कितने पानी में


बाढ़ की त्रासदी से जूझ रहे पाकिस्तान में अंदरूनी खींचतान थमी नहींपाकिस्तान इन दिनों भयानक बाढ़ की चपेट में है। खैबर पख्तूनख्वा, पंजाब और उत्तरी क्षेत्र में तबाही मचाने के बाद बाढ़ का कहर सिंध और बलूचिस्तान प्रांत पर टूट पड़ा है। बाढ़ ने लगभग 2,000 लोगों को लील लिया है। फसलें तबाह हो गई हैं। पुलों, सड़कों, स्कूलों और दूसरी इमारतों को भारी क्षति पहुंची है। खरबों रुपये का नुकसान हुआ है। वहां लाखों लोग बेघर हो गए हैं। इस बाढ़ ने पाकिस्तान को कम से कम एक दशक पीछे धकेल दिया है।

शुरू-शुरू में पाक अधिकारियों ने भारत पर आरोप लगाया था कि चेनाब में भारत द्वारा ज्यादा पानी छोड़ने से सियालकोट शहर के कई सीमावर्ती गांव जलमग्न हो गए हैं। लेकिन जब पाकिस्तान की दूसरी नदियों में उफान आया, तो उन अधिकारियों ने चुप्पी साध ली। मुंबई हमले की साजिश में शामिल जमात-उद-दावा के मुखिया हाफिज सईद ने कहा कि बाढ़ का यह कहर हमारे गुनाहों का नतीजा है। पाकिस्तानियों को इसके लिए खुदा से माफी मांगनी चाहिए। उम्मीद करनी चाहिए कि खुद हाफिज ने भी मुंबई में मारे गए निर्दोष लोगों के लिए खुदा से माफी मांगी होगी। ऐसे लोगों की भी कमी नहीं, जो इस भीषण बाढ़ को ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा समझते हैं। लेकिन सचाई यह भी है कि पाक सरकार की बाढ़ पर नियंत्रण की कोई योजना सिरे ही नहीं चढ़ पाई। वहां कोई नया बांध नहीं बनाया गया। पिछले पचास साल से मंगला डैम के निर्माण की योजना लटकी हुई है। दरअसल राजनीतिक वजहों से यह डैम नहीं बन पाया है। सिंधियों का कहना है कि अगर यह बांध बन गया, तो इसका सारा लाभ पंजाब को मिलेगा और सिंध में पानी की कमी हो जाएगी। अगर वह बांध बन गया होता, बाढ़ से तबाही इतनी भीषण न होती। लेकिन इस बाढ़ के समय भी वहां आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति थमी नहीं है। एक आरोप यह है कि केंद्रीय मंत्री इजाज जकरानी ने सिंध स्थित शहबाज एयरबेस को बचाने के लिए पानी का रुख बलूचिस्तान की तरफ मोड़ दिया, जिससे पूरा जाफराबाद जिला पानी में डूब गया।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने यहां की बाढ़ देखकर कहा है कि उन्होंने अपने जीवन में ऐसी तबाही नहीं देखी। जाहिर है, इसलामाबाद इस तबाही का मुकाबला अकेले नहीं कर सकता। मून ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की विशेष बैठक बुलवाकर पाक को तुरंत और दिल खोलकर मदद देने की अपील की है। संयुक्त राष्ट्र ने मदद का जो लक्ष्य रखा था, अभी उसकी आधी रकम भी नहीं जुट पाई है। अमेरिका पाकिस्तान की सबसे ज्यादा मदद कर रहा है। उसके कई हेलिकॉप्टर बचाव व राहत कार्यों में जुटे हुए हैं। संकट की इस घड़ी में पाकिस्तान को विदेशी दानदाताओं से कम मदद मिल रही है, तो इसका सबसे बड़ा कारण उसकी खराब साख है। दानदाताओं का मानना है कि राहत कोष में दिया गया धन जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचेगा। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2005 में पाकिस्तान में आए भूकंप के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने करीब 21 अरब रुपये की जो मदद की थी, वह जरूरतमंदों तक नहीं पहुंची थी। वहां भूकंप प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्निर्माण का काम अब भी अधूरा पड़ा हुआ है। ऐसे ही पिछले दिनों ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने पाकिस्तान को भारत और अफगानिस्तान के खिलाफ आतंकवाद का निर्यात रोकने के लिए कहा था। उनके इस बयान ने भी पाक बाढ़ पीड़ितों के लिए कोष जुटाने की कोशिशों पर प्रतिकूल असर डाला है। रही-सही कसर आईएसआई के एक वरिष्ठ अधिकारी के उस बयान ने पूरी कर दी है, जिसमें कहा गया है कि पाकिस्तान को देश में सक्रिय आतंकवादियों से खतरा है, न कि भारत से। विदेशों में बस गए पाकिस्तानी भी कम सहायता भेज रहे हैं। जरदारी से नाराज ऐसे लोगों का मानना है कि पाक शासक अपने हितों की पूर्ति के लिए जुटे हुए हैं।

लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय के इस रुख से पाकिस्तान की समस्या और विकट ही हो जाएगी। समय पर मदद न मिलने पर संक्रामक बीमारियों के कारण लाखों बाढ़ पीड़ितों की जान पर बन आएगी। दूषित पानी से आंत्रशोध, मलेरिया, डायरिया और त्वचा रोग फैले हुए हैं। कुपोषित बच्चों में पोलियो और चेचक फैलने की आशंका बनी हुई है। हजारों लोग हैजे के शिकार हैं। दवाओं की जबर्दस्त कमी है। बाढ़ पीड़ितों में लगभग 15 लाख महिलाएं गर्भवती हैं, जो खुले आसमान के नीचे या शिविरों मे डेरा जमाए हुए हैं। टेंट, प्लास्टिक की चादर, खाने का सामान व साफ पेयजल की सख्त कमी है, जिससे पीड़ितों में रोष है। बाढ़ ने पवित्र रमजान पर भी बुरा असर डाला है। महंगाई की मार का असर सहरी और इफ्तार के खाने पर दिख रहा है। हालांकि जमात-उद-दावा और सिपाह-सहाबा ने अपने हजारों कार्यकर्ताओं को राहत कार्यों में लगा दिया है। लश्कर और जैश-ए-झांगवी ने भी राहत शिविर लगाए हैं। माना जा रहा है कि ये तत्व ज्यादा से ज्यादा लोगों की सहानुभूति और भरोसा जीतने के लिए राहत कार्य में जुटे हैं। इस बात की भी आशंका है कि वे राहत सामग्री का दुरुपयोग कर सकते हैं। अमेरिका नहीं चाहता कि ये राहत कार्यों में योगदान दें, पर पाकिस्तान इसे गलत नहीं समझता।

पाक जनता को इस भारी संकट से निकालने के लिए राहत से जुड़ी गैरसरकारी व विदेशी एजेंसियां व दानदाता देशों को राहत कार्यों की सामग्री का वितरण और उनका निरीक्षण करने का काम अपने हाथ में लेते हुए मदद की रफ्तार तेज करनी चाहिए। हालांकि साठ हजार फौजी पहले से ही इस काम में लगे हुए हैं, लेकिन फौज के और लोगों को भी राहत कार्य के लिए आगे आना होगा। वरना पीड़ितों की मुसीबतें और बढ़ेंगी।
 
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