‘बांध बनेगा तो देश का विकास होगा, आपका विकास होगा। आपके घर में बिजली आएगी, रोड आएगी, रोजगार आएगा’। ये पंक्ति हमने कई बार सरकार के मुंह से सुन रखी है। लेकिन क्या सच में ऐसा होता है? बांध बनने से वहां के लोगों का विकास होना चाहिए, रोजगार मिलना चाहिए, उनकी जिंदगी पहले से बेहतर होनी चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं है, डैम बनता है और लोग अच्छी जिंदगी की आशा में अपना घर, जमीन-जायदाद सब छोड़ देते हैं लेकिन मिलता क्या है सिर्फ झूठे वायदे?
उत्तराखंड राज्य को पहाड़ और नदियों के लिए जाना जाता है लेकिन सरकार इसे बांधों का राज्य बनाने पर तुली हुई है। उत्तराखंड में इस समय 200 से ज्यादा डैम के प्रोजेक्ट प्रस्तावित हैं जिनमें से कुछ बन भी गये हैं। इन्हें प्रस्तावित डैम प्रोजेक्ट में से एक प्राजेक्ट है, किशाऊ बांध परियोजना।
किशाऊ बांध
किशाऊ बांध एशिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध होगा। एशिया का सबसे बड़ा बांध उतराखंड में ही टिहरी डैम है, जिसकी उंचाई 260 मीटर है। किशाऊ बांध दो राज्य हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा पर बन रहा है। ये बांध उत्तराखंड की मुख्य नदी टौंस नदी पर बनेगा जो आगे जाकर यमुना नदी में मिल जाती है। किशाऊ डैम सरकार की एक बड़ी महत्वाकांक्षी योजना है। दोनों राज्यों की सरकार ने इसके लिए भी सहमति भी दे दी है। इस डैम के निर्माण की लागत 10,500 करोड़ रुपए बताई जा रही है। जिसका खर्चा 90 फीसदी केन्द्र सरकार देगी और 10 फीसदी खर्चा दोनो राज्यों की सरकार वहन करेगी।
किशाऊ बांध 236 मीटर ऊंचा और 680 मीटर लंबा होगा, जिससे करीब 660 मेगावाट बिजली का उत्पादन होगा। इस बांध के बनने से हरियाणा, राजस्थान, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड को सिंचाई के लिए पानी मिलेगा। इन सबमें सबसे ज्यादा फायदा देश की राजधानी दिल्ली को दिया जायेगा, जिससे वहां पानी की आपूर्ति को पूरा किया जा सके। इस प्रोजेक्ट के तहत मोहराड़ से त्यूनी तक लगभग 32 किलोमीटर लंबी झील बनाई जाएगी। इस प्रोजेक्ट के लिए एक कमेटी का गठन कर दिया गया है, स्पेशल पर्पज व्हीकल (एसपीवी)। जिसमें हिमाचल और उत्तराखंड के पावर काॅरपोरेशन के अधिकारी शामिल हैं। किशाऊ डैम को बनाने की जिम्मेदारी टिहरी हाइड्रो डेवलेपमेंट काॅरपोरेशन (टीएचडीसी) को दी गई है।
किशाऊ बांध से पांच राज्यों को पानी और बिजली मिलेगी, ये इस परियोजना के लाभ हैं लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है जो ज्यादा खतरनाक प्रतीत होता है। किशाऊ डैम के बनने से 3000 हेक्टेयर भूमि जलमग्न हो जाएगी, हिमाचल प्रदेश के आठ गांव और उत्तराखंड के नौ गांव प्रभावित होंगे। यानी कि इन गांवों के लोगों को अपना घर, जमीन, सब कुछ छोड़ना होगा फिर इन लोगों के लिए भी वही कहा जाएगा जो टिहरी डैम से प्रभावित लोगों को कहा जाता है, विस्थापित। एक करीब-करीब अनुमान है कि इस परियोजना से दोनों राज्यों के लगभग 1000 परिवारों को अपना घर, जमीन छोड़ना पड़ेगा और लगभग 83,000 से भी ज्यादा पेड़ कटेंगे।
हमें ये डैम नहीं चाहिए
हमते देखते आ रहे हैं कि देश में जहां भी डैम बना है या बनाया जा रहा है, लोग उसका विरोध जरूर करते हैं। किशाऊ बांध से उत्तराखंड के लोगों की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी। तो हम वही जानने ऐसी ही एक जगह पर गये, क्वानू। उत्तराखंड के जो 9 गांव किशाऊ बांध के बनने से प्रभावित हो रहे हैं, उनमें क्वानू भी शामिल है। क्वानू तक पहुंचने के लिए पहले विकासनगर जाना पड़ता है। विकासनगर से जब क्वानू की ओर जाते हैं तो रास्ते में डाकपत्थर, हरिपुर मिलते हैं। इच्छाड़ी डैम भी रास्ते में ही पड़ता है जो कोटी में बना हुआ है। इच्छाड़ी बांध आजादी के बाद देश का पहला बनाया गया बांध है।
क्वानू में तीन गांव आते हैं, कोटा, मझगांव और मेलोट। ये गांव हिमचाल के बिल्कुल नजदीक हैं। उत्तराखंड और हिमचाल क बीच बस टौंस नदी का फासला है। गांव के एक स्थानीय निवासी का मानना है, मैं बचपन से ही सुनते आ रहा हूं कि हमारे यहां एशिया का दूसरा सबसे बड़ा बांध बनेगा लेकिन अभी तक बना नहीं है। यहां डैम बनना चाहिए, डैम से देश का विकास होगा, हमें रोजगार मिलेगा, पानी मिलेगा, बिजली मिलेगी, हरियाली होगी’। लेकिन यही मत पूरे गांव वालों का नहीं है। गांव के ही कुछ लोग कहते हैं, हम ये डैम नहीं चाहते हैं। बांध बनने से हमारे घर, जमीन सब चला जायेगा। यहां कुछ लोग ऐसे भी हैं जो किसान हैं, ऐसे लोग शहर में जाकर क्या करेंगे? क्वानू बेहद ही सुंदर जगह है, पहाड़ों के बीचों-बीच एक मैदानी जगह। इसे देखने पर लगता है हम पहाड़ में नहीं, किसी मैदानी क्षेत्र में चल रहे हैं।
स्थानीय निवासी बताते हैं, मैं इस बांध का सख्त विरोधी हूं। हमारे यहां पहले ही पलायन जैसी समस्या है, लेकिन त्यौहार में अब भी हमारे बहू-बेटे आ जाते हैं लेकिन जब गांव ही नहीं रहेगा तो हमारी संस्कृति कैसे बचेगी। हमारे गांव में पुरानी दीपावली का त्यौहार धूमधाम से मनाया जाता है क्योंकि दीपावली पर सभी लोग व्यस्त रहते हैं, हमारे यहां विश्व त्यौहार, नाग त्यौहार आज भी अपने पारंपरिक तरीके से मनाते हैं। यहां हम खुशी-खुशी रहते हैं आपस में लड़ाई भी होती है तो शाम को साथ में बैठकर सुलझा लेते हैं, एक-दूसरे की फसल काटने में मदद करते हैं। शहर चले जाएंगे तो वहां कौन है साथ में बैठने वाला’। ये पूरा क्षेत्र जनजतीय क्षेत्र में आता है, किशाऊ बांध से जो नौ गांव प्रभावित हो रहे हैं, वो सभी जनजातीय क्षेत्र में आते हैं।
वन अधिकार कानून, 2006
वन अधिकार कानून, 2006 आदिवासी और जनजाति लोगों को वनों में रहने का अधिकार देता है। लोकसभा में ये कानून 15 दिसंबर 2006 को पारित हुआ। ये कानून भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता और संवेदनशीलता की एक नायाब मिसाल के तौर पर जाना जाता है। देश की कुल जनसंख्या की 20 प्रतिशत आदिवासी आबादी जो जंगलों पर आश्रित है उसे इज्जत से जीने का अधिकार दिया गया। वन अधिकार कानून, 2006 एक ऐसा कानून बना है जो पहली बार औपनिवेशिक काल से सरकार द्वारा वन आश्रित समुदायों के अधिकारों को छीनने की चली आ रही परम्परा को उलट कर उनके पारम्परिक अधिकारों को मूल रूप मे प्रतिस्थापित करने का प्रावधान करता है।
यह कानून वनों में 13 व्यक्तिगत व सामुदायिक अधिकारों का प्रावधान करता है। इन अधिकारों में किसी भी सामुदायिक वन संसाधनों की सुरक्षा, पुनर्जनन, संरक्षण या प्रबन्ध के अधिकार शामिल हैं। आदिवासी और जनजातीय लोग इस अधिकार को एक उत्सव के रूप में मनाते हैं। जंगलों में बसे समुदाय और जनजातीय लोग इस कानून को एक ताबीज की तरह इस्तेमाल करते हैं। इस कानून ने एक बड़ी आबादी के अंदर आत्मविश्वास पैदा किया है।
क्वानू में एक इंटरमीडिएट स्कूल है, 3 गांवों की पंचायतें हैं और एक प्राइवेट क्लीनिक है जिसको इसी गांव के रहने वाले एक डाॅक्टर चलाते हैं। डा. जोशी का कहते हैं, ऐसा कोई रास्ता निकाला जाना चाहिए, जिससे ये बांध भी बन जाए और हमारा क्वानू भी बच जाए। पूर्व प्रधान कहते हैं, सरकार को अगर डैम बनाना ही है तो छोटा डैम बना ले, हमें उससे कोई दिक्कत नहीं है। कोटी में बना इच्छाड़ी डैम जैसा छोटा बना दें तो उससे हमें कोई आपत्ति नहीं होगी, चाहे फिर बिजली बनाओ या पानी रोको’। गांव के ही एक ग्रामीण का कहना है कि जब डैम बनेगा तो हमें कहीं और बसाया जाएगा, लेकिन क्वानू जैसी जगह कहां मिलेगी। वो कहते हैं कि यहां की जमीन बहुत उपजाऊ है आलू, मटर, गेहूं, मक्का जैसी फसलों की खेती होती है। यहां कभी सूखा नहीं पड़ता है, पूरे जौनसार भाग की राजधानी है क्वानू।
बांध क्यों बनाते हैं ?
बांध नदी के जल के प्रवाह को रोकने का एक अवरोध है और इसके पानी को बिजली और कई अन्य कामों के लिए उपयोग किया जाता है। बांध का निर्माण कंक्रीट, चट्टानों, लकड़ी ओर मिट्टी से किया जाता है। बांधों का उपयोग सिंचाई, पीने का पानी, बिजली बनाने तथा पुनः सृजन के लिए जल भण्डारण के रूप में किया जाता है। बांधों से बाढ़ को नियंत्रण में भी सहायता मिलती है। आप बांध के जलाशय से पीने का पानी प्राप्त कर सकते हैं अथवा बांध के जलाशय के जल से सिंचित क्षेत्रों के खाद्य पदार्थों का सेवन कर सकते हैं अथवा जल विद्युत सयंत्र से उत्पन्न बिजली प्राप्त कर सकते हैं। नदी का जल बांधों के पीछे उठता है और कृत्रिम झीलों का निर्माण करता है, जो जलाशय कहलाते हैं।
किशाऊ बांध अगर बना तो हर साल 18,510 लाख यूनिट बिजली पैदा करेगा। ये डैम सूखा पड़ने वाले दिनों में डाउन स्ट्रीम छिबरो, खोदरी, ढकरानी, ढालीपुर, कुल्हान और खारा बिजली परियोजनाओं को पानी की आपूर्ति करेगा। इस बांध से दिल्ली, हरियाणा को फायदा हो सकता है लेकिन उत्तराखंड के लिए, खासकर क्वानू के लिए तो ये बिल्कुल भी फायदेमंद नहीं है।
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