कोविड-19 महामारी के दौरान पानी, सेनिटेशन और स्वच्छता (WASH)

कोविड-19 महामारी के दौरान पानी, सेनिटेशन और स्वच्छता ( WASH)
कोविड-19 महामारी के दौरान पानी, सेनिटेशन और स्वच्छता ( WASH)

भारत में कोविड-19 के सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र में हैं और सरकार इन्हें कम करने के सभी उपाय कर रही है। इन सभी उपायों को जानने के लिए हमने WASH विशेषज्ञ और यूनिसेफ मुंबई के लिए आपातकाल फोकल प्वाइंट यूसुफ कबीर से बात की। वे WASH के माध्यम से शहरी और ग्रामीण इलाकों में कोरोना के संक्रमण को कम करने की दिशा में अग्रणी रहकर कार्य कर रहे हैं। 

कोविड-19 के प्रति महाराष्ट्र में यूनिसेफ की प्रतिक्रिया क्या है ?

यूनिसेफ पानी, सेनिटेशन और स्वच्छता (WASH) पर लगभग 70 वर्षों से काम कर रहा है, लेकिन इस संकट में तेजी से व्यवहार परिवर्तन करने की जरूरत है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 लागू किया है, जो देश भर में किए गए उपायों में समानता सुनिश्चित करता है। इसलिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन के तकनीकी सहयोग से भारत सरकार और स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय के मार्गदर्शन में हम महाराष्ट्र में कार्य कर रहे हैं।

कोविड-19 के प्रति तत्काल प्रतिक्रिया देने के लिए WASH दो पहलुओं पर कार्य कर रहा है -

(1) जोखिम संचार और सामुदायिक जुड़ाव और

(2) संक्रमण की रोकथाम और नियंत्रण। ये स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ साथ समुदाय/घरों दोनों के लिए प्रासंगिक है।

शुरुआती तौर पर हमने स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण प्रशिक्षण संस्थान और महाराष्ट्र सरकार के साथ मिलकर 1 लाख 50 हजार से ज्यादा फ्रंट लाइन वर्कर्स को प्रशिक्षित किया। इनमें स्वच्छ ग्राही, जल सुरक्षा, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (आशा), आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, एएनएम, लेडी हेल्थ विजिटर और बहुउद्देश्यीय कार्यकर्ता शामिल थे। स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा बनाए गए मॉड्यूल का मराठी में अनुवाद किया गया है और कुछ तत्वों को जोड़कर इसे प्रासंगिक बनाया गया है। WASH के अंतर्गत प्रशिक्षण में हैंडवॉशिंग, कोविड-19 की व्याख्या, सामुदायिक डिस्इनफेक्शन, सामुदायिक निगरानी, श्वसन स्वच्छता, खांसी के दौरान एहतियात के तरीकों का चित्र और महामारी से निपटने की तैयारियों और इसकी रोकथाम के लिए समुदायों को स्वच्छता और पर्यावरणीय सेनिटेशन संदेश देना तथा व्यवहार परिवर्तन को शामिल किया गया है। 

लाॅकडाउन के दौरान आवाजाही बंद है, ऐसे में इतनी बड़ी संख्या में फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं को कैसे प्रशिक्षण दिया जा रहा है ?

सोशल डिस्टेंसिंग को सुनिश्चित करते हुए हम जूम और म्ब्भ्व्  के माध्यम वीडियो काॅलिंग का उपयोग कर ट्रेनिंग दे रहे हैं। वॉश अभ्यास के लिए यूनिसेफ के इंटरएक्टिव वॉयस रिस्पांस (आईवीआर) पर आधारित सॉफ्टवेयर ‘रैपिडप्रो’ का संदेश भेजने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। हम ‘यू-मैसेज’ का उपयोग कर समुदायों से कुछ इनपुट ले रहे हैं, ताकि उनके ज्ञान और प्रथाओं के आधार पर संदेशों और समुदायों के बीच हस्तक्षेप को बेहतर किया जा सके। जमीनी हकीकत को जानने के लिए हम महाराष्ट्र में काम करने वाले अन्य सहयोगियों जैसे Wateraid इंडिया, REDr इंडिया, आदि के साथ भी मिलकर काम कर रहे हैं। 

इस दौरान यूनिसेफ ने गैर सरकारी संगठनों के साथ कैसे काम किया है ?

महाराष्ट्र में ‘राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन’ के अंतर्गत स्थापित स्वयं-सहायता समूहों ने कपड़ा-आधारित मास्क, हैंड सैनिटाइजर और कीटाणुनाशक का उत्पादन शुरु कर दिया है। हम गैर सरकारी संगठनों के सहयोग से स्थानीय स्तर पर मास्क, सैनिटाइजर, कीटाणुनाशक भी बना रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, उस्मानाबाद जिले में ‘‘स्वयं शिक्षण प्रयोग’’ स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी दिशा निर्देशों के आधार पर ही कपड़े से मास्क बनाने के लिए समुदायों के साथ काम कर रहा है। हैंड सैनिटाइजर बनाने के लिए आवश्यक सामग्रियों की यहां कमी है। ग्राम पंचायत पदाधिकारियों द्वारा प्रशिक्षण के बाद सोडियम हाइपोक्लोराइट जैसे डिसइंफेक्टेंट का छिड़काव सामुदायिक क्षेत्रों में किया जा रहा है।

हमने अभी परिस्थितियों के अनुरूप कार्य किया है, लेकिन अच्छा रहेगा, यदि मास्क और सैनिटाइजर आदि का उत्पादन नियमित तौर पर किया जाए। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र सरकार के जल आपूर्ति और सेनिटेशन विभाग के अंतर्गत राष्ट्रीय परीक्षण और अंशशोधन प्रयोगशाल प्रत्यायन बोर्ड सेनिटाइजर और कीटाणुनाशक का उत्पादन जीवन जल मिशन के एक अंग के रूप में कर सकता है। यह नियमित जल गुणवत्ता परीक्षण के साथ किया जा सकता है। स्वयं-सहायता समूहों की आजीविका को सुनिश्चित करने के लिए इनके माध्यम से एक आपूर्ति श्रृंखला बनाई जा सकती है। सरकार द्वारा निर्धारित मानदंडों और दिशानिर्देशों को पूरा करने तक महामारी से बचने के इन निवारक उपायों को अपनाया जा सकता है। दीर्घकालिक तौर पर देखें तो, सेनिटरी नैपकिन बनाने वाले स्वयं सहायता समूहों का समर्थन कर उन्हें बढ़ावा दिया जा सकता है, इसके लिए भारत सरकार और भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने मानक व दिशानिर्देश भी जारी किए हुए हैं।

महाराष्ट्र में आश्रय शिविरों की क्या स्थिति है ?

कोरोना के ज्यादातर मामले ज्यादातर मामले मुंबई, ठाणे, पनवेल, नवी मुंबई, कल्याण, पुणे, सांगली, कोल्हापुर और मराठवाड़ा और विदर्भ के कुछ और इलाकों में स्थित हैं। सरकार द्वारा संचालित राज्य भर में 200 से ज्यादा आश्रय शिविर बनाए गए हैं। इन शिविरों में 7 लाख से अधिक लोगों को रखा गया है। एनडीएमए और स्पेयर की गाइडलाइन का पालन करते हुए महाराष्ट्र सरकार से साझेदारी कर यूनिसेफ ‘शेल्टर प्रबंधन प्रोटोकॉल’ विकसित कर रहा है, जो कि कोविड-19 की परिस्थितियों के अनुकूल होगा। इसके अलावा, इन क्षेत्रों में आपूर्ति और मांग के प्रबंधन के लिए पोषण, खाद्य सुरक्षा, सोशल डिस्टेंसिंग, बाल शिक्षा, जल उपलब्धता और रसद पर एक गैर-सरकारी संगठन के साथ कुछ क्षेत्रों में तेजी से मूल्यांकन किया जा रहा है।

आपको क्या लगता है कि मध्यम और दीर्घकाल में कुछ चुनौतियां हैं ? और उनका समाधान कैसे किया जा सकता है?

लॉकडाउन की वजह से टैंकरों की उपलब्धता में कमी है। देश के कई हिस्सों में सूखा तेजी से बढ़ रहा है। महाराष्ट्र सरकार ने लॉकडाउन के बाद से टैंकर सेवाओं को एक आवश्यक सेवा के रूप में सूचीबद्ध किया है। लॉकडाउन खत्म हो जाने के बाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए सरकार कृषि सब्सिडी, मनरेगा, कृषि के लिए बिजली पर सब्सिडी, उच्च उपज के बीज, बागवानी आदि के लिए प्रोत्साहन पैकेज ला सकती है। इससे भूजल का अतिदोहन काफी बढ़ सकता है। जरूरतों को पूरा करने के लिए जल आपूर्ति की योजनाओं पर दबाव पड़ सकता है, जिससे लीन सीजन के दौरान स्वच्छता सहित पानी की अन्य जरूरतों से समझौता करना पड़ सकता है। यानी पानी की समस्या हो सकती है। 

योजनाओं को प्राथमिकता देते हुए सीमांत और भूमिहीन किसानों, आश्रय शिविरों रह रहे लोगों, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में वंचित समूहों पर ध्यान केंद्रित करना महत्वपूर्ण है। शहरी क्षेत्रों की अपेक्षा लू, बाढ़ और सूखे के रूप में ग्रामीण क्षेत्र ज्यादा खतरों का सामना करते हैं। ऐसे में हम वाॅश, स्वास्थ्य और पोषण की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं। 

कोविड-19 के प्रभाव को कम करने और यूनिसेफ के WASH के कार्यों में क्या संबंध है ? 

WASH के दीर्घकालिक कार्य और कोवडि-19 के प्रभाव को कम करने के कार्यो में सीधा संबंध है। कर कोई संक्रमण को कम करने के लिए साबुन से 6 चरणों में हाथों धोने के बारे में बात कर रहा है। वहीं विभिन्न कलाकार भी इस प्रक्रिया या व्यवहार को अपना रहे हैं। इसलिए प्रभाव संचार माध्यम से दीर्घकालिक परिवर्तन और सामुदायिक जागरुकता लाने का ये सही समय है। 

संदूषण के प्रसार को फैलने से रोकने के लिए हम सार्वजनिक हैंडवाशिंग इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे कि कोहनी से चलने वाले स्टेशनों, पैडल से संचालित नॉन-टच हैंडवॉश मॉडल के लिए अभिनव समाधान भी तैयार कर रहे हैं। ये डिजाइन सार्वजनिक तौर पर उपयोग करने और उत्पादन करने के लिए हर किसी के लिए उपलब्घ है। कुछ निर्माताओं ने कुछ डिजाइनों को लिया है, और वे इनसे महाराष्ट्र के संदर्भ में सस्ता, प्रभावी, कुशल और मजूबत मॉडल का उत्पादन करने की कोशिश कर रहे हैं।

हमें यह भी देखना शुरू करना चाहिए कि स्वच्छ भारत मिशन या जल जीवन मिशन जैसे मौजूदा योजनाओं में महामारी संबंधी तैयारियों को दीर्घकालिक तौर पर कैसे शामिल किया जा सकता है। साथ ही इसमें हमें ये भी देखना होगा कि स्वच्छ ग्राही, जलदूतों जैसे फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं और ग्राम पंचायत तथा पानी निगरानी समितियों का विस्तार करते हुए हैंड़वाॅशिंग और पर्यावरण स्वच्छता के बारे में समुदायों को कैसे जागरुक किया जाए। 


अंग्रेजी में पढ़ने के लिये देखें- इंडिया वाटर पोर्टल


अनुवादक - हिमांशु भट्ट (8057170025)

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Post By: Shivendra
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