ककोलत जलप्रपात अस्तित्व पर खतरा

ककोलत जलप्रपात
ककोलत जलप्रपात

नवादा जिले से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है एक ऐसा जलप्रपात जो सुंदरता और प्राकृतिक सौंदर्य के लिहाज से देश के किसी भी जलप्रपात से कम नहीं है लेकिन सरकारी महकमा इसकी खूबसूरती में चार चांद लगाने के बजाय उसके अस्तित्व को मिटाने के लिए तत्पर हैं। बिहार में कश्मीर के नाम से प्रसिद्ध नवादा जिले के गोविंदपुर प्रखंड के अंतर्गत पड़ने वाले प्राकृतिक पर्यटन स्थल ककोलत जलप्रपात पर अस्तित्व मिटने का खतरा मंडराने लगा है, जबकि विकास के इस दौर में इसे सबसे ऊपर होना चाहिए था, लेकिन आलम यह है कि विकास कार्यों में इसका स्थान कहीं नहीं है। पिछले एक दशक से इस प्रसिद्ध जलप्रपात की सरकारी उपेक्षा ने स्थानीय लोगों को निराश किया है। यदि ककोलत जलप्रपात को सरकारी प्रयास से विकसित कर दिया जाए तो यहां विदेशी सैलानियों की भीड़ लगी रहेगी, जिससे सरकार के साथ-साथ यहां के लोगों को भी फायदा होगा। यह कहना है इसकी देखरेख कर रहे ककोलत विकास परिषद के लोगों का।

यह जलप्रपात प्राचीन काल से प्रकृति प्रेमियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। आजादी से पूर्व घने जंगल और दुर्गम रास्तों के बावजूद यह जलप्रपात अंग्रेजों के लिए गर्मी में प्रमुख पर्यटक केंद्र हुआ करता था। प्रति वर्ष 14 अप्रैल को यहां पांच दिवसीय सतुआनी मेला पर लोगों का जमावड़ा लगता है। बावजूद यह उपेक्षित है। सरकार चाहे तो ककोलत जलप्रपात के विकास के रास्ते यहां के स्थानीय लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार मुहैया कराके बेरोजगारी दूर कर सकती है, लेकिन अभी तक तो ऐसा नजर नहीं आ रहा है। झारखंड से अलग होने के बाद शेष बिहार में ककोलत अकेला ऐसा जलप्रपात है, जिसका पौराणिक और पुरातात्विक महत्व है। बिहार सरकार इस ऐतिहासिक जलप्रपात की महत्ता को समझे या नहीं, लेकिन भारत सरकार के डाक एवं तार विभाग ने इस जलप्रपात की ऐतिहासिक महत्ता को देखते हुए ककोलत जलप्रपात पर पांच रुपये मूल्य का डाक टिकट भी जारी किया है। इसका लोकार्पण भी डाक तार विभाग ने 2003 में ककोलत विकास परिषद के अध्यक्ष मसीहउद्दीन से पटना में कराया। 1995 में गया के तत्कालीन डीएफओ बाईके सिंह चौहान, नवादा के तत्कालीन जिलापदाधिकारी रामवृक्ष महतो तथा ककोलत विकास परिषद के अध्यक्ष मसीहउद्दीन की तिकड़ी ने इसका कायाकल्प कर दिया।

जिलापदाधिकारी ने पचास लाख रुपये की राशि मुहैया कराई तो डीएफओ ने वन विभाग के तमाम नियमों में शिथिलता बरतते हुए ककोलत जलप्रपात को पूरी तरह एक अच्छे पर्यटन स्थल का रूप दे दिया। वहां वन विभाग की ओर से आकर्षक गेस्ट हाउस और दुकानों का निर्माण कराया। कुछ वर्षो तक यहां सब कुछ ठीक-ठाक रहा। बाद के वर्षो में आने वाले जिला पदाधिकारी, वन विभाग के पदाधिकारी और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इस पर ध्यान नही दिया। जिसके कारण यहां की स्थिति दयनीय हो गई। ककोलत तक जाने वाली सड़क भी पूरी तरह जर्जर हो चुकी है। 1997 से ककोलत विकास परिषद की ओर से विसुआ मेला को ककोलत महोत्सव के रूप में विस्तृत रूप देकर आयोजन किया जाता है। 1997 में ककोलत महोत्सव की शुरुआत बिहार के प्रसिद्ध माउंटेनमैन दशरथ मांझी के हाथों कराया गया था। इस महोत्सव के माध्यम से मगध की सांस्कृतिक विरासत को बचाने तथा यहां की प्रतिभाओं को उभारने का प्रयास किया जाता है, लेकिन आज सुशासन में भी ककोलत जलप्रपात के आसपास के क्षेत्रों में विकास के तमाम दावे फुस्स नजर आ रहे है।

यह जलप्रपात नवादा जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर पूरब दक्षिण गोविंदपुर प्रखंड में स्थित है। सात पर्वत श्रृंखलाओं से प्रवाहित ककोलत जलप्रपात और इसकी प्राकृतिक छटा बहुत सारे कोतुहलों को जन्म देता है। धार्मिक मान्यता है कि पाषाण काल में दुर्गा सप्तशती के रचयिता ऋषि मार्कंडे का ककोलत में निवास था। मान्यता यह भी है कि ककोलत जलप्रपात में वैशाखी के अवसर पर स्नान करने मात्र से सांप योनि में जन्म लेने से प्राणी मुक्त हो जाता है। यह भी कहा जाता है कि राजा नृप किसी ऋषि के श्राप के कारण अजगर के रूप में इस जलप्रपात में निवास कर रहे थे। तब ऋषि मार्कंडे के प्रसन्न होने पर उन्हें इस योनि से मुक्ति मिली। महाभारत में वर्णित कांयक वन आज का ककोलत ही है, अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने अपना कुछ समय यही पर व्यतीत किया था तथा इसी स्थान पर श्रीकृष्ण ने उन्हे दर्शन दिया था। इस क्षेत्र में कोल जाति के लोग निवास करते थे। इसलिए इसका नाम ककोलत पड़ा। एक मान्यता है कि प्राचीन काल में मदालसा नाम की एक पतिव्रता नारी ककोलत के आसपास निवास करती थी और जलप्रपात में अपने रोगी पति को कंधे पर बिठाकर स्नान कराने के लिए प्रतिदिन इस जलप्रपात में ले जाती थी। कुछ समय बाद उसका पति निरोग हो गया।

अंग्रेजों के शासनकाल में फ्रांसिस बुकानन ने 1811 ई में इस जलप्रपात को देखा और कहा कि जलप्रपात के नीचे का तालाब काफी गहरा है। इसकी गहराई को भरने के उद्देश्य से एक अंग्रेज अधिकारी के आदेश पर स्नान करने वालों को स्नान करने से पहले तालाब में एक पत्थर फेंकने का नियम बनाया था। इस तालाब में सैकड़ों लोगों की जानें जा चुकी है। 1994 में इस जलप्रपात के नीचे के तालाब को भर दिया गया, जिससे लोग इसमें आराम से स्नान कर सके। तब से इसका आकर्षण और बढ़ गया। आज ककोलत जलप्रपात को जानने वाले लोगों का कहना है कि यदि सरकार बिहार के इस कश्मीर को विकसित कर दे, तो राज्य सरकार को विदेशी मुद्रा की आय होगी और साथ ही अद्भुत पर्यटन स्थल को देखने के लिए देश और दुनिया से बड़ी संख्या में लोग आ सकेंगे। फिलहाल जिले के फतेहपुर मोड़ से ककोलत जाने के लिए सड़क की स्थिति अच्छी नहीं है। दरअसल ककोलत शीतल जलप्रपात वोट की राजनीति के लिए कोई मुद्दा नहीं बन सकता। फलत: सरकार और राजनीतिज्ञ इसके विकास पर विचार करना भी मुनासिब नहीं समझते।
 

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