10.1 पृष्ठभूमि
अभी तक हमने बागमती-अधवारा घाटी में बाढ़ और सिंचाई के विभिन्न आयामों पर चर्चा की है और उनके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर एक नज़र डाली है। बाढ़ नियंत्रण की योजनाएं किस तरह और किन परिस्थितियों में शुरू हुई और उनका क्या अंजाम हुआ, इसका भी एक अध्ययन हम कर आये हैं। बागमती नदी के ऊपरी हिस्से में रहने वाले लोग आज भी किस तरह बाढ़ समस्या से जूझ रहे हैं, उसे हमने जानने की कोशिश की है। बागमती के निचले हिस्से की स्थिति, जिसे करेह कहा जाता है, इतनी चिंतनीय है कि देखे बिना विश्वास नहीं किया जा सकता। दरभंगा जिले में हनुमान नगर, केवटी, जाले और बहादुरपुर प्रखंड से शुरू होने वाली तबाही की यह कहानी करेह के माध्यम से बदला घाट में कोसी के हवाले कर दी जाती है। इस रास्ते में समस्तीपुर जिले के वारिस नगर, शिवाजी नगर, सिंधिया, रोसड़ा, हसनपुर तथा बिथान और खगडि़या जिले के अलौली, खगडि़या सदर तथा मानसी प्रखंड पड़ते हैं। बरसात के मौसम में समुद्र सा दिखाई पड़ने वाला यह इलाका इंजीनियरिंग की गैर-जिम्मेवाराना हेकड़ी या मूर्खता का नायाब नमूना है जिसकी जिम्मेवारी लेने का हौसला किसी इंजीनियर को नहीं है और न अपनी गलती के लिए कोई पाश्चाताप करने की मर्यादा ही है। हम इस क्षेत्र के बारे में थोड़ी चर्चा कर लेते हैं।
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