कोसी की छाड़न धाराएं

कोसी की छाड़न धाराओं के बारे में चर्चा दूसरी जगहों पर मिलती है अतः हम यहाँ उसके विस्तार में नहीं जाना चाहेगें और केवल इन धाराओं के बहाव के रास्तों के बारे में थोड़ी सी जानकारी लेंगे (चित्र 1.3)।

परमान या पनार धार-


यह कोसी की एकदम पूर्वी छोर पर बहने वाली धारा हुआ करती थी जिसकी मूल धारा नेपाल की सुरसर धार हुआ करती थी। पिछले वक्तों में परमान या पनार धार से पानी छलक कर महानन्दा में पहुँच जाया करता था। धीरे-धीरे सुरसर या कोसी से यह दोनों नदियाँ अलग हो गईं और इनका अपना-अपना जलग्रहण क्षेत्र भी अलग हो गया। अब यह नदियाँ मुक्त रूप से अपना पानी महानन्दा में डाल देती हैं। आजकल अररिया से लगभग 55 कि0 मी0 दक्षिण में परमान दो धाराओं में विभक्त हो जाती है। पूरब की ओर बहने वाली धारा का नाम परमान है और यह बागडोब के नीचे महानन्दा से संगम करती है तथा पश्चिम वाली धारा का नाम पनार है जो कि नीचे चल कर रीगा भी कहलाती है। पनार/रीगा झौआ रेल पुल के ऊपर महानन्दा से संगम करती है। कभी यह दोनों नदियाँ कोसी की धारा हुआ करती थीं। देखें (I) और (II)

भेंसना कोसी-


ऐसा अनुमान है कि सोलहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में कोसी पूर्णियाँ शहर के पूर्व में बहा करती थी और मनिहारी की ओर जाती थी। मनिहारी पहुँचने के ठीक पहले इसकी एक धारा कालिन्दी से जाकर मिल जाती थी जो कि गौड़ के पास गंगा से संगम करती थी। निचले क्षेत्रों में इस नदी की धारा को कमला भी कहते थे। देखें (III)

कजरी/कारी या काली कोसी-


इस नदी की धारा को ऊपरी इलाकों में कमला भी कहते हैं तथा नेपाल में इसे कजली या कजरी नाम से पुकारते हैं। अकबर के समय (1556-1605) के बीच, कोसी इस धारा से होकर पूर्णियाँ शहर के पश्चिम से होकर बहने लगी थी। कोसी की इस धारा का नाम काली या कारी शायद इसलिए पड़ा कि यह कोसी की अकेली धारा है जिसका पानी साफ मगर गहरे रंग का हुआ करता था और इसका यह गुण 1889 तक रहा जबकि इसमें पहली बार मटमैले रंग के पानी का रेला आया। यह सन् 1731 में कोसी की मुख्य धारा थी और पूर्णियाँ जिले की पश्चिमी सीमा बनाती थी। कोसी की यह धारा, सम्भवतः मनिहारी के पास गंगा से जाकर मिल जाती थी और यह संगम स्थल भवानीपुर के पूरब में हुआ करता था। आज भी कारी कोसी कटिहार शहर के ठीक पश्चिम से लगे हुये बहती है और कटिहार-मनिहारी-तेजनारायणपुर रेल लाइन के पश्चिम में गंगा से संगम करती है। देखें (IV)

दुलारदेई/सौरा कोसी-


कोसी की इस धार को सोंअरा धार, समरा धार या सउरा धार भी कहते हैं। दुलारदेई जिरवा गाँव के पास सौरा से फूटी हुई एक धारा है जो कि पुराने पूर्णियाँ और पूर्णियाँ शहर के बीच से होकर गुजरती थी। देखें (V)

कमला कोसी-


1731में ही कोसी की एक दूसरी धारा कमला के नाम से जिन्दा हुई और नीचे चल कर इस धारा ने कोसी धार (रेनेल के एटलस के मुताबिक काली कोसी) के रास्ते को अपना लिया। पूर्णियाँ इस धारा के पूरब में अवस्थित था जबकि उत्तर में धरमपुर इस धारा के पश्चिम में था। देखें (V)

लिबरी कोसी-


ऊपर बताई गई कमला नदी की धारा से रानीगंज के दक्षिण में सन् 1770 में कोसी की एक नई धारा निकली जिसने नीचे चल कर पूर्णियाँ-बीरनगर मार्ग को पूर्णियाँ से लगभग 25 किलोमीटर पश्चिम में दीमा घाट के पास पार किया। लिबरी तथा बरहण्डी धारों से होती हुई अब कोसी ने नवाबगंज के दक्षिण में तथा काढ़ागोला से लगभग 22 कि0 मी0 पूरब में गंगा से संगम किया था। कोसी की इस धारा का स्वरूप लगभग 1807 तक बना रहा था। देखें (VI)

धमदाहा कोसी-


धमदाहा कोसी को ऊपरी इलाकों में फरैनी या फरियानी धार भी कहते हैं जिससे होकर कोसी 1807 से 1839 के बीच में बहती थी। डॉ. बुकानन हैमिल्टन ने पूर्णियाँ का जो नक्शा बनाया था और उसमें कोसी की जो स्थिति दिखाई थी वह लच्छा/फरैनी धार और धमदाहा कोसी का ही प्रवाह मार्ग था। यह नदी असम-बंगाल स्टेट रेलवे के देवीगंज स्टेशन और नाथनगर के बीच से होकर बहती थी और काढ़ागोला के पास गंगा में जाकर मिल जाया करती थी। पूर्णियाँ-मधेपुरा रेल खण्ड के सरसी और बनमनखी स्टेशनों के बीच होकर गुजरने वाली कोसी की यह पुरानी धारा फरैनी एक अन्य धारा लच्छा धार से संगम करने के बाद रेलवे लाइन को पार करती है और धमदाहा थाने में प्रवेश करती है। देखें (VII)

हिरन कोसी-


सन् 1840 से 1847 के बीच कोसी सुरसर धार-मोगल धार-गुलेला धार-हिरन धार के रास्ते धमदाहा थाने के पश्चिम से होकर बहती थी जो कि पूर्णियाँ से प्रायः 48 किलोमीटर के फासले पर थी। नदी की यह धारा प्रायः 1873 तक चालू रही। कर्नल हेग के अनुसार 1844 से 1876 के बीच नदी की यह धारा भारत नेपाल सीमा पर प्रायः 3.2 कि.मी. पश्चिम की ओर खिसक गई थी जबकि निचले इलाकों में यह विस्थापन प्रायः 6.4 कि.मी. से 9.6 कि.मी. हो गया था। सन् 1870 के आसपास कोसी ने पश्चिम की तरफ धाराएं बनाना शुरू कर दिया था और लगभग सन् 1873 में कोसी ने धौस वाला रास्ता अपना लिया था। देखें (VIII)

धौस कोसी-


कोसी की यह धारा सुरसर धार, सुपहना धार, तथा धौस धार से होकर बहती थी। इस मार्ग से हो कर यह नदी (1873-93) के बीच लगभग बीस वर्षों तक बहती रही। सन् 1873 की बाढ़ में सुपौल के उत्तर-पूर्वी कोने पर अवस्थित कस्बा नाथनगर पूरी तरह तबाह और बर्बाद हो गया था। कोसी की धारा बदल कर नाथनगर कस्बे के पश्चिम चली गई जबकि सन् 1850 तक कोसी कस्बे से कई किलोमीटर पूरब में बहा करती थी। “पिछले तरकीबन पच्चीस साल में यह नदी लगभग 32 कि.मी. चौड़े क्षेत्र पर फैल गई है जिससे बहुत ही उपजाऊ खेत बालू के मैदान बन गये हैं। फैक्टरियाँ, खेत, गाँव उजड़ गये हैं और पूरे इलाके का चेहरा ही बदल गया है। जहाँ पहले उत्पादक जमीन थी वहाँ अब बालू के मैदान या दलदल बन कर रह गया है।” धौस पश्चिम की ओर खिसक कर घोगरी से मिल से गई और दोनों की संयुक्त धारा कुरसेला के पास जाकर गंगा से मिल जाती थी। देखें (IX)

लोरन कोसी-


सन् 1893 से लेकर 1921 के बीच में कोसी गोराबे धार, लोरन धार, हरेली धार तथा मिर्चा धार होकर कुरसेला के पास गंगा से संगम करती थी। यह पहला मौका था जब कि चतरा के पास के ऊपरी इलाकों में ही कोसी ने दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर रुख कर लिया था। ऊपरी क्षेत्रों में इस दौरान कोसी ने थलना धार और हइया धार वाला रास्ता दखल कर लिया था। कर्नल हेग के मुताबिक सन् 1891 में एक बार ऐसा मौका आया जबकि लगा कि कोसी चतरा के पास से पूरब की ओर रुख कर रही है और पूर्णियाँ शहर पर खतरा मंडराता हुआ दिखाई पड़ने लगा, पर ऐसा हुआ नहीं। सन् 1897 में जरूर ही कोसी फिर पश्चिम की ओर तराई के इलाके में मुड़ी जिससे फारबिसगंज और अंचरा घाट के बीच रेलवे लाइन बनाने की कोशिश छोड़ देनी पड़ी। देखें (X)

धंसान कोसी-


सन् 1922 में चतरा के दक्षिण-पश्चिम में कोसी की धारा और ज्यादा दक्षिण-पश्चिम दिशा में मुड़ गई और मुख्य धारा तब भारतीय सीमा में बगिया घाट के पास से होकर बहने लगी। इस बार कोसी ने बोगला नदी होते हुये धंसान धार, चिलौनी धार, भेंगा धार और बलुआहा धार वाला रास्ता अख्तियार कर लिया। सुपौल जिले का प्रतापगंज बाजार जो कि कभी कोसी के पूर्वी किनारे पर अवस्थित था, जल्दी ही उससे 16 कि.मी. पूरब में चला गया। देखें (XI)

तिलावे कोसी-

1926 में चतरा के नीचे कोसी एक बार फिर पश्चिम में खिसक गई और बेरदा तथा तिलावे धार के रास्ते से बहने लगी। कुसहा घाट तथा भीमनगर जो कि पहले कोसी से लगभग 16 कि0 मी0 के फासले पर थे, अब कोसी ठीक उनके पूरब से होकर बहती थी। अब सहरसा कोसी के पश्चिमी किनारे पर आ गया था और मधेपुरा नदी से काफी दूर चला गया था। देखें (XII)

धेमुरा धार-


लगभग 1930 में कोसी ने धेमुरा धार वाला रास्ता पकड़ लिया और सुपौल के दक्षिण सहरसा-सुपौल रेल लाइन को भी पार कर लिया। उस समय भपटियाही कोसी के किनारे पर लगभग दो किलोमीटर पश्चिम में अवस्थित था। इसी बीच 1934 में बिहार का प्रलयंकारी भूकम्प आया जिसकी वजह से नदियों की धाराओं में बड़े परिवर्तन आये। कोसी की बहुत सी नई धाराएं बह निकलीं पर मुख्य धारा बनी पुरइन धार या पुरैनी धार होकर जो कि सुपौल-सहरसा मार्ग के लगभग साथ-साथ चलती थी। इसी दौरान सुपौल-भपटियाही रेल मार्ग भी टूट गया था। देखें (XIII)

सोहराइन कोसी-


1936 में कोसी की धारा में हनुमान नगर के नीचे एक बार फिर परिवर्तन आया। यह नदी तब ऊपर गोंजा नदी, बीच में बैंती नदी और नीचे के इलाकों में सोहराइन धार से होकर बहने लगी थी, देखें (XIV)। कोसी के इसी प्रवाह के दौरान निर्मली-भपटियाही रेल लाइन/पुल पर बड़ा बुरा असर पड़ा और इस रेल लाइन का कुछ हिस्सा बह गया। इस रेल-मार्ग के बह जाने से आजादी के आन्दोलन में लगे संग्रामियों को आने-जाने में असुविधा होने लगी। यह ब्रिटिश हुकूमत के अनुकूल पड़ता था और निर्मली उसने रेल-लाइन तथा पुल की मरम्मत नहीं कारवाई और उसे बह जाने दिया। उसके बाद से इस मार्ग पर आवाजाही बन्द है और भपटियाही के बीच स्थित रेहड़िया रेल स्टेशन कुछ वर्ष पहले छत तक कोसी नदी के बालू के अन्दर दबा हुआ था। अब इसका कोई पता नहीं मिलता। 1948 के बाद से कोसी अपनी वर्तमान धारा (XVI) से होकर बह रही है।

फिलहाल डगमारा को भपटियाही से जोड़ते हुये एक नये पुल का निर्माण शुरू हुआ है। 6 जून 2003 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 350 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले इस सड़क-सह-रेल पुल का शिलान्यास किया। पानी की निकासी के लिए 2 किलोमीटर लम्बे मार्ग वाले पुल का निर्माण 2007 तक पूरा कर लिए जाने का अनुमान है।

तिलयुगा-


इसे त्रियुगा भी कहते हैं (देखें XV) जिसके बारे में महाविष्णु पुराण के मिथिला खण्ड में चर्चा हुई है। वैसे तो तिलयुगा अपने आप में एक स्वतंत्र नदी है जो कि हिमालय की चूरे पर्वतमाला से निकलती है और राज बिराज होते हुये बिहार में प्रवेश करती है तथा सुपौल जिले के कुनौली, कमलपुर, डगमारा, सिकरहट्टा, दिघिया तथा दुधैला आदि गाँवों से हो कर गुजरती है। इस समय कोसी के पश्चिमी तटबन्ध के 22.6 कि.मी. पर तिलयुगा के पश्चिमी तट पर महादेव मठ नाम का बड़ा प्रसिद्ध गाँव है जिसे असुरगढ़ भी कहते हैं और यह एक ऐतिहासिक स्थान है। उसके बाद तिलयुगा निर्मली, रसुआर, धाबघाट, कदमाहा, सिसौनी, बरहरा, मनोहर पट्टी तथा खोंखनाहा गाँवों के पूरब परसा-माधो और सिसवा के पश्चिम से होती हुई कोसी की बैती धार से संगम कर लेती थी। कोसी नदी पर 1955 में तटबन्ध बनाने का काम शुरू हुआ और महादेव मठ के बाद तिलयुगा निर्मली के पास ही कोसी से मिलने को मजबूर हो गई।

कोसी की धारा 1942 में हनुमान नगर के पास तिलयुगा की ओर मुड़ी थी और 1948 तक तिलयुगा ही कोसी की मुख्य धारा बनी हुई थी। कोसी पर तटबन्ध बनने के बाद अब इसका एक बड़ा हिस्सा तटबन्ध के अन्दर चला गया है और यह नदी अब कोसी की धाराओं के गुच्छे में शामिल हो गई है। इस नदी का पहले का रास्ता चित्र-1.3 में धारा XVI से दिखाया गया है।

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Post By: tridmin
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