किसानों के लिए वरदान थायो यूरिया जैव नियामक


कृषि में पानी की भूमिका के बारे में हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं। किंतु बीते कुछ दशकों से जिस तरह से पानी की मांग में बढ़ोतरी और पानी के संसाधनों में कमी आई है उसे देखते हुए कृषि के सुखद भविष्य के बारे में विश्वासपूर्वक कुछ भी कह पाना कठिन है। साल दर साल मानसून का देरी से आना और निरंतर घटते भूजल ने किसानों और सरकार के समक्ष अनेक यक्ष प्रश्न खड़े कर दिए हैं। ऐसी विकट परिस्थितियों में कृषि विशेषज्ञों ने पानी की कमी से निपटने के लिए ‘थायो यूरिया जैव नियामक’ नामक एक ऐसी तकनीक ईजाद की है जिससे कृषि के लिए पानी की कमी संबंधी समस्या बीते कल की कहानी बनकर रह जाएगी। दूसरे शब्दों मे कहा जा सकता है कि विज्ञान ने अब ‘बिन पानी सब सून’ कहावत सिरे से खारिज कर दी है।

इस नयी तकनीक के प्रयोग से किसान अब सरसों की फसल बिना पानी और गेहूं, चना एवं जौ जैसी फसलें अपेक्षाकृत कम पानी में ही उगा सकेंगे। देखने सुनने में यह तकनीक भले ही कल्पना प्रतीत होती हो। किंतु वैज्ञानिकों द्वारा दुर्गापुरा अनुसंधान केंद्र में इस तकनीक को भली भांति जांचा-परखा जा चुका है। राजस्थान के खंड चाकसू स्थित हरिपुरा गांव में एक किसान ने अपने खेतों में सरसों एवं गेहूं की फसल बोई। उसने आधी फसल में ‘थायो यूरिया जैव नियामक तकनीक का इस्तेमाल किया। करीब तीन महीने के पश्चात खेत में भरपूर पानी वाली फसल और जैव नियामक वाली फसल में अंतर साफ दिखाई दिया। सामान्य गेहूं की फसल कमजोर और रुखी थी जबकि तकनीक वाली फसल में दाने अधिक मोटे एवं गूदेदार थे।

राजस्थान नाभिकीय कृषि एवं जैव प्रौद्योगिकी संभाग एवं भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र मुंबई के वैज्ञानिकों ने करीब दस वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद ‘थायो यूरिया जैव नियामक’ तकनीक खोजने में सफलता हासिल की। इस अनुसंधान पर करीब डेढ़ करोड़ रुपये खर्च हुए। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार थायो यूरिया में जैव नियामक सल्फाहाइड्रिल नामक रसायन मिला होता है। यह जैव नियामक पौधे के अंदर प्रकाश संश्लेषण द्वारा निर्मित भोजन को पौधे के प्रत्येक भाग तक पहुंचाने में मदद करता है साथ ही यह पौधे को सूखने नहीं देता। पौधों में सल्फाहाइड्रिल की अधिक मात्रा होने के कारण पौधों में दाने बनने की प्रक्रिया में तेजी से विस्तार होता है। थायो यूरिया एक प्रकार का पाउडर होता है जिसे पानी में मिलाकर फसल और भूमि के आकार के अनुरूप छिड़काव किया जाता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार धरती के अंदर पानी तेजी से कम होता जा रहा है। ऐसे में यह तकनीक, जौ, तिल, सरसों, बाजरा, चना आदि फसलों के लिए वरदान सिद्ध हो सकती है। इन फसलों से सकारात्मक परिणाम मिलने पर इस तकनीक का प्रयोग सब्जियों पर भी किया जाएगा।
 
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