समस्त कीटनाशक जैविक विष हैं। विभिन्न प्रकार के विष अलग-अलग तरह से प्रभावी होते हैं। सभी विष जीव कोशिकाओंं में सतत् चल रही रासायनिक जीवन प्रक्रिया को बाधित कर देते हैं। ऐसे कीटनाशकों के प्रयोग से रक्त कैंसर, ब्रेन कैंसर और सॉफ्ट टिश्यू सरकोमा नामक कैंसर होने की दर अधिक होती है। प्रतिरोधात्मक शक्ति के क्षीण होने से भी कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। कीटनाशक जैविक विष होते हैं। विभिन्न प्रकार के रासायनिक विष, मानव शरीर पर उनके कुप्रभाव की संभावना तार्किक है। यहां तक इनसे कैंसर भी हो सकता है। यह साक्षय कीटनाशकों के व्यापक प्रयोग पर धीरे-धीरे सामने आए हैं। कीटनाशकों के व्यापक प्रयोग से अमेरिका में पक्षी विलुप्त हो गए। पक्षियों का कलरव बंद हो गया, वादियां शांत हो गईं। इसी को आधारित कर रेसेल कारसन ने 1962 में ‘साईलेन्ट स्प्रिंग’ पुस्तक लिखी, जो क्रांतिकारी सिद्ध हुई। पहली बार कीटनाशकों के घातक प्रभाव उजागर हुए और मीडिया ने भी इसे प्रमुखता से उठाया जिसके कारण जनसाधारण भी उद्वेलित हुआ और सरकार जागी। विश्व भर में प्रतिक्रिया हुई। वातावरण में इस विष के प्रतिवर्ष हजारों टन घुलने के प्रति लोग सजग हुए।
समस्त कीटनाशक जैविक विष हैं। विभिन्न प्रकार के विष अलग-अलग तरह से प्रभावी होते हैं। सभी विष जीव कोशिकाओंं में सतत् चल रही रासायनिक जीवन प्रक्रिया को बाधित कर ही इसमें सफल होते हैं। हर कोशिका को जीवित रहने और अपना कार्य करने के लिए ऊर्जा का आवश्यकता होती है। कोशिका में पोषक तत्वों की ऑक्सीकरण प्रक्रिया से ऊर्जा उतपन्न होती है, जो एटीपी के रूप में उपलब्ध होती है। अधिक क्रियाशील और सृजनशील कोशिकाओंं की ऊर्जा की आवश्यकता कार्य अनुरूप अधिक होती है। इसी कारण सृजनशील (मल्टीप्लाईंग/डिवाईडिंग) कोशिकाएं विष के कुप्रभाव के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। सूक्षम मात्रा में व्याप्त कीटनाशक मानव शरीर में सृजनशील कोशिकाओंं की सृजन एवं संवर्द्धन प्रकिया को बाधित करते हैं। बाधित जैविक प्रक्रिया से कोशिका की जीन संरचना में विकृति उतपन्न हो जाती है। फलस्वरूप सृजन और संवर्द्धन प्रक्रिया को बाधित करते हैं। बाधित जैविक प्रक्रिया से कोशिका की जीन संरचना में विकृति उत्पन्न हो जाती है। फलस्वरूप सृजन और संवर्धन को नियंत्रित और नियमित करने वाली प्रक्रियाएं नष्ट या विकृत हो जाती है और सामान्य कोशिका कैंसर कोशिका बन जाती है; अनियंत्रित विभाजन, अन्य कोशिकाओं पर आक्रमण की क्षमता, पोषक तत्वों की अपनी आवश्यकता के लिए रक्त वाहिनियां बनाने की क्षमता और शरीर में दूर किसी भी अंग में जाने की क्षमता प्राप्त कर लेती हैं।
जिन घरों में कीटनाशकों का प्रयोग होता है, उनके बच्चों में रक्त कैंसर, ब्रेन कैंसर और सॉफ्ट टिश्यू सरकोमा नामक कैंसर की घटने की दर अधिक होती है। प्रतिरोधात्मक शक्ति के क्षीण होने से भी कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। कीटनाशक प्रतिरोधात्म शक्ति को क्षीण करते हैं। बच्चों, बुजुर्गों और लंबे समय से बिमार लोगों में यह संभावना अधिक होती है, वे अधिक संवेदनशील होते हैं।
कीटनाशक और खरपतवार नाशक आर्सेनिक आधारित रसायन जैसे सोडियम आर्सिनेट और केल्सियम आर्सिनेट चिन्हित कैंसर कारक हैं। जानवरों पर परिक्षण एवं मानव अध्ययन के आधार पर डीडीटी, लिन्डेन, बेन्जिन हेक्साक्लोराइड, नइट्रोफिनोल्स, पेराडाईक्लोरोबेन्जीन, क्लारोडेन, कार्बामेट-आइपीसी व सीआइपीसी, को संभावीत कैंसरकारक के रूप में चिन्हित किया गया है। साथ ही इनहें छिड़काव के लिए जिन पेट्रोलियम आधारित द्रव्यों में घोला जाता है, उनमें स्थित ऐरेमैटिक साइक्लिक और अनसेच्यूरेटेड हाईड्रोकार्बन भी कैंसरकारक होते हैं। देश के बाजारों में व्यापक रूप में उपलब्ध मिलावटी कीटनाशक अतिघातक होते हैं।
कैंसर कारक कीटनाशक रसायनों के मानव शरीर पर प्रभाव से कैंसर होने में साधारण रूप से कई वर्ष लगते हैं। क्रमश: होते जीन विकृतिकरण समयोपरांत जब चरम पर पहुंचते हैं, तब कैंसर होता है। कुछ रक्त कैंसर इसके अपवाद हैं।
आमिर खान के बहुचर्चित कार्यक्रम ‘सत्यमेव जयते’ की एक कड़ी कीटनाशकों के दुष्प्रभावों पर थी। इसमें मैंने अपने दो अधय्यनों का ब्योरा दिया था। एक, प्रमुख न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट (एनटीडी) अविकसित मस्तिस्क वाले बच्चों का और दूसरा, जननांगों की जन्मजात विकृतियों का। पहला अध्ययन जयपुर के महिला चिकित्सालयों के प्रसव कक्षों के रजिस्टर में अंकित गंभीर जन्मजात विकृतियों पर आधारित था और दूसरा भटिंडा और पास के दो शिशु शल्य चिकित्सक के पास आए उपचार साध्य जन्मजात विकृतियों के बच्चों पर।
पहले अध्ययन में अविकसित मस्तिष्क वाले बच्चों की घटने की दर (इन्सीडेन्स) अधिक मिली। मस्तिष्क और स्पाईनल कॉर्ड गर्भावस्था के प्रारंभिक 6 सप्ताह में ही विकसित हो जाते हैं। अत: मस्तिष्क विकृति कारकों के अध्ययन के लिए हर अविकसित मस्तिष्क वाले बच्चे का गर्भाधान का महीना देखा गया- एल एम पी (आखिरी बार हुए मासिक का महीना) ।
हाल के अध्ययनों से सामने आया है कि अनेक कीटनाशक नर या मादा हार्मोन डिसरप्टर (क्षत विक्षत करने वाले) होते हैं। गर्भावस्था की उस अवस्था के दौरान जब जनननांग विकसित हो रहे हों तब अगर गर्भवति महिला इन कीटनाशकों के प्रभाव मे आए तो गर्भस्थ शिशु मे जननांगों की विकृतियां होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। जब अविकसित मस्तिष्क वाले बच्चों का गर्भाधान के महिनों में आकलन किया गया तो आश्चर्यजनक तथ्य सामने आया कि वर्ष के दो महिनों में यह दर अपेक्षाकृत कहीं अधिक थी। सवाल था की गर्भधारण के इन दो महिनों में ऐसा क्या था, जो मस्तिष्क विहिनता का कारण हो सकता था। अविकसित मस्तिष्क का प्रमुख कारण, फोलिक एसिड कमी हमें ज्ञात था। वर्ष के उन दो महिनों में फोलिक एसिड की जनसाधारण में अधिक कमी हमें ज्ञात करना था। विवेचन पर सामने आया कि ऐसा सर्वव्यापी कारण फोलिक एसिड रोधक कीटनाशक हो सकते हैं, जो उन दो महीनों में वातावरण व खान-पान की चीजों में अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होते हैं। अत: फोलिक एसिड रोधक कीटनाशकों को मस्तिष्क विहिनता के कारकों के रूप में प्रतिपादित किया गया।
दूसरे, पंजाब के अध्ययन के जननांगों की विकृति की घटने की दर अन्य विकृतियों की अपेक्षा अधिक थी। अविकसित, अर्धविकसित और विकृत नर व मादा जननांग और गुदाद्वार की विकृतियां। जननांगों की ऐसी विकृतियां, जिनके होने पर बच्चों को आधा अधूरा माना जाता है। अनेक कीटनाशक जन्मजात विकृति कारक होते हैं। पंजाब में प्रचुर मात्रा में कीटनाशक उपयोग में लिए जाते हैं। हाल के अध्ययनों से सामने आया है कि अनेक कीटनाशक नर या मादा हार्मोन डिसरप्टर (क्षत विक्षत करने वाले) होते हैं।
गर्भावस्था की उस अवस्था के दौरान जब जनननांग विकसित हो रहे हों तब अगर गर्भवति महिला इन कीटनाशकों के प्रभाव मे आए तो गर्भस्थ शिशु मे जननांगों की विकृतियां होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। अध्ययन क्षेत्र में प्रयोग में आने वाले कीटनाशकों में ऐसे हारमोन डिसरप्टर कीटनाशक प्रचुर मात्रा में काम में लिए जा रहे थे। ऐसे कीटनाशको का प्रयोग हो रहा था, जो हार्मोन डिसरप्टर और विकृतिकारक के रूप में चिन्हित हैं। अनुसंधानशाला में प्रयोग और जानवरों पर मान्य प्रयोगों के आधार पर ऐसे कीटनाशकों को हार्मोन डिसरप्टर और विकृतिकारक (टेराटोजन) की संज्ञा दी जाती है। हाल ही में कीटनाशक समर्थकों द्वारा प्रायोजित एक अंग्रेजी समाचार चैनल पर प्रसारित किया गया। कथित तौर पर यह प्रोग्राम आमिर खान के सत्यमेव जयते’ में प्रचारित ‘झूठ’ और अक्षेपों का उत्तर देने को था। प्रोग्राम में एक स्त्रिरोग विशेसज्ञ ने ‘डॉ काबरा’ के उपरोक्त अध्ययनों के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। हमारी सरकार नें पूरी जांच पड़ताल और समीक्षा कर ही कीटनाशकों को रजिस्टर कर उन के उत्पादन का लाइसेंस दिया है। अगर कोई कीटनाशक ‘पोंटेशियली कारसिनोजेनिक या टेराटोजेनिक’ होता तो हमारी सरकार उसकी अनुमत नहीं देती।
कीटनाशकों के संपर्क में आने से लंबे समयोपरांत कैंसर होने की संभावना होती है। बचपन में संपर्क में आने से कैंसर की संभावना अधिक हो जाती है।
जर्नल ऑफ कैंसर इंस्टीट्यूट में प्रकाशित अध्ययन रपट के अनुसार घर और घर के बगीचे में उपयोग में लिए गए कीटनाशकों से बच्चों में रक्त कैंसर की संभावना सात गुना बढ़ जाती है। साथ ही यह भी उजागर हुआ है कि जिन घरों में कीटनाशकों का प्रयोग होता है उनके बच्चों में रक्त कैंसर , ब्रेन कैंसर और सॉफ्ट टिश्यू सरकोमा नामक कैंसर की आघटन दर अधिक होती है।
प्रतिरोधात्मक शक्ति के क्षीण होने से भी कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। कीटनाशक प्रतिरोधात्मक शक्ति को क्षीण करते हैं। बच्चों बुजुर्गों और लम्बे समय से बीमार लोगों में यह संभावना अधिक होती है, वे अधिक संवेदनशील होते हैं। अमरीकन कैंसर सोसाइटी द्वारा प्रकाशित अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि आम उपयोग में लिए हार्बीसाइड (खरपतवार नाशक) और फंगीसाइड, विशेषकर मेकोप्रोप (एमसीपीपी) में नॉन हॉजकिन्स लिम्फोना नामक लिम्फ कैंसर अधिक होता है। ग्लायोफासेट (राउंड अप) नामक ऐसे कीटनाशक से ऐसे कैंसर के होने की संभावना 27 गुणा अधिक पाई गई।
99 अध्ययनों में से 75 में कीटनाशक से संपर्क और लिम्फोमा के बीच संबंध पाया गया। चार पीयर रिव्यूड विस्तृत मानक अध्ययनों से उजागर हुआ है कि ग्लायोफोसेट युक्त कीटनाशकों के संपर्क में आने वालों में, अल्प मात्रा में भी डीएनए विकृति और जेनेटिक म्यूटेशन होता है। 2007 में एन्वायरनमेन्टल हेल्थ पर्सपेक्टिव जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार उन माताओं में, जिनके गर्भावस्था के दौरान घर में कीटनाशकों का प्रयोग हुआ था, उनके बच्चों में अक्यूट ल्यूकीमीया (तीव्र रक्त कैंसर) और नॉनहाजकिन्स लिम्फोमा दो गुणा अधिक होते हैं। 2007 के एक केनेडियन अध्ययन के अनुसार पर्यावरण प्रदूषित होने से लड़कों में कैंसर, आस्थमा जन्मजात विकृतियां और टेस्टिक्यूलर डिसजेनेसिस सिंड्रोम (अविकसित या अपविकसित वृषण) की संभवनाएं अधिक होती हैं।
उपयोग – घरेलु बगीचे में
कुप्रभाव – प्रजनन स्वास्थ नयूरोटोक्सिसिटी, किडनी व लिवर की क्षति, जन्मजात विकृतियां
दुषप्रभाव- कैंसर,एन्डोक्राइन, डिसरप्शन, प्रजनन, स्वास्थ्य, न्यूरोटोक्सिसिटी, किडनी व लिवर की क्षति, जन्मजात विकृतियां।
उपयोग- घर और बाहर बेट्स(गोलियां)और जानवरों पर।
दुष्प्रभाव- कैंसर,एन्डोक्राइन डिसरप्शन, न्यूरोटोक्सिसिटि, किडनी व लिवर की क्षति।
उपयोग- घर के बगीचों में
कुप्रभाव – कैंसर, प्रजनन स्वास्थ, नयूरोटोक्सिसिटी, किडनी व लिवर की क्षती
लेखक संतोकबा दुर्लभजी स्मारक अस्पताल, जयपुर के प्रभारी विधि मेडिकल ऑडिट के निदेशक हैं।
समस्त कीटनाशक जैविक विष हैं। विभिन्न प्रकार के विष अलग-अलग तरह से प्रभावी होते हैं। सभी विष जीव कोशिकाओंं में सतत् चल रही रासायनिक जीवन प्रक्रिया को बाधित कर ही इसमें सफल होते हैं। हर कोशिका को जीवित रहने और अपना कार्य करने के लिए ऊर्जा का आवश्यकता होती है। कोशिका में पोषक तत्वों की ऑक्सीकरण प्रक्रिया से ऊर्जा उतपन्न होती है, जो एटीपी के रूप में उपलब्ध होती है। अधिक क्रियाशील और सृजनशील कोशिकाओंं की ऊर्जा की आवश्यकता कार्य अनुरूप अधिक होती है। इसी कारण सृजनशील (मल्टीप्लाईंग/डिवाईडिंग) कोशिकाएं विष के कुप्रभाव के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं। सूक्षम मात्रा में व्याप्त कीटनाशक मानव शरीर में सृजनशील कोशिकाओंं की सृजन एवं संवर्द्धन प्रकिया को बाधित करते हैं। बाधित जैविक प्रक्रिया से कोशिका की जीन संरचना में विकृति उतपन्न हो जाती है। फलस्वरूप सृजन और संवर्द्धन प्रक्रिया को बाधित करते हैं। बाधित जैविक प्रक्रिया से कोशिका की जीन संरचना में विकृति उत्पन्न हो जाती है। फलस्वरूप सृजन और संवर्धन को नियंत्रित और नियमित करने वाली प्रक्रियाएं नष्ट या विकृत हो जाती है और सामान्य कोशिका कैंसर कोशिका बन जाती है; अनियंत्रित विभाजन, अन्य कोशिकाओं पर आक्रमण की क्षमता, पोषक तत्वों की अपनी आवश्यकता के लिए रक्त वाहिनियां बनाने की क्षमता और शरीर में दूर किसी भी अंग में जाने की क्षमता प्राप्त कर लेती हैं।
जिन घरों में कीटनाशकों का प्रयोग होता है, उनके बच्चों में रक्त कैंसर, ब्रेन कैंसर और सॉफ्ट टिश्यू सरकोमा नामक कैंसर की घटने की दर अधिक होती है। प्रतिरोधात्मक शक्ति के क्षीण होने से भी कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। कीटनाशक प्रतिरोधात्म शक्ति को क्षीण करते हैं। बच्चों, बुजुर्गों और लंबे समय से बिमार लोगों में यह संभावना अधिक होती है, वे अधिक संवेदनशील होते हैं।
कीटनाशक और खरपतवार नाशक आर्सेनिक आधारित रसायन जैसे सोडियम आर्सिनेट और केल्सियम आर्सिनेट चिन्हित कैंसर कारक हैं। जानवरों पर परिक्षण एवं मानव अध्ययन के आधार पर डीडीटी, लिन्डेन, बेन्जिन हेक्साक्लोराइड, नइट्रोफिनोल्स, पेराडाईक्लोरोबेन्जीन, क्लारोडेन, कार्बामेट-आइपीसी व सीआइपीसी, को संभावीत कैंसरकारक के रूप में चिन्हित किया गया है। साथ ही इनहें छिड़काव के लिए जिन पेट्रोलियम आधारित द्रव्यों में घोला जाता है, उनमें स्थित ऐरेमैटिक साइक्लिक और अनसेच्यूरेटेड हाईड्रोकार्बन भी कैंसरकारक होते हैं। देश के बाजारों में व्यापक रूप में उपलब्ध मिलावटी कीटनाशक अतिघातक होते हैं।
कैंसर कारक कीटनाशक रसायनों के मानव शरीर पर प्रभाव से कैंसर होने में साधारण रूप से कई वर्ष लगते हैं। क्रमश: होते जीन विकृतिकरण समयोपरांत जब चरम पर पहुंचते हैं, तब कैंसर होता है। कुछ रक्त कैंसर इसके अपवाद हैं।
गर्भस्थ शिशु पर कहर
आमिर खान के बहुचर्चित कार्यक्रम ‘सत्यमेव जयते’ की एक कड़ी कीटनाशकों के दुष्प्रभावों पर थी। इसमें मैंने अपने दो अधय्यनों का ब्योरा दिया था। एक, प्रमुख न्यूरल ट्यूब डिफेक्ट (एनटीडी) अविकसित मस्तिस्क वाले बच्चों का और दूसरा, जननांगों की जन्मजात विकृतियों का। पहला अध्ययन जयपुर के महिला चिकित्सालयों के प्रसव कक्षों के रजिस्टर में अंकित गंभीर जन्मजात विकृतियों पर आधारित था और दूसरा भटिंडा और पास के दो शिशु शल्य चिकित्सक के पास आए उपचार साध्य जन्मजात विकृतियों के बच्चों पर।
पहले अध्ययन में अविकसित मस्तिष्क वाले बच्चों की घटने की दर (इन्सीडेन्स) अधिक मिली। मस्तिष्क और स्पाईनल कॉर्ड गर्भावस्था के प्रारंभिक 6 सप्ताह में ही विकसित हो जाते हैं। अत: मस्तिष्क विकृति कारकों के अध्ययन के लिए हर अविकसित मस्तिष्क वाले बच्चे का गर्भाधान का महीना देखा गया- एल एम पी (आखिरी बार हुए मासिक का महीना) ।
हाल के अध्ययनों से सामने आया है कि अनेक कीटनाशक नर या मादा हार्मोन डिसरप्टर (क्षत विक्षत करने वाले) होते हैं। गर्भावस्था की उस अवस्था के दौरान जब जनननांग विकसित हो रहे हों तब अगर गर्भवति महिला इन कीटनाशकों के प्रभाव मे आए तो गर्भस्थ शिशु मे जननांगों की विकृतियां होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। जब अविकसित मस्तिष्क वाले बच्चों का गर्भाधान के महिनों में आकलन किया गया तो आश्चर्यजनक तथ्य सामने आया कि वर्ष के दो महिनों में यह दर अपेक्षाकृत कहीं अधिक थी। सवाल था की गर्भधारण के इन दो महिनों में ऐसा क्या था, जो मस्तिष्क विहिनता का कारण हो सकता था। अविकसित मस्तिष्क का प्रमुख कारण, फोलिक एसिड कमी हमें ज्ञात था। वर्ष के उन दो महिनों में फोलिक एसिड की जनसाधारण में अधिक कमी हमें ज्ञात करना था। विवेचन पर सामने आया कि ऐसा सर्वव्यापी कारण फोलिक एसिड रोधक कीटनाशक हो सकते हैं, जो उन दो महीनों में वातावरण व खान-पान की चीजों में अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होते हैं। अत: फोलिक एसिड रोधक कीटनाशकों को मस्तिष्क विहिनता के कारकों के रूप में प्रतिपादित किया गया।
दूसरे, पंजाब के अध्ययन के जननांगों की विकृति की घटने की दर अन्य विकृतियों की अपेक्षा अधिक थी। अविकसित, अर्धविकसित और विकृत नर व मादा जननांग और गुदाद्वार की विकृतियां। जननांगों की ऐसी विकृतियां, जिनके होने पर बच्चों को आधा अधूरा माना जाता है। अनेक कीटनाशक जन्मजात विकृति कारक होते हैं। पंजाब में प्रचुर मात्रा में कीटनाशक उपयोग में लिए जाते हैं। हाल के अध्ययनों से सामने आया है कि अनेक कीटनाशक नर या मादा हार्मोन डिसरप्टर (क्षत विक्षत करने वाले) होते हैं।
गर्भावस्था की उस अवस्था के दौरान जब जनननांग विकसित हो रहे हों तब अगर गर्भवति महिला इन कीटनाशकों के प्रभाव मे आए तो गर्भस्थ शिशु मे जननांगों की विकृतियां होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। अध्ययन क्षेत्र में प्रयोग में आने वाले कीटनाशकों में ऐसे हारमोन डिसरप्टर कीटनाशक प्रचुर मात्रा में काम में लिए जा रहे थे। ऐसे कीटनाशको का प्रयोग हो रहा था, जो हार्मोन डिसरप्टर और विकृतिकारक के रूप में चिन्हित हैं। अनुसंधानशाला में प्रयोग और जानवरों पर मान्य प्रयोगों के आधार पर ऐसे कीटनाशकों को हार्मोन डिसरप्टर और विकृतिकारक (टेराटोजन) की संज्ञा दी जाती है। हाल ही में कीटनाशक समर्थकों द्वारा प्रायोजित एक अंग्रेजी समाचार चैनल पर प्रसारित किया गया। कथित तौर पर यह प्रोग्राम आमिर खान के सत्यमेव जयते’ में प्रचारित ‘झूठ’ और अक्षेपों का उत्तर देने को था। प्रोग्राम में एक स्त्रिरोग विशेसज्ञ ने ‘डॉ काबरा’ के उपरोक्त अध्ययनों के बारे में अपने विचार व्यक्त किए। हमारी सरकार नें पूरी जांच पड़ताल और समीक्षा कर ही कीटनाशकों को रजिस्टर कर उन के उत्पादन का लाइसेंस दिया है। अगर कोई कीटनाशक ‘पोंटेशियली कारसिनोजेनिक या टेराटोजेनिक’ होता तो हमारी सरकार उसकी अनुमत नहीं देती।
जान का दुश्मन है कीटनाशक
कीटनाशकों के संपर्क में आने से लंबे समयोपरांत कैंसर होने की संभावना होती है। बचपन में संपर्क में आने से कैंसर की संभावना अधिक हो जाती है।
जर्नल ऑफ कैंसर इंस्टीट्यूट में प्रकाशित अध्ययन रपट के अनुसार घर और घर के बगीचे में उपयोग में लिए गए कीटनाशकों से बच्चों में रक्त कैंसर की संभावना सात गुना बढ़ जाती है। साथ ही यह भी उजागर हुआ है कि जिन घरों में कीटनाशकों का प्रयोग होता है उनके बच्चों में रक्त कैंसर , ब्रेन कैंसर और सॉफ्ट टिश्यू सरकोमा नामक कैंसर की आघटन दर अधिक होती है।
प्रतिरोधात्मक शक्ति के क्षीण होने से भी कैंसर की संभावना बढ़ जाती है। कीटनाशक प्रतिरोधात्मक शक्ति को क्षीण करते हैं। बच्चों बुजुर्गों और लम्बे समय से बीमार लोगों में यह संभावना अधिक होती है, वे अधिक संवेदनशील होते हैं। अमरीकन कैंसर सोसाइटी द्वारा प्रकाशित अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि आम उपयोग में लिए हार्बीसाइड (खरपतवार नाशक) और फंगीसाइड, विशेषकर मेकोप्रोप (एमसीपीपी) में नॉन हॉजकिन्स लिम्फोना नामक लिम्फ कैंसर अधिक होता है। ग्लायोफासेट (राउंड अप) नामक ऐसे कीटनाशक से ऐसे कैंसर के होने की संभावना 27 गुणा अधिक पाई गई।
99 अध्ययनों में से 75 में कीटनाशक से संपर्क और लिम्फोमा के बीच संबंध पाया गया। चार पीयर रिव्यूड विस्तृत मानक अध्ययनों से उजागर हुआ है कि ग्लायोफोसेट युक्त कीटनाशकों के संपर्क में आने वालों में, अल्प मात्रा में भी डीएनए विकृति और जेनेटिक म्यूटेशन होता है। 2007 में एन्वायरनमेन्टल हेल्थ पर्सपेक्टिव जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार उन माताओं में, जिनके गर्भावस्था के दौरान घर में कीटनाशकों का प्रयोग हुआ था, उनके बच्चों में अक्यूट ल्यूकीमीया (तीव्र रक्त कैंसर) और नॉनहाजकिन्स लिम्फोमा दो गुणा अधिक होते हैं। 2007 के एक केनेडियन अध्ययन के अनुसार पर्यावरण प्रदूषित होने से लड़कों में कैंसर, आस्थमा जन्मजात विकृतियां और टेस्टिक्यूलर डिसजेनेसिस सिंड्रोम (अविकसित या अपविकसित वृषण) की संभवनाएं अधिक होती हैं।
कुछ प्रमुख कीटनाशक व उनसे होने वाले दुष्प्रभाव
डिकामबा
उपयोग – घरेलु बगीचे में
कुप्रभाव – प्रजनन स्वास्थ नयूरोटोक्सिसिटी, किडनी व लिवर की क्षति, जन्मजात विकृतियां
2,4-डी
उपयोग– घर के आस पास, बगीचे मेंदुषप्रभाव- कैंसर,एन्डोक्राइन, डिसरप्शन, प्रजनन, स्वास्थ्य, न्यूरोटोक्सिसिटी, किडनी व लिवर की क्षति, जन्मजात विकृतियां।
फिप्रोनिल
उपयोग- घर और बाहर बेट्स(गोलियां)और जानवरों पर।
दुष्प्रभाव- कैंसर,एन्डोक्राइन डिसरप्शन, न्यूरोटोक्सिसिटि, किडनी व लिवर की क्षति।
ग्लायोफासेट
उपयोग- घर के बगीचों में
कुप्रभाव – कैंसर, प्रजनन स्वास्थ, नयूरोटोक्सिसिटी, किडनी व लिवर की क्षती
लेखक संतोकबा दुर्लभजी स्मारक अस्पताल, जयपुर के प्रभारी विधि मेडिकल ऑडिट के निदेशक हैं।
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