केंचुआ खाद अपनाइए, कर्ज से मुक्ति पाइए

किसान इस देश के अन्नदाता हैं, किन्तु क्या वे सुखी एवं संपन्न हैं? आज हमारी कृषि की स्थिति ऐसी हो गई है कि अन्नदाता की ही परिस्थिति आर्थिक रूप से कमजोर होती जा रही है। इसका मुख्य कारण है खेती में ज्यादा खर्चा और उपज के मूल्य (मुख्यत: अनाज) में कमी। यही कारण है कि अधिक फसल होने के बाद भी किसान का आर्थिक लाभ नहीं बढ़ा है। इसके विपरीत रासायनिक खाद, कीटनाशक एवं संकरित बीज की खातिर लिया गया कर्जा दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है जो किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर रहा है। साथ ही इनके उपयोग से भूमि की सजीवता की हत्या हो रही है।

इस कर्जे से मुक्ति का एक ही उपाय है। किसान बाजार आधारित रासायनिक खाद एवं कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग करे। अपने खेत अथवा परिसर में उत्पन्न होने वाले कूड़े, कचरे एवं गोबर से अच्छा खाद बनाकर एवं गोमूत्र से अच्छा कीटरोधक बनाकर उसका उपयोग फसल उत्पादन एवं फसल रक्षण के लिए करें। किसानों द्वारा गङ्ढे में बनाई गई खाद अथवा गोबर के ढेर से निकाली गई खाद पूर्णत: पकी हुई खाद न होने की वजह से प्राय: उसके अपेक्षित परिणाम फसल पर नहीं होते जिसकी वजह से उन्हें रासायनिक खाद डालने पर मजबूर होना पड़ता है। हमारे खेत में उत्पन्न होनेवाले कूड़े कचरे का उपयोग करके अच्छी खाद कैसे बनाई जाए इसकी जानकारी इस लेख के माध्यम से दी जा रही है।

 

 

केंचुआ खाद कैसे बनाए:


हमारी मिट्टी में रहनेवाला केंचुआ रोज अपने वजन के बराबर कचरा/मिट्टी खाता है और उससे मिट्टी की तरह दानेदार खाद बनाता है। भूमि की उपरी सतह पर रहनेवाले लंबे गहरे रंग के केंचुए जो अधिकतर बरसात के मौसम में दिखाई पड़ते हैं, खाद बनाने के लिए उपयुक्त हैं। भूमि की गहरी सतह में रहनेवाले सफेद मोटे केंचुए खाद बनाने के लिए उपयुक्त नहीं हैं। केंचुए जमीन भी बनाते हैं जिससे मिट्टी में हवा का वहन होता है एवं मिट्टी की पानी धारण करने की क्षमता बढ़ती है। 20 फुट लंबे 1 बेड में करीब 1000 किलो तक सड़ा हुआ कचरा डाला जा सकता है। इसमें शुरूआत में 1000 केंचुए डालना आवश्यक है। रोज बेड में हल्का-हल्का पानी छिड़कना आवश्यक है ताकि 50 से 60 प्रतिशत नमी कायम रहे और बेड का तापमान 200 से 250 तक बना रहे। पूरे बेड को घास के पतले थर अथवा टाट की बोरियों से ढकना आवश्यक है ताकि सतह से नमी का वाष्पीकरण हो।

 

 

 

 

केंचुए हेतु अच्छा भोजन तैयार करना:


केंचुए गर्मी बर्दाश्त नहीं कर सकते। उन्हें किसी भी प्रकार का कच्चा कचरा, कच्चा गोबर भोजन के रूप में नहीं दिया जा सकता। कच्चे गोबर के विघटन की प्रक्रिया के दौरान उससे गर्मी उत्पन्न हो सकती है जो केंचुओं के लिए हानिकारक होती है। अत: हमारे खेत में उत्पन्न होने वाले कचरे एवं गोबर को अलग से सड़ाना आवश्यक है। इसके लिए पेड़ की छांव में 5′ ग 5′ ग 5′ फुट के ढेर बनाए जा सकते हैं। इस ढेर में कचरे का हर एक थर 5-7 इंच तक मोटा हो सकता है। हर एक थर को गोबर पानी से भिगोकर उस पर दूसरा थर चढ़ा सकते हैं। यदि सूखा अथवा ताजा गोबर उपलब्ध है तो कचरे के थर के उपर गोबर का एक थर (2-3 इंच) चढ़ाया जा सकता है। इसे भी नम करना आवश्यक है। इस तरह परत के उपर परत चढ़ाकर 5 फुट तक उंचा ढेर बनाया जा सकता है। पूरे ढेर को काले प्लास्टिक से ढंकना अनिवार्य है, यदि काला प्लास्टिक न हो तो पूरे ढेर को अच्छी तरह मिट्टी से ढंककर गोबर से लिपाई कर दें। ढेर में 2-3 दिन के अंतर से हल्का-हल्का पानी छिड़कना जरूरी है, ताकि नमी बनी रहे। 15 दिन बाद इस ढेर को पलटना जरूरी है ताकि उसकी गर्मी निकल जाए। 30 दिन बाद ढेर को अच्छी तरह फैला दें। उसकी गर्मी निकलने के बाद उसे वर्मी बेड में केंचुओ के भोजन के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है। इस तरह सड़ाया हुआ कचरा केंचुओ के लिये अच्छा भोजन है।

 

 

 

 

केंचुआ खाद तैयार करना:


केंचुए सूर्य का प्रकाश एवं अधिक तापमान सहन नहीं कर सकते इसलिए केंचुआ खाद के उत्पादन के लिए छायादार जगह का होना आवश्यक है। यदि पेड़ की छाया उपलब्ध न हो तो लकड़ी गाड़कर कच्चे घास फूस का शेड बनाया जा सकता है। यदि बड़े पैमाने में व्यावसायिक स्तर पर खाद का उत्पादन करना हो तो पक्का टिन अथवा सिमेंट की चद्दर का उपयोग करके शेड बनाया जा सकता है। केंचुआ खाद उत्पादन के लिए वर्मी बेड बनाए जाते हैं जिसकी लंबाई 20 फुट तक हो सकती है किन्तु चौड़ाई 4 फुट से अधिक एवं ऊंचाई 2 फुट से अधिक नहीं होनी चाहिए। इस बेड में पहले नीचे की तरफ ईंट के टुकड़े (3”-4”) फिर उपर रेत (2”) एवं मिट्टी (3”) का थर दिया जाता है जिससे विपरीत परिस्थिति में केंचुए इस बेड के अंदर सुरक्षित रह सके। इस बेड के ऊपर 6 से 12 इंच तक पुराना सड़ा हुआ कचरा केंचुओ के भोजन के रूप में डाला जाता है।

40 से 50 दिन के बाद जब घास की परत अथवा टाट बोरी हटाने के बादन हल्की दानेदार खाद ऊपर दिखाई पड़े, तब खाद के बेड में पानी देना बंद कर देना चाहिए। ऊपर की खाद सूखने से केंचुए धीरे-धीरे अंदर चले जाएंगे। ऊपर की खाद के छोटे-छोटे ढेर बेड में ही बनाकर एक दिन वैसे ही रखना चाहिए। दूसरे दिन उस खाद को निकालकर बेड के नजदीक में उसका ढेर कर लें। खाली किए गए बेड में पुन: दूसरा कचरा जो केंचुओ के भोजन हेतु तैयार किया गया हो, डाल दें। खाद के ढेर के आसपास गोल घेरे में थोड़ा पुराना गोबर फैला दें और उसे गीला रखें। इसके ऊपर घास ढंक दें। इस प्रक्रिया में खाद में जो केचुएं रह गए हैं वे धीरे-धीरे गोबर में आ जाते हैं। इस तरह 2-3 दिन बाद खाद केंचुओं से मुक्त हो जाती है। बचे कचरे को केंचुओं सहित नजदीक के वर्मी बेड में डाल देते हैं। खाद को छानकर बोरी में फेंक कर दें अथवा छायादार जगह में एक गङ्ढे में एकत्र करें और इस गङ्ढे को ढककर रखें ताकि खाद में नमी बनी रहे। इस प्रकार एक बेड से करीब 500 से 600 किलो केंचुआ खाद 30-40 दिन में प्राप्त होती है।

 

 

 

 

केंचुओं के दुश्मन:


केंचुआ हमें अच्छी खाद प्रदान करता है। केंचुओं द्वारा मिट्टी में लगातार उपर- नीचे आवागमन से मिट्टी सछिद्र बनती है जिससे उसमें हवा का वहन अच्छा होता है एवं मिट्टी की पानी धारण क्षमता बढ़ती है। मिट्टी में केंचुओ की उपस्थिति मिट्टी को उपजाऊ बनाती है। इसलिए केंचुओं को किसान का मित्र कहा जाता है। किन्तु किसान मित्र केचुओं के कुछ प्राकृतिक दुश्मन भी हैं। केंचुओं के प्राकृतिक दुश्मन इस प्रकार हैं। (1) लाल चींटी (2) मुर्गी (3) मेढक (4) सांप (5) गिरगिट एवं (6) कुछ मिट्टी में रहने वाले कीड़े अथवा मांसभक्षी जीव (जो केंचुओं की तरह ही होते हैं मगर केंचुओं को खाते हैं। इन सबसे बचने के लिए केंचुओं को नर्सरी की जमीन के ऊपर के स्थान पर रखना चाहिए। वर्मी बेड को अच्छी तरह पहले घास से या फिर हल्के कांटों से ढ़कना चाहिए।

केंचुआ खाद के शेड के चारों तरफ नाली खोदकर उसमें पानी भर देने से चींटीयों से रक्षा होती है। शेड के चारों ओर कांटेदार बाड़ लगाने से मुर्गियां अंदर नहीं आ सकेंगी। समय-समय पर वर्मी बेड का परीक्षण करना आवश्यक है ताकि हमें यह जानकारी मिले कि किसी दुश्मन की वजह से केंचुओं का नुकसान तो नहीं हो रहा है। लाल चींटीयों से बचाने के लिए वर्मी बेड में नीचे के थर पर राख का छिड़काव किया जाता है। यदि वर्मी बेड में चीटीयां हो गई हों तब 20 लीटर पानी में 100 ग्राम मिर्च पाउडर, 100 ग्राम हल्दी पाउडर, 100 ग्राम नमक एवं थोड़ा साबुन डालकर उसका हल्का-हल्का छिड़काव वर्मी बेड में किए जाने से चींटीयां भाग जाती हैं। यदि रसोईघर के कचरे से वर्मी कम्पोस्ट बना रहे हों तो वर्मी कम्पोस्ट इकाई को कम से कम जमीन से 2 फुट उपर रखना चाहिए ताकि उसमें चींटीयां नहीं जा पाएं। रसोईघर के कचरे के साथ पके हुए भोजन की जूठन न डाले। इसकी वजह से चींटीयां आती हैं। यदि वर्मी बेड में चीटीयां हो गई हों तो बेड के किनारे-किनारे गोमुत्र में पानी मिलाकर छिड़कने से भी चींटीयां भाग जाती हैं।

 

 

 

 

केंचुआ खाद के गुण:


इस तरह बनाए गए केंचुआ खाद में न सिर्फ नाइट्रोजन, पोटैशियम एवं फास्फोरस होता है वरन सभी 16 प्रकार के सूक्ष्म पोषक द्रव्य उपस्थित होते हैं। इसके साथ ही इसमें सेंद्रीय पदार्थ एवं उपयोगी जीवाणु होते हैं। इस खाद को जमीन में डालने से मिट्टी की उपजाऊ शक्ति एवं सजीव शक्ति बढ़ती है। 2-3 वर्षों तक केंचुआ खाद जमीन में डालने पर भूमि पूरी तरह उपजाऊ हो जाएगी एवं किसी भी तरह की रासायनिक खाद को डालने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। इसके साथ ही कीटों का प्रकोप कम हो जाएगा जिससे रासायनिक कीटनाशक की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

 

 

 

 

केंचुआ खाद के उपयोग की मात्रा:


1. पौधे के एक गमले के लिए जिसमें 8 से 10 किलो मिट्टी डाली गई हो, 100 से 200 ग्राम केंचुआ खाद पर्याप्त है। केंचुआ खाद हर 3 महीने के बाद यदि आवश्यकता हो तो पुन: डाली जा सकती है।

2. एक पेड़ में 1 से 10 किलो तक केंचुआ खाद डाली जा सकती है। खाद की मात्रा पेड़ के आकार अथवा उम्र के अनुसार बढ़ेगी।

3. एक एकड़ के लिए कम से कम पहले वर्ष 2000 किलो खाद डालना आवश्यक है। उसके बाद अगले वर्ष में सिर्फ 1000 किलो खाद डालने से भी अच्छे परिणाम आएंगे। कम्पोस्ट खाद डालते समय उसमें कम से कम 15 से 20 प्रतिशत नमी होना आवश्यक है ताकि उसकी जीवाणु शक्ति सक्रिय रहे। केंचुआ खाद के साथ रासायनिक खाद का प्रयोग कम से कम अथवा नहीं के बराबर करें। रासायनिक खाद के उपयोग से जैविक खाद की जीवाणु शक्ति का नुकसान होता है जिससे हमारी भूमि की उर्वरता बढ़ाने में इस खाद का उपयोग नहीं हो सकेगा। केंचुआ खाद उत्तम खाद है। यह हमारी भूमि के लिए ही नहीं वरन पेड़ पौधों व फसलों के लिए भी संपूर्ण भोजन है। इसके उपयोग से हमारी फसल स्वस्थ होगी, उसकी गुणवत्ता बढ़ेगी एवं किसान आत्मनिर्भर बनेंगे।

 

 

 

 

वर्मी वाश कैसे बनाएं:


जिस तरह केंचुओं का मल (विष्ठा) खाद के रूप में उपयोगी है, उसी तरह इसका मूत्र भी तरल खाद के रूप में बहुत असरकारक होता है। केंचुओं के मूत्र को इकट्ठा करने की एक विशेष पद्धति होती है जिसे वर्मी वाश पद्धति कहते हैं। वर्मी वाश बनाने के लिए 40 लीटर की प्लास्टिक की बाल्टी अथवा केन लेकर उसे निम्न प्रकार से भरा जाता है। बाल्टी में नीचे एक छोटा छेद करते हैं जिससे वर्मी वाश एकत्र किया जाता है।

1. इंट के छोटे टुकड़े या छोटे-छोटे पत्थर – 5 इंच का थर
2. रेत मोटी बालू – 2 इंच का थर
3. मिट्टी – 3 इंच का थर
4. पुराना खाद / गोबर – 9-12 इंच का थर
5. घास का आवरण – 1-1.5 इंच का थर

इस तरह बाल्टी को भरकर उसमें करीब 200 से 300 केंचुए छोड़ देते हैं। वर्मी वाश की बाल्टी छायादार जगह में रखी जाती है। रोज इसमें हल्का-हल्का पानी छिड़कते रहना चाहिए। 30 दिनों तक बाल्टी के नीचे के छिद्र को अस्थाई रूप से बंद कर दिया जाता है। 30 दिन के बाद इस छिद्र को खोल कर उसके नीचे एक बरतन रखा जाता है जिसमें वर्मी वाश एकत्र होता है। वर्मी वाश की बाल्टी में 4-4 घंटे के अंतर पर दिन में करीब 4 से 5 बार हल्के-हल्के पानी का छिड़काव किया जाता है। बाल्टी के छिद्र के नीचे के साफ बर्तन में बूंद-बूंद पानी एकत्र होता रहेगा।

 

 

 

 

वर्मी वाश का सिद्धांत:


वर्मी वाश मूलत: केंचुओं के पसीना और मूत्र को एकत्र करने की पद्धति है। 30 दिन तक केंचुए बाल्टी में सतत उपर से नीचे चालान करते हैं। सामान्य तौर पर केंचुए रात में भोजन लेने के लिए उपर आते हैं एवं दिन में नीचे चले जाते हैं। इस तरह केंचुओं के लगातार चालन से कम्पोस्ट के बेड में बारीक-बारीक नलिकाएं बन जाती हैं। केंचुए जब इन नलिकाओं से होकर गुजरते है तब केंचुओं के शरीर के ऊपर सतह से निकलने वाला स्राव जिसे मूत्र अथवा पसीना कहा जा सकता है, वह इन नलिकाओं में चिपक जाता है। जब उपर से डाला गया बूंद-बूंद पानी इन नलिकाओं में से होकर गुजरता है तब वह केंचुओं द्वारा निष्कासित स्राव को धोते हुए निकलता है। इस तरह जो पानी नीचे एकत्र होता है उसमें केंचुए के पसीने अथवा मूत्र का मिश्रण होता है।

 

 

 

 

वर्मी वाश का उपयोग:


वर्मी वाश एक बहुत ही पोषक द्रव्य है। इसमें पौधे के लिए उपयुक्त सभी सूक्ष्म पोषक तत्व उपयुक्त मात्रा में उपलब्ध होते हैं। इसी के साथ वर्मी वाश में हारमोन्स तथा एन्जाईम्स भी होते हैं जो फूलों एवं फलों के विकास में वृद्धि करते हैं। वर्मी वाश विशेषत: फल-फूल एवं सब्जियों के पौधों के लिए बहुत उपयोगी है। वर्मी वाश की प्रकृति गोमूत्र की तरह तीव्र है अत: कम से कम 20 भाग पानी में मिलाकर (एक लीटर वर्मी वाश में 20 लीटर पानी मिलाएं) ही उसका छिड़काव करना चाहिए। इस तरह पौधे के आसपास गोलाई में कम से कम आधा लीटर पानी मिलाया हुआ वर्मी वाश डाला जाता है।

वर्मी वाश के छिड़काव से न सिर्फ पौधों की वृद्धि अच्छी होती है बल्कि कीट नियंत्रण भी होता है। वर्मी वाश का प्रयोग किसी भी फसल पर किया जा सकता है परंतु बहुत छोटे रोपों पर इसका उपयोग न करें, क्योंकि उनके जल जाने का डर है। वर्मी वाश की मात्रा तीव्र होने से भी पौधे जल जाते हैं। अत: उचित मात्रा में पानी मिलाकर ही वर्मी वाश का उपयोग करें। वर्मी वाश का अच्छी तरह उपयोग करने से रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती है।

 

 

 

 

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