किसानों को लूटा, मिल मालिक हुए मालामाल


धान की खरीद और मिलिंग आदि में 50,000 करोड़ रुपए से अधिक का घोटाला हुआ है। इसका खुलासा नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में की है। इस रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने 17,985.49 करोड़ रुपए किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के रूप में दिए हैं। लेकिन सरकार के पास इस बात के सबूत नहीं हैं कि मिल मालिकों या राज्य सरकारों की एजेंसियों या भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने किसानों को ठीक-ठीक न्यूनतम समर्थन मूल्य का भुगतान किया है या नहीं। वहीं कई ऐसे लोगों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का भुगतान किया गया जिनकी पहचान संदिग्ध थी, तो कई जगहों पर भुगतान पाने वाले किसानों के नाम, पते, पहचान और बैंक खातों के बारे में सही जानकारी नहीं है। ऐसी गड़बड़ियाँ हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में पाई गई हैं।

दूसरी तरफ कैग रिपोर्ट के मुताबिक मिल मालिकों को भी 3,743 करोड़ का अनुचित लाभ पहुँचाया गया है। यह लाभ उन्हें मिलिंग में निकलने वाले सह-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट- भूसी, राइस ब्रान और टूटा चावल) के जरिए दिया गया है। गौरतलब है कि सह-उत्पाद की कीमतें हर साल बढ़ती रही है। इसके बावजूद 2005 से मिलिंग चार्ज में संशोधन नहीं किया गया। इससे 2009-10 से 2013-14 के दौरान आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में मिल मालिकों ने सह-उत्पाद बेचकर 3,743 करोड़ रुपए का अनुचित लाभ कमाए। यह सरकारी खजाने का नुकसान है। कैग ने धान मिलों को सह-उत्पाद से हुई इस अतिरिक्त लाभ का आकलन सिर्फ इन चार राज्यों के चुनिंदा जिलों से मिले आँकड़ों के आधार पर किया है। गौरतलब है कि इन जिलों से करीब 15.81 फीसदी धान खरीद होती है। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि देश भर में धान मिलों को इस प्रकार हुए अनुचित लाभ का पता लगाया जाए तो वास्तविक आँकड़ा बहुत ज्यादा होगा।

बताते चलें कि कस्टम मिल्ड राइस की इस प्रणाली में टैरिफ कमीशन 2005 के अनुसार, औसतन 100 किलो धान के बदले 67 किलो अरवा या 68 किलो उसना चावल मिल मालिक सरकार को देती है। और बाकी 32-33 किलो सह-उत्पाद (बाई-प्रोडक्ट- भूसी, राइस ब्रान और टूटा चावल) की कीमत मिल मालिक सरकार को देती है। गौरतलब है कि सह-उत्पाद की कीमत पिछले 10 सालों में नहीं बढ़ी है जबकि सह-उत्पाद का बाजार मूल्य काफी बढ़ गया है। इस तरह राज्य सरकारों ने मिल मालिकों को 3,743 करोड़ का अनुचित लाभ पहुँचाया गया है।

वहीं इस बाबत खाद्य मंत्रालय का कहना है कि टैरिफ कमीशन की सिफारिशों के आधार पर ही धान की मिलिंग के लिये जो भुगतान किया जाता है वह सह-उत्पाद के मूल्य को मिलों की आय में शामिल करके तथा उसके विरुद्ध उनके खर्चों का समायोजन करने के उपरान्त ही तय की जाती हैं। यानी मिलिंग की दरें सह-उत्पाद से मिलों को होने वाली कमाई को ध्यान में रखते हुए ही तय की जाती हैं। लेकिन कैग और मन्त्रालय दोनों ने माना है कि मिलिंग की दरें पिछले 10 साल से संशोधित नहीं हुई। पर यह यकीन करना मुश्किल है कि निजी चावल मिलें सरकार के लिये 10 साल पुराने दर पर काम कर रही हैं।

ओडिशा के आरटीआई कार्यकर्ता गौरीशंकर जैन का आरोप है कि कस्टम मिल्ड राइस (सीएमआर) की इस प्रक्रिया में देश भर की चावल मिलें सह-उत्पादों से सालाना करीब 10 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई कर रही हैं। इस बाबत कई आरटीआई लगा चुके जैन इस घोटाले की शिकायत आयकर विभाग, केन्द्रीय जाँच ब्यूरो (सीबीआई), केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) और नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) जैसी जाँच एजेंसियों से कर चुके हैं। इस भ्रष्टाचार के बाबत जैन का कहना है कि भारतीय खाद्य निगम और राज्य सरकारों के विभागीय कर्मचारी सोची-समझी योजना के तहत सह-उत्पाद से होने वाले आय का अनुचित लाभ मिल मालिकों को दे रहे हैं। इससे सरकार को करोड़ों की हानि हो रही है। जैन का तो यहाँ तक दावा है कि उनकी ही शिकायत पर प्रधानमन्त्री कार्यालय ने कैग को इसकी जाँच करने के लिये कहा। बहरहाल कैग की रिपोर्ट से धान मिलिंग में गड़बड़ियों और सह-उत्पाद से मिलों को अनुचित लाभ के उनके आरोपों को बल मिलता है।

धान खरीद के बाद पर्याप्त तथा उचित भंडारण के अभाव में 208.97 करोड़ रुपए के धान की हानि हुई। इसमें छत्तीसगढ़ में 179.76 करोड़, बिहार में 21. 28 करोड़ और ओडिशा में 7.93 करोड़ रुपए की क्षति शामिल है। इससे भी सरकार को सब्सिडी के मद में ज्यादा खर्च करना पड़ा है।

भारत के नियंत्रक एवं महालेखापरीक्षक (कैग) ने धान की सरकारी खरीद और मिलिंग में बड़े पैमाने पर गड़बड़ियाँ पायी हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि सरकारी प्रणाली में कैसे चावल मिल मालिकों को अनुचित लाभदिया गया है। कैग ने इन कमियों को दूर करने के साथ-साथ किसानों को आधार नंबर से जोड़ते हुए सरकारसे न्यूनतम समर्थन मूल्य का भुगतान सीधे किसानों के खातों में करने की सिफारिश की है।

कैग की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार, हरियाणा, ओडिशा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और तेलंगाना में धान मिलों ने कुल 7,570.78 करोड़ रुपए का मिलिंग या लेवी का चावल सरकारी एजेंसियों को वापस नहीं लौटाया है। वहीं सरकारी एजेंसियों के पास इस चावल की वसूली का कोई तरीका नहीं है। इससे सरकारी खरीद के चावल को मिलों द्वारा खुले बाजार में पहुँचाने का खतरा बढ़ गया है। वहीं पंजाब में राज्य की सरकारी एजेंसियों ने वर्ष 2009-10, 2012-13 और 2013-14 के दौरान धान की मिलिंग और डिलिवरी में देरी के लिये मिलों से ब्याज नहीं वसूल किया। इससे मिल मालिकों ने 159.47 करोड़ रुपए का अनुचित लाभ उठाया। इतना ही नहीं मंडियों से धान की खरीद पर मिलों को मंडी लेबर चार्ज मिलता है। लेकिन एफसीआई ने यह जाँचे बिना ही चावल मिल मालिकों को मंडी लेबर चार्ज का भुगतान कर दिया कि धान मंडी से खरीदा गया है अथवा फार्म गेट से। इससे एफसीआई के बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश क्षेत्रों के एफसीआई ने 2009-10 से 2013-14 के दौरान मिलों को 194.23 करोड़ रुपए तक का अनुचित लाभ पहुँचाया है।

धान में नमी उसके मूल्य और गुणवत्ता के लिहाज से महत्त्वपूर्ण कारक है। धान नमी के 17 प्रतिशत के अधिकतम स्तर पर खरीदी जाती है और 14 से 15 प्रतिशत की नमी पर मिलिंग की जाती है। इस प्रक्रिया में धान की नमी में दो प्रतिशत की कमी आती है जिसे सूखा कहा जाता है। गोकक समिति की सिफारिश के अनुसार अरवा चावल के लिये निर्धारित भाग 67 प्रतिशत में यह दो-तीन प्रतिशत सूखा भी शामिल था। इसलिए एक प्रतिशत अतिरिक्त सूखा भत्ता नहीं दी जानी चाहिए थी। लेकिन भारत सरकार ने 1998 से ही एक प्रतिशत अतिरिक्त सूखा भत्ता मिल मालिकों को दिया। इससे मिल मालिकों को 952.37 करोड़ का अनुचित लाभ हुआ है।

हद तो तब हो गई जब पंजाब की सरकारी एजेंसियों ने घटिया धान के लिये 9,788.50 करोड़ का पूरा भुगतान किया। कैग के अनुसार, वर्ष 2010-11 और 2013-14 के दौरान पंजाब की एजेंसियों ने 82.46 लाख मिट्रिक टन धान की खरीद की जिसकी कीमत 9,788.50 करोड़ रुपए थी। लेकिन खाद्य मन्त्रालय के निरीक्षण में इस धान की गुणवत्ता को मानकों के अनुसार नहीं पाई गई। फिर भी पंजाब में इस घटिया धान के लिए पूरा भुगतान किया गया।

इतना ही नहीं भारत सरकार ने कस्टम मिल्ड राइस (सीएमआर) के लिये जो मिलिंग चार्ज तय किया था उसमें 8 किलोमीटर तक का धान ढुलाई खर्च भी शामिल था। लेकिन वहाँ भी पंजाब की राज्य सरकारी एजेंसियों ने चावल मिल मालिकों को 163.72 करोड़ का अनुचित ट्रांसपोटेशन चार्ज दिया है।

धान और कस्टम मिल्ड राइस ढुलाई के मामले यह घोटाला बिहार के बहुचर्चित चारा घोटाले से कम नहींहै। भारतीय खाद्य निगम और राज्य की सरकारी एजेंसियाँ किसानों से धान खरीद कर मिलिंग के लिये धान मिलों को देती हैं। इस धान की ढुलाई या कस्टम मिल्ड राइस के लिये ट्रांसपोटर्स के साथ एक अनुबंध होता है जिसके तहत ट्रांसपोर्टरों को ट्रक का रजिस्ट्रेशन नंबर बताना होता है। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, 14 क्विंटल से लेकर 1800 क्विंटल तक धान या चावल की ढुलाई बड़े पैमाने पर मोटर साइकिल, आॅटो रिक्शा, जीप टैक्सी, कार आदि से दिखाई गई है। कैग के आॅडिट के अनुसार, इस तरह के संदिग्ध तरीकों से कुल 5744.09 मीट्रिक टन धान की ढुलाई हुई है जिसकी कीमत 6.58 करोड़ रुपए आंकी गई है। इस तरह का धान या चावल ढुलाई का गलत दावा बिहार, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के ट्रांसपोर्टरों ने किया है, जो बिहार के चारा घोटाले की याद दिलाता है।

बताते चलें कि कैग के आॅडिट रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश के शाहजहाँपुर में मोटर साइकिल से 176 क्विंटल धान कीढुलाई का मामला सामने आया है तो छत्तीसगढ़ में भी मोटर साइकिल से167 क्विंटल धान ढुलाई की बात सामने आई है। इस मामले में पंजाब ने तो हद ही पार कर दी है। कैग की रिपोर्ट के मुताबिक, आॅडिट के दौरान पंजाब में 3319 वाहनों के रजिस्ट्रेशन नंबरों की पड़ताल की गई। इस पड़ताल से चौंकाने वाली बात समाने यह आई है कि इनमें से 3231 यानी 97 फीसदी से ज्यादा नंबर ट्रांसपोर्ट विभाग के कंप्यूट्रीकृत आँकड़े से मैच ही नहीं हुए। जिन 88 वाहनों का पता चला उनमें भी 15 वाहन ट्रकों के बजाय कार, मोटर साइकिल, बस या जीप आदि निकले।

अपनी विस्तृत रिपोर्ट में कैग ने लिखा है कि यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि कैसे मोटर साइकिल, कार जैसे वाहनों का इस्तेमाल कर कई टन धान और चावल की ढुलाई की गई। कैग ने ट्रांसपोर्टरों द्वारा झूठे दावे पेश किए जाने और सरकारी धन के दुरुपयोग की आशंका के मद्देनजर ऐसे मामलों की जाँच कराने की आवश्यकता बताई है।

कैग की इस रिपोर्ट को बीते 8 दिसम्बर को संसद के पटल पर रखा गया। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इनगड़बड़ियों के चलते भारत सरकार के खाद्य सब्सिडी खर्च में इजाफा हुआ है, जिससे बचा जा सकता था। वहींसरकार ने इस आरोप को गलत बताया है। इस बाबत सरकार का कहना है कि मिलिंग चार्ज में भूसी, राइस ब्रान और टूटे चावल की कीमत को भी शामिल किया जाता है। जहाँ तक सह-उत्पाद के संशोधित दरों की बात है तो सरकार ने एक आयोग को 31 दिसम्बर तक संशोधित दरें बताने का जिम्मा सौंप दिया है।

चावल घोटाला : एक नजर में
धान खरीद व मिलिंग में 50,000 हजार करोड़ की गड़बड़ियाँ।
किसानों को मिले न्यूनतम समर्थन मूल्य 17,985.49 करोड़ रुपए के भुगतान पर संशय।
घटिया धान के लिये 9,788.50 करोड़ का पूरा भुगतान।
सह-उत्पाद से धान मिलों को 3,743 करोड़ का अनुचित लाभ।
चावल मिलें सरकारी एजेंसियों को नहीं लौटाया 7,570 करोड़ का चावल।
सूखा के लिये मिल मालिकों को 952.37 करोड़ का अनुचित लाभ दिया गया है।
फार्म गेट से हुई खरीद पर भी दिया 194.23 करोड़ मंडी लेबर चार्ज।
चावल की डिलिवरी में देरी के बावजूद पंजाब में नहीं वसूला मिल मालिकों से 159.47 करोड़ का ब्याज।
मिल मालिकों को 163.72 करोड़ का अनुचित ट्रांसपोर्टेशन चार्ज दिया गया।
ट्रांसपोर्टरों ने गलत दावा कर 6.58 करोड़ का भुगतान लिया।

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