वे सात बहनें थीं। सरयू, भागीरथी, रामगंगा, यमुनोत्री, काली, गोरी और कोसी। सभी बहिनों में बड़ा प्रेम था। साथ खेलतीं, हँसी-ठिठोली करतीं और प्रसन्न रहतीं। सातों बहिनों में कोसी उग्र स्वभाव की थी। एक बार सातों ने तय किया कि हम सात बहिनें एक साथ निकलेंगी। चलते हुए सभी एक-दूसरे को रुकेंगी। छह बहिनों को आने में देर हो गई तो कोसी उन छः बहिनों को बिना बताये पहले चल पड़ी। जब बाकी बहिनें तय स्थान पर पहुँची तो उन्होंने देखा कोसी तो नहीं है। वह तो पहले ही चली गई है। तो छहों बहिनों ने क्रोधित होकर कोसी को शाप दिया कि तू जिस स्थान या रास्ते से गुजरेगी, तेरा कोई अस्तित्व नहीं बचा रहेगा। लोग तुझे पूजेंगे नहीं और तू पवित्र नहीं मानी जायेगी। जहाँ से जायेगी, सुसाट-भुभाट करती हुई जायेगी (सुस्वानै रये, भुभ्वानै रये, रहौने रये, बहौने रये)। तेरे में मनुष्य-पशु बहते रहेंगे। तू अकेली बहती रहना। हमें कभी नहीं मिलना।
इसीलिये तब से कोसी नदी आवाज करते हुए निकलती है और रामनगर से आगे जाकर नहरों में बँटकर इसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। यह किसी दूसरी नदी से नहीं मिलती।
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