23 नवंबर 2012, जागरण प्रतिनिधि, महोबा। यह महज एक जलाशय नहीं है। कीरत सागर नाम के दोहरे निहितार्थ हैं। लगभग दो सौ एकड़ में फैले क्षेत्र में इसे सागर का स्वरूप दिया तो 1100 साल पहले इसी के तटबंध में चन्देली सेनाओं ने दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान के छक्के छुड़ा अपनी कीर्ति पताका फहराई। शायद इसीलिये महाराजा कीर्तिवर्मन ने इसका नाम कीरत सागर रखा। महोबा के शौर्य की मूक गवाह पुरातत्व संरक्षित यह धरोहर अवैध कब्जों की चपेट में आ अपना अस्तित्व खो रही है।
इतिहास गवाह है जब तक कीरत सागर में पानी रहा जिला मुख्यालय में जलसंकट नहीं रहा। अपनी दम पर पूरे एक हजार साल तक चंदेलों की पानीदारी का प्रतीक रही यह विरासत अब सिमटती जा रही है। सरोवर के पश्चिमी तट में आल्हा ऊदल के सैन्य प्रशिक्षक ताला-सैयद की पहाड़ियाँ समेत जलाशय क्षेत्रों में कई मकान बन गए हैं।
राठ रोड से जुड़े विशाल भूभाग में भूमाफिया अपना विस्तार कर रहे हैं। हद है कि दर्जनों लोग इसमें सब्जी की खेती करते हैं। इन लोगों ने एक दर्जन से ज्यादा स्थाई व अस्थाई निर्माण कर रखे हैं। सरोवर के दक्षिणी छोर में भी भूमाफियाओं का प्लाट बेचने का अभियान जारी है। चारों ओेर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण के चलते पानी का पहुंच मार्ग अवरूद्ध है।
नतीजतन बीते एक दशक से इसमें क्षमता का एक चैथाई जल भराव भी नहीं हो पा रहा। नतीजा भूगर्भीय पानी समाप्त होने के रूप में सामने है। तीन दशक पूर्व पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित विरासत घोषित किया था। पर संरक्षण के नाम पर हुआ कुछ नहीं!
इतिहास गवाह है जब तक कीरत सागर में पानी रहा जिला मुख्यालय में जलसंकट नहीं रहा। अपनी दम पर पूरे एक हजार साल तक चंदेलों की पानीदारी का प्रतीक रही यह विरासत अब सिमटती जा रही है। सरोवर के पश्चिमी तट में आल्हा ऊदल के सैन्य प्रशिक्षक ताला-सैयद की पहाड़ियाँ समेत जलाशय क्षेत्रों में कई मकान बन गए हैं।
राठ रोड से जुड़े विशाल भूभाग में भूमाफिया अपना विस्तार कर रहे हैं। हद है कि दर्जनों लोग इसमें सब्जी की खेती करते हैं। इन लोगों ने एक दर्जन से ज्यादा स्थाई व अस्थाई निर्माण कर रखे हैं। सरोवर के दक्षिणी छोर में भी भूमाफियाओं का प्लाट बेचने का अभियान जारी है। चारों ओेर बड़े पैमाने पर अतिक्रमण के चलते पानी का पहुंच मार्ग अवरूद्ध है।
नतीजतन बीते एक दशक से इसमें क्षमता का एक चैथाई जल भराव भी नहीं हो पा रहा। नतीजा भूगर्भीय पानी समाप्त होने के रूप में सामने है। तीन दशक पूर्व पुरातत्व विभाग ने इसे संरक्षित विरासत घोषित किया था। पर संरक्षण के नाम पर हुआ कुछ नहीं!
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