अपनी झील की पसलियों से
कीचड़ निकालने के वास्ते
उमड़ पड़ा है शहर
बड़ी झील को सहेजने-सँवारने में
लग गये हैं हाथ
तसलों-तगाडि़यों मंे भरी जा रही मिट्टी खुश है
कि पानी के लिए खाली कर रही है वह जगह
आसमान से अपना आफताब
हँस रहा है धूप-हँसी
और अब तगाड़ी-तसले उठाते लोगों के साथ
भिड़ गया है श्रमदान में खुद वह भी!
कीचड़ निकालने के वास्ते
उमड़ पड़ा है शहर
बड़ी झील को सहेजने-सँवारने में
लग गये हैं हाथ
तसलों-तगाडि़यों मंे भरी जा रही मिट्टी खुश है
कि पानी के लिए खाली कर रही है वह जगह
आसमान से अपना आफताब
हँस रहा है धूप-हँसी
और अब तगाड़ी-तसले उठाते लोगों के साथ
भिड़ गया है श्रमदान में खुद वह भी!
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