कपड़े से छानकर गंदा पानी पी रहे आदिवासी

कपड़े से छानकर गंदा पानी पी रहे आदिवासी
कपड़े से छानकर गंदा पानी पी रहे आदिवासी

दुनिया के अन्य देशों के तरह भारत भी विकास के रास्ते पर तेजी से बढ़ रहा है। विश्वगुरु बनने का सपना लिए विकास के कई पैमानों पर भारत विभिन्न योजनाओं का संचालन कर रहा है। गरीबी, भुखमरी मिटाने से लेकर अर्थव्यवस्था सुधारने तक के हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन अन्य देशों की भांति भारत में भी पर्यावरण संरक्षण कहीं पीछे छूटता जा रहा है। जंगल तेजी से तबाह हो रहे हैं। जल संकट के मामले में भारत इतिहास के सबसे भीषण दौर से गुजर रहा है। जो सतही जल भारत में शेष बचा है, उसका अधिकांश हिस्सा प्रदूषित है। ऐेसे में शहरी क्षेत्रों में फिल्टर करके पानी की सप्लाई की जा रही है। पहाड़ी इलाकों में प्राकृतिक और झीलों व नदियों आदि का पानी सप्लाई किया जा रहा है, लेकिन अब ये प्राकृतिक स्रोत भी सूखने की कगार पर पहुंच चुके हैं। परंतु सरकार ने फिर से लोगों को नल से जल देने के कई विकल्प सोच लिए हैं। किंतु साफ जल का कोई विकल्प नहीं हैं। यदि इन शहरी इलाकों में गंदा पानी आया, तो लोग हंगा करेंगे। सड़कों पर उतर आएंगे। ऐसा पहले कई बार देखा गया है, कि इससे सरकार एक्शन में भी आती है, लेकिन आदिवासियों की आवाज शायद कभी सरकार तक नहीं पहुंचती। इसलिए वें पीढ़ियों से अभावों में जिंदगी जीते आ रहे हैं। इस अभाव भरी जिंगदी में उनके पास राशन तो है, जो कभी कभी मिल जाता है, लेकिन पीने के लिए पानी नहीं है।

झारखंड के आदिवासी इलाकों में पानी की बड़ी किल्लत है। यहां लोग सालों से इस समस्या का सामना करते आ रहे हैं, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं। यहां लोगों को खाने के लिए तो कभी कभी राशन मिल भी जाता है, लेकिन लाॅकडाउन समस्या काफी बढ़ गई है। ऊपर से फिलहाल रोजगार भी नहीं हैं। डाउन टू अर्थ में प्रकाशित खबर के मुताबिक रांची से 40 किलोमीटर दूर रामगढ़ जिला के सीमा से सटा हुआ आदिवासियों का एक धनकचरा टोला रहता है। आदिवासियों के इस टोले की फिलहाल सबसे बड़ी समस्या जल है। कहने को तो पानी मौलिक अधिकार है, लेकिन इन्हें विभिन्न मौलिक अधिकारों के साथ-साथ जल का मौलिक अधिकार भी ठीक से प्राप्त नहीं हो रहा है। राड़हा पंचात के इस टोले में दस घर हैं, जिनमें 55 लोग रहते हैं। पीने के पाने के लिए पास ही बहने वाली एक नदी पर निर्भर है, लेकिन हालात ये है कि मानों नदी में पानी आखिरी सांस ले रहा हो। इस टोले में शामिल सुंदर मुंडा ने डाउून टू अर्थ को बताया कि ‘‘कई पीढ़ी से नदी का पानी पी कर गुजर बसर कर रहे हैं। मजदूरी से राशन चलता है, लेकिन अब वो भी बंद है। इस बार सरकारी राशन टाइम पर मिल गया है, लेकिन पानी की समस्या पहले की तरह ही है।’’

सर्वविदित है कि भारत में नदियां तेजी से सूख रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक 4500 के करीब नदियां सूख चुकी हैं। कई नदियों अंतिम सांस ले रही हैं, या बरसाती नदी बनकर रह गई हैं। झारखंड के इस आदिवासी इलाके में भी कुछ ऐसा ही है। जिस नदी के जल पर आदिवासी आश्रित हैं, उस नदी का पानी गर्मियों में सूख जाता है। जिस कारण महिलाओं को पानी लाने के लिए दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। महिलाएं बताती हैं, यहां पानी गंदा है, जिस कारण वें कपड़े से छानकर पानी भरते हैं। इसके अलावा यहां आदिवासियों के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं। हालांकि बिजली से लोगों के घर-आंगन तो रोशन हो गए हैं, लेकिन मंजिल तक पहुंचाने वाली सड़के उन्हें आजतक नसीब नहीं हुई। ऐसा नहीं है कि आदिवासियों ने पहले कभी इन सभी अधिकारों की मांग नहीं की। चापाकल और कुंए के लिए कई बार मुखिया और अन्य जन प्रतिनिधि लिखकर ले गए हैं, लेकिन ये कागज केवल फाइलों की शोभा बढ़ा रहे हैं। जमीनी स्तर पर विकास भी यहां मायूस है। 

इस टोले से एक किलोमीटर दूर एक डरिया डेरा टोला है, जो सुकुरहुटु पंचायत में आता है। यहां दस घर हैं, जिनमें करीब 70 लोग रहते हैं। यहां के लोग भी लंबे समय से गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। ये पानी भी नदी से लाया जाता है, जो यहां से काफी दूर है। पानी लाने का जिम्मा महिलाओं के कंधों पर ही होता है, जिसके लिए उन्हें कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वास्तव में आदिवासियों के इस हाल को हम शासन और प्रशासन द्वारा किया गया भेदभाव ही कहेंगे, जो एक गरीब और अमीर, शिक्षित और अशिक्षित के बीच किया जाता है, क्योंकि टोले से महज आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिंदल स्टील प्लांट में लोगों को सभी प्रकार की सुविधाएं दी जा रही हैं। यहां पानी की पर्याप्त सप्लाई की जाती है। टोले से कुछ ही दूरी पर पतरातु बांध है, जिसमें लाखों लीटर पानी जमा है, लेकिन फिर भी आदिवासी बूंद बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। जो पानी उनके नसीब में आ भी रहा है, वो दूषित है। ऐसे में लाॅकडाउन ने उनकी परेशानियों को और ज्यादा बढ़ा दिया है। जहां उन्हें राशन तो जैसे तैसे नसीब हो रहा है, लेकिन पानी उनके लिए आज भी एक सपना बना हुआ है।

दरअसल ये स्थिति केवल झारखंड के आदिवासी इलाकों की नहीं है, बल्कि देश के तमाम हिस्सों में लोगों को पानी का मौलिक अधिकार नहीं मिल पा रहा है। दिल्ली और महाराष्ट्र के कई इलाकों में आज भी घरों में गंदा पानी आता है। चुनावी से पूर्व दिल्ली में गंदे पानी का मामला सुर्खियों में था। तो वहीं पंजाब और हरियाणा में हर साल दूषित पानी के कारण सैंकणों लोग बीमार पड़ते हैं। पानी के कारण यहां लोगों को बड़े पैमाने पर कैंसर भी हो रहा है। बिहार के कई हिस्से साफ पानी के लिए मोहताज हैं। कोलकाता के सैंकड़ों गांव गंदा पानी पी रहे हैं। यहां पीने से लेकर नहाने और कपड़े धोने व आदि कामों के लिए तालाबों का उपयोग किया जाता है। जिससे संक्रमणों के फैलन का खतरा बना रहता है, तो वहीं दूसरी तरफ शहरों में साफ और पर्याप्त पानी पहुंचाने के प्रयास गांवों की अपेक्षा काफी तेज हैं। ऐसे में सरकार को गंभीर होने की जरूरत है और आदिवासियों को उनके मौलिक अधिकार देने चाहिए।


हिमांशु भट्ट (8057170025)

TAGS

water pollution, Prevention of water pollution, Causes of water pollution, water crisis, water crisis india, water crisis jharkhand, water crisis in tribal area, water crisis in tribal area of jharkhand.

 

Path Alias

/articles/kapadae-sae-chaanakara-gandaa-paanai-pai-rahae-adaivaasai

Post By: Shivendra
×