीक का केंद्र बनाया गया है। इन किसानों के जरिए यह प्रयोग भी किया जा रहा है कि कम से कम पानी से खेती कैसे की जाए। इसके लिए कोलंबिया विश्वविद्यालय से एक समझौता भी किया गया है। कोलंबिया के वैज्ञानिकों ने खेती से जुड़े किसानों को एक हब सेंटर से जोड़ा है और उस सेंटर को तीन स्तर पर अलग-अलग उपकरणों से जोड़ा गया है। इलैक्ट्रिकल कनेक्टिविटी (ईसी) से जुड़े होने के कारण यहां के किसानों को जो भी समस्या होती है, उसकी जानकारी अमेरिकी वैज्ञानिकों तक पहुंच जाती है। इससे वे वैज्ञानिक अपने विश्वविद्यालय से ही यहां के किसानों की समस्या का समाधान कर देते हैं। किसान यहां के वातावरण और पौधों के लक्षण के बारे में इंटरनेट से जानकारी भेजते रहते हैं। साथ ही किसानों के मन में उठने वाले हर सवाल का भी जवाब मिलता रहा है।

बेबीकॉर्न पर प्रयोग


बेबीकॉर्न की लंबाई भी पानी पर आधारित होती है। जिस साइज का बेबीकॉर्न तैयार करना होता है, उसी हिसाब से फसल में पानी देने की जरूरत होती है।लुधियाना में ई-खेती के साथ ही मक्के की किस्म, जिसे बेबीकॉर्न नाम से जाना जाता है, पर भी प्रयोग किया जा रहा है। क्योंकि यह बेबीकॉर्न बाजार में अच्छी कीमत पर बिकता है और इसके जरिए किसान कम क्षेत्रफल का प्रयोग करके भी अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। इसमें सबसे खास बात यह है कि बेबीकॉर्न की लंबाई भी पानी पर आधारित होती है। जिस साइज का बेबीकॉर्न तैयार करना होता है, उसी हिसाब से फसल में पानी देने की जरूरत होती है। किसानों के ऑनलाइन होने से यह समस्या खत्म हो गई है। किसान हर दो-चार घंटे बाद खेत की स्थिति, फसल की स्थिति और मौसम के बारे में अमेरिकी वैज्ञानिकों को जानकारी देते रहते हैं और वहां से किसानों का मार्गदर्शन होता रहता है। इस वर्ष फार्म से 1200 टन बेबीकॉर्न निर्यात करने का लक्ष्य है। पिछले वर्ष यहां से 800 टन का निर्यात हुआ था। बेबीकॉर्न के बाद हरी मिर्च, केले व धनिया की खेती पर भी फार्म फ्रेश रिसर्च करवाएगी। इनका रिसर्च भी अमेरिकी वैज्ञानिकों की सहायता से किया जाएगा।

विकसित किया है सॉफ्टवेयर


कंपनी के जनरल मैनेजर आरपीएस धालीवाल बताते हैं कि यहां के किसान अमेरिकी वैज्ञानिकों से एग्रो-फोन की सुविधा से जुड़े हैं। कंपनी ने एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया है जो इन 600 किसानों के फोन में है। वह अपनी खेती की समस्या को फार्म के वैज्ञानिकों को बताएंगे और फार्म के वैज्ञानिक अमेरिकन वैज्ञानिकों को ट्रांसलेट कर उनकी समस्याओं का हल निकलवाएंगे।

किसानों को मिल रहा दुगुना लाभ


कांट्रेक्ट फार्मिंग से जुड़े किसान इस नई तकनीक से दुगुना लाभ प्राप्त कर रहे हैं। बेबीकॉर्न से जुड़े किसानों का कहना है कि एक तरफ उन्हें नई तकनीक सीखने का मौका मिल रहा है तो दूसरी तरफ उन्हें कम क्षेत्रफल में अधिक मुनाफा मिल रहा है। किसान वीरेंद्र सिंह, सतविंदर सिंह आदि बताते हैं कि पहले परंपरागत खेती से जहां करीब 50 हजार तक की आमदनी होती थी, वहीं अब ई-खेती के जरिए अमेरिकी वैज्ञानिकों की सलाह के अनुरूप बेबीकॉर्न तैयार करने में प्रति एकड़ करीब 90 हजार रुपए की आमदनी हो रही है। बेबीकॉर्न की फसल 55 दिन में तैयार हो जाती है। इस तरह एक साल में करीब पांच फसलें ली जा सकती हैं।

किसान वीरेंद्र सिंह, सतविंदर सिंह आदि बताते हैं कि पहले परंपरागत खेती से जहां करीब 50 हजार तक की आमदनी होती थी, वहीं अब ई-खेती के जरिए अमेरिकी वैज्ञानिकों की सलाह के अनुरूप बेबीकॉर्न तैयार करने में प्रति एकड़ करीब 90 हजार रुपए की आमदनी हो रही है। बेबीकॉर्न की फसल 55 दिन में तैयार हो जाती है। इस तरह एक साल में करीब पांच फसलें ली जा सकती हैं। इसी तरह किसान दलवीर सिंह बताते हैं कि वैज्ञानिकों से जुड़े रहने के कारण उन्हें कई तरह के फायदे हुए हैं। एक तो किसी भी तरह की समस्या होने पर भटकना नहीं पड़ता है। दूसरे खेत में अधिक पानी नहीं देना पड़ रहा है। खाद से लेकर पानी तक की सलाह मिलने के कारण मिट्टी की उर्वरता भी बची हुई है और भूजल स्तर बरकरार है। अभी तक इस इलाके के किसान सिर्फ बेबीकॉर्न की खेती कर रहे थे, लेकिन अब उनमें खेती के प्रति काफी ललक पैदा हुई है। वैज्ञानिकों की ओर से मिलने वाले सहयोग को देखते हुए अब दूसरी खेती को भी ई-खेती से जोड़ा जा रहा है।

सरकार का प्रयास


पंजाब सरकार की ओर से भी किसानों को ई-खेती से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। इसके लिए सरकार की ओर से किसान सूचना केंद्र विकसित किया गया है। इस केंद्र ने विभिन्न स्थानों पर अपने 200 कियोस्क तैयार किए हैं। सभी कियोस्क को एक सूचना तंत्र से जोड़ा गया है। इन कियोस्कों को कृषि विश्वविद्यालयों से भी संबद्ध किया गया है। ऐसे में कियोस्क संचालक को यदि किसान के सवाल का सही जवाब नहीं मिल पाता है तो वह सीधे विश्वविद्यालय के विशेषज्ञों से संपर्क कराता है और विशेषज्ञ किसानों की समस्या का समाधान कर देते हैं।

कंप्यूटर के जरिए होगी अंगूर की बागवानी


एनआरसीजी के डॉ. पीजी अडसुले ने बताया कि अंगूर किसानों के लिए एनआरसीजी ने कोलकाता की एक एजेंसी से तकनीक हासिल की है। इससे तीन से सात दिन की अवधि के लिए एकदम सटीक भविष्यवाणी मुमकिन है। इसके तहत उपग्रह वेधशाला, जमीनी स्तर पर उपलब्ध जानकारियों और जीआईएस (जियोग्राफिक इनफॉर्मेशन सिस्टम) सॉफ्टवेयर की मदद से तीन से सात दिन की अवधि के लिए सटीक भविष्यवाणी की जा सकती है। जीआईएस की मदद से किसी भी अंगूर के बगीचे पर कब कितनी बारिश होगी, इसकी भी जानकारी मुमकिन है। अंगूर के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए अब इसकी बागवानी कंप्यूटर के जरिए होगी। इसके तहत अंगूर किसानों को इंटरनेट के जरिए मौसम की जानकारी दी जाएगी। साथ ही उन्हें यह भी बताया जाएगा कि मौसम के बदले हुए मिजाज में उनकी फसल पर कौन-सी बीमारी हमला कर सकती है और उससे बचने के क्या उपाय हैं। किसानों को यह सुविधा अंगूर की आने वाली फसल में उपलब्ध कराई जाएगी। इसके लिए किसानों को यूजर आईडी और पासवर्ड मुहैया कराने का काम शुरू किया जा रहा है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के राष्ट्रीय अंगूर अनुसंधान केंद्र (एनआरसीजी) के निदेशक डॉ. पीजी अडसुले के मुताबिक पहले चरण में एनआरसीजी कंप्यूटर के जरिए लगभग 500 अंगूर उत्पादकों तक पहुंच सुनिश्चित करेगा। किसानों को कंप्यूटर सिखाने के लिए जल्द ही प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए जा रहे हैं जिसमें किसानों को यह भी सिखाया जाएगा कि वे मौसम की भविष्यवाणी और बीमारियों से निपटने के लिए दी गई सलाह पर सही तरीके से कैसे अमल करें।

उन्होंने बताया कि अंगूर किसानों के लिए एनआरसीजी ने कोलकाता की एक एजेंसी से तकनीक हासिल की है। इससे तीन से सात दिन की अवधि के लिए एकदम सटीक भविष्यवाणी मुमकिन है। विकसित देशों में भी खेती किसानी में मौसम की सटीक जानकारी के लिए इसी तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके तहत उपग्रह वेधशाला, जमीनी स्तर पर उपलब्ध जानकारियों और जीआईएस (जियोग्राफिक इनफॉर्मेशन सिस्टम) सॉफ्टवेयर की मदद से तीन से सात दिन की अवधि के लिए सटीक भविष्यवाणी की जा सकती है। जीआईएस की मदद से किसी भी अंगूर के बगीचे पर कब कितनी बारिश होगी, इसकी भी जानकारी मुमकिन है।

कृषि क्षेत्र में शैक्षिक विकास


शिक्षा क्षेत्र की उच्च शिक्षा का भी विस्तारीकरण किया जा रहा है, जिससे किसानों को अधिक से अधिक कृषि वैज्ञानिक मिल सके। वर्तमान में 97 भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद संस्थान, 54 राज्य कृषि विश्वविद्यालय, 5 डीम्ड विश्वविद्यालय, 592 कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) और एक केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय हैं। इसी तरह चार ऐसे केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं, जिनमें कृषि की फैकल्टी हैं। इन कृषि विश्वविद्यालयों में सिर्फ शिक्षा ही नहीं दी जाती है बल्कि विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के संबंध में शोध और कृषि वैज्ञानिक पैदा करने के साथ ही किसानों को खेती के बारे में शिक्षित करना भी शामिल है।

विभिन्न स्थानों पर खुले कृषि प्रसार केंद्रों के जरिए किसानों को खेती से लेकर खेती से जुड़े अन्य व्यवसायों के बारे में जागरूक किया जा रहा है। कुछ विश्वविद्यालयों ने अपनी वेबसाइट और कॉल सेंटर भी विकसित किए हैं। इन सेंटरों पर ऐसी व्यवस्था की गई है कि किसान किसी भी समय खेती के संबंध में विशेषज्ञों, टेलीफोन या संचार के जरिए जानकारी ले सकते हैं।

भविष्य की ई-खेती


ग्लोबल एग्रीकल्चर इनफॉर्मेशन नेटवर्क अमेरिकी निर्यातकों को वस्तुओं से संबंधित इलेक्ट्रॉनिक सूचनाएं दे रहा है। यह नेटवर्क वर्तमान वर्ष का लेखा-जोखा और अगले वर्ष की खाद्य एवं कृषि उत्पाद के खबर की पूर्व सूचना दे देता है, इससे उत्पादन, आपूर्ति एवं वितरण की व्यवस्था हो जाती है। भारत में भी ऐसे नेटवर्क को विकसित करने की तैयारी है। हालांकि भारत में एग्रीकल्चर इनफॉर्मेशन नेटवर्क के जरिए अमेरिका जैसा प्रयोग किया जा रहा है, लेकिन इसे और गतिशील बनाने की जरूरत है। अभी तक भारत में किसान कॉल सेंटर, ई-चौपाल, हेल्पलाइन, आदि के जरिए किसानों को सूचनाएं दी जा रही हैं, लेकिन भविष्य में यह व्यवस्था और मुकम्मल होगी। इस संबंध में भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र एवं भारत सरकार, कृषि मंत्रालय व विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों की ओर से संयुक्त कोशिशें जारी हैं। भारत में ऐसा तंत्र विकसित करने की कोशिश की जा रही है, जो सिर्फ किसानों को ही नहीं बल्कि बाजार को भी किसानों तक पहुंचाने में लाभकारी हो सके। किसान अपनी उपज का मूल्य तो जाने ही, साथ ही उन्हें विदेशों में अपनाई जा रही तकनीक सरल भाषा में उपलब्ध हो सके, इसके लिए भी कोशिशें जारी हैं।

पूर्वोत्तर में तकनीकी विकास पर जोर


कृषि मंत्रालय की ओर से पूर्वोत्तर में कृषि तकनीक के विकास पर जोर दिया जा रहा है। संचार सुविधाओं के विस्तार के साथ ही पूर्वोत्तर के राज्यों में भी कृषि विकास को संचार से जोड़ने की तैयारी है। पूर्वोत्तर क्षेत्र की ओर विशेष ध्यान देते हुए आईसीएआर ने पूर्वोत्तर के लिए कृषि में ज्ञान सूचना भंडार का शुभारंभ किया है। इसका उद्देश्य सही प्रौद्योगिकी और अभिनव पद्धति का उपयोग करते हुए कृषि समाधान सहित पूर्वोत्तर क्षेत्र की कृषि उत्पादन व्यवस्था को सशक्त बनाना है। फिलहाल यह इस क्षेत्र में कार्य कर रहे सार्वजनिक, निजी, राज्य और क्षेत्रीय संगठनों के साथ समन्वय बनाते हुए भागीदारों के बीच संपर्क के लिए एक मंच के तौर पर कार्य करेगा।

रोबोट कर रहा खेतीबाड़ी


हमारा भविष्य तकनीकी रूप से लगातार सुदृढ़ हो रहा है। विभिन्न देशों में दूसरे क्षेत्रों के साथ ही खेती के मामले में भी रोबोट की मदद ली जा रही है। जाहिर-सी बात है कि जब किसी भी देश में तकनीक विकसित होगी तो भविष्य में उसका भारत आना एक तरह से तय है। ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि भारत में भी रोबोट के सहारे खेती होगी। फिलहाल मैक्सिको के एक छात्र ने एक ऐसा रोबोट बनाया है जो खेती कर सकता है। यह रोबोट मकई की खेती के लिए जुताई, रोपण, छिड़काव व फसल की कटाई सहित सभी काम कर सकता है। नेशनल ऑटोनॉमस यूनिवर्सिटी ऑफ मैक्सिको (यूएनएएम) की ओर से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया कि रोबोट को तारों की मदद से मकई की खेती के लिए तैयार किया गया है। इसके आविष्कारक एडुएर्डो रोडरिग्ज हर्नांडेज ने इस रोबोट की पूरी कार्यप्रणाली और उसके नियंत्रण की अवधारणा विकसित की है।

पिछले सितंबर में विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के एक स्नातकोत्तर कार्यक्रम के दौरान इस तरह का रोबोट विकसित करने का विचार आया। मेकैनोट्रिक्स विषय के शोधकर्ता हर्नांडेज ने एक ऐसा रोबोट बनाने का निर्णय लिया जो खेतीबाड़ी में दक्ष हो ताकि मकई की खेती के लिए इसका इस्तेमाल किया जा सके। हर्नांडेज ने कहा कि इस तरह का रोबोट चार मीनारों से बना होगा। इसे किसी भी प्रकार की समतल या ढलान वाली भूमि पर लगाया जा सकेगा। इस खोज के अपने फायदे और कुछ कमियां भी हैं। इससे कम लागत में उत्पादन हो सकेगा लेकिन यह रोबोट तारों से नियंत्रित होगा इसलिए कम या सीमित गति कर सकेगा। हर्नांडेज का कहना है कि यह रोबोट बुवाई से पहले कृषि भूमि तैयार कर सकेगा।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
ई-मेल : sunil.raunak@gmail.com

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