निकलता है 800 टन औद्योगिक कचरा, पीथमपुर में नष्ट होगा यूका वेस्ट
पीथमपुर स्थित रामकी इनवायरो इंजीनियर्स के भस्मक में मप्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने औद्योगिक कचरा जलाने की अनुमति नहीं दी है। इससे मप्र. की 500 कंपनियों के प्रतिमाह 800 टन कचरे के निपटान पर संकट खड़ा हो गया है। प्रदेश के एकमात्र व देश के सभी भस्मकों में केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के नए नियमों के तहत मल्टी इफेक्ट इवोपरेटर (एमईई) नहीं लगा है, लेकिन इस फैसले के बाद पीथमपुर में लोगों के स्वास्थ्य व पर्यावरण पर असर जरूर पड़ेगा।
नियमों के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी में एमपीपीसीबी भोपाल के यूका का कचरा रामकी के इंसिनरेटर में जलाने के लिए अनुमति देगा, लेकिन अनुमति से इंकार के बाद कचरे की राजनीति में बवाल हो चुका है और एमपीपीसीबी व रामकी अपने तर्क से कचरा पीथमपुर में ही जलाना चाहते हैं।
एमपीपीसीबी के एक अधिकारी कह रहे हैं कि यूका का कचरा जलाने के लिए भोपाल से विशेष अनुमति मिल सकती है। यदि रामकी इंजीनियर्स इस पर कार्रवाई करेगी तो उसे अन्य उद्योगों का कचरा जलाने को कहा जा सकता है। रामकी के अधिकारी कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में कहा गया था कि यूका का कचरा जलाया जा सकता है। उस समय केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों ने कहा था कि कोच्चि की हिंदुस्तान इंसेक्टिसाइड का कचरा भी यूका जैसा ही है। यूका का कचरा केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की निगरानी में मप्र. प्रदूषण बोर्ड की अनुमति से जल सकता है।
पीथमपुर के तीनों सेक्टर में 120 कंपनियां हैं जो खतरनाक रसायन और ठोस कचरा निकालती हैं। इनमें प्लास्टिक से लेकर कपड़ा बनाने और लोहा गलाने वाली कंपनियां भी हैं। घाटा बिल्लौद में नेशनल स्टील, मांडव डिस्टलरी और रुचि सोया के अलावा कई कंपनियां हैं, जिनसे वेस्ट निकलता है।
सेक्टर - 1 इंडो-बोरेक्स, मेडीलक्स, नाकोड़ाश्री, सोनिक बायोकेम, राज राजेंद्र प्रचालर, खरितक प्लास्टिलाइजर, महाले मिगमा, सिनकाम इंडस्ट्रीज।
सेक्टर -2 महाले मिग्मा, एवटेक, पेनासोनिक, कपिल स्टील, पावरएज, प्रकाश सॉलवेक्स, गुजरात अंबुजा, दिव्यज्योति, राहुल ऑर्गेनिक।
सेक्टर-3 त्रिवेणी वायर, पीईवी लॉयड इंसुलेशन, घड़ी डिटर्जेंट, आरएसपीएल, आरती केमिकल, कॉर्पोरेशन, रिपनटेक्स, अनंत स्टील, शिवानी स्टील, राठी स्टील, मोयरा स्टील जैसे लोहा उद्योग, प्रतिभा सिंटेक्स, रिटस्पिन, विक्रम डिटर्जेंट और सेज की लगभग 20 से अधिक कंपनियां।
लोकमैत्री संगठन व मप्र औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने कहा था कि हिंदुस्तान इंसेक्टिसाइड की तरह का कचरा जल गया है, इसका स्तर यूका के कचरे जैसा ही है और इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अनुमति दे दी लेकिन मप्र. प्रदूषण बोर्ड ही इसके लिए अनुमति देगा, जो संभव नहीं है।
पीथमपुर में लगभग 120 कंपनियां है, जो खतरनाक कचरा निकालती हैं। इन कंपनियों से 300 से 400 टन कचरा प्रतिमाह निकलता है। वही इस भस्मक से मप्र की लगभग 500 कंपनियां (इनमें से पीथमपुर की लगभग 50) सूचीबद्ध हैं, जो अपना औद्योगिक कचरा नष्ट करने के लिए भेजती हैं। मप्र के अन्य औद्योगिक नगरों से भी 300-400 टन कचरा निकलता है। अब कचरे का निपटान नहीं करने देने के आदेश के बाढ़ समस्या इस बात की है कि इस कचरे का क्या होगा? वहीं सेक्टर-3 में बंद हुई नील केमिकल द्वारा भी केमिकल डिस्पोजल किया जाता था, लेकिन इस सीपीसीबी के नियमों के बाद भी पूरे देश के किसी भी भस्मक में एमईई नहीं लगा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यहां यूका का कचरा जलना स्वाभाविक है। रामकी और एमपीपीसीबी के अधिकारी नाम न लिखने की शर्त पर कर रहे हैं कि मामला यूनियन कार्बाइड के कचरे को लेकर ही है, बाकी कचरे से कोई संबंध नहीं है।
पिछली यूपीए सरकार में ग्रुप ऑफ मिनिस्टर (जीओएम) के प्रमुख पी. चिदंबरम ने 27 हजार 600 टन कचरे के निपटान के लिए 100 करोड़ देने को कहा था। मामले में 300 करोड़ सुरक्षित रखे थे। रामकी परिसर ने मांग में साढ़े पांच करोड़ लगे हैं। रामकी इन्वायरो का कहना है कि हमने इसमें 18 करोड़ रुपए से अधिक लगाए हैं।
रामकी में औद्योगिक कचरे को जलाने पर मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रतिबंध के बाद उद्योग जगत ने इसका विकल्प ढूंढ निकाला है। उन्होंने महाराष्ट्र की तर्ज पर प्रदेश में प्लाजा टेक्नोलॉजी बेस्ड शासकीय भस्मक संयंत्र स्थापित करने की मंशा जताई है। 18 से 20 करोड़ रुपए की लागत से तैयार होने वाले इस संयंत्र के लिए शासन को भोपाल स्थित 125 एकड़ जमीन का सुझाव भी दिया है।
पीथमपुर औद्योगिक संगठन की मानें तो ‘रामकी’ लगातार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों की अनदेखी कर रहा है। इससे 400 उद्योगों को अपने रासायनिक कचरे के निष्पादन में परेशानी होती रही है। इससे निपटने के लिए प्रदेश में वैकल्पिक व्यवस्था के लिए महाराष्ट्र के भस्मक संंयंत्र के मॉडल को अपनाया जा सकता है। महाराष्ट्र के नागपुर में डीआरडीओ ने प्लाजा टेक्नोलॉजी बेस्ड भस्मक संयंत्र लगाया है। यह तकनीक ईको-फ्रेंडली है। इसमें कचरे के निपटान में होने वाला उत्सर्जन भी बेहद कम होता है। पीथमपुर औद्योगिक संगठन अध्यक्ष डॉ. गौतम कोठारी ने बताया, शासकीय भस्मक संयंत्र लगाने के लिए शासन को सुझाव दिया है।
डॉ. कोठारी ने बताया, भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड की 125 एकड़ जमीन शासकीय भस्मक संयंत्र के लिए पूरी तरह पर्याप्त है। भोपाल गैस त्रासदी के बाद इस जमीन के दूसरे उपयोग की संभावना भी नगण्य हो गई है। फिलहाल यह जमीन शासन के अधीन है। ऐसे में इस जमीन पर भस्मक संयंत्र लगाना चाहिए।
1. हर माह प्रदेश के 400 उद्योगों का 800 टन कचरा जलाया जा सकेगा।
2. औद्योगिक इकाइयों की ‘रामकी’ संयंत्र पर निर्भरता खत्म होगी।
3. विकल्प होने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और इसका फायदा उद्योगों को मिलेगा।
4. पर्यावरण प्रदूषणत होने से बचेगा।
5. प्लाजा टेक्नोलॉजी बेस्ड संयंत्र में यूका का कचरा भी न्यूनतम उत्सर्जन पर जलाया जा सकेगा।
पीथमपुर स्थित रामकी इनवायरो इंजीनियर्स के भस्मक में मप्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने औद्योगिक कचरा जलाने की अनुमति नहीं दी है। इससे मप्र. की 500 कंपनियों के प्रतिमाह 800 टन कचरे के निपटान पर संकट खड़ा हो गया है। प्रदेश के एकमात्र व देश के सभी भस्मकों में केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के नए नियमों के तहत मल्टी इफेक्ट इवोपरेटर (एमईई) नहीं लगा है, लेकिन इस फैसले के बाद पीथमपुर में लोगों के स्वास्थ्य व पर्यावरण पर असर जरूर पड़ेगा।
नियमों के तहत केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी में एमपीपीसीबी भोपाल के यूका का कचरा रामकी के इंसिनरेटर में जलाने के लिए अनुमति देगा, लेकिन अनुमति से इंकार के बाद कचरे की राजनीति में बवाल हो चुका है और एमपीपीसीबी व रामकी अपने तर्क से कचरा पीथमपुर में ही जलाना चाहते हैं।
ऑफ द रिकॉर्ड कह रहे, जलेगा
एमपीपीसीबी के एक अधिकारी कह रहे हैं कि यूका का कचरा जलाने के लिए भोपाल से विशेष अनुमति मिल सकती है। यदि रामकी इंजीनियर्स इस पर कार्रवाई करेगी तो उसे अन्य उद्योगों का कचरा जलाने को कहा जा सकता है। रामकी के अधिकारी कह रहे हैं कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में कहा गया था कि यूका का कचरा जलाया जा सकता है। उस समय केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड के अधिकारियों ने कहा था कि कोच्चि की हिंदुस्तान इंसेक्टिसाइड का कचरा भी यूका जैसा ही है। यूका का कचरा केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड की निगरानी में मप्र. प्रदूषण बोर्ड की अनुमति से जल सकता है।
खतरनाक कचरा देने वाली कंपनियां
पीथमपुर के तीनों सेक्टर में 120 कंपनियां हैं जो खतरनाक रसायन और ठोस कचरा निकालती हैं। इनमें प्लास्टिक से लेकर कपड़ा बनाने और लोहा गलाने वाली कंपनियां भी हैं। घाटा बिल्लौद में नेशनल स्टील, मांडव डिस्टलरी और रुचि सोया के अलावा कई कंपनियां हैं, जिनसे वेस्ट निकलता है।
सेक्टर - 1 इंडो-बोरेक्स, मेडीलक्स, नाकोड़ाश्री, सोनिक बायोकेम, राज राजेंद्र प्रचालर, खरितक प्लास्टिलाइजर, महाले मिगमा, सिनकाम इंडस्ट्रीज।
सेक्टर -2 महाले मिग्मा, एवटेक, पेनासोनिक, कपिल स्टील, पावरएज, प्रकाश सॉलवेक्स, गुजरात अंबुजा, दिव्यज्योति, राहुल ऑर्गेनिक।
सेक्टर-3 त्रिवेणी वायर, पीईवी लॉयड इंसुलेशन, घड़ी डिटर्जेंट, आरएसपीएल, आरती केमिकल, कॉर्पोरेशन, रिपनटेक्स, अनंत स्टील, शिवानी स्टील, राठी स्टील, मोयरा स्टील जैसे लोहा उद्योग, प्रतिभा सिंटेक्स, रिटस्पिन, विक्रम डिटर्जेंट और सेज की लगभग 20 से अधिक कंपनियां।
नियमानुसार लगना चाहिए एमईई
लोकमैत्री संगठन व मप्र औद्योगिक संगठन के अध्यक्ष गौतम कोठारी कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने कहा था कि हिंदुस्तान इंसेक्टिसाइड की तरह का कचरा जल गया है, इसका स्तर यूका के कचरे जैसा ही है और इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने अनुमति दे दी लेकिन मप्र. प्रदूषण बोर्ड ही इसके लिए अनुमति देगा, जो संभव नहीं है।
400 टन कचरे का क्या होगा
पीथमपुर में लगभग 120 कंपनियां है, जो खतरनाक कचरा निकालती हैं। इन कंपनियों से 300 से 400 टन कचरा प्रतिमाह निकलता है। वही इस भस्मक से मप्र की लगभग 500 कंपनियां (इनमें से पीथमपुर की लगभग 50) सूचीबद्ध हैं, जो अपना औद्योगिक कचरा नष्ट करने के लिए भेजती हैं। मप्र के अन्य औद्योगिक नगरों से भी 300-400 टन कचरा निकलता है। अब कचरे का निपटान नहीं करने देने के आदेश के बाढ़ समस्या इस बात की है कि इस कचरे का क्या होगा? वहीं सेक्टर-3 में बंद हुई नील केमिकल द्वारा भी केमिकल डिस्पोजल किया जाता था, लेकिन इस सीपीसीबी के नियमों के बाद भी पूरे देश के किसी भी भस्मक में एमईई नहीं लगा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद यहां यूका का कचरा जलना स्वाभाविक है। रामकी और एमपीपीसीबी के अधिकारी नाम न लिखने की शर्त पर कर रहे हैं कि मामला यूनियन कार्बाइड के कचरे को लेकर ही है, बाकी कचरे से कोई संबंध नहीं है।
पिछली यूपीए सरकार में ग्रुप ऑफ मिनिस्टर (जीओएम) के प्रमुख पी. चिदंबरम ने 27 हजार 600 टन कचरे के निपटान के लिए 100 करोड़ देने को कहा था। मामले में 300 करोड़ सुरक्षित रखे थे। रामकी परिसर ने मांग में साढ़े पांच करोड़ लगे हैं। रामकी इन्वायरो का कहना है कि हमने इसमें 18 करोड़ रुपए से अधिक लगाए हैं।
20 करोड़ से उद्योगों को दे सकते हैं सौगात
रामकी में औद्योगिक कचरे को जलाने पर मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रतिबंध के बाद उद्योग जगत ने इसका विकल्प ढूंढ निकाला है। उन्होंने महाराष्ट्र की तर्ज पर प्रदेश में प्लाजा टेक्नोलॉजी बेस्ड शासकीय भस्मक संयंत्र स्थापित करने की मंशा जताई है। 18 से 20 करोड़ रुपए की लागत से तैयार होने वाले इस संयंत्र के लिए शासन को भोपाल स्थित 125 एकड़ जमीन का सुझाव भी दिया है।
पीथमपुर औद्योगिक संगठन की मानें तो ‘रामकी’ लगातार प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानकों की अनदेखी कर रहा है। इससे 400 उद्योगों को अपने रासायनिक कचरे के निष्पादन में परेशानी होती रही है। इससे निपटने के लिए प्रदेश में वैकल्पिक व्यवस्था के लिए महाराष्ट्र के भस्मक संंयंत्र के मॉडल को अपनाया जा सकता है। महाराष्ट्र के नागपुर में डीआरडीओ ने प्लाजा टेक्नोलॉजी बेस्ड भस्मक संयंत्र लगाया है। यह तकनीक ईको-फ्रेंडली है। इसमें कचरे के निपटान में होने वाला उत्सर्जन भी बेहद कम होता है। पीथमपुर औद्योगिक संगठन अध्यक्ष डॉ. गौतम कोठारी ने बताया, शासकीय भस्मक संयंत्र लगाने के लिए शासन को सुझाव दिया है।
यह जमीन है मुफीद
डॉ. कोठारी ने बताया, भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड की 125 एकड़ जमीन शासकीय भस्मक संयंत्र के लिए पूरी तरह पर्याप्त है। भोपाल गैस त्रासदी के बाद इस जमीन के दूसरे उपयोग की संभावना भी नगण्य हो गई है। फिलहाल यह जमीन शासन के अधीन है। ऐसे में इस जमीन पर भस्मक संयंत्र लगाना चाहिए।
ये होगा फायदा
1. हर माह प्रदेश के 400 उद्योगों का 800 टन कचरा जलाया जा सकेगा।
2. औद्योगिक इकाइयों की ‘रामकी’ संयंत्र पर निर्भरता खत्म होगी।
3. विकल्प होने से प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और इसका फायदा उद्योगों को मिलेगा।
4. पर्यावरण प्रदूषणत होने से बचेगा।
5. प्लाजा टेक्नोलॉजी बेस्ड संयंत्र में यूका का कचरा भी न्यूनतम उत्सर्जन पर जलाया जा सकेगा।
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