कोयला ढोर

coal
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एकदिन मेरे गांव
पाकुड में भी आया विकास
साथ लाया एक लंबी
काली-सर्पीली सड़क खास
जो बांट गई पानी
पाट गई पोखर
लील गई खेत
बना गई हमें कामचोर।

फिर आये कतार दर कतार
ट्रक ही ट्रक
सिखा गए बेईमानी
बना गए
कोयला ढोर।

अब हर रोज रहता है
मुझे इनका इंतजार
मैं इन्हें रोक लूट लेता हूं
थोड़ा थोड़ा कोयला
ओढ़ लेता हूं
ढेर सारी कालिख।

जानता हूं
यह चोरी है
इनसे लगता है दामन पर दाग
इसीलिए भाग रहा हूं
देखकर कैमरा
ताकि न खींचे कोई तस्वीर।
मैं नहीं बनना चाहता
चोर या ढोर
पर ज़मीन बंजर है
धरती बेपानी
और जेब खाली
कोई बताए
मैं कहां जाउं?
मैं क्या करुं??

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