जिन भी कंपनियों के उत्पाद प्लास्टिक की बोतलें, डिब्बे, पाउच या सैशे आदि में आ रहे हैं, उन्हें अपने वेस्ट प्लास्टिक के निस्तारण की जिम्मेदारी स्वयं उठानी होगी। इसके लिए चाहे वह अपने स्तर पर निस्तारण करें या फिर स्थानीय निकायों को पैसे देकर अपने प्लास्टिक कचरे का निस्तारण कराए। यह आदेश गुरुवार को पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एसपी सुबुद्धि ने जारी किए हैं। आदेश में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2016 का हवाला देते हुए कहा गया है कि इसके लिए सबसे पहले संबंधित कंपनियों को बोर्ड में अपना पंजीकरण कराना होगा और यह भी बताना होगी कि उनके उत्पादों के जरिये कितना प्लास्टिक उत्तराखंड में पहुंच रहा है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एसपी सुबुद्धि ने कहा कि राज्य स्तर पर प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल 2016 की समीक्षा की गई थी। जिसमें स्पष्ट हुआ कि किसी भी उत्पादक, आयातक व ब्रांड स्वामित्व वाली कंपनी ने अपने प्लास्टिक कचरे के निस्तारण का इंतजाम नहीं किया है। प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल में स्पष्ट किया गया था कि रूल के प्रख्यापित होने के अधिकतम एक साल के भीतर सभी कंपनियों को अपना एक्शन प्लान प्रस्तुत करना होगा। साथ ही अधिकतम दो साल के भीतर प्लास्टिक कचरे के निस्तारण को कहा गया था। यह व्यवस्था करना तो दूर कंपनियों ने अब तक पंजीकरण भी स्पष्ट नहीं हो पा रहा कि उत्पादों में कितना प्लास्टिक कचरा प्रदेश में पहुंच रहा है।
उत्पादों की बिक्री पर रोक लगाने की चेतावनी
बोर्ड के सदस्य सचिव ने कहा कि जो कंपनियां वैज्ञानिक तरीके से अपने प्लास्टिक कचरे का निस्तारण सुनिश्चित नहीं कराएंगी, उन पर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के रूप में जुर्माना लगाया जाएगा। साथ ही भविष्य में उनके उत्पादों की बिक्री भी प्रतिबंधित कर दी जाएगी। प्लास्टिक की पैकेजिंग में उत्पाद बेचने वाली कंपनियों ने अभी तक भी यह नहीं बताया है कि कितनी मात्रा में प्रदेश में प्लास्टिक पहुंच रही हैं।
फिर भी पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपने स्तर पर अनुमान लगाया है कि हर रोज प्रदेश में करीब 300 टन (तीन लाख किलो) प्लास्टिक कचरा निकलता है।
इतनी बड़ी मात्रा में कचरे के निस्तारण के लिए स्थानीय निकायों के पास संसाधन नहीं। इसके चलते प्रदेश के तमाम क्षेत्रों में प्लास्टिक कचरा पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव एसपी सुबुद्धि ने बताया कि एक किलो प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए 20 रुपए की जरूरत पड़ती है। इस तरह देखें तो पूरे कचरे के निस्तारण के लिए सालभर में 219 करोड़ रुपये की जरूरत पडेगी। नियमानुसार इस कचरे का निस्तारण या तो कंपनियों को करना चाहिए या इसके उन्हें भुगतान करना चाहिए। वैसे भी इतनी बड़ी राशि को जुटा पाना स्थानीय निकायों के बूते की बात नहीं।
हालांकि अब प्लास्टिक में उत्पाद बेचने वाली कंपनियां अपने कचरे का निस्तारण स्वयं नहीं करेंगी तो उन पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। प्रदेश भर में 300 टन प्लास्टिक कचरा निकालना है। बोर्ड के सदस्य सचिव एसपी सुबुद्धि के अनुसार, एक किलो प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए 20 रुपये की जरूरत होगी। ऐसा नहीं है कि प्लास्टिक कचरे के लिए सभी कंपनियों को भारी भरकम संसाधन जुटाने पड़ेगे या राशि खर्च करनी पड़ेगी। जो कंपनी अपने उत्पाद में जितना प्लास्टिक प्रदेश में छोड़ रही हैं, उसे उसी अनुपात में बोझ सहन करना पड़ेगा।
पर्यटन प्रदेश होने से बढ़ा बोझ
उत्तराखंड में हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक आते हैं। ऐसे में प्लास्टिक कचरे का अतिरिक्त बोझ भी उत्तराखंड पर बढ़ रहा है। इस स्थिति को देखते हुए भी बोर्ड ने अब सख्त कदम उठाने का निर्णय लिया है।
- रूल लागू होने के छह माह के भीतर यह तय करना था कि संबंधित कंपनी स्वयं अपने कचरे का निस्तारण करेंगी या स्थानीय निकायों के माध्यम से इस काम को अंजाम देंगी।
- प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के लिए एक साल के भीतर प्लान तैयार कर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में पंजीकरण कराना।
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