देश के कई भागों में ‘मेक इन इंडिया’ योजना के अन्तर्गत मेगा फूड पार्कों की स्थापना की गई है, इससे रोजगार के अवसर बढ़ाने में मदद मिलेगी। मेगा फूड पार्क योजना का मूल उद्देश्य किसानों, प्रसंस्करणकर्ताओं और रिटेल कारोबारियों को एक साथ लाते हुए कृषि उत्पादों को बाजार से जोड़ने के लिए एक मशीनरी उपलब्ध कराना होता है जिससे कृषि उत्पादों की बर्बादी को न्यूनतम कर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों का सृजन किया जा सके।
आजादी के 73 साल पूरे होने पर देश ने कई मामलों में मुख्यतः कृषि व ग्रामीण क्षेत्र के विकास में, लम्बी छलांग लगाई है। आज देश कृषि-आधारित उद्योगों का जाल बिछाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। कृषि-आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए सड़क, बिजली, पानी, आसान ऋण, सस्ती व तेज इंटरनेट सेवा की व्यवस्था मजबूत की जा रही है। साथ ही, क्वालिटी टेस्टिंग लैब और कोल्ड स्टोरेज की सुविधा भी दी जा रही है।
कृषि आधारित उद्योग तुलनात्मक रूप से कम निवेश वाले, ग्रामीण क्षेत्रों में आय स्थापित करने और रोजगार प्रदान करने वाले होते हैं। ये उद्योग कृषि-आधारित कच्चे माल के प्रभावी और कुशल उपयोग की सुविधा प्रदान करते हैं। कृषि-आधारित उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में एक औद्योगिक संस्कृति का संचार करते हैं और इस प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में आधुनिकीकरण और नवाचार लाते हैं। कृषि-आधारित कुछ उद्योगों जैसे प्रसंस्कृत खाद्य और खाद्य पदार्थों में जबरदस्त निर्यात क्षमता है। विकास प्रक्रिया में ग्रामीणों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए कृषि-आधारित उद्योगों की स्थापना वक्त की जरूरत है।
विश्व में दूध, केला, आम, मसाले, झींगा मछली और दालों के उत्पादन में भारत का प्रथम स्थान है। इसके अलावा अनाजों, सब्जियों और चाय का भारत दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। देश में वर्ष 2017-18 में 30-71 करोड़ टन बागवानी फसलों, 28.5 करोड़ टन खाद्यान्नों, 17.6 करोड़ टन दूध और 1.26 करोड़ टन मछली और समुद्री उत्पादों का उत्पादन हुआ। हमारे देश में फल और सब्जियों के प्रसंस्करण का वर्तमान-स्तर 2 प्रतिशत, पोल्ट्री उत्पादों का 6 प्रतिशत, समुद्री उत्पादों का 8 प्रतिशत और दूध का 35 प्रतिशत है। यद्यपि विभिन्न कारणों से 30 से 35 प्रतिशत कृषि उत्पाद हर वर्ष बर्बाद हो जाते हैं।
भारत विश्व में सबसे तेजी से आगे बढ़ती अर्थव्यवस्था है। आर्थिक विकास की दृष्टि से भारत में कृषि-आधारित उद्योगों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। राष्ट्रीय आय में 14.8 प्रतिशत के योगदान के साथ-साथ कृषि देश की 65 प्रतिशत आबादी को रोजगार व आजीविका भी प्रदान करती है। कृषि-आधारित उद्योग-धंधों में कपास उद्योग, गुड व खांडसारी, फल व सब्जियों-आधारित, आलू-आधारित कृषि उद्योग, सोयाबीन-आधारित, तिलहन-आधारित, जूट-आधारित व खाद्य संवर्धन-आधारित आदि प्रमुख उद्योग हैं। पिछले कुछ वर्षों में दूसरे उद्योगों की भांति कृषि-आधारित उद्योगों में भी काफी सुधार हुआ है। हाल ही में कृषि-आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए अनेक सरकारी योजनाओं की शुरुआत की गई, जिनमें प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन, स्टार्टअप आदि प्रमुख हैं। साथ ही, कृषि आधारित उद्योगों हेतु नई-नई प्रौद्योगिकियां, तकनीकियां एवं उन्नत मशीनें विकसित की गई हैं। परिणामस्वरूप ग्रामीण युवाओं व किसानों को स्वरोजगार के साथ-साथ आय बढ़ाने और उन्हें आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा देने में मदद मिली है।
सरकारी योजनाएं
कृषि-आधारित उद्योगों हेतु पूंजी व्यवस्था करने व संसाधन जुटाने में सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं द्वारा अलग-अलग तरीके से सहारा दिया जा रहा है। कृषि- आधारित उद्योगों से बड़े उद्योगों की अपेक्षा प्रति इकाई पूंजी द्वारा अधिक लाभ तो कमाया ही जा सकता है। साथ ही, यह उद्योग रोजगारपरक भी होते हैं। कृषि-आधारित उद्योगों हेतु कुछ प्रमुख सरकारी योजनाओं का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है-
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना भारत सरकार की एक महत्त्वपूर्ण योजना है। इस योजना के तहत 2020 तक एक करोड़ युवाओं को प्रशिक्षण देने की योजना है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य ऐसे लोगों को रोजगार मुहैया कराना है जो कम पढ़े-लिखे हैं या जो बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं। साथ ही, देश के युवाओं को उद्योगों से जुड़ा प्रशिक्षण देकर उनकी योग्यतानुसार रोजगार के काबिल बनाना है जिससे युवाओं की तरक्की के लिए कुछ नयापन लाया जा सके। यह केन्द्र सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं में से एक है। यह योजना कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय की ओर से चलाई जाती है। इस योजना में 3 महीने, 6 महीने और 1 साल के लिए रजिस्ट्रेशन होता है। कोर्स पूरा करने के बाद एक सर्टिफिकेट दिया जाता है। यह प्रमाणपत्र पूरे देश में मान्य होता है। इसके तहत वर्ष 2022 तक 40.2 करोड़ युवाओं को शामिल करने की योजना है। इसके अलावा, इस योजना से अधिक से अधिक लोग जुड़ सकें, इसके लिए युवाओं को ऋण प्राप्त करने की भी सुविधा है। इसके अन्तर्गत सरकार ने कई टेलीकॉम कम्पनियों को इस कार्य के लिए अपने साथ जोड रखा है, जो मैसेज के द्वारा इस योजना को सभी लोगों तक पहुँचाने का कार्य करती है। जिसके तहत योजना से जुड़े लोगों को मैसेज करके एक टोल फ्री नम्बर दिया जाता है जिस पर आवेदक को मिस्ड कॉल देना होता है। मिस्ड कॉल के बाद आवेदक आईबीआर सुविधा से जुड़ जाएंगे। इसके बाद आवेदक को अपनी जानकारी निर्देशानुसार भेजनी होती है। आवेदक के द्वारा भेजी गई जानकारी कौशल विकास योजना सिस्टम में सुरक्षित रख ली जाती है। यह जानकारी मिलने के बाद आवेदनकर्ता को उसी क्षेत्र में यानी उसके निवास स्थान को आस-पास प्रशिक्षण केन्द्र से जोड़ा जाएगा।
प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना
कृषि उपज की बर्बादी को कम करने के लिए भारत सरकार ने 14वें वित्त आयोग के चक्र 2016-20 की अवधि के लिए 6000 करोड़ रुपए का आवंटन प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना के लिए किया है। इस योजना का उद्देश्य खेत से लेकर खुदरा बिक्री केन्द्र तक दक्ष आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन के साथ आधुनिक अवसंरचना का सृजन करना है। इसके अन्तर्गत खाद्य प्रसंस्करण में वृद्धि करना, खाद्य प्रसंस्करण का आधुनिकीकरण करना, प्रसंस्कृत खाद्य-पदार्थों का निर्यात बढ़ाना, डेयरी व मत्स्य आदि कृषि उत्पादों का मूल्य-संवर्धन करना, ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसर का सृजन करना, उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर सुरक्षित और सुविधाजनक प्रसंस्कृत खाद्य उपलब्धता सुनिश्चित करना आदि महत्त्वपूर्ण पहल की जा रही है। इस योजना के तहत लगभग 20 लाख किसानों को फायदा होगा। साथ ही, ग्रामीण क्षेत्रों में 5 से 6 लाख प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर सृजित होने की सम्भावना है। सरकार प्रधानमंत्री किसान सम्पदा योजना के अन्तर्गत सरकारी अनुदान, नाबार्ड और मुद्रा योजना के तहत आसान शर्तों एवं सस्ती ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध करा रही है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के स्वयंसहायता समूहों के अन्तर्गत अत्यंत गरीब परिवारों की महिलाओं को शामिल करने पर जोर देने से भी यह सुनिश्चित करने में मदद मिली है कि गरीब परिवारों की अधिकता वाले क्षेत्रों को ग्रामीण गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में प्राथमिकता मिले। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन-आज महिला शक्ति द्वारा ग्रामीण उत्थान की अद्भुत मिसाल बन गया है। इसके अन्तर्गत गरीब ग्रामीण परिवार की महिलाओंको स्वयंसहायता समूहों के रूप में प्रशासनिक सहायता से संगठित किया जाता है और उन्हें किसी एक कार्य में कौशल प्रदान किया जाता है जिसमें आमदनी की पर्याप्त सम्भावना हो। कुशलता प्राप्त करने के बाद उनके लिए किसी बैंक या किसी अन्य वित्तीय संस्था से ऋण की व्यवस्था की जाती है। महिला स्वंय सहायता समूहों ने पिछले पाँच वर्षों में कुल 1.64 लाख करोड़ रुपए बैंक ऋण के रूप में जुटाए हैं।
स्टार्टअप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम
भारत सरकार ने कुशल और प्रशिक्षित युवाओं को आर्थिक सहायता प्रदान कर स्वरोजगार की दिशा में आगे बढ़ाने के लिए स्टार्टअप ग्राम उद्यमिता कार्यक्रम शुरू किया है। इसके अन्तर्गत देश के हर जिले में स्थित कृषि विज्ञान केन्द्रों के द्वारा कृषि-आधारित उद्योग-धंधों के लिए लघु अवधि प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए गए हैं। प्रशिक्षण के उपरांत ग्रामीण महिलाओं, युवाओं और किसानों को उद्यमिता विकास कार्यक्रमों की सहायता से अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया जाता है। इसके अलावा, क्षेत्रीय-स्तर पर ही ग्रामीणों की समस्याओं और चुनौतियों का निदान किया जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में मूलभूत बदलावों के उद्देश्य के साथ इस योजना की शुरुआत की गई है। आज कृषि, पशुपालन और खाद्य पदार्थों के व्यवसाय से जुड़े लोग इसका लाभ उठा रहे हैं। वर्तमान समय में देशभर में कृषि-आधारित उद्यमों/स्टार्टअप की हर क्षेत्र में भरमार है जो ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। इसके पीछे दो बड़ी वजह हैं, एक तो यह कि युवा स्वरोजगार की ओर अधिक आकर्षित हैं। दूसरा, वे कुछ नया करने का जुनून रखते हैं। इसके अलावा, सरकार और सरकारी योजनाएं भी एक महत्त्वपूर्ण पहलू हैं। वक्त की जरूरत को देखते हुए सरकार ने हर क्षेत्र में स्टार्टअप के लिए अनेक योजनाएं शुरू की हैं। उदाहरणनार्थ उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में ‘दृष्टि’ नामक संस्था ने तीस गाँवों की 250 महिला किसानों को कम रसायनों का प्रयोग करके सब्जियां उगाने की तकनीक सिखाई, उसके बाद स्टार्टअप शुरू किया। इसमें ‘सखी फार्मर’ ने लोगों को ताजी हरी सब्जियों का जायका चखाने का बीड़ा उठाया है। मौसमी सब्जियों को खेतों से सीधे किचन तक पहुँचाने के लिए ‘सखी फार्मर’ के नाम से एक साल पहले शुरू हुआ पॉयलट प्रोजेक्ट अब लोगों के दिल में उतरने लगा है। आज शहर के आधा दर्जन मोहल्लों में तो ‘सखी फार्मर’ ताजी हरी सब्जियों का नया सिग्नेचर बन गया है।
दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना
ग्रामीण युवाओं के कौशल विकास और रोजगार को सुनिश्चित करने के लिए इसे पूरे देश में लागू किया गया है। इस योजना का लाभ 5.5 करोड़ कुशल युवाओं को मिलने की उम्मीद है। यह योजना ‘मेक इन इंडिया’ की मुख्य भागीदार है। समाज के वंचित समुदायों के साथ-साथ दिव्यांग जन और महिलाओं को भी कौशल-विकास सम्बन्धी प्रशिक्षण प्रदान कर उन्हें इस योजना का लाभ दिया जाएगा। यह एक ऐसी पहल है जिसमें ग्रामीण युवाओं और महिलाओं को हुनरमंद बनाया जा रहा है। इस तरह, दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना युवाओं के लिए रोजगार के अपार अवसर प्रदान कर रही है। इसके अन्तर्गत, सरकार ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षण देकर उन्हें रोजगार के लिए तैयार करती है। इसके बाद सम्बन्धित उद्योग में उन्हें रोजगार दिलाने में भी सहायता करती है। यह एक व्यापक कार्यक्रम है, जिसके अन्तर्गत आज देशभर में ग्यारह सौ से ज्यादा प्रशिक्षण केन्द्र काम कर रहे हैं जो लगभग 300 व्यवसायों में आधुनिक कौशल प्रदान करते हैं। इन केन्द्रों द्वारा अब तक 2.70 लाख युवाओं को प्रशिक्षित किया जा चुका है जिनमें से लगभग 50 प्रतिशत विभिन्न उद्यमों में रोजगार प्राप्त कर चुके हैं।
ग्राम स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आर सेटी)
देशभर में गरीबी दूर करने और ग्रामीणों को रोजगार व प्रशिक्षण देने हेतु ग्राम स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान (आर सेटी) खोले जा रहे हैं जिनमें कृषि सम्बन्धी कार्यों के अलावा ग्रामीण उद्यमिता के अन्य व्यवसायों में भी प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। इनका संचालन बैंकों द्वारा किया जाता है। ग्रामीण विकास मंत्रालय और राज्य सरकारें इसमें साझेदार हैं। इनका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण युवाओं को प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता देकर स्वरोजगार के लिए सक्षम बनाना है। इसके बाद ग्रामीण युवा प्रशिक्षु के रूप में उद्योगों में प्रशिक्षण प्राप्त करके अपना रोजगार आरम्भ कर सकते हैं। इस प्रशिक्षण के दौरान भारत सरकार द्वारा युवाओं की वित्तीय मदद भी की जाती है। इस प्रकार, ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं का पलायन रोकने में भी यह योजना कारगर और लाभदायक सिद्ध होगी।
एस्पायर
सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग मंत्रालय द्वारा वर्ष 2015 में इनोवेशन, ऑन्त्रप्रन्योरशिप (स्वरोजगार) और कृषि-आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए इस योजना की शुरुआत की गई थी जिसे हाल में नए प्रावधानों के साथ अधिक उपयोगी बनाया गया है। इसके अन्तर्गत वर्ष 2019-20 के दौरान 80 आजीविका बिजनेस इनक्यूबेटर्स और 20 प्रौद्योगिकी बिजनेस इनक्यूबेटर्स स्थापित किए जाने का प्रस्ताव है। कुल 75,000 आकांक्षी उद्मियों को कृषि-आधारित उद्योगों में प्रशिक्षण देकर कुशल बनाया जाएगा जिससे ग्रामीण क्षेत्र में प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, दुग्ध पदार्थ, पशु आहार, दूध के संग्रहण और विपणन जैसे कृषि-आधारित उद्योगों को बढ़ावा मिल सके।
प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना
देश के अनेक क्षेत्रों में जल संसाधनों की उपलब्धता के कारण किसान मछली पालन को अतिरिक्त व्यवसाय के रूप में अपना सकते हैं। भूमि के एक छोटे से टुकड़े में तालाब बनाकर या तालाब को किराए पर लेकर भी व्यावसायिक ढंग से मछली पालन किया जा सकता है। मछली उद्योग से जुड़े अन्य कार्यों जैसे कि मछलियों का श्रेणीकरण एवं पैकिंग करना, उन्हें सुखाना एवं उनका पाउडर बनाना तथा बिक्री करने आदि से काफी लोगों को रोजगार प्राप्त हो सकता है। इस सम्भावना को देखते हुए प्रधानमंत्री मत्स्य सम्पदा योजना की शुरुआत की गई है। परन्तु इसका फायदा केवल मछली उत्पादक तक सीमित न रहे, इसके लिए मत्स्य उद्यम को विकसित किया जा रहा है। इसके लिए मत्स्य उद्योग से सम्बन्धित बुनियादी सुविधाओं का विकास किया जाएगा। साथ ही, पहले से उपलब्ध सुविधाओं के आधुनिकीकरण और सरलीकरण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। मछली पकड़ने के बाद प्रसंस्करण और गुणवत्ता नियंत्रण पर भी ध्यान दिया जाएगा। इस प्रकार मत्स्य प्रबंधन पर एक पूरी रूपरेखा बना ली गई है ताकि इससे सम्बन्धित मूल्य-श्रृंखला विकसित हो सके।
मेगा फूड पार्क योजना
देश के कई भागों में ‘मेक इन इंडिया’ योजना के अन्तर्गत मेगा फूड पार्कों की स्थापना की गई है। इससे वहाँ रोजगार के अवसर बढ़ाने में मदद मिलेगी। मेगा फूड पार्क योजना का मूल उद्देश्य किसानों, प्रसंस्करण कर्ताओं और रिटेल कारोबारियों को एक साथ लाते हुए कृषि उत्पादों को बाजार से जोड़ने के लिए एक मशीनरी उपलब्ध कराना होता है जिससे कृषि उत्पादों की बर्बादी को न्यूनतम कर ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों का सृजन किया जा सके। इससे ग्रामीण युवाओं व किसानों को सबसे ज्यादा फायदा होगा। इस योजना का क्रियान्वयन खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है। इस योजना के कार्यान्वयन के फलस्वरूप कुशल आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन से युक्त आधुनिक आधारभूत संरचना का विकास होगा जिससे खेत का उत्पाद सीधे रिटेल आउटलेट तक पहुँच सकेगा। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या कम करने के अलावा, देश और ग्रामीण क्षेत्र की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।
एग्रीबिजनेस
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने नाबार्ड के सहयोग से किसानों को आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने और कृषि में आधुनिक तकनीकी अपनाने के लिए एग्रीबिजनेस कार्यक्रम की शुरुआत की है। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य किसानों द्वारा फसल उत्पादन में नवीनतम प्रौद्योगिकी व प्राप्त फसल उत्पादों का मूल्य संवर्धन करना है। इसके अन्तर्गत, ग्रामीण युवाओं को कृषि तकनीकी और मैनेजमेंट तकनीकी के बारे में प्रशिक्षित करने के साथ-साथ स्वयं का एग्रीबिजनेस सेंटर स्थापित करने के लिए सक्षम बनाना है। इसके तहत, कृषि स्नात्तकों को कृषि के विभिन्न क्षेत्रों जैसे बागवानी, रेशम उद्योग, डेयरी उद्योग, मुर्गीपालन, मधुमक्खी पालन और मत्स्य पालन इत्यादि कृषि सम्बन्धी विषयों पर प्रशिक्षण दिया जाता है। सरकार ने कृषि उद्यम स्थापना के लिए विशेष स्टार्टअप ऋण सहायता योजना आरम्भ की है। इन केन्द्रों के माध्यम से ग्रामीण और स्थानीय-स्तर पर लाखों युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराया जा सकता है।
उपरोक्त योजनाओं में ग्रामीणों युवाओं, महिलाओं, किसानों व पशुपालकों को केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा सब्सिडी व ऋण सुविधा भी दी जा रही है। किसान भाई अपनी तहसील व जिले में स्थित बैंकों और कृषि विभाग के कार्यालय में जाकर इन योजनाओं के बारे में जानकारी ले सकते हैं।
प्रमुख उद्योग
ग्रामीण क्षेत्रों में फसलों से प्राप्त उत्पादों के प्रसंस्करण व परिरक्षण से अनेक कृषि-आधारित उद्योगों का प्रशिक्षण प्राप्त कर स्वरोजगार के रूप में अपनाया जा सकता है। जैसे मूंगफली से भुने हुए नमकीन दाने, चिक्की, दूध व दही बनाना; सोयाबीन से दूध व दही बनाना;फलों से शर्बत, जैली व स्क्वॉश बनाना; आलू व केले से शीरे व अंगूर से शराब व अल्कोहल बनाना; विभिन्न तिलहनों से तेल निकालना; तलहनी उत्पादों से दालें बनाना; धान से चावल निकालना आदि। इसके अलावा, दूध के परिरक्षण व पैकिंग के साथ-साथ इससे बनने वाले विभिन्न उत्पादों जैसाकि दूध का पाउडर, दही, छाछ, मक्खन, घी, पनीर आदि के द्वारा दूध का मूल्य-संवर्धन किया जा सकता है। फूलों से सुगंधित इत्र बनाना; लाख से चूड़ियां तथा खिलौने बनाना; कपास के बीजों से रूई अलग करना तथा दबाव डालकर रूई का गठ्ठर बनाना; जूट व पटसन से रेशे निकालने के अलावा कृषि के विभिन्न उत्पादों से अचार एवं पापड़ बनाना आदि के द्वारा मूल्य-संवर्धन किया जा सकता है और कम पूंजी लगाकर स्वरोजगार प्राप्त किया जा सकता है। इसके अलावा कृषि-आधारित उद्योगों में ताड़, बांस, अरहर तथा कुछ अन्य फसलों एवं घासों के तनों एवं पत्तियों द्वारा डलियां, टोकरियां, चटाईयां, टोप व टोपियां तथा हस्तचालित पंखे बुनना, मूंज या सरपत से बान (चारपाई हेतु रस्सी) व मोढ़े बनाना, बेंत से कुर्सी वे मेज बनाना आदि प्रमुख हैं। इनके अलावा, रुई से रजाई-गद्दे व तकिए बनाने के अलावा सूत बनाकर हथकरघा-निर्मित सूती कपड़ा बनाने; जूट एवं पटसन के रेशे से विभिन्न प्रकार के थैले टाट, निवाड़ व गलीचों की बुनाई करने जैसे उद्योगों को अपनाया जा सकता है। लकड़ी का फर्नीचर बनाना; स्ट्रा बोर्ड, कार्डबोर्ड व साफ्टबोर्ड बनाना तथा साबुन बनाना आदि कुछ अन्य उद्योगों द्वारा स्वरोजगार पाया जा सकता है।
कृषि-आधारित उद्योगों को अपनाते समय निम्नलिखित मुख्य बातों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए-
ऋण व्यवस्था
रोजगार सृजन में कृषि-आधारित उद्योगों की बहुत बड़ी भूमिका होती है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि पर आधारित उद्योगों द्वारा ग्रामीण युवकों को कम पूंजी से भी रोजगार मिल सकता है। कृषि-आधारित उद्योग-धंधों हेतु संसाधन जुटाने के लिए पूंजी व्यवस्था करने में ग्रामीण बैंकों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की कृषि विकास शाखाओं एवं सहकारी समितियों का बहुत बड़ा योगदान होता है। इन संस्थानों के माध्यम से कृषि-आधारित उद्योग धन्धों को आरम्भ करने हेतु सरकार द्वारा संचालित विभिन्न योजनाओं के तहत ग्रामीण बेरोजगारों को कम ब्याज दर तथा आसान किश्तों पर ऋण दिया जाता है।
कृषि-आधारित उद्योगों का चुनाव
सामान्यतः किसी उद्योग का चुनाव करने से पूर्व हम यह सोचते हैं कि इस उद्योग को करने से हमें कितना लाभ मिलेगा और लाभ मिलने की स्थिति में ही हम उस उद्योग को आगे बढ़ाते हैं। कृषि-आधारित उद्योग प्रारम्भ करते समय भी यही व्यावसायिक दृष्टिकोण होना चाहिए। प्रत्येक निर्णय लेते समय व्यावसायिक पहलुओं पर अवश्य ध्यान देना चाहिए। सर्वप्रथम अपने संसाधनों के अनुरूप कृषि से सम्बन्धित उद्योग का चुनाव करें ताकि उपलब्ध संसाधनों का प्रभावी व वैकल्पिक उपयोग करके कम लागत से प्रति इकाई अधिक लाभ कमा सकें। इसके अलावा, सम्बन्धित उद्योगों से प्राप्त उत्पादों का अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए स्थानीय बाजार में इनकी मांग को सुनिश्चित करके ही इन उद्योगों की शुरुआत करनी चाहिए।
जमीन व पूंजी की उपलब्धता के अनुसार ही कृषि-आधारित उद्योग लगाएं
कृषि-आधारित उद्योगों के लिए अन्य संसाधनों के साथ-साथ जमीन एवं पूंजी महत्त्वपूर्ण घटक हैं। अतः जिनके पास पर्याप्त जमीन एवं पूंजी है, उनके लिए तो कृषि-आधारित उद्योग लगाने हेतु कोई समस्या होनी ही नहीं चाहिए। मगर जिनके पास जमीन तथा पूंजी कम है या नही है, वह भी कृषि-आधारित उद्योग हेतु जमीन को पट्टे पर ले सकते हैं। बंटाईदार या हिस्सेदारी पर कृषि-आधारित ऐसे उद्योग लगा सकते हैं जिनमें जमीन की जरूरत नहीं के बराबर होती है तथा कम पूंजी में भी काम चल जाता है। कम जमीन वाले किसानों का समूह सहकारी या सामूहिक उद्योगों को विकल्प के रूप में अपना सकता है, जिसमें समूह के सदस्य अपने-अपने संसाधनों को एकत्र करके उद्योग लगा सकते हैं, और प्राप्त लाभांश को संसाधनों की प्रति इकाई के आधार पर बांट सकते हैं।
लाभ लागत अनुपात का रखे ध्यान
दूसरे उद्योगों की भांति कृषि-आधारित उद्योग में लगाई गई लागत के द्वारा सम्भावित उत्पादन पर ध्यान देना ही कृषि का असली औद्योगिकीकरण है। कृषि-आधारित उद्योगों के चुनाव के समय पूंजी की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए कम लागत पर अधिक लाभ देने वाले उद्योगों को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसके अलावा, कृषि-आधारित उद्योगों में लगाई जाने वाली लागत को तब तक बढ़ाते रहना चाहिए, जब तक लागत की प्रति इकाई पर लाभ होता रहे और अधिकतम लाभ पहुँचने पर लागत को बढ़ाना बंदकर देना चाहिए। कृषि-आधारित उद्योगों में लगने वाली लागत और आमदनी का ब्यौरा अवश्य रखें ताकि सही लाभ का पता चल सके और प्राप्त लाभ के आधार पर सम्बन्धित उद्योग के विस्तार पर विचार किया जा सके।
सरकारी योजनाओं का लाभ उठाएं
ग्रामीणों, किसानों, पशुपालकों व बेरोजगार युवाओं को इस बात की जानकारी होनी चाहिए कि कृषि-आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कौन-कौन सी सरकारी योजनाएं, सब्सिडी तथा सुविधाएं उपलब्ध हैं। सरकार द्वारा उपलब्ध सुविधाओं में कृषि-आधारित उद्योगों के लिए कम अवधि के ऋण तथा भारी मशीनों के लिए कम ब्याज दर व आसान किश्तों पर ऋण सहजता से उपलब्ध कराए जाते हैं। कृषि-आधारित उद्योगों की सुविधाओं के विकास के लिए मशीनों की खरीद, प्रशिक्षण, बिजली, पानी, सड़क या शेड के निर्माण आदि के लिए सरकार द्वारा ऋण की सुविधा के साथ-साथ अनुदान भी मिलता है।
तकनीकी प्रशिक्षण
आज-कल कई सरकारी, गैर-सरकारी संस्थाएं व बैंक किसानों, युवाओं व ग्रामीणों की सहायता के लिए कार्य कर रहे हैं। यदि कृषि-आधारित उद्योगों को छोटे-छोटे समूह बनाकर प्रारम्भ किया जाए तो निश्चित ही अधिक लाभदायक रहेगा। इसके अलावा, आजकल हर जिले में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद व राज्य कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा कृषि विज्ञान केन्द्र अथवा ज्ञान केन्द्रों की स्थापना की गई है। इन केन्द्रों पर कार्यरत वैज्ञानिक समय-समय पर कृषि आधारित उद्योगों के लिए तकनीकी प्रशिक्षण देते हैं। खाद्य प्रसंस्करण विभाग द्वारा फल व सब्जियों के मूल्य-संवर्धन व परीक्षण को प्रोत्साहित करने के लिए साहित्य व पेम्पलेटों के निःशुल्क वितरण के साथ-साथ प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इसके अलावा, केन्द्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों, राज्य सरकारों द्वारा भी कृषि-आधारित उद्योगों के बारे में युवाओं को प्रशिक्षण दिया जाता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कई ऐसे कृषि-आधारित उद्योग हैं, जिनमें थोड़ी-सी मेहनत एवं प्रशिक्षण प्राप्त करके ग्रामीण स्तर पर स्वरोजगार आरम्भ किया जा सकता है। ग्रामीणों को चाहिए कि किसी भी उद्योग को शुरू करने से पहले उसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी हासिल कर लें। इसके लिए तकनीकी प्रशिक्षण की भी अत्यंत आवश्यकता है। उपरोक्त योजनाओं व जानकारी के आधार पर कोई भी ग्रामीण बेरोजगार यह निर्णय कर सकता है कि कृषि-आधारित उद्योगों में से अपनी परिस्थिति के अनुसार वह कौन से उद्योग को अपनाकर अपनी आजीविका चलाने के साथ-साथ लाभ भी कमा सकता है। इसके अलावा, इन उद्योगों की शुरुआत करने से पहले किन-किन बिन्दुओं पर विचार करना आवश्यक है। सरकार द्वारा कौन-कौन सी योजनाएं, सुविधाएं व अनुदान उपलब्ध कराए जा रहे हैं, आदि जानकारियों का लाभ उठाकर ग्रामीण बेरोजगार व्यक्ति स्वरोजगार की तरफ उन्मुख हो सकता है।
(लेखक जल प्रौद्योगिकी केन्द्र, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में कार्यरत हैं।
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