तपती दुपहरी में राजस्थान के पूर्व गृहमंत्री शांति धारीवाल जिस समय कोटा में ओलावृष्टि से तबाह हुए किसानों की रहनुमाई में विशाल रैली को सम्बोधित करते हुए राज्य की भाजपा सरकार की संवेदनहीनता को झिंझोड़ रहे थे। ठीक उसी समय राज्य के आपदा प्रबन्धन मंत्री गुलाबचंद कटारिया जयपुर में सामन्ती अन्दाज में हालात से पल्ला झाड़ते हुए कह रहे थे कि किसान आत्महत्या करेंगे तो सरकार इसमें क्यो करेगी? राजस्थान की रेतीली राजनीति में गर्माती सियासत में जख्मों पर नमक छिड़कने वाले इन लफ्जों ने अन्नदाता का लहू कितना खौलाया होगा, कहने की जरूरत नहीं। इस मामले में धारीवाल की तुरन्त प्रतिक्रिया थी कि समय आने पर किसान खुद अपने आँसुओं का हिसाब मांग लेंगे। लगभग दस हजार किसानों की भीड़ को सम्बोधित करते हुए धारीवाल ने कहा कि किसानों का सब कुछ खत्म हो गया है। सदमें और हताशा से अब तक इकलोते हाड़ोती संभाग में दो दर्जन मौतें हो चुकी हैं।
लेकिन राज्य सरकार ने राहत के नाम पर एक पैसा भी नहीं दिया है। अभी भी सरकार अगर नहीं चेती तो आन्ध्र प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे हालात हो जाएँगे और किसानों में भुखमरी की नौबत आ जाएगी। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का भी हवाला दिया। कहा कि ऐसी विपदा के समय में एफसीआई के गोदामों में जमा गेहूँ किसानों में बाँट दिया जाना चाहिए लेकिन पता नहीं क्यों सरकार ऐसा नहीं कर रही है? धारीवाल ने इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी की चुनावी दौरे में दिये गए भाषण की भी याद दिलाई कि किसानों को उनकी उपज का पचास फीसदी लाभ तो मिलना ही चाहिए। सांसद ओम बिरला ने धारीवाल पर पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस ऐसे नाजुक मौके पर सरकार का उपहास उड़ाने की बजाय सहयोग करे तो ज्यादा बेहतर होगा। उधर किसान नेता दशरथ सिंह की मानें तो, ‘किसानों को राहत ही देनी है तो फसल बीमा की मुनासिब रकम दिलवा दें तो उनका भला हो जाएगा। कृषि विशेषज्ञों की मानें तो फसल बीमा भी अपने आप में इतना उलझा हुआ है कि किसानों का कोई भला नहीं हो पाता। राजस्थान किसान महापंचायत के संयोजक रामपाल जाट का कहना है कि बीमा में पूरी तहसील को मुआवजे में इकाई बनाया गया है। इस दृष्टि से मुआवजा तभी मिलेगा जब तहसील स्तर पर फसल को पचास प्रतिशत से ज्यादा नुकसान होगा। केन्द्र इस गुत्थी को समझा भी तब जब आसमान से बेहिसाब आफत बरसी। हाड़ौती के दौरे पर पहुँचे केन्द्रीय कृषि राज्यमंत्री मोहन भाई कुंडारिया का कहना था कि अप्रैल से नई बीमा पालिसी लागू की जाएगी।
ओलावृष्टि से 8 हजार 574 करोड़ रुपए की फसलों की तबाही से बदहाल हुआ प्रदेश का अन्नदाता राजनेताओं से मदद माँग रहा है। लेकिन मदद की लिफाफेबाजी प्रदेश और केन्द्र सरकार के बीच झूल रही है। आपदा प्रबन्धन मंत्री गुलाबचंद कटारिया का कथन कई मौकों पर उपहासजनक होता है। पर यह तो राज्य सरकार की हृदयहीनता की पराकाष्ठा ही है कि तबाही से टूटे हुए किसानों को तात्कालिक कोई मदद देने की बजाय अभी सिर्फ गिरदावरी रिपोर्ट पर मंथन चल रहा है। आपदा एवं राहत विभाग के सचिव रोहित कुमार का कहना है कि गिरदावरी रिपोर्ट पर काम चल रहा है। आँकड़े एक जगह करने के बाद मुख्य सचिव को रिपोर्ट भेजी जाएगी। रिपोर्ट कब तक भेजी जाएगी? इस बारे में नहीं बता सकता। प्रश्न है कि क्या रिपोर्ट किसानों को पूरी राहत दे पाएगी? शूल से चुभते दो सवाल इस लिफाफेबाजी पर बुरी तरह चौंकाते हैं। पहला गाँव में हुए पचास प्रतिशत से ज्यादा फसल खराब होने पर केन्द्र सरकार राहत कोष से आर्थिक सहायता तो देगी लेकिन क्या हुड्डा समिति की सिफारिशों के अनुसार प्रति हेक्टेयर 25 हजार का मुआवजा दे पाएगी? दूसरा 13 हजार 300 गाँवों में फसल 25 से 49 प्रतिशत खराब है। नियमों में पचास प्रतिशत से कम खराब पर मुआवजे का प्रावधान ही नहीं है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या केन्द्र अपने प्रावधान बदलेगा अथवा राज्य सरकार इसकी भरपाई करेगी?
आपदा प्रबन्धन मंत्री गुलाब चंद कटारिया का लहजा तो राहत के नाम पर पूरी तरह तल्ख है। पिछली कांग्रेस सरकार पर तंज कसते हुए उनका कहना है कि काश्तकार तो कांग्रेस के कर्मों की सजा भुगत रहे हैं। उन्हीं की सरकार के दौरान बनाए गए नियमों के तहत ही मुआवजे की मशक्कत चल रही है। अब हमारी सरकार है, नियमों में बदलाव का मौका हमें मिल है लेकिन इसके नतीजे आने में कम-से-कम दो महीने तो लगेंगे ही। लगभग दो दर्जन से ज्यादा किसानों की सदमें में मौत और विपक्ष तथा किसान संगठनों की लगातार हाय-तौबा के बाद जो मुआवजा तय किया जा रहा है वो साफ-साफ घायल किसानों का मखौल उड़ाता सा लगता है। हैरान करती है यह बात कि कई हेक्टेयर फसल खराब होने के बाद भी मुआवजे के नाम पर सिर्फ 750 रुपए तय किये गए हैं। किसान नेता भीखाराम कहते हैं कि राज्य सरकार की माँग के बाद के बाद केन्द्र सरकार ने 4 हजार 500 रुपए से 12 हजार प्रति हेक्टेयर मिलने वाली मुआवजा राशि को बढ़ाकर 6 हजार 800 रुपए से लेकर 18 हजार रुपए तक करने का संकेत दिया है। बावजूद इसके राज्य सरकार मुआवजा रकम सिर्फ 750 रुपए क्यों देना चाहती है? अकेले गेहूँ की फसल की बात करें तो, बुआई-जुताई, बीज-पानी के बाद प्रति बीघा 7 से 9 हजार रुपए प्रति बीघा का खर्च आता है। राज्य सरकार की 750 की भीख से क्या होगा?
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