किशनगंगा परियोजना पर सुनवाई होगी अंतर्राष्ट्रीय पंचाट में

किशनगंगा परियोजना
किशनगंगा परियोजना

नई दिल्ली । जम्मू कश्मीर में निर्माणाधीन किशनगगंगा बिजली परियोजना को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच जारी विवाद पर सुनवाई अब अंतर्राष्ट्रीय पंचाट में होगी। इस मामले में सुनवाई के लिए पाकिस्तान ने अपने विशेषज्ञों के नाम हाल ही में तय किए हैं। इसके बाद भारत ने जेनेवा स्थित अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के एक जज न्यायमूर्ति पीटर तोमका और स्विस अंतर्राष्ट्रीय विधि विशेषज्ञ लूसियस कैफ्लिश को किशनगंगा परियोजना विवाद पर अपना पक्ष रखने के लिए नामांकित किया।

जम्मू कश्मीर में झेलम की सहायक नदी किशनगंगा पर भारत 330 मेगावाट की पनबिजली परियोजना का निर्माण कर रहा है जिस पर पाकिस्तान आपत्ति जताता है। पाकिस्तान ने 1960 में हुई सिंधु जल संधि के तहत अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय की मध्यस्थता की मांग की है। तोमका स्लोवाक विदेश मंत्रालय के विधि सलाहकार हैं। कैफ्लिश जिनेवा स्थित ग्रेजुएट इन्स्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में प्राध्यापक हैं। पाकिस्तान ने अपना पक्ष रखने के लिए ब्रूनो सिम्मा और जेन पॉलसन को नामांकित किया है। ब्रूनो अंतर्राष्ट्रीय अदालत के न्यायमूर्ति और नार्वे निवासी पॉलसन एक अंतर्राष्ट्रीय विधि कंपनी के प्रमुख हैं। अंतर्राष्ट्रीय पंचाट 1960 में संपन्न सिंधु जल संधि के तहत भारत और पाकिस्तान के मतभेद दूर करेगा। भारत और पाकिस्तान के अलावा तीन तटस्थ जजों की नियुक्ति भी की जाएगी। वास्तविक बहस प्रक्रिया शुरू होने से पहले एक तटस्थ जज की नियुक्ति अध्यक्ष के तौर पर की जाएगी। समझा जाता है कि पाकिस्तान, जम्मू कश्मीर में पनबिजली परियोजना के लिए किशनगंगा के बहाव से संबंधित दो मानकों की कानूनी व्याख्या चाहता है।

पहले मानक के तहत पाकिस्तान सिंधु जल संधि के प्रावधानों के अंतर्गत भारत की उस बाध्यता की व्याख्या चाहता है जिसके तहत उसे भारत को पश्चिम की ओर बहने वाली, सिंधु बेसिन की नदियों चिनाब, झेलम और सिंधु का पानी पाकिस्तान की ओर जाने देना है। दूसरा मानक यह है कि क्या किशनगंगा परियोजना इस बाध्यता को पूरा करती है। नई दिल्ली का कहना है कि सिंधु जल संधि के तहत किशनगंगा का पानी बोनार मदमाती नाला की ओर मोड़ना उसका अधिकार है। बोनार मदमाती नाला झेलम की सहायक नदी है जो वुलर झील में गिरती है और फिर जा कर झेलम में मिल जाती है। पाकिस्तान इस पर आपत्ति जताते हुए कहता है कि भारत की, पानी का बहाव मोड़ने की योजना से उसकी ओर किशनगंगा का पानी अवरूद्ध हो जाएगा। सिंधु जल संधि के अनुसार, अगर एक पक्ष अपने मध्यस्थों का नाम तय कर देता है तो दूसरे पक्ष को 30 दिन के अंदर अपने पैनल के लिए नाम तय करना होता है। भारत को किशनगंगा परियोजना पर सुनवाई के लिए अपना जवाब कल तक पाकिस्तान को भेजना है।
 

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