कॉमनसेंस भी करोड़पति बना सकता है

आज यहां 295 कुएं हैं। और पानी 15 से 45 फीट तक मिल जाता है। जबकि अहमदनगर जिले के दूसरे इलाकों में 200 फीट तक पानी मिल पाता है। बहरहाल, हिवड़े बाजार आज वह गांव है, जहां हर परिवार खुशहाल है। यह कैसे हुआ? खासकर तब जबकि गांव में सालाना बारिश सिर्फ 15 फीसदी होती थी। जब पवार सरपंच बने तो उन्होंने सबसे पहले ये दुकानें बंद कराई। शुरुआत मुश्किल थी। गांव में ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग के काम में लगाया। गांव वालों ने मिट्टी के 52 बांध बनाए। बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए दो बड़े टैंक और 32 पथरीले बांध बनाए। पोपटराव पवार अब 54 साल के हो चुके हैं। वे अपने गांव में एक समय इकलौते पोस्ट ग्रेजुएट हुआ करते थे। लिहाजा, गांव के युवाओं ने उनसे आग्रह किया कि वे सरपंच का चुनाव लड़ें। लेकिन पवार की इसमें दिलचस्पी नहीं थी। परिवार ने भी उनके चुनाव लड़ने पर समहति नहीं दी। परिवार वाले चाहते थे कि वे शहर जाएं और कोई बढ़िया सी नौकरी करें। जबकि पवार खुद क्रिकेटर बनने की इच्छा रखते थे। खेलते भी अच्छा थे। घर के लोगों को भी लगता था कि वे एक एक दिन कम से कम रणजी टूर्नामेंट में तो खेल ही लेंगे।

आखिरकार हुआ क्या? पोपटराव गांव के सरपंच ही बने। सिर्फ यही नहीं, उन्होंने गांव को क्रिकेटरों से ज्यादा दौलतमंद बना दिया। हो सकता है, आपको यकीन न हो। क्योंकि जब आप पवार के गांव का इतिहास खंगालेंगे तो मौजूदा स्थिति पर शक हो सकता है। एक समय महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले का हिवड़े बाजार नाम का यह गांव गरीबी से त्रस्त था। लोग भी शराब के लती और तरह-तरह के अपराध आम। लेकिन अब हालात एकदम उलट हैं।

कभी भयंकर सूखा प्रभावित इलाके में गिना जाने वाला हिवड़े बाजार आज समृद्धि की उजली मिसाल बन चुका है। यह गांव इसका भी उदाहरण है कि कैसे कॉमनसेंस और पक्का इरादा हालात को 360 डिग्री पर बदल सकता है। इस गांव में 1995 तक लोगों की प्रतिव्यक्ति आय थी-800 रुपए महीना। 30,000 रुपए महीना हो चुकी है। गांव में करीब 250 परिवार हैं। आबादी 1550 के करीब। इनमें से 63 लोग करोड़पति हैं। पहले 1995 तक यहां 90 कुएं होते थे। इनमें पानी भी 80 से 125 फीट तक होता था।

आज यहां 295 कुएं हैं। और पानी 15 से 45 फीट तक मिल जाता है। जबकि अहमदनगर जिले के दूसरे इलाकों में 200 फीट तक पानी मिल पाता है। बहरहाल, हिवड़े बाजार आज वह गांव है, जहां हर परिवार खुशहाल है। यह कैसे हुआ? खासकर तब जबकि गांव में सालाना बारिश सिर्फ 15 फीसदी होती थी।

जब पवार सरपंच बने तो उन्होंने सबसे पहले ये दुकानें बंद कराई। शुरुआत मुश्किल थी। गांव में ही रेन वाटर हार्वेस्टिंग के काम में लगाया। गांव वालों ने मिट्टी के 52 बांध बनाए। बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए दो बड़े टैंक और 32 पथरीले बांध बनाए। इसके अलावा नौ चैकडैम भी। सरकार से जो पैसा मिला उसे भी गांव में सही तरीके से इस्तेमाल किया गया। लोग कई सारे काम खुद ही अपनी इच्छा से कर रहे थे।

ऐसे में जाहिर तौर पर गांव में होने वाले कामों की लागत कम हो गई। और काम भी उच्च क्वालिटी का नजर आने लगा। गांव में बारिश तो अब भी कम ही हो रही थी लेकिन पानी रुक ज्यादा रहा था। इससे सिंचाई का क्षेत्र बढ़ गया। इतने बांध और चैकडैम बनने के बाद पहले मानसून में ही सिंचाई का क्षेत्र 20 हेक्टेयर से बढ़कर 70 हेक्टेयर हो गया। साल 2010 में गांव में सिर्फ 190 मिलीमीटर बारिश हुई। देश का यह इकलौता गांव है, जहां वाटर ऑडिट होती है।

हिवरे बाजारचिलचिलाती गर्मी के मौसम में भी हिवड़े बाजार के पेड़ फलों से लदे होते है। पथरीले मैदान पर बसे इस गांव का हर बच्चा स्कूल जाता है और स्कूल में पानी के संरक्षण का कोर्स अनिवार्य है। पानी के संरक्षण के लिए जो भी काम होते हैं, उनमें गांव के सभी लोग स्वेच्छा से हिस्सा लेते हैं। पानी का उपयोग ठीक ढंग से हो रहा या नहीं, इस पर हर माह ग्रामसभा की बैठक में विचार होता है।

सूखे के मौसम में मूंग और बाजरा जैसी फसलें खेतों से ली जाती है। ये ऐसी फसलें हैं, जिनके लिए कम पानी की जरूरत होती है। जब पानी खूब होता है तो गेहूं जैसी पैदावार ली जाती है। ड्रिप सिंचाई तकनीक का भी इस्तेमाल किया जाता है। बदलाव की यह बयार लाने में पवार और उनके साथियों को 21 साल लगे। अब इसके नतीजे सामने आ रहे हैं। वे इसके विशेषज्ञ जो हो चुके हैं।

फंडा : किसी रॉकेट साइंस की जरूरत नहीं। सिर्फ बेसिक कॉमनसेंस एप्लाई करके भी लोगों को करोड़पति बनाया जा सकता है। सवाल सिर्फ एक ही है कि आपका इरादा यह सब करने के लिए कितना बुलंद है।

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